डाउन सिंड्रोम टेस्ट पर छिड़ी जर्मनी में बहस
१२ अप्रैल २०१९
डाउन सिंड्रोम और सामान्य जीवन
बचपन
डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चे देखने में साधारण बच्चों से भले ही अलग लगें, लेकिन उनमें भी वही बचपना, वैसी ही समझ बूझ होती है, शायद कुछ चीजें समझने में उन्हें थोड़ा ज्यादा वक्त लगे, लकिन उन्हें कमतर समझना गलत है.
स्कूल में साथ साथ
कई देशों में डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों के लिए अलग स्कूल होते हैं. स्कूलों में यह धारणा होती है कि ऐसे बच्चे का बाकी पर बुरा असर पड़ सकता है. लेकिन ये सही नहीं. जर्मनी में ये बच्चे सामान्य किंडरगार्टन में जा सकते हैं और खेल खेल में बहुत कुछ सीख सकते हैं.
क्या है डाउन सिंड्रोम?
डाउन सिंड्रोम दरअसल जीन से जुड़ी एक बीमारी है. एक साधारण डीनीए में 23 जोड़ी यानी 46 क्रोमोजोम होते हैं, लेकिन डाउन सिंड्रोम में ये 47 होते हैं. एक क्रोमोजोम के अधिक होने से शारीरिक और मानसिक विकास पर असर पड़ता है.
प्यार और देख भाल
भारत में डाउन सिंड्रोम के मरीजों की औसतन उम्र काफी कम होती है. पश्चिमी देशों में यह 55 साल है. रिसर्च ने दिखाया है कि प्यार और देखभाल से इनकी उम्र बढ़ाई जा सकती है.
गोद लेने की मंशा
अमेरिका का यह जोड़ा रूस से डाउन सिंड्रोम वाले एक बच्चे को गोद लेना चाहता है, लेकिन उन्हें ऐसा करने से रोक दिया गया. दुनिया में जेनी और एरोन मोयर जैसे बहुत कम ही लोग हैं जो ऐसे कदम उठाने की हिम्मत करते हैं.
अनचाहे बच्चे
गर्भावस्था के दौरान ही डाउन सिंड्रोम का पता लगाया जा सकता है. अधिकतर मामलों में देखा गया है की माता पिता गर्भपात कराना बेहतर समझते हैं. ऐसा भी माना जाता है कि महिलाओं की जीवनशैली का बच्चे पर असर होता है, जबकि इस मामले में ऐसा कुछ भी नहीं.
बीमारियों से जंग
ये बच्चे साधारण रूप से खेल कूद सकते हैं, लेकिन इनका दिल नाजुक होता है. इन बच्चों में हृदय रोग की संभावना बहुत ज्यादा है. साथ ही दमे की दिक्कत भी होती है. कमजोर आंखें और सुनने में भी परेशानी होती है.
परिवार का साथ
बच्चे और माता पिता, दोनों की ही तरफ समाज का सकारात्मक रवैया बेहद जरूरी है. परेशानियां तो हैं, लेकिन डाउन सिंड्रोम के बावजूद व्यक्ति एक सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है.