डॉनल्ड ट्रंप की खामियों और खराबियों के बारे में हम बीते चार साल से सुन रहे हैं. और शायद कुछ गलत भी नहीं सुना है. लेकिन इन चार साल में ट्रंप ने कुछ ऐसे काम भी किए, जो सिर्फ वही कर सकते थे.
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डॉनल्ड ट्रंप के आलोचकों को उनसे सबसे बड़ी शियाकत यह रही कि वह सिस्टम वाले आदमी नहीं हैं. वह वैसे नहीं सोचते हैं, जैसे कोई अनुभवी राजनेता सोचता है. और बोलते वक्त तो शायद बिल्कुल नहीं. हमने देखा है कि वह कुछ भी बोल सकते हैं, जैसे कि अंजाम की परवाह ही नहीं है. यही वजह है कि दुनिया के जिन नेताओं से अमेरिका के दूसरे राष्ट्रपति पूरे प्रोटोकॉल और नपे तुले अंदाज में मिलते और बात करते थे, ट्रंप उनसे अक्खड़पने से पेश आए. मिसाल के तौर पर जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल बीते चार साल में समझ ही नहीं पाईं कि ट्रंप से क्या बात करें, कैसे बात करें.
अमेरिकी राष्ट्रपति और उत्तर कोरिया
दूसरी तरफ उत्तर कोरिया के नेता की मिसाल है. ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से पहले तक यह कल्पना करना भी मुश्किल लगता था कि अमेरिका का कोई राष्ट्रपति उत्तर कोरिया के नेता से आमने-सामने बैठकर बात करेगा. बीते 70 साल में जिस तरह अमेरिका और उत्तर कोरिया ने एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं गंवाया है, उसे देखते हुए तो यह असंभव ही लगता था. लेकिन ट्रंप ने इसे संभव बनाया. जून 2018 में सिंगापुर में पहली बार अमेरिका और उत्तर कोरिया के नेताओं की शिखर बैठक हुई. अलबत्ता इसके बाद भी दोनों देशों के रिश्तों में किसी बड़े बदलाव ने करवट नहीं ली, लेकिन ट्रंप ने यह दिखा दिया कि कुछ भी असंभव नहीं है.
ट्रंप ने बतौर राष्ट्रपति अपने चार साल के कार्यकाल में कोई नई जंग नहीं छेड़ी. लेकिन चीन के साथ कारोबारी जंग छेड़ने के लिए ट्रंप को जरूर याद किया जाएगा. इस टकराव में ट्रंप इतना आगे निकल गए कि वहां से कदम पीछे हटाना बाइडेन प्रशासन के लिए आसान नहीं होगा. निश्चित तौर पर जंग में नुकसान दोनों ही पक्षों को उठाना पड़ता है. जिस आक्रामक तरीके से चीन विश्व मंच पर अपना असर और रसूख बढ़ाने में जुटा है, ट्रंप ने भी लगभग उसी लहजे में उसे टक्कर दी.
इस बात का श्रेय तो ट्रंप को देना होगा कि उन्होंने चीन से निपटने के तौर-तरीके तय कर दिए हैं. ट्रंप जैसे अक्खड़ रवैये के लिए कूटनीति में कम ही जगह है, लेकिन इस खेल में चीन के रवैये से भी साफ है कि वह अमेरिका के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. चीन दुनिया की नई महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षा रखता है. यह बात अमेरिका को भला कैसे मंजूर होगी. दुनिया की अकेली महाशक्ति होने का रुतबा वह किसी से साझा नहीं करना चाहेगा.
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दुनिया पर ऐसा रहा है अमेरिकी राष्ट्रपतियों का असर
अमेरिकी राष्ट्रपति की नीतियां दुनिया की दिशा तय करती हैं. एक नजर बीते 11 अमेरिकी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल और उस दौरान हुई मुख्य घटनाओं पर.
तस्वीर: DW/E. Usi
डॉनल्ड ट्रंप (2017-2021)
2017 में भले ही हिलेरी क्लिंटन को उनसे ज्यादा वोट मिले लेकिन जीत ट्रंप की हुई. अमेरिका और मेक्सिको के बीच दीवार बनाने और अमेरिका को फिर से "ग्रेट" बनाने के वादे के साथ ट्रंप चुनावों में उतरे थे. उनके कार्यकाल में अमेरिका पेरिस जलवायु संधि से और विश्व स्वास्थ्य संगठन से दूर हुआ. वे कभी कोरोना को चीनी वायरस बोलने से पीछे नहीं हटे. हालांकि उन्हें किम जोंग उन से मुलाकात करने के लिए भी याद रखा जाएगा.
तस्वीर: Brendan Smialowski/AFP
बराक ओबामा (2009-2017)
2007 की आर्थिक मंदी से कराहती दुनिया में ओबामा ताजा झोंके की तरह आए. देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति ने इराक और अफगानिस्तान से सेना वापस बुलाई, लेकिन उन्हीं के कार्यकाल में अरब जगत में खलबली मची, इस्लामिक स्टेट बना और रूस से मतभेद चरम पर पहुंचे. ओबामा ने पेरिस में जलवायु परिवर्तन की ऐतिहासिक डील करवाई. वह भारत की गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति भी बने.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Walsh
जॉर्ज डब्ल्यू बुश (2001-2009)
बुश के सत्ता संभालने के बाद अमेरिका और पूरी दुनिया ने 9/11 जैसा अभूतपूर्व आतंकवादी हमला देखा. बुश के पूरे कार्यकाल पर इस हमले की छाप दिखी. उन्होंने अल कायदा और तालिबान को नेस्तनाबूद करने के लिए अफगानिस्तान में सेना भेजी. इराक में उन्होंने सद्दाम हुसैन को सत्ता से बेदखल कर मौत की सजा दिलवाई. बुश के कार्यकाल में भारत के साथ दशकों के मतभेद दूर हुए और दोस्ती की शुरुआत हुई.
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बिल क्लिंटन (1993-2001)
बिल क्लिंटन शीत युद्ध खत्म होने के बाद राष्ट्रपति बनने वाले पहले नेता थे. 1992 में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस कमजोर पड़ गया. क्लिंटन ने रूस को अलग थलग करने के बजाए मुख्य धारा में लाने की कोशिश की. क्लिंटन के कार्यकाल में अफगानिस्तान आतंकवाद का गढ़ बन गया. अमेरिका और पाकिस्तान की मदद से पनपा तालिबान सत्ता में आ गया. क्लिंटन का कार्यकाल आखिर में मोनिका लेवेंस्की अफेयर के लिए बदनाम हो गया.
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जॉर्ज बुश (1989-1993)
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकी नौसेना के पायलट और बाद में सीआईए के डायरेक्टर रह चुके जॉर्ज बुश के कार्यकाल में दुनिया ने ऐतिहासिक बदलाव देखे. सोवियत संघ टूटा. बर्लिन की दीवार गिरी और पूर्वी व पश्चिमी जर्मनी का एकीकरण हुआ. लेकिन उनके राष्ट्रपति रहने के दौरान खाड़ी में बड़ी उथल पुथल रही. इराक ने कुवैत पर हमला किया और अमेरिका की मदद से इराक की हार हुई.
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रॉनल्ड रीगन (1981-1989)
कैलिफोर्निया के गवर्नर रॉनल्ड रीगन जब राष्ट्रपति बने तो सोवियत संघ के साथ शीत युद्ध चरम पर था. सोवियत सेना अफगानिस्तान में थी. कम्युनिज्म के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए रीगन ने अमेरिका के सैन्य बजट में बेहताशा इजाफा किया. रीगन ने पनामा नहर की सुरक्षा के लिए सेना भेजी. उन्होंने कई सामाजिक सुधार भी किये. रीगन को अमेरिकी नैतिकता को बहाल करने वाला राष्ट्रपति भी कहा जाता है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने उदार कूटनीति अपनाई. उन्हीं के कार्यकाल में मध्य पूर्व में कैम्प डेविड समझौता हुआ. पनामा नहर का अधिकार वापस पनामा को दिया गया. सोवियत संघ के साथ साल्ट लेक 2 संधि हुई. लेकिन 1979 में ईरान की इस्लामिक क्रांति के दौरान तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर हमले और कई अमेरिकियों को 444 दिनों तक बंधक बनाने की घटना ने उनकी साख पर बट्टा लगाया.
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जेराल्ड फोर्ड (1974-1977)
रिचर्ड निक्सन के इस्तीफे के बाद उप राष्ट्रपति फोर्ड को राष्ट्रपति नियुक्त किया गया. बिना चुनाव लड़े देश के उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति बनने वाले वे अकेले नेता है. उन्हें संविधान में संशोधन कर कार्यकाल के बीच में उपराष्ट्रपति बनाया गया था. राष्ट्रपति के रूप में फोर्ड ने सोवियत संघ के साथ हेल्सिंकी समझौता किया और तनाव को कुछ कम किया. फोर्ड के कार्यकाल में ही अफगानिस्तान संकट का आगाज हुआ.
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रिचर्ड निक्सन (1969-1974)
निक्सन के कार्यकाल में दक्षिण एशिया अमेरिका और सोवियत संघ का अखाड़ा बना. भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के बाद बांग्लादेश बना. निक्सन और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अनबन तो दुनिया भर में मशहूर हुई. लीक दस्तावेजों के मुताबिक निक्सन ने इंदिरा गांधी को "चुडैल" बताया. वियतनाम में बुरी हार के बाद निक्सन ने सेना को वापस भी बुलाया. उन्हीं के कार्यकाल में साम्यवादी चीन सुरक्षा परिषद का सदस्य बना.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
लिंडन बी जॉनसन (1963-1969)
जॉनसन जब राष्ट्रपति बने तो वियतनाम युद्ध चरम पर था. उन्होंने वियतनाम में अमेरिकी सैनिकों की संख्या बढ़ाई. जॉनसन के कार्यकाल में तीसरा अरब-इस्राएल युद्ध भी हुआ. अरब देशों की हार के बाद दुनिया ने अभूतपूर्व तेल संकट भी देखा. इस दौरान अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग की हत्या के बाद बड़े पैमाने पर नस्ली दंगे हुए. जॉनसन ने माना कि अमेरिका में अश्वेत लोगों से भेदभाव बड़े पैमाने पर हुआ है.
तस्वीर: Public domain
जॉन एफ कैनेडी (1961-1963)
जेएफके कहे जाने वाले राष्ट्रपति ने अपने कार्यकाल में क्यूबा का मिसाइल संकट देखा, भारत और चीन का युद्ध भी उन्हीं के सामने हुआ. कैनेडी के कार्यकाल में ही पूर्वी जर्मनी ने रातों रात बर्लिन की दीवार बना दी. युवा राष्ट्रपति ने न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रीटी भी करवाई. कैनेडी के कार्यकाल में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच अंतरिक्ष होड़ भी शुरू हुई. 1963 में कैनेडी की हत्या कर दी गई.
तस्वीर: DW/E. Usi
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ट्वीट से तय होती थी अमेरिकी रणनीति
दक्षिण एशिया के लिए ट्रंप ने अपनी रणनीति सिर्फ एक ट्वीट से तय कर दी थी. साल 2018 के अपने पहले ट्वीट में उन्होंने पाकिस्तान के लिए जिस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया, उसकी उम्मीद किसी राष्ट्रपति से नहीं होती. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने बीते 15 सालों में अमेरिका को बेवकूफ बनाने के सिवाय कुछ नहीं किया है. ट्रंप ने कहा कि पाकिस्तान ने अमेरिका से 33 अरब डॉलर भी ले लिए और आतंकवादियों को सुरक्षित पनाह भी देता रहा. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा.
जिस पाकिस्तान को अमेरिका सालों से "आतंकवाद के खिलाफ जंग में अहम साथी" बताता रहा, ट्रंप ने एक पल में उसकी छवि को तार तार कर दिया. भारत के लिए तो यह ट्वीट कानों में पड़ने वाले मधुर संगीत की तरह था. यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ट्रंप जितने सहज दिखते थे, उतने सहज वह कम ही लोगों के साथ दिखते हैं. इस दोस्ती को दिखाने में दोनों नेताओं ने कसर भी नहीं छोड़ी.
ट्रंप की विदेश नीति को एक और बात के लिए याद रखा जाएगा. अरब दुनिया में इस्राएल की स्वीकार्यता बढ़ाने में वह कामयाब रहे. उनके राष्ट्रपति रहते एक के बाद एक कई अरब देशों ने इस्राएल के साथ राजनयिक संबंध कायम करने का ऐलान किया. ट्रंप इस्राएल में अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से येरुशलम ले गए. इसकी मुस्लिम दुनिया में खूब आलोचना हुई, लेकिन ट्रंप को भला किसकी परवाह थी. यह सब ईरान के इर्द-गिर्द घेरा कसने की उनकी रणनीति का हिस्सा था और वह इसमें काफी हद तक कामयाब भी रहे.
अमेरिका और पश्चिमी देशों की सरकारों ने बरसों की मशक्कत के बाद ईरान के साथ जिस परमाणु डील को साकार किया था, उससे निकलने का फैसला ट्रंप ने एक झटके में कर लिया. अब बाइडेन प्रशासन पर ईरानी डील में वापस लौटने का दबाव है. लेकिन इससे पहले बहुत नफा नुकसान का हिसाब लगाना होगा.
निश्चित तौर पर ट्रंप की विरासत में बहुत कुछ ऐसा है जिसे दुरुस्त करने की जरूरत है. बाइडेन से सबसे ज्यादा उम्मीद तो यही है कि वह कुछ करें या ना करें लेकिन जो "गड़बड़ियां" ट्रंप ने की हैं बस उन्हें ठीक कर दें. बेशक ट्रंप के चार साल बहुत हंगामे भरे रहे. उन्होंने जो किया अपने अंदाज में किया. अच्छा किया या बुरा किया, इसका मूल्यांकन जरूर होगा. लेकिन इसके साथ ही ट्रंप के उन "मास्टरस्ट्रोक" कदमों का जिक्र भी होगा, जिन्होंने लीक को तोड़ा.
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अमेरिकी राष्ट्रपतियों के साथ ऐसे रहे हैं मैर्केल के रिश्ते
जर्मनी की चांसलर बनने के बाद अंगेला मैर्केल ने अपने 15 साल के कार्यकाल में अमेरिका के तीन राष्ट्रपतियों के साथ काम किया है. जानिए किसके साथ उनके संबंध कैसे रहे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Nietfeld
आंखें मिलाना भी मुश्किल
ईरान को लेकर नीति हो या नाटो को, मैर्केल और ट्रंप के विचार कभी नहीं मिले. राजनीतिक तौर पर इनके बीच मतभेद तो हमेशा रहा है, साथ ही निजी स्तर पर भी यह साफ दिखता था. ऐसी भी खबरें आईं कि ट्रंप ने मैर्केल को "स्टुपिड" कहा था. यह तस्वीर 2019 की है जहां ट्रंप मैर्केल से नजरें चुराते दिखे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Kappeler
कौन किसकी सुने?
इस तस्वीर ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी. यह 2018 में कनाडा में हुए जी7 शिखर सम्मलेन की तस्वीर है. आपको क्या लगता है, इसमें कौन किस पर हावी है? मैर्केल - जो ट्रंप के सामने खड़ी रह कर अपनी ताकत दिखा रही हैं? या फिर ट्रंप - जो तस्वीर में मौजूद एकमात्र नेता हैं जो बाकियों की परवाह ना करते हुए कुर्सी पर बैठे हैं.
तस्वीर: Reuters/Bundesregierung/J. Denzel
हाथ नहीं मिलाउंगा
मार्च 2017 में जब मैर्केल पहली बार राष्ट्रपति ट्रंप से मिलने व्हाइट हाउस पहुंचीं, तो प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ट्रंप ने उनसे हाथ मिलाने से ही इनकार कर दिया. तब ही समझ आ गया था कि अगर पहली मुलाकात ही ऐसी है, तो अगले चार साल आसान नहीं होने वाले हैं.
तस्वीर: Reuters/J. Ernst
आंखों में दिखता था प्यार
ट्रंप से अलग बराक ओबामा के साथ मैर्केल का रिश्ता खास था. ओबामा आठ साल तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे और इस दौरान दोनों की दोस्ती गहरी हो गई. यह तस्वीर नवंबर 2016 की है, जब ट्रंप की चुनाव में जीत के बाद ओबामा मैर्केल से मिलने बर्लिन आए थे.
तस्वीर: Reuters/F. Bensch
इतनी अच्छी दोस्ती
मैर्केल और ओबामा के हावभाव से साफ दिखता था कि दोनों एक दूसरे के साथ कितने सहज हैं. यह तस्वीर 2015 की है जब जी7 शिखर सम्मलेन जर्मनी की आल्प वादियों में आयोजित हुआ था. मैर्केल को जलवायु परिवर्तन और अन्य कई मुद्दों पर ओबामा का साथ मिला.
तस्वीर: Reuters/M. Kappeler
ऐसी मुस्कुराहट
जून 2011 में अंगेला मैर्केल को अमेरिका के सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार "प्रेजिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम" से नवाजा गया. ओबामा ने यूरोप को एकजुट रखने के मैर्केल के प्रयासों की जम कर तारीफ की.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हाथों में हाथ
ओबामा से पहले अमेरिका के राष्ट्रपति रहे जॉर्ज डब्ल्यू बुश के भी मैर्केल के साथ अच्छे संबंध थे. 2006 में जब रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में जी8 सम्मलेन हुआ तब बुश का मैर्केल के कंधे दबाने वाला वीडियो खूब वायरल हुआ.
तस्वीर: AFP/Getty Images/A. Nemenov
मिलजुल कर खाना
यह तस्वीर जुलाई 2006 की है. मैर्केल ने बुश को जर्मनी में आमंत्रित किया था. औपचारिक बैठकों के बाद मैर्केल ने बारबीक्यू रखा था जिसे इस आयोजन की हाइलाइट बताया गया था. बुश मेहमान थे लेकिन मैर्केल को खाना उन्होंने ही परोसा था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/BPA/G. Bergmann
कभी मेहमान, कभी मेजबान
2007 में बुश ने मैर्केल और उनके पति योआखिम साउअर को अमेरिका में आमंत्रित किया. इस दौरान बुश खुद गाड़ी चलाते नजर आए. अमेरिकी अंदाज में उन्होंने "पिक अप ट्रक" एसयूवी में मैर्केल को घुमाया.
तस्वीर: Matthew Cavanaugh/dpa/picture-alliance
क्लिंटन के साथ भी
मैर्केल ने बतौर चांसलर राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ काम नहीं किया है लेकिन उनके साथ भी मैर्केल के संबंध अच्छे हैं. यह तस्वीर 2017 की है जब पूर्व जर्मन चांसलर हेल्मुट कोल के देहांत के बाद क्लिंटन ने भाषण दिया. स्पीच के बाद जब वे वापस अपनी कुर्सी पर आ कर बैठे, तो बगल में बैठी मैर्केल का हाथ थाम लिया.
तस्वीर: picture alliance/dpa/M. Murat
और बाइडेन के साथ भी
यह तस्वीर नवंबर 2009 की है. जो बाइडेन तब अमेरिका के उपराष्ट्रपति थे. मैर्केल ने वॉशिंगटन में अमेरिकी संसद में एक स्पीच दी थी. जिस दौरान संसद तालियों की आवाज से गूंज रही थी, बाइडेन मैर्केल को हंसाने में लगे थे. बतौर राष्ट्रपति बाइडेन मैर्केल के साथ कुछ ही महीने काम कर पाएंगे.