अमेरिका के अन्य शहरों की तरह ही लॉस एंजेलिस भी घरों की समस्या से जूझ रहा है. जून में जारी किए गए सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2018 में लॉस एंजेलिस में बेघरों की संख्या में 16 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
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राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के प्रशासन द्वारा लाए गए एक प्रस्ताव के बाद अमेरिका में हजारों परिवारों के बंटवारे या बेघर होने आशंकाएं बढ़ रही हैं. प्रस्तावित नियम के तहत "मिक्स्ड स्टेटस" वाले घरों के लिए सरकारी आवास सहायता से नहीं मिलेगी. इससे वैसे घर प्रभावित होंगे जिनमें कम से कम एक सदस्य बिना दस्तावेज वाला आप्रवासी है. प्रस्ताव पर राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक टिप्पणी की अवधि जुलाई में समाप्त हो गई.
प्रस्ताव को पहली बार मई में लाया गया था. उस समय आवास मामलों की मंत्री बेन कॉरसन ने कहा था कि आवास सहायता के लिए लंबी प्रतीक्षा के समय को कम करने के लिए यह कदम जरूरी था. लेकिन आवास शोधकर्ताओं और अधिवक्ताओं का कहना है यह कदम प्रभावी नहीं साबित होगा तथा इससे बेघरों की संख्या में इजाफा होगा. अमेरिकी आवास और शहरी विकास विभाग के विश्लेषण ने कहा कि नियम में बदलाव से 1,08,000 से अधिक लोग प्रभावित होंगे.
काउंसिल ऑफ लार्ज पब्लिक हाउसिंग अथॉरिटीज (सीएलपीएचए) के अनुसार प्रभावित होने वालों लोगों में 55 हजार बच्चे भी शामिल हैं, जो अमेरिकी नागरिक हैं लेकिन उनके माता-पिता के बारे में किसी तरह का दस्तावेज नहीं है. सीएलपीएचए कम कीमत वाले घर पर ध्यान केंद्रित करने वाला एक राष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन है.
सबसे ज्यादा अमेरिकी मदद पाने वाले देश
दुनिया में अमेरिका की गिनती बेहद ही शक्ति संपन्न देशों में होती है. अमेरिका के संघीय बजट का कुछ हिस्सा अन्य देशों की मदद में जाता है. अमेरिकी सरकार के डाटा के मुताबिक 2018 में इन देशों को सबसे अधिक आर्थिक सहायता दी गई.
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10. इराक (34.79 करोड़ डॉलर)
अमेरिकी मदद पाने वाला इराक सबसे अहम देश है. पिछले 15 सालों से इराक में स्थायित्तव का संकट चल रहा है. सबसे पहले अमेरिका ने सद्दाम हुसैन के खिलाफ मोर्चा खोला था. लेकिन अब आईएस उसके लिए सिरदर्द बन चुका है. 2018 के दौरान अमेरिका ने इस क्षेत्र में 34.79 करोड़ डॉलर के सहायता देने की योजना बनाई थी.
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9. नाइजीरिया (41.91 करोड़ डॉलर)
नाइजीरिया में अमेरिकी मदद का मकसद देश को गरीबी से बाहर निकालना है. इसके साथ ही कोशिश स्थायी लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करने की भी है ताकि स्थानीय लोगों को काम में लगाया जा सके. हालांकि यह क्षेत्र कट्टरवादी आतंकवादी संगठन बोको हराम के हमलों से जूझ रहा है. 2018 में अमेरिका ने नाइजीरिया को 41.9 करोड़ डॉलर की आर्थिक सहायता दी.
जाम्बिया में अमेरिकी मदद का मुख्य उद्देश्य देश को गरीबी से निकालना है. यह मदद रहने के लिए मानवीय परिस्थितियों को बेहतर बनाने के लिए दी जा रही है. मदद का मकसद देश में टिकाऊ कृषि और एचआईवी, मलेरिया और टीबी जैसी जानलेवा बीमारियों को लेकर जागरूकता फैलाना है. इस मदद का मकसद भविष्य में अमेरिका के लिए एक अच्छा बाजार तैयार करना भी है. 2018 में मदद की सीमा 42.89 करोड़ डॉलर तय की गई.
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7. युगांडा
पूर्वी अफ्रीकी देश युगांडा में अमेरिका का जोर राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र को मजबूत करना है. 2018 में दी गई मदद का लक्ष्य देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करना, साथ ही गंभीर बीमारियों के खतरों को रोकना है. साल 2018 में अमेरिका ने 43.64 करोड़ डॉलर की आर्थिक सहायता का लक्ष्य रखा था.
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6. तंजानिया
तमाम कमियों के बीच तंजानिया एक स्थायी, बहुपक्षीय सरकारी प्रणाली के साथ-साथ एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था भी है. इसके बावजूद करीब एक चौथाई तंजानियाई लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं.अमेरिकी मदद का उद्देश्य तंजानिया में लोगों को गरीबी से बाहर निकालना है. साथ ही देश को अमेरिका के एक अहम सहयोगी के रूप में स्थापित करना है. 2018 में तंजानिया को अमेरिका से 53.53 करोड़ डॉलर की आर्थिक मदद मिली.
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5. केन्या
तमाम लोकतांत्रिक सुधारों के बावजूद केन्या की राजनीतिक व्यवस्था अब भी भ्रष्टाचार और जातीय विवादों में उलझी हुई है. देश के किसान और कई नागरिक अब भी सूखाग्रस्त इलाकों में रहने को मजबूर हैं. केन्या को दी जाने वाली मदद का मकसद सूखा ग्रस्त इलाकों से लोगों को निकालना है. साथ ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटना भी है. 2018 में केन्या को 63.94 करोड़ डॉलर की आर्थिक मदद दी गई.
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4. अफगानिस्तान
पिछले 18 सालों से अमेरिका की फौजें अफगानिस्तान में तैनात है. हालांकि अब अमेरिका के अंदर अफगानिस्तान से निकलने की छटपटाहट साफ नजर आती है. 2018 में अमेरिका ने अफगानिस्तान को 78.28 करोड़ डॉलर की आर्थिक मदद की. इस मदद का मकसद देश में आंतकवादी संगठन आईएस को जमीन तैयार करने से रोकना है. साथ ही लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित करने के साथ-साथ सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करना है.
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3. जॉर्डन
युद्धग्रस्त सीरिया के करीब स्थित जॉर्डन इस वक्त सबसे बड़े रिफ्यूजी संकट से जूझ रहा है. 2018 में एक अरब डॉलर की अमेरिकी मदद पाने वाले इस देश को अमेरिका से बड़ी भारी मदद मिलती है. आर्थिक मदद का मकसद सीरियाई रिफ्यूजियों से निपटने के साथ-साथ जॉर्डन में लोकतांत्रिक जवाबदेही तय करना भी है.
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2. मिस्र
मिस्र में अमेरिकी मदद का मकसद स्थानीय लोगों के लिए भोजन को सुनिश्चित करने के साथ-साथ देश में अच्छी शासन व्यवस्था लागू करना भी है. मिस्र पिछले लंबे वक्त से आतंकवाद और कट्टरवादी ताकतों से जूझता रहा है. मदद का उद्देश्य मिस्र और अमेरिका के बीच अच्छे आर्थिक संबंध स्थापित करना भी रहा है. सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए अमेरिका भारी मदद करता है. 2018 में इसे 1.39 अरब डॉलर की मदद मिली.
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1. इस्राएल
पिछले कई दशकों से इस्राएल अमेरिकी मदद पाने वाला सबसे बड़ा देश रहा है. अमेरिका की ओर से दी जाने वाली मदद का मकसद क्षेत्रीय ताकतों के खिलाफ सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करना है. साल 2018 में अमेरिका की ओर से इस्राएस को 3.1 अरब डॉलर की मदद दी गई.
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कैलिफोर्निया के लॉस एंजेलिस में रहने वाली कैरी टोरेस भी इसी स्थिति का सामना कर रही हैं. मेक्सिको के जलिस्को से आई सिंगल मदर के पास दस्तावेज नहीं है. उनके बेटे का जन्म अमेरिका में ही हुआ है. वह कहती हैं, "यदि यह नियम लागू होता है तो हम (वह और उनका बेटा) बेघर हो जाएंगे. लॉस एंजेलिस में किराया काफी ज्यादा है और कम कीमत (वहन करने लायक) वाले घर की संख्या काफी हद तक उपलब्ध नहीं है." 37 वर्षीय टोरेस कहती हैं कि उन्हें और उनके बेटे को दोस्तों के साथ रहने से रोका जाएगा. वे कहती हैं, "मैं इस बात की कल्पना नहीं कर सकती कि यह कितना बुरा होगा. मैं कई सारे ऐसे लोगों को जानती हूं जिनकी हालत मेरे जैसी ही है. वे सभी इस बात से डरे हुए हैं क्या होने वाला है."
लॉस एंजेलिस में सामुदायिक विकास समूह पीपुल ऑर्गनाइज्ड फॉर वेस्टसाइड रिन्यूवेबल के बिल प्रजिलकी कहते हैं, "देश में 50 हजार से ज्यादा लोग बेघर हैं. हम नई नीति बनाकर इसमें 20 प्रतिशत का और इजाफा करने जा रहे हैं. जो लोग बेघर होंगे वे पहले से ही कमजोर हैं और उनकी स्थिति खराब होगी. उनके स्टेटस की वजह से उन्हें रोजगार तथा अन्य सुविधाएं पाने में परेशानी होगी."
दुनिया के बेहतरीन लड़ाकू विमान
जंग की तस्वीर बदल गई है और लड़ाकू विमानों की भूमिका अहम हो गई है. अब इन्हें ज्यादा मारक और फुर्तीला बनाने के साथ ही रडारों की पकड़ में आने से बचाने पर भी जोर है. देखिये दुनिया के सबसे उन्नत और कामयाब लड़ाकू विमानों को.
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एफ-22 रैप्टर
अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन का यह विमान रडारों के लिए लगभग अदृश्य रहता है. इसे अब तक का सबसे आधुनिक, महंगा और उन्नत लड़ाकू विमान माना जाता है. इसके कई सेंसर और विमान से जुड़ी कई तकनीकों को गोपनीय रखा गया है. वर्तमान में अमेरिकी वायुसेना की जान यही विमान है. अमेरिका ने इसे अब तक किसी और देश को नहीं बेचा है.
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एफ-35
एफ-35 को भी लॉकहीड मार्टीन ने ही बनाया है. यह एफ-22 से थोड़ा छोटा है और उसमें एक ही इंजिन है हालांकि कई चीजें इसमें एफ-22 जैसी ही हैं. यह अपनी गुप्त चालों के लिए विख्यात है और आसानी से रडारों की पकड़ में नहीं आता. वायु रक्षा अभियानों में यह कई तरह से उपयोगी है. हवा से हवा में और हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलों से लैस है और बमों की वर्षा करने में माहिर.
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चेंगदू जे-20
चीन ने इस विमान को रूस की मिग कंपनी की मदद से बनाया है. चीनी वायु सेना ने इसे 2017 में आधिकारिक रूप से अपने बेड़े में शामिल किया. चीन ने इस विमान के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी है. यह एक मध्य और लंबी दूरी का लड़ाकू विमान है जो जमीन पर भी हमला कर सकता है. इसमें अमेरिकी एफ-22 विमान से ज्यादा हथियार और ईंधन रखने की क्षमता है.
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एफ/ए-18 ई/एफ सुपर हॉर्नेट
वर्तमान में सुपर हॉर्नेट अमेरिकी नौसेना का सबसे काबिल लड़ाकू विमान है. यह विमानवाही युद्ध पोतों से उड़ान भर कर हवा और सतह पर मार कर सकता है. बोइंग कंपनी का बनाया यह विमान ऑस्ट्रेलिया में भी प्रमुख लड़ाकू विमान के रूप में सेवा दे रहा है. इसमें नए इंजिन लगाए गए हैं और ज्यादा मिसाइलें लगाई जा सकती हैं.
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यूरोफाइटर टाइफून
1986 में जर्मनी, इटली, यूके, और बाद में स्पेन ने मिल कर लड़ाकू विमान बनाने के लिए यूरोफाइटर कंसोर्टियम बनाया था. यह विमान उन्नत यूरोपीय मिसाइलों से लैस है और इसमें आधुनिक विमानन की उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है. माना जाता है कि एफ-22 रैप्टर की तुलना में इसकी मारक क्षमता आधी है हालांकि यह एफ-15, फ्रेंच रफाएल, सुखोई 27 जैसे कई और विमानों से काफी बेहतर है.
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राफाल
फ्रांस की दासो कंपनी ने इसे बनाया है जो फिलहाल वहां की वायु सेना और नौ सेना की सेवा में हैं. अत्याधुनिक तकनीकों से लैस इस विमान की फुर्ती बेजोड़ है. यह एक वक्त में 40 निशानों का पता लगाने के साथ ही उनमें से चार पर एक साथ वार कर सकता है. भारत ने इसी विमान के लिए फ्रांस की सरकार से सौदा किया है.
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सुखोई 35
रूस का यह विमान काफी तेज होने के साथ ही फुर्तीला भी है और लंबी रेंज के साथ ही ज्यादा ऊंचाई पर उड़ने और भारी संख्या में हथियारों को ले कर चल सकता है. इसके 12 डैनों में 8000 किलो तक हथियार ले जाने की क्षमता है. इसके बड़े और ताकतवर इंजन लंबे समय तक उड़ान भरने में मददगार हैं. रूस ने यह विमान सुखोई 27 और मिग 29 की जगह लेने के लिए बनाए हैं.
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एफ-15 ईगल
एफ-15 ईगल 30 साल से सेवा में है और यह अभी भी शत्रु की रक्षा पंक्ति को तोड़ने वाले विमानों में अग्रणी माना जाता है. इसने 100 से ज्यादा मारक हवाई हमले किए हैं और इसे शीत युद्ध के दौर का सबसे कामयाब लड़ाकू विमान माना जाता है. दुश्मन के इलाके में उड़ान भरते हुए भी यह उनके विमानों का पता लगाने और उन पर हमला करने में सक्षम है.
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मिग-31
नाटो के हवाई हमलों और क्रूज मिसाइलों से बचने के लिए सोवियत रूस ने इस विमान को बनाया था. इसकी रफ्तार तेज है और यह ऊंची उड़ान भर सकता है हालांकि ऐसा करने के क्रम में इसकी फुर्ती थोड़ी कम हो जाती है. दुश्मनों के जहाज को यह दूर से ही अपनी मिसाइलों से ध्वस्त कर देता है. रूसी हवाई सुरक्षा में अहम जिम्मेदारी आज भी इसी विमान की है.
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एफ-16 फाइटिंग फाल्कन
एफ 16 वास्तव में एफ-15 ईगल का ही हल्का और कम खर्चीला संस्करण है. एफ-15 से उलट यह हवा और जमीन दोनों जगहों पर वार कर सकता है. लॉकहीड मार्टिन ने बड़ी संख्या में यह विमान बनाए हैं और फिलहाल यह अमेरिका समेत 26 देशों की सेना में शामिल है. ये विमान छोटे और फुर्तीले हैं और इसका कॉकपिट पायलट को ज्यादा साफ देखने में मददगार है.
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अमेरिकी में वर्तमान नीति के तहत बिना दस्तावेज वाले अप्रवासियों के लिए आवास में सब्सिडी नहीं दी जाती है. सब्सिडी दरों को एक घर में हकदार सदस्यों की संख्या के आधार पर पूर्व निर्धारित किया जाता है.
मई महीने में सांसदों की बैठक में कॉरसन ने कहा कि उन्हें लगता है कि पहले की प्रक्रिया "अवैध रूप से यहां रहने वाले लोगों को सहायता देने" जैसी है. साथ ही उन्होंने कहा कि नए नियम के बाद जिन लोगों को आवास सहायता मिलनी बंद होगी, उन्हें दूसरा घर खोजने के लिए 18 महीने तक का समय दिया जाएगा.
हाल के दो महीने के कमेंट पीरियड के दौरान इस प्रस्ताव पर 30 हजार से अधिक प्रतिक्रियाएं आईं, जिन्हें प्रजिलकी ने आवास नीति के लिए सामान्य से ज्यादा बताया है. वह कहते हैं, "वैसी टिप्पणियां जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध थीं, उनमें 90 प्रतिशत नकारात्मक थीं." जब से नई आवास नीति को सार्वजनिक किया गया है, तब से डेमोक्रेटिक सरकार के कई लंबित विधेयक सामने आ गए. ऐसे में ये विधेयक आवास विभाग को नई नीति लागू करने से रोक सकते हैं.
किस देश में रहते हैं सबसे ज्यादा विदेशी लोग
दुनिया में ऐसे लोगों की तादाद लगातार बढ़ रही है जो अपने जन्म के देश में नहीं रहते. कई देशों में तो स्थानीय लोगों की तुलना में विदेशियों की आबादी तीन गुना ज्यादा है.
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20. कुवैत
यहां विदेशी लोगों की तादाद 31 लाख है जो यहां की आबादी का कुल 75.5 फीसदी है. यानी कुवैत में चार में तीन आदमी विदेशी है.
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19. जॉर्डन
32 लाख के साथ यहां विदेशी लोगों की तादाद कुल आबादी में 33.3 फीसदी है.
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18. पाकिस्तान
पाकिस्तान में 34 लाख विदेशी रहते हैं. कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी 1.7 फीसदी है.
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17. थाईलैड
थाईलैंड की कुल आबादी में 5.2 फीसदी यानी 36 लाख विदेशी हैं.
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16. कजाखस्तान
कजाखस्तान में रहने वाले 20 फीसदी लोग विदेशी हैं यानी तकरीबन 36 लाख.
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15. दक्षिण अफ्रीका
दक्षिण अफ्रीका की आबादी में 7.1 फीसदी यानी करीब 40 लाख लोग विदेशी हैं.
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14. तुर्की
तुर्की मे विदेशी लोगों की तादाद करीब 49 लाख है यानी कुल आबादी का करीब 6 फीसदी.
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13. यूक्रेन
यूक्रेन में 50 लाख विदेशी रहते हैं जो यहां की आबादी का करीब 11.2 फीसदी है.
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12. भारत
भारत में विदेशी लोगों की तादाद 52 लाख है और कुल आबादी में उनकी हिस्सेदारी 0.4 फीसदी है.
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11. इटली
59 लाख विदेशी इटली में रहते हैं और आबादी में हिस्सेदारी के लिहाज से देखें तो करीब 10 फीसदी.
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10. स्पेन
स्पेन में विदेशियों की तादाद 12.8 फीसदी है यानी कुल संख्या करीब 59 लाख.
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9. ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले 70 लाख लोग विदेशी हैं. यानी कुल आबादी का करीब 30 फीसदी.
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8. कनाडा
कनाडा में 79 लाख विदेशी रहते हैं. कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी 21.8 फीसदी है.
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7. फ्रांस
फ्रांस की आबादी में विदेशियों की हिस्सेदारी 12.2 फीसदी यानी 79 लाख है.
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6. संयुक्त अरब अमीरात
83 लाख विदेशी रहते हैं यानी कुल आबादी का करीब 88.2 फीसदी हिस्सा. एक तरह से शाही परिवार और सरकार चलाने वाले मुट्ठी भर लोग ही स्थानीय हैं.
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5. यूनाइटेड किंगडम
कभी दुनिया पर राज करने वाले ब्रिटेन में भी 88 लाख विदेशी रहते हैं और कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी 13.4 फीसदी है.
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4. रूस
रूस की आबादी में 8.1 फीसदी लोग विदेशी हैं यानी करीब 1.17 करोड़.
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3. जर्मनी
जर्मनी में 1.22 करोड़ लोग विदेशी हैं और कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी करीब 14.8 फीसदी है.
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2. सऊदी अरब
सऊदी अरब में रहने वाले 37.0 फीसदी लोग विदेशी हैं यानी कुल मिला कर करीब 1.22 करोड़.
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1. अमेरिका
अमेरिका इस मामले में भी नंबर वन है यहां कुल 4.98 करोड़ लोग विदेशी हैं और आबादी में इनकी हिस्सेदारी 15.3 फीसदी है.
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प्रजिलकी की तरह वकालत करने वाले समुदाय नए प्रस्ताव को वापस लेने के लिए जोर लगा रहे हैं. उनका कहना है कि यह प्रस्ताव आगे नहीं जा सकता है. वहीं, नई नीति लागू होने के पर भी लोग पुराने घरों में रहने की जुगत में हैं.
सीएलपीएचए के सदस्य अमेरिका के 40 प्रतिशत सरकारी घरों का प्रबंधन करते हैं. सीएलपीएचए की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर सुनिया जेटरमैन का कहना है, "लोग काफी ज्यादा भयभीत हो गए हैं और आवास प्राधिकरण इस बारे में काफी चिंतित है. मुझे लगता है कि हम यह मानने लगे हैं कि हमारे यहां घरों की कमी है. मिश्रित परिवार की वजह से नहीं बल्कि संसाधनों के अभाव की वजह से वेटिंग लिस्ट लंबी होती जा रही है."
किसी भी अमेरिकी नियम में बदलाव के लिए आवास विभाग को सार्वजनिक टिप्पणी की अवधि के दौरान प्राप्त सभी प्रतिक्रियाओं पर जवाब देने होते हैं और इसके बाद ही आगे का कदम उठाया जा सकता है. जेटरमैन और अन्य लोगों का कहना है कि इस प्रक्रिया में कई महीने का समय लग सकता है. जेटरमैन कहती हैं, "सार्वजनिक क्षेत्र का काफी खर्च आवास की अस्थिरता और बेघरों से संबंधित है. इस नई नीति के बाद समस्या और बढ़ जाएगी."
अमेरिकी एथलिट ग्वेन बेरी और रेस इमबोडेन ने पैन अमेरिकी खेलों में सार्वजनिक मंच पर विरोध के जरिए देश के सामाजिक मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की है. एक नजर खेलों के दौरान किए गए प्रमुख राजनीतिक विरोध पर.
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सफरजेट एमिली डेविसन
खेल के दौरान विरोध का एक मामला वर्ष 1913 में सामने आया था, जब एमिली डेविसन के तीखे विरोध की वजह से सफरजेट आंदोलन मुख्यधारा में आया. एपसॉम में डर्बी घोड़े की दौड़ के दिन डेविसन दौड़ के रास्ते में आ गए और राजा के घोड़े एनमर से टकरा गए. उन्होंने ऐसा ब्रिटेन में महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलाने के लिए किया था. इस घटना के पांच साल बाद आखिरकार महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिल गया.
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मुहम्मद अली ने सेना में भर्ती होने से किया इनकार
मोहम्मद अली ने 1967 में वियतनाम युद्ध में अमेरिका के लिए लड़ने से इंकार कर दिया था. एक प्रतिष्ठित मुक्केबाज अली का यह फैसला इस्लामिक मान्यताओं और युद्ध विरोध के आधार पर था. इसके बाद अली को गिरफ्तार कर लिया गया. उनकी उपाधि छिन ली गई और मुक्केबाजी का लाइसेंस निलंबित कर दिया गया. 1971 में उनको दी गई सजा समाप्त कर दी गई. इस दौरान वे तीन साल तक रिंग से बाहर रहे.
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ब्लैक पॉवर सैल्यूट
वर्ष 1968 में खेल के दौरान एक ऐसा प्रदर्शन हुआ, जिसकी चर्चा पूरे विश्व में हुई. इस समय मेक्सिको में आयोजित ओलंपिक में टॉमी स्मिथ और जॉन कार्लोस ने पुरुषों की 200 मीटर स्प्रिंट के फाइनल के बाद ब्लैक पॉवर सैल्यूट किया था. दोनों एथलीटों ने अपने सिर झुकाए और काले दस्ताने पहन मुट्ठी बांधते हुए हाथ उठाया जबकि इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रगान बज रहा था. इस घटना से लाखों अमेरिकी गुस्सा हो गए थे.
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अब्दुल-रऊफ ने राष्ट्रगान का विरोध किया
अमेरिकी बास्केटबॉल खिलाड़ी महमूद अब्दुल रऊफ ने 1996 में खेलों से पहले राष्ट्रगान के लिए खड़े होने से इनकार कर दिया था. उन्होंने कहा था कि अमेरिकी ध्वज दमन का प्रतीक है और खड़े रहना उनके इस्लामी मान्यताओं के विरुद्ध होगा. इसके बाद एनबीए ने उन्हें निलंबित कर दिया था और प्रति खेल (जिसमें वे शामिल नहीं हुए) 31,000 डॉलर से अधिक का जुर्माना लगाया. हालांकि लीग के साथ समझौता होने के बाद वह लौट आए थे.
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कैथी फ्रीमैन ने दो झंडे लेकर मनाया जश्न
1994 के राष्ट्रमंडल खेलों में कैथी फ्रीमैनने 200 मीटर और 400 मीटर की दौड़ में अपनी जीत का जश्न ऑस्ट्रेलियाई और आदिवासी झंडे दोनों को साथ लेकर मनाया. ऐसा कर उन्होंने जीत के दौरान अपनी स्वदेशी विरासत का भी जश्न मनाया. इसके बाद खेल के आयोजकों ने उन्हें फटकार लगाई, लेकिन फ्रीमैन ने 2000 में सिडनी में अपने घरेलू ओलंपिक में फिर से दोनों झंडे के साथ स्वर्ण पदक जीतने का जश्न मनाया.
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बोटेंग ने नस्लवादी नारे का किया विरोध
जर्मन में जन्मे घाना के फुटबॉलर केविन-प्रिंस बोटेंग ने 2013 में इटली के फोर्थ-टीयर टीम प्रो पैट्रिया के खिलाफ हो रहे मैच के दौरान मैदान में उतरकर नस्लवादी नारे का विरोध किया. प्रो पैट्रिया समर्थकों के एक वर्ग ने तत्कालीन एसी मिलान मिडफील्डर को निशाना बनाते हुए नारेबाजी की थी, जिसके बाद खेल को 26 मिनट के लिए बंद कर दिया गया था. मिडफील्डर ने बॉल से भीड़ पर निशाना साध कर विरोध जताया था.
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मैं सांस नहीं ले सकता
ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन अमेरिका के हाल के वर्षों में विभिन्न विरोधों और अभियानों में सबसे आगे रहा है. इनमें से एक विरोध 2014 का है, जब लेब्रोन जेम्स और दूसरे एनबीए खिलाड़ियों केरी इरविंग, जेरेट जैक और केविन गार्नेट ने "मैं सांस नहीं ले सकता" लिखी शर्ट पहन रखी थी. ये शब्द एरिक गार्नर के संदर्भ में थे. निहत्थे काले एरिक गार्नर की मौत पुलिस के गला दबाने की वजह से हो गई थी.
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इथियोपियाई शरण का विरोध
ओलंपिक रजत पदक विजेता फेइसा लिलेसा ने 2016 में रियो डी जनेरियो में ओलंपिक के लिए खुद का नाम बनाया , लेकिन मैराथन में उनका यह प्रदर्शन जरूरी नहीं था. धावक ने ओरोमो कार्यकर्ताओं (इथियोपियाई शरण का विरोध कर रहे) के साथ एकजुटता दिखाते हुए अपने सिर के ऊपर अपने हाथों को एक दूसरे के ऊपर रखा.
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कैपरनिक ने घुटने पर बैठ जताया विरोध
अमेरिकी फुटबॉलर कोलिन कैपरनिक 2016 में अमेरिकी राष्ट्रगान के दौरान घुटने पर बैठ गए थे. जिसके बाद नस्लीय असमानता और बंदूक हिंसा के विरोध में #TakeAKnee अभियान शुरू हो गया जो अब मशहूर है. राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प ने कैपरनिक और बढ़ते आंदोलन की आलोचना की, जिसके कारण खिलाड़ियों और कई अमेरिकी नागरिकों के में गुस्सा बढ़ गया.
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हमें बदलाव का आह्वान करना चाहिए
एथलीट ग्वेन बेरी और रेस इमबोडेन ने अमेरिका के सामाजिक मुद्दों पर हाल ही अपना विरोध दर्ज किया है. दोनों ने पेरू में पैन अमेरिकी खेलों में पदक लेने वाले मंच पर राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प का विरोध किया था. रेस इमबोडेन ने पूर्व एनएफएल क्वार्टरबैक कॉलिन कैपरनिक की तरह टीम फॉइल इवेंट में अमेरिका को स्वर्ण मिलने पर घुटना टेककर जश्न मनाया. (मिशेल दा सिल्वा/योशुआ स्टेन)