अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप की जीत के खिलाफ अमेरिका में भले ही प्रदर्शन हो रहे हों, लेकिन कई इस्लामी कट्टरपंथी बहुत खुश हैं. उन्हें लगता है कि ट्रंप के कारण अमेरिका के रुतबे और प्रतिष्ठा को धक्का लगेगा.
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चरमपंथी संगठन इस्लामिक स्टेट ने अमेरिकी चुनाव से पहले कहा था कि रिपब्लिकन उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप और डेमोक्रैट उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन, दोनों में कोई ज्यादा फर्क नहीं है. लेकिन जैसे ही ट्रंप की जीत की खबर आई तो आईएस के समर्थकों ने सोशल मीडिया और चैट एप्स ग्रुप में जश्न मनाना शुरू कर दिया.
एक पोस्ट में कहा गया, "जश्न मनाओ, अब वो अमेरिका का बदसूरत चेहरा दिखाएंगे.” एक अन्य यूजर ने लिखा, "मैं ट्रंप को लेकर बहुत आशावादी हूं क्योंकि वो मूर्ख है, घमंडी है और अति आत्मविश्वासी हैं और वो जॉर्ज बुश से भी ज्यादा मूर्ख हैं.”
इस्लामिक स्टेट के समर्थक एक पोस्टर को इंटरनेट और सोशल मीडिया पर खूब चला रहे हैं जिस पर लिखा है, "ट्रंप की अश्लीलता (अरब) तानाशाहों को शर्मिंदा करेगी और इससे जिहाद का दायरा बढ़ेगा.” एक यूजर ने लिखा, "ट्रंप का जीतना हमारे हक में होगा.”
देखिए ऐसी है इस्लामिक स्टेट की राजधानी रक्का
ऐसी है आईएस की 'राजधानी' रक्का
सीरिया का रक्का शहर आतंकवादी गुट इस्लामिक स्टेट की अघोषित राजधानी है. अब अमेरिका के समर्थन से कुर्द अरब सीरिया डेमोक्रेटिक फोर्स ने इस शहर को फिर से हासिल करने के लिए अभियान का एलान किया है.
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जब रक्का आबाद था
सीरिया में 2011 में गृहयुद्ध शुरू होने से पहले रक्का में दो लाख 40 हजार लोग रहते थे. लेकिन इनमें से 80 हजार लोग अब दूसरी जगहों पर जा चुके हैं.
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हाथ से निकला रक्का
तुर्की की सीमा के नजदीक यूफ्रेटस नदी पर बसा रक्का मार्च 2013 में ऐसी पहली प्रांतीय राजधानी थी जिस पर विद्रोहियों का कब्जा हुआ. उस वक्त अल कायदा से जुड़े अल नुसरा फ्रंट ने इस पर कब्जा किया.
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रक्का के लिए फूट
जनवरी 2014 में विद्रोहियों में आपस में लड़ाई छिड़ गई. इसमें एक तरफ अल नुसरा लड़ाके थे तो दूसरी तरफ वे जिन्होंने बाद में इस्लामिक स्टेट बनाया. लेकिन कामयाबी इस्लामिक स्टेट की बुनियाद रखने वालों को मिली.
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खिलाफत
पांच महीने बाद इराकी शहर मोसुल भी आईएस के कब्जे में आ गया और फिर आईएस के प्रमुख अबु बक्र अल बगदादी ने अपनी खिलाफत का एलान किया.
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दहशत से राज
इस्लामिक स्टेट ने रक्का में स्कूलों में ड्रेस कोड लागू किया और चर्चों को हमलों का निशाना बनाया. कई लोगों को अगवा किया और कइयों के सिर कलम किए.
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नर्क का चौक
शहर के जिस इलाके को कभी हेवन स्क्वेयर यानी स्वर्ग चौक कहा जाता था, उसका इस्तेमाल अब घिनौनी सजाएं देने के लिए किया जाता है जिससे लोग इसे नर्क का चौक कहने लगे.
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यौन गुलामों का कारोबार
रक्का के मुख्य इलाके में यौन गुलामों का कारोबार होता है, खास कर अगवा की गई यजीदी लड़कियों को यहां बेचा जाता है.
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शराब सिगरेट बैन
जिहादियों ने रक्का में कड़े इस्लामी कानूनों को लागू करते हुए शराब और सिगरेट पर बैन लगा रखा है. पुरुषों को दाढ़ी न काटने की हिदायत है तो महिलाओं को हर हाल में नकाब पहनने को कहा गया है.
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खरीददारी पर भी नियम
दुकानों में खरीददारी करने के लिए सिर्फ शादीशुदा लोग जा सकते हैं और वहां प्लास्टिक के पुतले रखने की सख्त मनाही है.
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नई व्यवस्था, नया निजाम
आईएस ने सभी प्रशासनिक कार्यों पर अपना नियंत्रण कर लिया है. वह स्कूलों का नया पाठ्यक्रम तय कर रहा है, नई इस्लामी अदालतें बना रहा है और शरिया कानून के मुताबिक नीतियां बना रहा है.
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रक्का से ही सब चलता है
सीरिया की राजधानी दमिश्क से 550 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित रक्का में हजारों विदेशी जिहादी भी आईएस में शामिल होने जाते हैं. खुफिया एजेंसियां का कहना है कि इसी शहर में विदेशों में हमलों की योजनाएं तैयार होती हैं.
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विदेशियों से जलन
आईएस के लिए लड़ने वाले विदेशियों को भरपूर सुख सुविधाएं दी जाती हैं. इसे लेकर अक्सर सीरियाई लोग अपनी आपत्ति भी जताते हैं जिन्हें विदेशी लड़ाकों के मुकाबले कमतर समझा जाता है.
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उनका इशारा शायद चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप की कही इस बात की तरफ था कि अमेरिका में मुसलमानों के आने पर पूरी तरह रोक लगा दी जाए. सऊदी अरब के खिलाफ अपनी टिप्पणी को लेकर भी ट्रंप सुर्खियों में रहे. ट्रंप ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अमेरिका के समर्थन के बिना सऊदी अरब ज्यादा समय तक टिका नहीं रह सकता.
वैसे इस्लामिक स्टेट ने आधिकारिक तौर पर ट्रंप की जीत पर कुछ नहीं कहा है. चुनाव से पहले इस्लामिक स्टेट ने सोशल मीडिया पर एक अंग्रेजी लेख में कहा था कि क्लिंटन और ट्रंप, दोनों ने ही यहूदी देश इस्राएल की सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को लेकर प्रतिबद्धता जताई है.
देखिए, ये हैं सबसे घातक आतंकवादी गुट
सबसे घातक आतंकवादी संगठन
आतंकवाद दुनिया भर में हजारों जानें ले रहा है. आतंकी संगठनों में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ सी लगी हुई है. एक नजर सबसे खूनी आतंकवादी संगठनों पर.
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1. बोको हराम
जी हां, इस्लामिक स्टेन नहीं, बोको हराम. यह दुनिया का सबसे घातक आतंकी संगठन है. अबु बकर शेकाऊ के इस संगठन ने अकेले 2014 में ही 6,644 लोगों की जान ली. 1,742 लोग घायल हुए. सैकड़ों लड़कियों को अगवा किया.
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2. इस्लामिक स्टेट
इस्लामिक स्टेट द्वारा मारे गए लोगों की संख्या भले ही बोको हराम से कम हो, लेकिन इस संगठन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जा रहा है. 2015 में इस्लामिक स्टेट ने 6,073 लोगों को मारा. कुल 5,799 आतंकी हमले किये. अबु बकर बगदादी का यह संगठन यूरोप, सीरिया, इराक, तुर्की और बांग्लादेश में सक्रिय है.
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3. तालिबान
अफगानिस्तान के गृह युद्ध के दौरान 1994 में तालिबान बना. इसे दुनिया का सबसे अनुभवी आतंकी संगठन कहा जाता है. 2015 में तालिबान ने 891 हमले किये, जिनमें 3,477 लोगों की जान गई. हिबातुल्लाह अखुंदजादा की अगुवाई वाला तालिबान अफगानिस्तान पर दोबारा कब्जा करना चाहता है.
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4. फुलानी उग्रवादी
इस संगठन के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी अभी भी नहीं है. खानाबदोश की तरह जगह बदलता यह संगठन नाइजीरिया में सक्रिय है. यह फुला कबीले का हथियारबंद संगठन है. ये फुलानी लोगों के जमींदारों को निशाना बनाता है. 2015 में इस उग्रवादी संगठन ने 150 से ज्यादा हमले किये और 1,129 लोगों की जान ली.
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5. अल शबाब
बोको हराम का संबंध जहां इस्लामिक स्टेट से है, वहीं अल शबाब के तार अल कायदा से जुड़े हैं. पूर्वी अफ्रीका में सक्रिय यह आतंकी संगठन सोमालिया को इस्लामिक स्टेट बनाना चाहता है. बीते साल अल शबाब ने 496 आतंकी हमले किये और 1,021 लोगों की जान ली.
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वैसे कुछ आईएस समर्थकों ने ट्रंप की जीत पर अमेरिका में होने वाले प्रदर्शनों पर भी खुशी जताई है. एक यूजर ने लिखा, "अगर हम उनके देश में असंतोष और परेशानियां पैदा कर पाएं तो वे इराक और सीरिया से हटने के बारे में सोचेंगे.”
जॉर्डन में रहने वाले अल कायदा के एक विचारक अबु मोहम्मद अल मकदीसी ने अमेरिका में ट्रंप विरोधी प्रदर्शनों को तवज्जो दी है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "ट्रंप का शासन अमेरिका में विभाजन की शुरुआत कर सकता है और इससे अमेरिका में टूट का दौर शुरू हो सकता है.” वैसे इन थोड़े से चरमपंथियों की बात छोड़ दें तो अमेरिका और दुनिया भर में ज्यादातर मुसलमान ट्रंप की जीत से डरे हुए हैं.