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डाटा बन सुरक्षित होगी धरोहर

२८ मई २०१५

पौराणिक अवशेष भी स्थायी नहीं. प्राकृतिक बदलावों का असर तो पड़ता ही है, साथ ही धर्म के नाम पर लड़ने वाली ताकतें भी इन्हें निशाना बनाती रहती हैं. लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इस जोखिम से निपटने का रास्ता निकाला है.

Deutschland Denkmal der Brüder Grimm in Kassel
तस्वीर: picture-alliance/dpa/U. Zucchi

कला के बेशकीमती नमूने हों या औजार, म्यूजियम में दिखने वाली ऐसी चीजें भी खतरे से बाहर नहीं हैं. युद्ध, हिंसा या फिर प्राकृतिक आपदाओं में इनके बर्बाद होने का खतरा बना रहता है. लेकिन अब एक नई तकनीक की मदद से ऐसे खजानों को बचाने की कोशिश की जा रही है. जर्मनी के फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट ने 3डी प्रिंटर की मदद से एक खास तकनीक विकसित की है.

डाटा बनती कृतियां

डार्मश्टाड का फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट फॉर कंप्यूटर ग्राफिक्स अब छह मीटर लंबी एक 3डी स्कैन स्ट्रीट बना रहा है. इसके जरिए वैज्ञानिक खतरे में पड़े नमूनों को सुरक्षित ढंग से कॉपी कर सकेंगे. संस्थान के डिजिटलाइजेशन ऑफ कल्चरल हेरिटेज के प्रमुख पे़ड्रो सांतोस के मुताबिक यह डिजिटलाजेशन की अगली सीढ़ी है, "खासतौर पर पिछले 10 साल में हमने देखा है कि माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी कंपनियों ने 2डी संस्कृति को बड़े पैमाने पर डिजिटलाइज करना शुरू किया. किताबें, पेटिंग और तस्वीरें भी. लेकिन 3डी, हमेशा एक जटिल मैनुअल तरीका है. हम इसे ऑटोमैटेड करना चाहते हैं."

स्कैनिंग की प्रक्रिया

पूरी मूर्ती हो, अर्धप्रतिमा या फिर औजार. इस बेल्ट पर सब स्कैन होता है. स्कैनर हर एंगल से बारीकी जुटाता है. 9 एलईडी फ्लैश लाइटें 9 इंडस्ट्रियल कैमरों के लिए चमक बिखेरती हैं. इनकी मदद से ऑब्जेक्ट की हर संभव बारीकी को दर्ज किया जाता है. ऑब्जेक्ट पर लाइट और पर्सपेक्टिव के सभी कॉम्बिनेशन चाहिए ताकि उसकी वास्तविक आकृति उभर सके. इस आभासी मॉडल को जब रोशनी में रखा जाता है तो ये एकदम असली की तरह व्यवहार करने लगता है.

दूसरे चरण में हल्की रोबोटिक आर्म, ऑब्जेक्ट के उस बाहरी ढांचे को स्कैन करती है, जिसे धनुषाकार स्कैनर नहीं समझ पाया. नतीजा, सात हजार तस्वीरें, जिनसे मिलकर 3डी मॉडल बनेगा.

सिर्फ 10 मिनट के भीतर तीन आयामों वाला मॉडल तैयार है. लेकिन ये असली से कुछ अलग है. यह फॉर्म में दिख रहा है और ऑब्जेक्ट जैसा भी लग रहा है. प्रकाश को सोखते और परावर्तित करते हुए भी दिख रहा है. कोशिश, एक फोटोरियलिस्टिक 3डी नमूना बनाने की है.

पेड्रो सांतोस इसे समझाते हैं, "परावर्तन के गुणों के साथ ऑब्जेक्ट के ऑप्टिकल मैटीरियल गुण भी देखे जाते हैं. जब कोई खनिज हाथ में हो और प्रकाश दायीं तरफ से आए तो हमें ऑब्जेक्ट का सिर्फ एक बिंदु दिखता है, फिर ये लाल टिमटिमाहट. जब मैं प्रकाश के स्रोत को बदलता हूं तो नीली रोशनी टिमटिमाती है. इस सतह की एक फोटो काफी नहीं है, इसीलिए ऑब्जेक्ट के लाइट एक्सपोजर और पर्सपेक्टिव के कॉम्बिनेशन की जरूरत होती है."

बड़ी मूर्तियों के लिए वैज्ञानिकों के पास एक अच्छा तरीका मौजूद है, सेल्फ पावर्ड स्कैनिंग रोबोट, जो मूर्ति के आस पास खुद ही चलता है. रोबोट स्कैन करता है, तस्वीरें लेता है और एक 3डी मॉडल तैयार करता है.

म्यूजियमों की मदद

पूरी तरह ऑटोमैटिक स्कैनिंग स्ट्रीट, भविष्य में म्यूजियमों में संभाली गई लाखों कलाकृतियों को स्कैन करेगी. इससे पैसा भी बचेगा और कलाकृतियों को हमेशा के लिए 3डी अर्काइव में रखा जा सकेगा. इसके लिए कहीं नहीं जाना पड़ेगा और 30 फीसदी बचत भी होगी.

पेड्रो सांतोस इसका एक और फायदा गिनाते हैं, "म्यूजियम ऐसी स्कैनिंग स्ट्रीट का खर्च नहीं उठा सकते. इसलिए ये सेवा देने वाले जगह जगह जा कर स्कैनिंग स्ट्रीट बनाएंगे. हमारे सिस्टम की खास बात यह है कि इसमें सब कुछ चलता फिरता है, आप इसे तीन घंटे के भीतर समेट भी सकते हैं और कहीं भी ले जा सकते हैं."

तैयार हो चुके 3डी मॉडल में डाटा डिटेल भी भरी जा सकती है. मसलन कनजर्वेशन स्टेटस या कलाकार की जानकारी. ये एकदम नया वैज्ञानिक रास्ता है. ऑब्जेक्ट को प्रिंट करने और उसकी कॉपी तैयार करने के साथ ही उसके, हमेशा के लिए खत्म होने का खतरा भी कम हो जाएगा.

रिपोर्ट: मार्टिन रीबे/ओएसजे


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