मुस्लिम समुदाय में अभी शरिया अदालत और ट्रिपल तलाक पर बहस थमी भी नहीं थी कि अब एक दूसरी प्रथा हलाला सुर्खियों में है. मामला फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है जहां पर एक संवैधानिक बेंच मामले की सुनवाई करेगी.
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जैसे ही ये मामला सुर्खियों में आया उत्तर प्रदेश में ऐसे कई मामले जिनमें हलाला प्रक्रिया अपनाने का दावा किया गया है मीडिया में सामने आ गए. देश में हलाला प्रथा को लेकर संभवतः पहला केस पुलिस ने बरेली में दर्ज किया है. मामला फिर से मुस्लिम समुदाय, अल्पसंख्यक आयोग और हलाला प्रथा की शिकार महिलाओं के इर्द गिर्द आ गया है.
गौर तलब है कि मुसलमानों में खासकर सुन्नी समुदाय के लोग इस्लामिक शरिया को मानते हैं. इस वजह से निकाह, बहुविवाह, ट्रिपल तलाक और हलाला जैसे मामले सब आपस में कनेक्टेड होते हैं. लेकिन आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसको मीडिया द्वारा गलत प्रोपोगंडा बता रहा है. बोर्ड के अनुसार, हलाला शब्द कहीं मौजूद नहीं है लेकिन इसको लेकर तमाम बयानबाजी चल रही है.
हलाला क्या है
इस्लाम धर्म के अनुसार अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी को तीन तलाक कह देता है तो उसकी पत्नी उसके निकाह से बाहर हो जाती है. पत्नी तीन महीने अपनी इद्दत के गुजारने के बाद स्वतंत्र होती है और वो किसी से भी शादी कर सकती है. लेकिन अगर वो फिर से अपने पहले पति से निकाह करना चाहती है तो उसके लिए पहले उसे किसी दुसरे पुरुष से शादी करनी होगी और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने होंगे, फिर उस पुरुष से तलाक लेनी होगी और फिर इद्दत की अवधि बिताने के बाद वो पहले पति से शादी कर सकती है.
इस पूरी प्रक्रिया को हलाला कहते हैं. लेकिन इसमें भी पहला पति दूसरे पति को तलाक देने के लिए मजबूर नहीं कर सकता. दूसरी बात ऐसी शर्त लगाना कि शारीरिक संबंध के बाद तलाक देना है वो भी नहीं किया जा सकता. इसके अलावा ये भी नहीं कहा जा सकता कि किसी खास पुरुष के साथ हलाला करें. जानकारों की मानें तो ऐसा इसलिए रखा गया है जिससे तलाक जैसी प्रक्रिया से लोग परहेज करें.
बरेली का हलाला प्रकरण
बरेली जिले के किला थाना के अंतर्गत एक पीड़िता ने मुकदमा दर्ज कराया कि वो तीन तलाक पीड़ित है और उसके साथ शरियत की आड़ में गलत बर्ताव हुआ है. पीड़ित महिला का कहना है कि उसके पति ने उसको तलाक दे दी और फिर उसके बाद उसकी शादी उसके ससुर से करवा दी गई फिर हलाला प्रक्रिया (शारीरिक संबंध बनवाना) की गई. पुलिस ने इस पर दुष्कर्म की धारा के तहत केस दर्ज किया है और जांच शुरू कर दी है.
अब इसमें मामला ये फंस रहा है कि अगर आरोप सिद्ध हुए तो हलाला प्रक्रिया को ही दुष्कर्म माना जायेगा. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या जो चीज शरिया में सही है वो कानूनी रूप से गलत कैसे होगी ? किला थाना के इंस्पेक्टर केके वर्मा ने मीडिया को बताया कि पीड़िता का मेडिकल होगा, सबके बयान होंगे और नियमानुसार विवेचना होगी.
मुस्लिम महिला होने का मतलब
दुनिया के अलग अलग देशों में पर्दे में या पर्दे के बाहर एक मुस्लिम महिला की ज़िंदगी का क्या मतलब है. इस पर नॉर्वे की लेखिका और पत्रकार बिर्गिटे सी हुईफेल्ड्ट ने किताब लिखी है अनसेंसर्ड.
तस्वीर: Nawal El Saadawi
मिस्र में असल आजादी की जरूरत
किताब शुरू होती है नवल ए सादावी के साथ जो डॉक्टर, लेखिका और महिला अधिकारों की जानी मानी पैरोकार हैं. मध्य पूर्व की महिलाएं अपनी लड़ाई में बड़ा मुकाम हासिल करने में अब तक क्यों नाकाम रही हैं, इस पर वो कहती हैं, "जो पितृसत्तात्मक, साम्राज्यवादी और सैन्य तंत्र हमारी जिंदगी को तय करता है उसमें महिलाओं को आजादी नहीं मिल सकती. हम पर ताकत और झूठे लोकतंत्र से शासन होता है, न्याय और असल आजादी से नहीं."
तस्वीर: Nawal El Saadawi
निर्वासन झेलती सीरियाई मनोविश्लेषक
सीरियाई मनोविश्लेषक राफाह नाशेद को भयभीत असद विरोधी प्रदर्शनकारियों की मदद के लिए बैठक बुलाने के बाद सितंबर 2011 में दमिश्क से गिरफ्तार किया गया. दो महीने बाद उन्हें आजाद तो कर दिया गया लेकिन अब वह पेरिस में निर्वासित जिंदगी जी रही हैं. हुईफेल्ड्ट की किताब में वह कहती हैं, "अरब समाज में बदलाव को इंकार किया जाता है क्योंकि जो भीड़ का हिस्सा नहीं है उसे नास्तिक या असामान्य मान लिया जाता है."
तस्वीर: Liberation
लोगों की इच्छा है लोकतंत्र
ईरानी वकील शिरीन एबादी ने अपना जीवन महिलाओं, बच्चों और शरणार्थियों के अधिकारों की लड़ाई में लगा दिया है. अपने देश में वो सरकार और पुलिस के लिए खतरा मानी जाती हैं. 2003 में उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार मिला. वह कहती हैं, "लोकतंत्र पूर्व और पश्चिम को नहीं जानता, लोकतंत्र लोगों की इच्छा है. इसलिए मैं लोकतंत्र के अलग अलग मॉडल को नहीं मानती."
तस्वीर: Shirin Ebadi
इस्राएल और फलस्तीन के बीच शांति
"निश्चित रूप से कब्जा जो है वो पुरुषों का है खासतौर से सैन्य कब्जा. इस्राएल और फलस्तीन के बीच जो विवाद है वह पुरूषों का बनाया है और हम महिलाओं को इसे खत्म करना है," यह कहना है फलस्तीनी सांसद, कार्यकर्ता और विद्वान हन्नान अशरावी का. यहूदी शरणार्थियों के बारे में कुछ विवादित बयान देने के बावजूद अशरावी ने इस्राएल और फलस्तीन के बीच शांति के लिए अहम योगदान दिया है.
तस्वीर: Hanan Ashrawi
यमन में महिलाओं से डरते पुरूष
महिला अधिकारों की पैरोकार अमाल बाशा यमन की हैं. उनके देश को 2016 में संयुक्त राष्ट्र के लैंगिक समानता सूचकांक में सबसे नीचे रखा गया था. वह कहती हैं कि महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर शरिया कानून के जरिए रोक लगायी जाती है, लेकिन क्यों? उनका कहना है, "पुरूष डरते हैं क्योंकि महिलाएं शांति की आवाज हैं. उनकी जंग में कोई दिलचस्पी नहीं."
तस्वीर: Salzburg Global Seminar
लीबिया में शांति की उम्मीद
लीबिया की हाजर शरीफ संयुक्त राष्ट्र की सलाहकार समिति और कोफी अन्नान फाउंडेशन की सदस्य हैं. वह कहती हैं कि लीबिया में गृह युद्ध को खत्म करने के लिए महिला पुरूष, दोनों को अपना रवैया बदलना होगा. उनका कहना है, "अगर आप घरों पर नज़र डालेंगे तो मांएं अपने बेटों को जंग में भेजती दिखेंगीं. अगर वे खुद हथियार लेकर नहीं चल रहीं तो भी निश्चित रूप से वे लीबिया में जो हिंसा का चक्र है उसमें योगदान दे रही हैं."
तस्वीर: Nader Elgadi
जॉर्डन में इज्जत के नाम पर हत्या
जॉर्डन की राना हुसैनी एक महिला अधिकारवादी ,मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और एक खोजी पत्रकार भी हैं, जिनकी रिपोर्टों ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर रोशनी डाली है. इज्जत के नाम पर हत्या के बारे में उनका कहना है, "जॉर्डन का समाज हर चीज के लिए महिलाओं को जिम्मेदार बताता है, बलात्कार के लिए, उत्पीड़न के लिए, लड़कियों को जन्म देने के लिए और यहां तक कि पुरूषों के व्यभिचार और धोखेबाजी के लिए भी."
तस्वीर: Rana Husseini
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हलाला प्रथा और सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी डाली गई है जिसमें कहा गया है कि मुसलमानों में बहुविवाह और निकाह-हलाला जैसी प्रथा ट्रिपल तलाक के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में रह गई थी. इस मामले की सुनवाई अब संवैधानिक बेंच करेगी. पेटिशन में सेक्शन 2, मुस्लिम पर्सनल (शरीअत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 को चुनौती दी गयी है. पेटिशन अश्विनी उपाध्याय, समीरा बेगम, मोहसिन बिन हुसैन और नफीसा खान द्वारा दायर की गई है. इसमें से अश्विनी उपाध्याय को भाजपा नेता बताया जा रहा है. मामला इस वजह से और सुर्खियों में है क्यूंकि सुप्रीम कोर्ट इससे पहले मुसलमानों में ट्रिपल तलाक को अवैध ठहरा चुका है.
जब हलाला प्रथा का मामला सुर्खियों में आया तो सबसे पहले बरेली से आवाज उठी. एक मुकदमा भी दर्ज हुआ. उसके बाद पीड़िता के समर्थन में बरेली निवासी निदा खान आ गई. निदा खान के खिलाफ अभी फतवा आया है और उनको इस्लाम से बाहर कर दिया गया है और उनके मरने पर भी लोगों को शामिल न होने के लिए कहा गया है. अब निदा खान खुद आला हजरत प्रमुख मौलाना सुभान रजा खान उर्फ सुभानी मियां के छोटे भाई अंजुम मियां के बेटे शीरान रजा खान की पूर्व पत्नी है. इसके बाद निदा ने आला हजरत हेल्पिंग सोसाइटी बनाई जिससे वो तलाक पीड़ितों के हक में लड़ रही है. निदा सीधे आला हजरत खानदान की बहू थी जिसपर बरेलवी समुदाय के लोग आस्था रखते हैं. निदा खुल कर हलाला पीड़िता के समर्थन में आ गई है.
गरमाई राजनीति
इस मुद्दे पर राजनीति भी गरमा गई है. उत्तर प्रदेश के सिचाईं मंत्री धर्मपाल सिंह ने कहा है कि निदा के साथ उनकी संवेदनाएं हैं और 21 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शाहजहांपुर रैली में आएंगे तो वो वहां निदा का दर्द उनको बताएंगे. दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने भी एक टीम बरेली भेजी है जो हलाला पीड़ित से भी मिलेगी. आयोग के अध्यक्ष तनवीर हैदर उस्मानी ने बताया कि देश फतवों से नहीं चलेगा और पीड़िता के साथ न्याय होगा.
इन सब से इतर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हलाला प्रकरण को बिना वजह की बहस मान रहा है. बोर्ड के सेक्रेटरी जफरयाब जीलानी के अनुसार हलाला शब्द कहीं नहीं है. ये कुरान और हदीस में कहीं नहीं है लेकिन इसको प्रचारित किया जा रहा है. जीलानी बताते हैं, अगर कोई शौहर अपनी पूर्व पत्नी से दुबारा शादी करना चाहता है तो उस पत्नी को कहीं दूसरी शादी करनी पड़ेगी और दूसरी शादी खत्म होने के बाद ही वो पहले पति से शादी कर पाएगी. लेकिन इसमें जबरदस्ती करना, शादी तुड़वाना या शर्त के साथ करवाना बहुत सख्त मना है.
सबसे धनी मुस्लिम औरतें
दुनिया की सबसे अमीर मुस्लिम औरतों के पास धन आने की तीन मुख्य वजह हैं. किसी अमीर आदमी से शादी, माता-पिता से मिली विरासत और अपनी कोशिशों से अर्जित संपत्ति इन वजहों में शामिल हैं. देखिए, कौन हैं ये हस्तियां...
तस्वीर: picture-alliance/AP Images/E. Agostini
प्रिंसेस अमीरा अल तवील, सऊदी अरब
6 नवंबर 1983 को जन्मीं प्रिंसेस अमीरा सऊदी प्रिंस अल वालिद बिन तलाल की पत्नी हैं. 58 साल के प्रिंस अल वालिद दुनिया के 26वें सबसे अमीर शख्स हैं.
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महारानी रानिया, जॉर्डन
जॉर्डन के राजा अब्दुल्लाह इल इब्न अल-हुसैन की पत्नी रानिया 31 अगस्त 1970 को जन्मी थीं. 1999 में उनके पति को गद्दी मिली. इस तस्वीर में वह इस्लामिक स्टेट के खिलाफ एक प्रदर्शन में हिस्सा लेती दिख रही हैं.
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प्रिंसेस मजीदा नूरुल बोलकिया, ब्रुनई
प्रिंसेस मजीदा सुल्तान हसलनल बोलकिया की दूसरी बेटी हैं. वह 16 मार्च 1976 को जन्मीं. 2007 में उन्होंने खैरुल खलील से शादी की. खलील भी राज परिवार से हैं और प्रधानमंत्री के दफ्तर में काम भी कर चुके हैं.
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प्रिंसेस हाजा हफीजा सुरूरूल बोलकिया
ब्रुनई के सुल्तान हसनल बोलकिया की चौथी बेटी प्रिंसेस हफीजा 12 मार्च 1980 को जन्मीं. उनके पिता दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से हैं. उनके पास कुल 7,000 कार हैं. उनके महल में 1,700 कमरे हैं.
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सुल्ताना नूर जाहिरा, मलेशिया
राजा वाथिकू बिलाह तुआंकू मिजान जैनल आबिदीन की पत्नी सुल्ताना 7 दिसंबर 1973 को जन्मीं. वह खुद भी एक अमीर परिवार से हैं. उनके पिता से उन्हें करीब 15 अरब डॉलर विरासत में मिले.
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शेखा मोजा बिंत नसीर अल मिसनद, कतर
कतर के अमीर शेख हमद बिन खलीफा अल थानी की दूसरी पत्नी शेखा 1959 में जन्मी थीं. एक अनुमान है कि उनके पति के पास 7 अरब पाउंड की संपत्ति है.
तस्वीर: picture alliance/abaca
शेखा हनादी बिंत नसीर खालेद अल थानी, कतर
शेखा हनादी एक रियल एस्टेट उद्योगपति, निवेशक और बैंक मैनेजर हैं. कतर की सबसे सफल महिलाओं में से एक हनादी की संपत्ति 15 अरब डॉलर के करीब आंकी गई है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Kneffel
प्रिंसेस लाला सलमा, मोरक्को
10 मई 1978 को जन्मीं प्रिंसेस लाला के पिता एक टीचर थे. उन्होंने मोरक्को के राजा मोहम्मद छठे से शादी की. दो बच्चों की मां सलमा के पति के पास 2.5 अरब डॉलर की संपत्ति मानी जाती है.
तस्वीर: Getty Images
शेखा मैथा बिंत मोहम्मद बिन राशिद अल मक्तूम, दुबई
एशियन गेम्स 2006 की इस तस्वीर में दायीं ओर दिख रहीं मैथा की पैदाइश 5 मार्च 1980 की है. उनके पिता शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मक्तूम यूएई के प्रधानमंत्री और फिर उपराष्ट्रपति रहे. वह दुबई के अमीर हैं. कराटे चैंपियन मैथा ने 2006 के गेम्स में सिल्वर जीता था.
रिपोर्ट: एमएल/वीके