इंदौर से शुरू होने वाली ट्रेनों में सिर की चंपी (मालिश) और पैरों की मालिश की सुविधा मुहैया कराने के रेल मंत्रालय के फैसले से यात्री काफी खुश तो हैं लेकिन उन्हें चंपी और मालिश का टाइम कम और दरें ज्यादा लग रही हैं.
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रेल मंत्रालय ने इंदौर से चलने वाली 39 गाड़ियों में सिर की चंपी और पैरों की मालिश की योजना को मंजूरी दी है. यह मंजूरी नई इनोवेटिव नॉन-फेयर रेवेन्यू आइडिया स्कीम (एनआईएनएफआरआईएस) पॉलिसी के तहत दी गई है. इस योजना में शामिल गाड़ियों में तीन से पांच मालिश करने वाले उपलब्ध रहेंगे. यात्रियों को मालिश की यह सुविधा आरक्षित और वातानुकूलित डिब्बों में मुहैया कराई जाएगी.
रेलवे सूत्रों का कहना है कि मालिश सुविधा लेने के एवज में यात्री को 100 रुपये से 300 रुपये तक का भुगतान करना होगा. मालिश की अवधि 15 से 20 मिनट के बीच होगी. यात्रियों को यह सुविधा गाड़ियों में सुबह छह बजे से रात 10 बजे तक मिलेगी. हर ट्रेन में मालिश के लिए कुछ बर्थो का निर्धारण किया जाएगा, ताकि अन्य यात्रियों को किसी तरह की परेशानी ना हो.
इन देशों में नहीं चलतीं ट्रेन
भारत में रेल के बिना सार्वनजिक परिवहन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. लेकिन 21वीं सदी में ऐसे कई देश हैं जहां रेलवे नेटवर्क नहीं है. डालते हैं इन्हीं पर एक नजर.
चंपी और मालिश की सुविधा से यात्रियों में खुशी है, मगर समय और तय की गई दर पर वे सवाल उठा रहे हैं.
भोपाल के निवासी आशीष शर्मा का कहना है कि यह सुविधा बुजुर्गो के लिए काफी लाभदायक होगी, क्योंकि लंबी यात्रा करने पर बुजुर्गो को पैर और सिर में भारीपन की शिकायत होने लगती है. बुजुर्ग लोग चलती गाड़ी में घूम नहीं सकते और गाड़ियां स्टेशन पर ज्यादा देर रुकती नहीं है. ऐसे में चंपी और मालिश की सुविधा उन्हें राहत देगी. लेकिन शर्मा यह भी कहते हैं कि रेल मंत्रालय ने जो दर तय की है, वह ज्यादा है.
इंदौर निवासी शांति देवी कहती हैं कि सरकार की यह पहल यात्रियों के लिए अच्छी मानी जाएगी, इससे यात्रियों को लाभ होगा, मन भी बहलेगा, एक से ज्यादा दिन की यात्रा थकाउ व उबाउ हो जाती है, ऐसे में यह सुविधा राहत देगी. सुविधा तो अच्छी है मगर जो रेट तय किए गए हैं, वह काफी ज्यादा है. रेल मंत्रालय को दर कम करना चाहिए और साथ ही गाड़ियों में अन्य सुविधाओं पर भी ध्यान देना चाहिए, जैसे सुरक्षा, टॉयलेट आदि की साफ -सफाई. वातानुकूलित डिब्बों के प्रवेश द्वारों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं तो यात्रियों में सुरक्षा के प्रति भरोसा बढ़ेगा.
इंदौर के राकेश चंद्र भी कहते हैं कि रेल मंत्रालय ने गाड़ियों के निर्धारण में जल्दबाजी कर दी क्योंकि कई गाड़ियां ऐसी हैं जो रात दस बजे के लगभग इंदौर से रवाना होंगी. मसलन इंदौर से नागपुर जाने वाली गाड़ी का समय रात नौ बजकर 25 मिनट है और मालिश का समय रात 10 बजे तक है. दूसरी ओर दर ज्यादा है और मालिश का समय कम है.
रेल मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, मालिश के काम में सेवाएं देने वाले ठेकेदार और कर्मचारियों की पृष्ठभूमि की जांच किए जाने के बाद परिचय पत्र जारी किए जाएंगे.
सफर के लिए ट्रेन का इस्तेमाल तो आपने बहुत बार किया होगा. लेकिन क्या ट्रेन में अपना इलाज कराया है. देश में चलने वाली इस लाइफलाइन एक्सप्रेस में मरीजों का न सिर्फ प्राथमिक इलाज होता है बल्कि यह ट्रेन ऑपरेशन भी करती है.
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लाइफलाइन एक्सप्रेस
लाइफलाइन एक्सप्रेस भारतीय रेलवे में साल 1991 में शामिल हुई थीं. मकसद था दूर-दराज के इलाकों में मोतियाबिंद, पोलियो, जैसे रोगों के मरीजों की सर्जरी और इलाज में मदद करना. साल 2016 से इसकी सेवाओं में विस्तार में हुआ. अब इस ट्रेन में स्तन और गर्भाशय के कैंसरों की सर्जरी भी होने लगी है.
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दस लाख से अधिक मरीज
लाइफलाइन एक्सप्रेस पिछले तीन दशकों से दूर-दराज के इलाकों में मुफ्त चिकित्सा सेवाएं दे रही है. अब तक यह ट्रेन दस लाख से अधिक लोगों की मदद कर चुकी है. अपने इस सफर में यह ट्रेन एक जिले में करीब महीने भर तक रुकती है. कोशिश है सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को बेहतर करना.
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डॉक्टर और स्टाफ
इस ट्रेन अस्पताल में दो ऑपरेशन थियेटर और 20 लोगों का स्टाफ है. अधिकतर डॉक्टर यहां मुफ्त में काम करते हैं. इसमें काम करने वाली महक सिक्का कहती हैं कि उन्होंने हेल्थ सेंटर्स की खराब हालत को देखने के बाद इस ट्रेन अस्पताल को ज्वाइन किया.
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जागरुक बनाना है उद्देश्य
महक कहती हैं कि ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाएं नहीं है. यहां तक कि महिलाओं कि किसी स्त्रीरोग विशेषज्ञ तक पहुंच ही नहीं है. उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश न सिर्फ मरीज का इलाज करना है बल्कि स्थानीय डॉक्टरों और लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में जागरुक बनाना भी है.
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स्थानीय डॉक्टर की भूमिका
ट्रेन में ऑपरेशन थियेटर की साफ-सफाई का भी खासा ध्यान रखा जाता है. जब इस ट्रेन के ऑपरेशन थियेटर में कोई ऑपरेशन हो रहा होता है तो एक स्थानीय डॉक्टर को भी अपने साथ रख जाता है. ताकि मरीज को आगे के इलाज में समस्या न आए.
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लोगों को भरोसा
ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी स्वास्थ्य केंद्र ही सबसे अहम हैं. लेकिन देश की एक बड़ी आबादी स्वास्थ्य क्षेत्र में बुनियादी ढांचे और डॉक्टरों की कमी से जूझ रही है. ट्रेन के कर्मचारी बताते हैं कि पहले लोग ट्रेन में होने वाले ऑपरेशन को लेकर काफी चिंतित होते थे. लेकिन सब सुविधाओं को देखने के बाद अब उनका विश्वास बढ़ा है.
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ट्रेन में 1.30 लाख ऑपरेशन
ट्रेन अस्पताल के डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर अनिल दारसे के मुताबिक लॉन्च के बाद से ट्रेन में करीब 1.30 लाख ऑपरेशन हो चुके हैं. और यह देश के करीब 191 जगहों को पार कर चुकी है.
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ये चलाते हैं
इस लाइफलाइन एक्सप्रेस को एक गैर सरकारी संस्था इम्पैक्ट इंडिया फाउंडेशन, सरकार के साथ मिलकर चला रही है. इस पहल को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) समेत संयुक्त राष्ट्र की बाल कल्याण संस्था यूनिसेफ का भी सहयोग मिल रहा है. अब दूसरी लाइफलाइन एक्सप्रेस चलाने की भी तैयारी की जा रही है.