दुनिया अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर डॉनल्ड ट्रंप के 100 दिनों का इंतजार कर रही थी. लेकिन ट्रंप ने हफ्ते भर में ट्रेलर दिखा दिया.
विज्ञापन
अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन ने अमेरिकी राष्ट्रपति के पहले हफ्ते का मूल्यांकन किया है. चैनल कहता है, पहले 100 दिन भूल जाइये, हफ्ते भर में ही डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका और दुनिया को झकझोर चुके हैं. विरोध प्रदर्शनों और दुनिया भर से आने वाली प्रतिक्रियाओं के बीच राष्ट्रपति व्यापार, आप्रवासन और विदेश नीति जैसे मुद्दों पर अहम फैसले ले चुके हैं. हफ्ते भर के भीतर वह दुनिया में वॉशिंगटन की भूमिका बदल चुके हैं.
पद संभालने के बाद उन्होंने बेहद गैरपारंपरिक ढंग से काम किया है. वह चुनावी वादों को पूरा करने का स्पष्ट संकेत दे चुके हैं. ट्रंप अपने अंदाज में जीते हैं. उनके फैसले चौंकाने वाले होते हैं. गुरुवार को फिलाडेलफिया में रिपब्लिकन सांसदों को संबोधित करते हुए ट्रंप ने कहा, "हर उस चीज के बारे में सोचिए जो हम हासिल कर सकते हैं और यह भी सोचिए कि ये चीजें किसके लिए हासिल करनी हैं. अब हमें डिलीवर करना है. बातें बहुत हुई, काम नहीं हुआ. अब हमें काम करना है."
राष्ट्रपति मेक्सिको के साथ लगने वाली अमेरिका की दक्षिणी सीमा पर दीवार बनाने का आदेश दे चुके हैं. वह चाहते हैं कि दीवार बनाने का खर्च भी मेक्सिको से वसूला जाए. मेक्सिको ने जब इससे इनकार किया तो ट्रंप ने ट्वीट कर मेक्सिको को राष्ट्रपति को मीटिंग रद्द करने का संदेश दिया.
ट्वीट में ट्रंप ने कहा, "मेक्सिको के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 60 अरब डॉलर है. नाफ्टा की शुरुआत से ही यह एकतरफा डील रही है, जिसमें कंपनियों को बड़ी संख्या में नौकरियां काटनी पड़ीं. अगर मेक्सिको बहुत ही जरूरी दीवार बनाने के लिए भुगतान नहीं करता, तो बेहतर होगा कि आगामी मीटिंग रद्द कर दी जाए."
मेक्सिको के राष्ट्रपति एनरिके पेन्या नियेतो ने भी तीन घंटे बाद ट्रंप को उन्हीं के अंदाज में ट्विटर पर संदेश दिया. पेन्या नियेतो ने कहा, "आज सुबह हमने व्हाइट हाउस को सूचना दे दी कि मैं अगले मंगलवार को पोटस के साथ होने वाली तयशुदा बैठक में हिस्सा नहीं लूंगा."
रिपब्लिकन सांसदों के सामने मेक्सिको के साथ तकरार का जिक्र करते हुए ट्रंप ने कहा, "मेक्सिको के राष्ट्रपति और मैं हमारी आगामी तयशुदा मीटिंग को रद्द करने पर सहमत हुए हैं. जब तक मेक्सिको अमेरिका के साथ निष्पक्षता और सम्मान से पेश नहीं आएगा तब तक ऐसी मीटिंग बेकार है. और मैं अलग रास्ता लेना चाहता हूं."
ट्रंप अमेरिका में गैरकानूनी तरीके से रह रहे विदेशी नागरिकों को भी वापस भेजने का आदेश दे चुके हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति के पास एक्जीक्यूटिव ऑर्डर देने का विशेषाधिकार होता है. ट्रंप इसी अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं.
विदेश नीति के मामले में भी ट्रंप बड़े बदलाव का संकेत दे चुके हैं. राष्ट्रपति पद संभालने के बाद उन्होंने ब्रिटेन और भारत के प्रधानमंत्रियों से फोन पर बातचीत की. लेकिन अमेरिका के दशकों पुराने दोस्त यूरोपीय संघ को वह नजरअंदाज कर गए. विश्लेषकों का मानना है कि रणनीति के लिहाज से दुनिया में दोस्ती और गुटों के नए समीकरण बनने जा रहे हैं. ट्रंप के बयानों के बाद चीन महाशक्ति के तौर पर सक्रिय भूमिका निभाने का संकेत दे चुका है. ट्रंप से नाराज होने वाले देशों को चीन अपनी तरफ खींच रहा है. दुनिया बदल रही है और फिलहाल ट्रंप इस बदलाव की धुरी हैं.
(दुनिया पर अमेरिकी राष्ट्रपति का असर)
दुनिया पर ऐसा रहा है अमेरिकी राष्ट्रपतियों का असर
अमेरिकी राष्ट्रपति की नीतियां दुनिया की दिशा तय करती हैं. एक नजर बीते 11 अमेरिकी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल और उस दौरान हुई मुख्य घटनाओं पर.
तस्वीर: DW/E. Usi
डॉनल्ड ट्रंप (2017-2021)
2017 में भले ही हिलेरी क्लिंटन को उनसे ज्यादा वोट मिले लेकिन जीत ट्रंप की हुई. अमेरिका और मेक्सिको के बीच दीवार बनाने और अमेरिका को फिर से "ग्रेट" बनाने के वादे के साथ ट्रंप चुनावों में उतरे थे. उनके कार्यकाल में अमेरिका पेरिस जलवायु संधि से और विश्व स्वास्थ्य संगठन से दूर हुआ. वे कभी कोरोना को चीनी वायरस बोलने से पीछे नहीं हटे. हालांकि उन्हें किम जोंग उन से मुलाकात करने के लिए भी याद रखा जाएगा.
तस्वीर: Brendan Smialowski/AFP
बराक ओबामा (2009-2017)
2007 की आर्थिक मंदी से कराहती दुनिया में ओबामा ताजा झोंके की तरह आए. देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति ने इराक और अफगानिस्तान से सेना वापस बुलाई, लेकिन उन्हीं के कार्यकाल में अरब जगत में खलबली मची, इस्लामिक स्टेट बना और रूस से मतभेद चरम पर पहुंचे. ओबामा ने पेरिस में जलवायु परिवर्तन की ऐतिहासिक डील करवाई. वह भारत की गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति भी बने.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Walsh
जॉर्ज डब्ल्यू बुश (2001-2009)
बुश के सत्ता संभालने के बाद अमेरिका और पूरी दुनिया ने 9/11 जैसा अभूतपूर्व आतंकवादी हमला देखा. बुश के पूरे कार्यकाल पर इस हमले की छाप दिखी. उन्होंने अल कायदा और तालिबान को नेस्तनाबूद करने के लिए अफगानिस्तान में सेना भेजी. इराक में उन्होंने सद्दाम हुसैन को सत्ता से बेदखल कर मौत की सजा दिलवाई. बुश के कार्यकाल में भारत के साथ दशकों के मतभेद दूर हुए और दोस्ती की शुरुआत हुई.
तस्वीर: Getty Images/AFP/E. Dunand
बिल क्लिंटन (1993-2001)
बिल क्लिंटन शीत युद्ध खत्म होने के बाद राष्ट्रपति बनने वाले पहले नेता थे. 1992 में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस कमजोर पड़ गया. क्लिंटन ने रूस को अलग थलग करने के बजाए मुख्य धारा में लाने की कोशिश की. क्लिंटन के कार्यकाल में अफगानिस्तान आतंकवाद का गढ़ बन गया. अमेरिका और पाकिस्तान की मदद से पनपा तालिबान सत्ता में आ गया. क्लिंटन का कार्यकाल आखिर में मोनिका लेवेंस्की अफेयर के लिए बदनाम हो गया.
तस्वीर: picture-alliance/CPA Media
जॉर्ज बुश (1989-1993)
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकी नौसेना के पायलट और बाद में सीआईए के डायरेक्टर रह चुके जॉर्ज बुश के कार्यकाल में दुनिया ने ऐतिहासिक बदलाव देखे. सोवियत संघ टूटा. बर्लिन की दीवार गिरी और पूर्वी व पश्चिमी जर्मनी का एकीकरण हुआ. लेकिन उनके राष्ट्रपति रहने के दौरान खाड़ी में बड़ी उथल पुथल रही. इराक ने कुवैत पर हमला किया और अमेरिका की मदद से इराक की हार हुई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/CNP/R. Sachs
रॉनल्ड रीगन (1981-1989)
कैलिफोर्निया के गवर्नर रॉनल्ड रीगन जब राष्ट्रपति बने तो सोवियत संघ के साथ शीत युद्ध चरम पर था. सोवियत सेना अफगानिस्तान में थी. कम्युनिज्म के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए रीगन ने अमेरिका के सैन्य बजट में बेहताशा इजाफा किया. रीगन ने पनामा नहर की सुरक्षा के लिए सेना भेजी. उन्होंने कई सामाजिक सुधार भी किये. रीगन को अमेरिकी नैतिकता को बहाल करने वाला राष्ट्रपति भी कहा जाता है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने उदार कूटनीति अपनाई. उन्हीं के कार्यकाल में मध्य पूर्व में कैम्प डेविड समझौता हुआ. पनामा नहर का अधिकार वापस पनामा को दिया गया. सोवियत संघ के साथ साल्ट लेक 2 संधि हुई. लेकिन 1979 में ईरान की इस्लामिक क्रांति के दौरान तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर हमले और कई अमेरिकियों को 444 दिनों तक बंधक बनाने की घटना ने उनकी साख पर बट्टा लगाया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/K. Betancur
जेराल्ड फोर्ड (1974-1977)
रिचर्ड निक्सन के इस्तीफे के बाद उप राष्ट्रपति फोर्ड को राष्ट्रपति नियुक्त किया गया. बिना चुनाव लड़े देश के उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति बनने वाले वे अकेले नेता है. उन्हें संविधान में संशोधन कर कार्यकाल के बीच में उपराष्ट्रपति बनाया गया था. राष्ट्रपति के रूप में फोर्ड ने सोवियत संघ के साथ हेल्सिंकी समझौता किया और तनाव को कुछ कम किया. फोर्ड के कार्यकाल में ही अफगानिस्तान संकट का आगाज हुआ.
तस्वीर: picture alliance/United Archives/WHA
रिचर्ड निक्सन (1969-1974)
निक्सन के कार्यकाल में दक्षिण एशिया अमेरिका और सोवियत संघ का अखाड़ा बना. भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के बाद बांग्लादेश बना. निक्सन और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अनबन तो दुनिया भर में मशहूर हुई. लीक दस्तावेजों के मुताबिक निक्सन ने इंदिरा गांधी को "चुडैल" बताया. वियतनाम में बुरी हार के बाद निक्सन ने सेना को वापस भी बुलाया. उन्हीं के कार्यकाल में साम्यवादी चीन सुरक्षा परिषद का सदस्य बना.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
लिंडन बी जॉनसन (1963-1969)
जॉनसन जब राष्ट्रपति बने तो वियतनाम युद्ध चरम पर था. उन्होंने वियतनाम में अमेरिकी सैनिकों की संख्या बढ़ाई. जॉनसन के कार्यकाल में तीसरा अरब-इस्राएल युद्ध भी हुआ. अरब देशों की हार के बाद दुनिया ने अभूतपूर्व तेल संकट भी देखा. इस दौरान अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग की हत्या के बाद बड़े पैमाने पर नस्ली दंगे हुए. जॉनसन ने माना कि अमेरिका में अश्वेत लोगों से भेदभाव बड़े पैमाने पर हुआ है.
तस्वीर: Public domain
जॉन एफ कैनेडी (1961-1963)
जेएफके कहे जाने वाले राष्ट्रपति ने अपने कार्यकाल में क्यूबा का मिसाइल संकट देखा, भारत और चीन का युद्ध भी उन्हीं के सामने हुआ. कैनेडी के कार्यकाल में ही पूर्वी जर्मनी ने रातों रात बर्लिन की दीवार बना दी. युवा राष्ट्रपति ने न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रीटी भी करवाई. कैनेडी के कार्यकाल में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच अंतरिक्ष होड़ भी शुरू हुई. 1963 में कैनेडी की हत्या कर दी गई.