ट्रंप की धमकी, ओपन स्काई संधि भी छोड़ देगा अमेरिका
२२ मई २०२०
अमेरिका ने 35 देशों वाली ओपन स्काई संधि से निकलने की धमकी दी है. इस संधि के तहत सदस्य देश एक दूसरे के वायु क्षेत्र में निगरानी के लिए उड़ान भर सकते हैं. ट्रंप प्रशासन रूस पर संधि का उल्लंघन करने का आरोप लगा रहा है.
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वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि संधि से औपचारिक तौर पर बाहर आने में छह महीने का समय लग सकता है. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पूरे मामले को रूस पर डाल दिया है. उन्होंने कहा, "मैं समझता हूं कि रूस के साथ हमारे बहुत अच्छे संबंध हैं. लेकिन रूस इस संधि का पालन नहीं कर रहा है. तो जब तक वह ऐसा नहीं करता, तब तक हम इससे बाहर रहेंगे."
इससे पहले भी ट्रंप प्रशासन कई अंतरराष्ट्रीय संधियों और समझौतों से बाहर निकल चुका है.
क्याहैसंधि
ओपन स्काई संधि का प्रस्ताव सबसे पहले 1955 में अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आईजनहावर ने रखा था. इस पर आखिरकार 1992 में दस्तखत हुए और 2002 से इस पर अमल शुरू हुआ. इसका मकसद सदस्य देशों को एक दूसरे के वायुक्षेत्र में निगरानी उड़ानों की अनुमति देना है ताकि उनमें आपसी विश्वास मजबूत हो सके.
अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि रूस लगातार एक साल से पड़ोसी जॉर्जिया और बाल्टिक तट पर रूसी इलाके कालिनिनग्राद में अमेरिकी उड़ानों के लिए अड़चनें पैदा कर रहा है. इसके अलावा उनका यह भी कहना है कि रूस अमेरिकी और यूरोपीय क्षेत्र में अपनी उड़ानों का इस्तेमाल संवेदनशील अमेरिकी इंफ्रास्ट्रक्चर की पहचान करने के लिए कर रहा है जिसे युद्ध की स्थिति में निशाना बनाया जा सके.
भारतीय राजा धनुष और भालों से लड़ रहे थे तो सामने वाली सेना तोप से तबाही मचा रही थी. बाद में बंदूकों के साथ अंग्रेज आए जीतते चले गए. असल में युद्ध को इन खोजों ने ही निर्णायक बनाया.
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बारूद
धनुष बाण, भाले और तलवार से लड़ने वाली दुनिया में बारूद ने तहलका मचा दिया. 10वीं से 12 शताब्दी के बीच चीन में बारूद का आविष्कार हुआ. बारूद वहां से मध्य पूर्व और यूरोप पहुंचा. बारूद जिस जिस के हाथ लगा उसने परापंरागत हथियारों वाली सेनाओं को कुचल दिया.
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तोपखाना
बारूद की मदद से रणभूमि में तोपें गरजने लगीं. 16वीं शताब्दी में बारूद से भरे धातु के गोले सामने वाली सेना पर फेंके जाने लगे. बारूद से धातु का गोला दीवारों और बचाव पंक्ति के परखच्चे उड़ा देता था. तोपों के सामने किले भी बेकार साबित होने लगे.
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मशीन गन
19वीं शताब्दी के अंत में मशीन गन का आविष्कार हुआ और युद्ध पूरी तरह बदल गया. अब हमलावर बहुत दूर से दुश्मन पर निशाना साध सकते थे. गोलियों को ढोना भी आसान था. लेकिन मशीन गन के आविष्कार के बाद लड़ाइयों में बहुत ज्यादा लोग मारे जाने लगे. पहला विश्वयुद्ध इसका सबूत है.
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लड़ाकू विमान
1903 में विमान के आविष्कार के साथ ही सेनाओं को नया हथियार मिल गया. 1909 में अमेरिकी सेना ने पहला विमान खरीदा. उसमें कोई हथियार नहीं लगाए गए थे, वह सिर्फ टोह लेने के लिए था. बाद में खास हथियारों से लैस खास लड़ाकू विमान बनाये जाने लगे. लड़ाकू विमान लड़ाई के मैदान पर लड़ने के बजाए दुश्मन के घर में घुसकर मार करने लगे.
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पनडुब्बी
18वीं शताब्दी में पनडुब्बी बनाने का सिलसिला शुरू हुआ. लेकिन इनमें बेहतरी 20वीं शताब्दी में आई. दूसरे विश्वयुद्ध में लड़ाकू विमानों के सामने पानी के जहाज निढाल साबित हुए. पनडुब्बी के जरिये लड़ाकू विमानों को गच्चा देने का काम शुरू किया गया.
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रॉकेट और मिसाइल
तोपें कारगर हैं, लेकिन वो बहुत दूर तक मार नहीं कर सकतीं. इस समस्या को रॉकेट और मिसाइलों के जरिये हल किया गया. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बड़े पैमाने पर मिसाइलें और रॉकेट विकसित किये गये. अब सेना भेजे बिना हजारों किलोमीटर दूर से हमला किया जा सकता है.
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फाइटर जेट
द्वितीय विश्वयुद्ध के अंत में पहली बार दुनिया ने फाइटर जेट देखे. जेट इंजन की मदद से विमानों की रफ्तार बहुत ज्यादा तेज हो गई. बाद में जासूसी के लिए भी इनका इस्तेमाल होने लगा.
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परमाणु बम
पारंपरिक युद्ध में सबसे बड़ा बदलाव परमाणु हथियारों ने किया. हिरोशिमा और नागासाकी पर हमले के बाद जापान ने तुरंत आत्मसमर्पण कर दिया. परमाणु हमले के बाद दुनिया के कई देशों को लगने लगा कि बिना सेना इस्तेमाल किये सिर्फ परमाणु बमों के सहारे भी युद्ध जीते जा सकते हैं.
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कृत्रिम बुद्धि
भविष्य में युद्ध रोबोट और कृत्रिम बुद्धि के सहारे लड़े जाएंगे. 100 से ज्यादा विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र से दरख्वास्त कर चुके हैं कि वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाले हथियारों पर बैन लगाए. विशेषज्ञों के मुताबिक बारूद और परमाणु बम के बाद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस युद्ध में तीसरा बड़ा बदलाव लाएगी.
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कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका अगर इस संधि से निकलता है तो फिर ऐसी रूसी उड़ानें अमेरिकी वायु क्षेत्र में संभव नहीं हो पाएंगी. इसके बाद रूस भी समझौते से हट सकता है और फिर अन्य सदस्य देश भी रूसी उड़ानों के लिए अपने आकाश को बंद कर सकते हैं. इससे पूरे यूरोपीय क्षेत्र की सुरक्षा प्रभावित होगी, खासकर ऐसे समय में जब रूस समर्थित अलगाववादी यूक्रेन और जॉर्जिया के कुछ इलाकों पर नियंत्रण किए हुए हैं.
वाशिंगटन स्थित आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन के प्रमुख डेरिल किमबॉल का कहना है कि संधि को छोड़ने का ट्रंप का फैसला "अपरिपक्व और गैरजिम्मेदाराना है."
नाटो सदस्यों के साथ साथ यूक्रेन जैसे देश अमेरिका पर ओपन स्काई संधि को ना छोड़ने का दबाव डाल रहे हैं. इसके तहत निगरानी उड़ानें सदस्य देशों को औचक सैन्य हमलों जैसी गतिविधियों की जानकारी देती हैं.
रूस की राजधानी मॉस्को में सरकारी समाचार एजेंसी रिया ने रूसी विदेश उप मंत्री एलेक्सांदर ग्रुशको के हवाले से कहा है कि उनके देश ने संधि का उल्लंघन नहीं किया है और वह उन तकनीकी मुद्दों पर बात करने को तैयार है जिन्हें अमेरिका संधि का उल्लंघन बता रहा है.
दूसरीसंधिभीसवालोंमें
ट्रंप के ताजा कदम से इस बात को लेकर भी संदेह पैदा हो गए हैं कि क्या अमेरिका 2010 की नई स्टार्ट संधि को आगे बढ़ाएगा. यह संधि परमाणु हथियारों की तैनाती को सीमित करती है. इसके तहत अमेरिका और रूस अपने-अपने 1,550 से ज्यादा रणनीतिक परमाणु हथियारों की तैनाती नहीं कर सकते. नई स्टार्ट संधि अगले साल फरवरी में खत्म हो रही है.
दुनिया भर में इस वक्त नौ देशों के पास करीब 13,865 परमाणु बम हैं. हाल के सालों में परमाणु हथियारों की संख्या घटी है. चलिए देखते हैं कि किस देश के पास कितने परमाणु हथियार हैं.
तस्वीर: Reuters
रूस
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिप्री) के मुताबिक परमाणु हथियारों की संख्या के मामले में रूस सबसे आगे है. 1949 में पहली बार परमाणु परीक्षण करने वाले रूस के पास 6,500 परमाणु हथियार हैं.
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अमेरिका
1945 में पहली बार परमाणु परीक्षण के कुछ ही समय बाद अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर परमाणु हमला किया. सिप्री के मुताबिक अमेरिका के पास आज भी 6,185 परमाणु बम हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/H. Jamali
फ्रांस
यूरोप में सबसे ज्यादा परमाणु हथियार फ्रांस के पास हैं. उसके एटम बमों की संख्या 300 बताई जाती है. परमाणु बम बनाने की तकनीक तक फ्रांस 1960 में पहुंचा.
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चीन
एशिया में आर्थिक महाशक्ति और दुनिया की सबसे बड़ी थल सेना वाले चीन की असली सैन्य ताकत के बारे में बहुत पुख्ता जानकारी नहीं है. लेकिन अनुमान है कि चीन के पास 290 परमाणु बम हैं. चीन ने 1964 में पहला परमाणु परीक्षण किया.
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ब्रिटेन
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य ब्रिटेन ने पहला परमाणु परीक्षण 1952 में किया. अमेरिका के करीबी सहयोगी ब्रिटेन के पास 200 परमाणु हथियार हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Kaminski
पाकिस्तान
अपने पड़ोसी भारत से तीन बार जंग लड़ चुके पाकिस्तान के पास 150-160 परमाणु हथियार हैं. 1998 में परमाणु बम विकसित करने के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच कोई युद्ध नहीं हुआ है. विशेषज्ञों को डर है कि अगर अब इन दोनों पड़ोसियों के बीच लड़ाई हुई तो वह परमाणु युद्ध में बदल सकती है.
तस्वीर: picture-alliance/AP
भारत
1974 में पहली बार और 1998 में दूसरी बार परमाणु परीक्षण करने वाले भारत के पास 130-140 एटम बम हैं. चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद के बावजूद भारत ने वादा किया है कि वो पहले परमाणु हमला नहीं करेगा. साथ ही भारत का कहना है कि वह परमाणु हथियार विहीन देशों के खिलाफ भी इनका प्रयोग नहीं करेगा.
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इस्राएल
1948 से 1973 तक तीन बार अरब देशों से युद्ध लड़ चुके इस्राएल के पास 80 से 90 नाभिकीय हथियार हैं. इस्राएल के परमाणु कार्यक्रम के बारे में बहुत कम जानकारी सार्वजनिक है.
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उत्तर कोरिया
पाकिस्तान के वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान की मदद से परमाणु तकनीक हासिल करने वाले उत्तर कोरिया के पास 20 से 30 परमाणु हथियार हैं. तमाम प्रतिबंधों के बावजूद 2006 में उत्तर कोरिया ने परमाणु परीक्षण किया.
तस्वीर: Reuters
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एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी का कहना है कि हाल के दिनों में अमेरिकी अधिकारियों ने रूसी अधिकारियों से परमाणु हथियार वार्ताओं के नए दौर की शुरुआत की है, ताकि "परमाणु हथियारों के नियंत्रण के लिए नए उपायों का मसौदा तैयार करने" की प्रकिया शुरू की जा सके.
ट्रंप नई स्टार्ट संधि के स्थान पर एक दूसरी संधि लाना चाहते हैं और परमाणु हथियारों पर नियंत्रण की संधि में वह चीन को भी शामिल करना चाहते हैं. हालांकि चीन इससे इनकार कर चुका है, जिसके पास लगभग 300 परमाणु हथियार हैं. व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकाररॉबर्ट ओ'ब्रायन ने फॉक्स न्यूज को बताया कि उन्हें नहीं लगता कि अमेरिका नई स्टार्ट संधि को छोड़ेगा.
ओपन स्काई संधि को लेकर अमेरिका का फैसला छह महीने की समीक्षा के बाद आया है. इसमें अधिकारियों ने पाया कि रूस ने कई बार संधि का पालन नहीं किया. पिछले साल अमेरिकी प्रशासन रूस के साथ मध्यम दूरी के परमाणु हथियारों से जुड़ी संधि से बाहर निकल गया.