येरुशलम में अमेरिकी दूतावास के उद्घाटन के मौके पर गाजा पट्टी से उठने वाली लपटें और लड़ाई राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की खतरनाक और विध्वंसक ताकत का प्रमाण हैं. ये कहना है डीडब्ल्यू की मुख्य संपादक इनेस पोल का.
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क्या वजह हो सकती है कि डॉनल्ड ट्रंप ने येरुशलम में अमेरिकी दूतावास के उद्घाटन के लिए उस दिन को चुना जब 1948 में बने एक नए देश इस्राएल से फलस्तीनियों को निकाले जाने के 70 साल पूरे हो रहे हैं. अमेरिका का दूतावास परिसर पूर्वी येरुशलम में जाता है जिसपर फलस्तीनी लोग दो राष्ट्रों वाले समाधान की स्थिति में राजधानी बनाने के लिए दावा करेंगे. अमेरिका का कदम बहुत से फलस्तीनियों के मुंह पर एक कूटनीतिक तमाचा है. यह कदम किसी भी तरह हिंसा को जायज नहीं ठहराता, फिर भी अमेरिका का ये जाना बूझा उकसावा है. इसका मतलब है कि विरोध स्वरूप भड़की हिंसा में लोगों के मरने और घायल होने की जिम्मेदारी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की भी है.
ईरानी डील तबाह की
क्या वजह हो सकती है कि इस व्यक्ति ने सिर्फ एक दस्तख्त से मुश्किल से तय ईरान डील को तबाह कर दिया, अपने यूरोपीय साझीदारों से सलाह मशविरा किए बिना और आगे का रास्ता सोचे बिना? ऐसा करते हुए ट्रंप ने न सिर्फ मध्य पूर्व में तनाव भड़कने का जोखिम मोल लेने की तैयारी दिखाई, बल्कि यूरोप के साथ 70 साल के शांतिपूर्ण ट्रांस-अटलांटिक संबंधों की भी कोई परवाह नहीं की.
क्या वजह हो सकती है कि यह व्यक्ति अपने पूर्ववर्ती राष्ट्रपति की हर उपलब्धि को तार तार करने पर आमादा दिखता है और वह भी इस बर्बादी के बाद की योजना के बिना?
डॉनल्ड ट्रंप इससे पहले कभी एक निर्वाचित राजनेता नहीं रहे. इस पेशे से उनका कोई लेना देना नहीं था, जहां पर लेन-देन करने पड़ते हैं, समझौते भी करने पड़ते हैं और बड़ी सावधानी से नुकसानों के मुकाबले फायदों को तौलना पड़ता है. आदर्श स्थिति में, राजनेता सोचते हैं कि उनके कदमों के अभी और आगे चल कर क्या परिणाम हो सकते हैं.
आप जरा उनके प्रतीकों को देखिए जो उन्होंने अपनी ताकत दिखाने के लिए चुने हैं. उनके बनाए टावरों पर सुनहरे अक्षरों में उनका नाम लिखा है, जो कहता है: मुझे देखो, मैं सर्वोत्तम हूं और मैं जो चाहूं कर सकता हूं. भले ही वे "अमेरिका फर्स्ट" के नारे के साथ व्हाइट हाउस में आए हों, लेकिन असल में तो उनका संदेश "डॉनल्ड ट्रंप फर्स्ट" है.
कोई प्लान बी नहीं
ये असहास कोई नई बात नहीं है. लेकिन हाल की घटनाओं से फिर यह बात साफ हुई है कि इस व्यक्ति के पास कितनी विध्वंसक शक्ति है. ट्रंप के पास कोई प्लान बी नहीं है. जब भी वह कोई कदम उठाते हैं तो नतीजों के बारे में नहीं सोचते, जिनका असर अब से चार या आठ साल बाद महसूस होगा. उन्हें इस बात की जरा भी परवाह नहीं है कि उनके कदमों और जुबानी हमलों से अमेरिका के अलावा कोई अन्य देश भी प्रभावित होता है.
कैसा नजर आता है येरुशलम
इस्राएल-फलस्तीन टकराव का बड़ा मुद्दा येरुशलम है, 1967 में हुये इस्राएल-अरब युद्ध के दौरान दिखने वाले येरुशलम और आज के येरुशलम की तुलना कीजिये इन तस्वीरों में.
तस्वीर: Reuters/R. Zvulun
आज, माउंट ऑफ ऑलिव्स
पुराने शहर की दीवार और सोने का गुंबद डोम ऑफ द रॉक और पीछे नजर आने वाला पहाड़ जो पुराने शहर के पूर्व में स्थित है. यहां दुनिया का सबसे पुराना अभी भी इस्तेमाल हो रहा यहूदी कब्रिस्तान है जो पहाड़ के पश्चिमी और दक्षिणी ढलान पर स्थित है. एक वक्त में यहां बहुत सारे जैतून के पेड़ हुआ करते थे और इसलिये इस क्षेत्र का नाम माउंट ऑफ ऑलिव्स पड़ा.
तस्वीर: Reuters/R. Zvulun
1967, माउंट ऑफ ऑलिव्स
यदि प्राचीन ऑटोमन शहर की दीवार और दरगाह तस्वीर में नजर न आये तो लोग शायद यह समझ ही न पायें कि यह वही जगह है जिसकी तस्वीर हमने पहले देखी थी. यह तस्वीर 7 जून 1967 को ली गई थी जब अरब-इस्राएल युद्ध अपने चरम पर था.
तस्वीर: Government Press Office/REUTERS
आज, अल-अक्सा मस्जिद
चांदी के रंग के गुंबद और विशाल हॉल वाली अल-अक्सा मस्जिद टेंपल माउंट पर स्थित है. मुस्लिम इस मस्जिद को "नोबल सेंचुरी" कहते हैं लेकिन यह यहूदी धर्म का भी सबसे पवित्र स्थल माना जाता है. मान्यता है कि यहां ऐसे दो इबादतखाने थे जिनका उल्लेख बाइबिल में मिलता है. इसे मक्का और मदीना के बाद सुन्नी इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल कहा जाता है.
तस्वीर: Reuters/A. Awad
1967, अल-अक्सा मस्जिद
अल अक्सा का अनुवाद, "सबसे दूर स्थित" मस्जिद होता है. यह येरुशलम की सबसे बड़ी मस्जिद है. 1967 के छह दिवसीय युद्ध में येरुशलेम पर विजय प्राप्त करने के बाद इस्राएल का इस इलाके पर सख्त नियंत्रण रहा है. उस वक्त नेताओं के बीच यह सहमति बनी थी कि मस्जिद का प्रबंधन इस्लामिक धार्मिक ट्रस्ट, वक्फ के पास होगा.
तस्वीर: Reuters/
आज, दमिश्क दरवाजा
इस दरवाजे का नाम दमिश्क दरवाजा इसलिये पड़ा क्योंकि यहां से गुजरने वाली सड़क दमिश्क को जाती है. येरुशलम के फलस्तीनी हिस्से का यह व्यस्त प्रवेश द्वार है. पिछले दो वर्षों में यह कई बार सुरक्षा संबंधी घटनाओं और फलस्तीन की ओर से इस्राएल पर हमलों का केंद्र रहा है
तस्वीर: Reuters/R. Zvulun
1967, दमिश्क दरवाजा
इस ऐतिहासिक दमिश्क दरवाजे को तुर्क सुल्तान सुलेमान ने साल 1537 में तैयार करवाया था. यह काफी कुछ वैसा ही नजर आता है जैसा कि ये साल 1967 में नजर आता था. सात दरवाजों से होकर पुराने शहर और इसके अलग-अलग क्वार्टरों में प्रवेश संभव है.
तस्वीर: Reuters/
आज, ओल्ड सिटी
येरुशलम की ओल्ड सिटी 1981 से यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में है और काफी जीवंत नजर आती है. यहां विभिन्न धर्मों के कई महत्वपूर्ण स्थल हैं, मुस्लिमों के लिये डोम ऑफ द रॉक, अल अक्सा मस्जिद, यहूदियों के लिए पश्चिमी दीवार, ईसाइयों के लिये चर्च. साथ ही यहां खाने-पीने और खरीदारी करने के भी शानदार ठिकाने हैं. यह पर्यटकों का मुख्य आकर्षण केंद्र है.
तस्वीर: Reuters/A. Awad
1967, ओल्ड सिटी
यह तस्वीर साल जुलाई 1967 में ली गई थी. 50 साल बाद भी यहां कुछ चीजें बिल्कुल नहीं बदली हैं. सिर पर थाल लिये एक लड़का यहां की गलियों में ब्रेड बेच रहा है. अन्य लोगों की चहलकदमी भी साफ नजर आ रही है.
तस्वीर: Reuters/Fritz Cohen/Courtesy of Government Press Office
आज, वेस्टर्न वॉल
यह यहूदी लोगों के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है. यहूदी लोग यहां प्रार्थना करने आते हैं और दीवार की दरारों में कई बार नोट भी रख जाते हैं. यहां महिलाओं और पुरुषों के लिये अलग-अलग व्यवस्था है और यह स्थल साल भर खुला रहता है. लेकिन अंदर आने के लिये सुरक्षा जांच अनिवार्य है.
तस्वीर: Reuters/R. Zvulun
1967, वेस्टर्न वॉल
इस दीवार को "वेलिंग वॉल" के नाम से भी जाना जाता है लेकिन यहूदी इसे एक अपमानजनक शब्द मानते हैं और इसका इस्तेमाल नहीं करते. दीवार पर आने वालों की यह तस्वीर उस वक्त ली गई थी जब इस्राएल ने छह दिन चले युद्ध के बाद इस क्षेत्र को अपने नियंत्रण में ले लिया था. 19 साल पहले इस इलाके पर जॉर्डन ने कब्जा कर लिया था.
वह अपनी ताकत की अकड़ दिखा रहे हैं, क्योंकि वह ऐसा कर सकते हैं, हमेशा अपनी तरफ लोगों का ज्यादा से ज्यादा ध्यान खींचने के लिए. और तबाही के बीज बोकर ऐसा करना बहुत आसान भी है.
यही वजह है कि उन्होंने येरुशलम में अमेरिकी दूतावास के उद्घाटन के लिए ऐतिहासिक महत्व वाले दिन को चुना. और यही कारण है कि उन्होंने ईरानी डील पर चोट की, यह सोचे बिना कि इसके आगे क्या होगा.
जागो यूरोप
यूरोप और जर्मनी के लिए यह खतरे की घंटी है. दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के कई दशक बाद अब यूरोप के लिए जिम्मेदारी संभालने का वक्त आ गया है. इसका मतलब है कि वह अपनी विदेशी नीति और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों की जिम्मेदारी उठाए. जर्मनी को अंततः गंभीर होना पड़ेगा और फिर से अपनी सेना में निवेश शुरू करना होगा, भले अतीत में बहुत से जर्मन ऐसी सेना से संतुष्ट रहे हों, जो रक्षा के लिए पूरी तरह लैस नहीं थी.
ब्रेक्जिट से परे देखें, तो ब्रिटेन को स्पष्ट करना है कि वह सुरक्षा और रक्षा से जुड़े मुद्दों पर जर्मनी और फ्रांस के साथ कैसे सहयोग करेगा. और यूरोपीय संघ को अंदरूनी संकटों को रोकने का तरीका तलाशना होगा और एक मजबूत संगठन के तौर पर उभरना होगा, जिसके पास स्पष्ट परिभाषा हो कि वह अपने नागरिकों के लिए किस तरह का समाज बनाना चाहता है.
ये बड़ी चुनौतियां हैं, लेकिन एक बात साफ है: एक ऐसे देश पर निर्भर नहीं रहा जा सकता और न ही रहना चाहिए जिसे डॉनल्ड ट्रंप जैसा व्यक्ति चला रहा हो. अफसोस की बात है लेकिन गाजा पट्टी में सामने आ रहे हालात इसका प्रमाण हैं.
येरुशलम दीवारों के बगैर क्या होता?
प्राचीन काल से ही कवि येरुशलम की दीवारों पर गीत लिखते रहे हैं. दशकों पुराने अरब-इस्राएल के विवाद पर इसका साया नजर आता है. इन तस्वीरों में देखिए येरुशलम के दीवारों की कहानी.
तस्वीर: picture alliance/dpa
3000 साल के इतिहास में येरुशलम के पुराने शहर पर कई लोगों का कब्जा रहा. पारसियों और बेबिलोनियाई से लेकर आधुनिक दौर में जॉर्डन और इस्राएल तक. जितने तरह के शासन रहे उतनी ही तरह की दीवारें भी हैं. कुछ दीवारें जंग में खत्म हुई तो कुछ भूकंप में लेकिन इनके इर्द गिर्द की दुनिया लंबे समय से लगभग एक जैसी ही है.
तस्वीर: Imago/robertharding/A. Rotenberg
16वीं सदी में ओटोमन सुल्तान सुलेमान द मैग्नीफिसेंट ने 1517 में येरुशलम को अपने अधीन करने के बाद अपने पिता के नाम पर इस ऐतिहासिक दीवार को बनावाने का आदेश दिया.
तस्वीर: Reuters/R. Zvulun
पूरे शहर को घेरने वाली चूने पत्थर से बनी इन प्राचीन दीवारों की लंबाई करीब 4,018 मीटर है और औसत उंचाई करीब 12 मीटर जबकि औसत मोटाई 2.5 मीटर है.
तस्वीर: Picture-Alliance/Zuma Press/N. Alon
इन दीवारों पर 34 वॉचटावर बने हैं और सात मुख्य दरवाजे हैं जिनसे हो कर सारा ट्रैफिक शहर में आता जाता है. पुरातत्वविदों ने दो छोटे छोटे दरवाजों को दोबारा खोला है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Hollander
400 साल तक येरुशल ओटोमन राजाओं के ही अधीन रहा. 11 दिसंबर 1917 को ब्रिटिश जनरल एडमंड एलेनबाइ जाफा गेट से इस शहर में दाखिल हुए और इसके साथ ही 30 साल लंबे ब्रिटिश शासन की शुरुआत हुई.
तस्वीर: public domain
आज पुराने शहर के चारों और करीब चार किलोमीटर की परिधि में जो दीवार है उसके घेरे में दुनिया भर के यहूदी, मुसलमान, ईसाई, अरब, अर्मेनियाई, स्त्री और पुरुष एक दूसरे का सामना करते हैं. कोई यहां का बाशिंदा है तो कोई सैलानी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Järkel
इस्राएल में 2017 में बारिश नहीं के बराबर हुई है और सूखा पड़ने का अंदेशा है. इस्राएल के दो प्रमुख रब्बियों के साथ 2000 से ज्यादा लोगों ने इसी दीवार के पास जमा हो कर बारिश के लिए ईश्वर से प्रार्थना की. इस कार्यक्रम का आयोजन कृषि मंत्री उरी एरियल ने किया था.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Coex
पुराना शहर, इसकी दीवारें और यहां के धार्मिक स्थलों को लेकर एक बार फिर तनाव बढ़ गया है. इस्राएल और फलस्तीन दोनों दीवारों से घिरे 215 एकड़ के इलाके पर अपना अधिकार जताते हैं.
तस्वीर: imago
1967 की जंग के बाद इस्राएल ने पूरे येरुशलम पर कब्जा कर लिया लेकिन फलस्तीनी इसके पूर्वी हिस्से को भविष्य में बनने वाले अपने राष्ट्र की राजधानी बनाना चाहते हैं. इस हिस्से में बहुसंख्यक आबादी फलस्तीनी लोगों की है.
तस्वीर: Reuters/A. Awad
दीवारों के साए में ही रोजमर्रा की जिंदगी चलती रहती है. परिवार पिकनिक मनाते हैं, आस्थावान लोग प्रार्थना करते हैं, फेरीवाले सामान और खाने-पीने की चीजें बेचते है, और कलाकार इन दीवारों को अपना कैनवस बनाते हैं.