ट्रेन हादसे- लापरवाही या कुछ और?
२६ अप्रैल २०१८दरअसल, इस घटना में भी बताया जा रहा है कि एक ओर तो रेलवे क्रॉसिंग मानवरहित थी और दूसरी ओर वैन का ड्राइवर कान में इयरफोन लगाकर गाने सुनते हुए गाड़ी चला रहा था. वहां मौजूद कुछ लोगों ने उसे आगाह करने की कोशिश की लेकिन इयरफोन के चलते वो सुन नहीं पाया.
देश भर में इस समय सात हजार से भी ज्यादा मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग्स हैं और अकसर इन क्रॉसिंग्स पर हादसे होते रहते हैं. रेलवे के मुताबिक रेल हादसों में करीब 35 फीसद हादसे इन्हीं मानवरहित क्रॉसिंग्स की वजह से होते हैं.
रेल मंत्री पीयूष गोयल ने पिछले साल सितंबर में कहा था कि अगले एक साल में सभी मानवरहित क्रॉसिंग्स खत्म कर दी जाएंगी, लेकिन अब तक उसका दसवां हिस्सा भी शायद ही पूरा हो पाया हो. रेलवे के अधिकारियों के पास भी इस तरह के अपडेटेड आंकड़े नहीं हैं. रेलवे के मुताबिक, पिछले पांच साल में करीब छह हजार मानव रहित क्रॉसिंग्स को समाप्त किया जा चुका है.
यूपी में ही मानव रहित क्रॉसिंग पर दो साल पहले भी इसी तरह का हादसा हुआ था जिसमें करीब एक दर्जन बच्चों की मौत हो गई थी. वहीं दूसरी ओर, स्कूल बसों में ड्राइवरों की लापरवाही के कारण भी बड़ी संख्या में हादसे होते हैं. अभी कुछ दिन पहले ही हिमाचल प्रदेश में भी ऐसा ही हादसा सामने आया था जिसमें दो दर्जन से ज्यादा बच्चे मारे गए थे.
तमाम हिदायतों और सरकारी प्रचार प्रसार के बावजूद अकसर ये देखने में आता है कि न तो स्कूल प्रशासन और न ही स्थानीय प्रशासन स्कूली बसों के सुरक्षा मानकों की कोई जांच-परख करते हैं. कुशीनगर में वैन चला रहा ड्राइवर लापरवाही से तो गाड़ी चला ही रहा था, उसकी उम्र भी अभी इतनी नहीं हुई थी कि उसे वैन चलाने का लाइसेंस मिल सके. इस बात की आशंका खुद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने जताई है.
यही नहीं, वैन की हालत देखकर पता चलता है कि सुरक्षा मानकों की तो छोड़िए, उसकी सामान्य हालत भी ठीक नहीं थी. एक प्रत्यक्षदर्शी के मुताबिक वैन जैसे ही ट्रैक पर चढ़ी, वो ख़राब हो गई और उधर से आ रही ट्रेन ने वैन को टक्कर मार दी.
केंद्रीय परिवहन मंत्रालय विभिन्न स्तरों पर स्कूल बसों और वैन में सुरक्षा मानकों का पालन करने की सलाह संबंधी विज्ञापन जारी करता रहता है लेकिन छोटे शहरों के अलावा बड़े शहरों के कई नामी स्कूल भी अकसर इन मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं.
सामान्य तौर पर स्कूल की बस में स्कूल का कोई शिक्षक ज़रूर होना चाहिए, प्राथमिक उपचार संबंधी ज़रूरी सामान उपलब्ध होने चाहिए, बस की पूरी तरह से जांच होनी चाहिए कि उसकी हालत सड़क पर चलने के लिए ठीक है, इत्यादि. लेकिन इन मानकों का पालन कहीं शायद ही होता हो.
बताया जा रहा है कि कुशीनगर में जिस मानवरहित क्रॉसिंग पर ताजा दुर्घटना हुई है, वहां पहले भी दुर्घटना हो चुकी है लेकिन न तो सरकार ने और न ही लोगों ने उससे कोई सबक लिया.
पिछले चार-पांच साल में ही भारत में करीब दर्जनों बड़े रेल हादसे हो चुके हैं जिनमें सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है. हर रेलवे हादसे के बाद इसके कारणों को लेकर कई तरह की बातें कही और सुनी जाती हैं. हादसे के बाद सरकार जांच के आदेश देती है लेकिन अधिकतर मामलों में कसूरवार कौन था ये फाइलों में ही दबकर रह जाता है.