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ट्रैवल बैन से फिर याद आया वो 1944 का मुकदमा

२७ जून २०१८

ट्रंप के ट्रैवल बैन पर अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगा दी. लेकिन इससे 1944 के उस फैसले की यादें ताजा हो गईं जब एक झटके में सवा लाख जापानी अमेरिकियों को सलाखों के पीछे भेज दिया गया था.

USA Präsident Donald Trump beobachtet totale Sonnenfinsternis ohne Schutzbrille in Washington
तस्वीर: picture-alliance/abaca/CNP/S. Ron

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने कई मुस्लिम देशों के नागरिकों के अमेरिका में आने पर प्रतिबंध को जायज ठहराया है. एक ओर ट्रंप प्रशासन इसे बड़ी जीत मान रहा है, तो दूसरी तरफ आलोचक इसकी निंदा कर रहे हैं. पहले निचली अदालतों ने ट्रंप प्रशासन के फैसले को असंवैधानिक करार दिया था. लेकिन अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के फैसले को पलटते हुए ट्रैवल बैन को सही ठहराया. ट्रैवल बैन के तहत ईरान, लीबिया, सोमालिया, सीरिया और यमन के नागरिकों के अमेरिका में प्रवेश पर रोक लगाई गई है.

तस्वीर: picture-alliance/abaca/CNP/S. Ron

आलोचक अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की तुलना दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1944 के एक फैसले से कर रहे हैं, जिसे अमेरिकी न्यायपालिका के इतिहास में सबसे बुरे फैसलों में से एक माना जाता है. पर्ल हार्बर पर हमले के जबाव में लाए गए उस अध्यादेश को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने उचित ठहराया था जिसके तहत करीब 1.20 लाख जापानी मूल के अमेरिकियों को कैद कर लिया गया था. 

ट्रैवल बैन के मुद्दे पर 'ट्रंप बनाम हवाई' मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट की ज्यूरी के 9 में से 5 जजों ने फैसला दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए कांग्रेस ने मौजूदा आप्रवासी कानून के तहत राष्ट्रपति को अमेरिका में आने वाले लोगों की संख्या सीमित करने का व्यापक अधिकार दिया है. इस पर दूसरे पक्ष की तरफ से दलील दी गई कि ट्रंप प्रशासन का ट्रैवल बैन अध्यादेश धर्म और नागरिकता के आधार पर भेदभाव करता है जो असंवैधानिक है. 

ट्रंप के भारतीय समर्थक

01:26

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फैसले का विरोध

जस्टिस सोनिया सोटोमेयर ने ज्यूरी के फैसले से असहमति जताते हुए कोर्ट में दूसरे विश्व युद्ध के समय के एक मुकदमे का जिक्र किया, जब राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट के एक विवादित अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया था. इसके तहत उचित कानूनी प्रक्रिया के बिना अमेरिका में रहने वाले जापानी मूल के लोगों को कैद कर लिया गया था जबकि उनमें से ज्यादातर अमेरिकी नागरिक थे. ट्रंप की तरह ही रूज़वेल्ट ने भी अपने अध्यादेश की वजह राष्ट्रीय सुरक्षा को बताया था.

तस्वीर: Reuters/L. Millis

कोरेमात्सु बनाम संयुक्त राज्य अमेरिका नामक के इस मुकदमे को अमेरिकी सिविल लिबर्टीज यूनियन (एसीएलयू) ने जापानी अमेरिकी नागरिकों की तरफ से 1942 में दायर किया था और सरकार के इस अध्यादेश की संवैधानिकता पर सवाल उठाया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की ज्यूरी में तीन के मुकाबले छह जजों ने यह कह कर अध्यादेश को मंजूरी दे दी कि इन लोगों को नस्ल के आधार पर नहीं बल्कि "सैन्य जरूरत" के मद्देनजर कैद किया जा रहा है.ट्रंप के फैसले से ऐसे निपटेगी हार्ली डेविडसन

दूसरी तरफ, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अप्रवासी संगठनों में भारी रोष है. एसीएलयू में आप्रवासी अधिकारों से जुड़े प्रोजेक्ट के निदेशक ओमार जदावत का कहना है कि चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स का फैसला इतिहास में सुप्रीम कोर्ट की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक माना जाएगा. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट कोरेमात्सु बनाम अमेरिका फैसले की गलती को दोहरा रहा है. 

सूडान से अमेरिका आए और प्रदर्शन कर रहे मोहम्मद अबुकार कहते हैं कि कोर्ट का फैसला पूरी तरह नस्लवादी है. वहीं कोरेमात्सु का जिक्र करते हुए एक अन्य 33 वर्षीय प्रदर्शनकारी होदा हवा का कहना है कि "कोर्ट तब भी गलत थी और आज भी गलत है."

वीसी/एके (डीपीए)

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