डायनोसॉर के लुप्त होने पर पृथ्वी पर जीवन कैसे लौटा
२५ अक्टूबर २०१९
करीब 10 लाख से ज्यादा वक्त के पृथ्वी पर जीवन के इतिहास को वैज्ञानिकों ने हजारों नमूनों की सहायता से पलक झपकते ही देख लिया है. करीब साढ़े छह करोड़ साल पहले एक बड़ा धूमकेतू पृथ्वी से टकराया था.
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करीब साढ़े छह करोड़ साल पहले एक बड़ा धूमकेतू पृथ्वी से टकराया था. जिस जगह ये टक्कर हुई उसे आज दक्षिणपूर्वी मेक्सिको का युकातान प्रायद्वीप कहा जाता है. इस टक्कर की वजह से बेहद गर्म तरंगें पैदा हुईं और उन्होंने आकाश को ठोस और तरल कणों वाली गैस के बादल से भर दिया. इसकी वजह से सूर्य के सामने कई महीनों के लिए एक काला धब्बा आ गया और इसके नतीजे में सूरज की रोशनी पर निर्भर पौधे और जीव मर गए. इस दौरान धरती के करीब तीन चौथाई जीवों का खात्मा हो गया.
हालांकि बाद में जीवन फिर वापस लौटा और धरती पर स्तनधारियों के आकार और उनकी संख्या में विस्तार होने लगा. छोटे छोटे जीवों से ये जीव इतने बड़े हो गए जैसे आज नजर आते है, इनमें हम इंसान भी शामिल हैं. जीवाश्मों की इस खोज के बारे में साइंस जर्नल में रिपोर्ट छपी है, रिपोर्ट के लेखक टायलर लाइसन का कहना है कि इस नई खोज से "आधुनिक विश्व की उत्पत्ति" की जानकारी मिलती है.
कोलोराडो स्प्रिंग्स के पास करीब 17 वर्ग किलोमीटर के इलाके में फैले तीखे ढलानों से ये जीवाश्म मिले हैं. तीन साल पहले इनका पता चलना शुरू हुआ था. डेनवर म्यूजियम ऑफ नेचर एंड साइंस से जुड़े लाइसन जब हड्डियों और छोटे छोटे टुकडों को स्कैन करने की मानक प्रक्रिया का पालन कर रहे थे तो उन्हें बहुत कम ही चीजें नजर आईं. बाद में उन्होंने ऐसे चट्टानों की खोज शुरू की जो हड्डियों के इर्दगिर्द बन गए थे. जब इन चट्टानों को तोड़ा गया तो उनके बीच खोपड़ियों और जीवाश्मों का पता चला.
लाइसन का कहना है कि अभी यह साफ नहीं है कि कितने बड़े भौगोलिक इलाके पर इन जीवाश्मों की कहानी लागू होती है लेकिन उनका मानना है कि ये उत्तरी अमेरिका में जो हुआ उसकी दास्तान बयां करते हैं. उन्होंने कहा, "विश्व में हर जगह के बारे में हम बहुत कम जानते हैं लेकिन कम से कम एक जगह के बारे में बढ़िया रिकॉर्ड मिला है." कई जानकार जो इस रिसर्च से नहीं जुड़े हैं वो भी बहुत उत्साहित हैं. इंडियाना यूनिवर्सिटी के पी डेविड पॉली का कहना है, "यह एक असामान्य डॉक्यूमेंट्री है कि धरती पर जीवन कैसे वापस आया."
वैज्ञानिकों को पहले भी धूमकेतू के पृथ्वी से टकराने और उसके बाद हुई तबाही के छोटे मोटे सबूत मिले हैं, खासतौर से धरती पर लेकिन इतने बड़े पैमाने पर जानकारी देने वाले प्रमाण कभी नहीं मिले. इस रिसर्च रिपोर्ट में सैकड़ों जीवाश्मों की बात की गई है जो कम से कम 16 जीवों और 600 से ज्यादा पौधों के हैं. रिसर्चरों ने हजारों पराग कणों का भी विश्लेषण किया है ताकि यह देख सकें कि अलग अगग वक्त में कौन से पौधे जीवित थे. इनके विश्लेषण से पता चलता है कि उस दौर में कई सारे गर्म दौर गुजरे थे.
अब तक जो जानकारी मिली हे उसके मुताबिक धूमकेतू के टकराने से पहले वहां जंगल था जिसमें टी रेक्स जैसे डायनोसॉर और 8 किलो से ज्यादा वजन वाले स्तनधारी रहते थे.
इस आपदा के तुरंत बाद वातावरण काली चादर से ढंक गया और उसके बाद सबसे बड़े जो स्तनधारी थे उनका आकार चूहों के बराबर था. दुनिया बेहद गर्म थी जिसका जिक्र पहले के अध्ययनों में भी किया गया है. धूमकेतू के टकराने के करीब एक लाख साल बाद जंगलों में ताड़ के पेड़ों का विस्तार हो गया था और स्तनधारियों का वजन मध्य और उत्तर अमेरिका में पाए जाने वाले रकून के बराबर हो गया था. करीब 3 लाख साल के बाद अखरोट के पेड़ों में विविधता शुरू हुई और तब सबसे बड़े स्तनधारी शाकाहारी और बड़े बीवर के आकार के हो गए थे. लाइसन का कहना है कि ये स्तनधारी इन पेड़ों के साथ ही विकसित हो रहे थे.
जीवाश्मों का रिकॉर्ड दिखाता है कि सात लाख साल के बाद फलीदार पौधों की उत्पत्ति हुई. इस परिवार में बीन्स और मटर के पौधे आते हैं. इसके साथ ही दो सबसे विशाल स्तनधारी भी इसी दौर में नजर आने शुरु हुए. इनका वजन करीब 50 किलो और आकार भेड़िये के बराबर था. ये उन जीवों से करीब 100 गुना भारी थे जो आपदा के बाद जिंदा बचे थे. लाइसन का कहना है, "मेरे हिसाब से यह बहुत तेज विकास था."
आखिर स्तनधारी बड़े क्यों हो रहे थे? लाइजन का कहना है कि और भी कारण रहे होंगे लेकिन जिस तरह का भोजन उपलब्ध था उसने भी बड़ी भूमिका निभाई होगी. उसी वक्त में फलीदार पौधे विकसित हो रहे थे. इसका एक मतलब यह है कि इन पौधों से स्तनधारियों को प्रोटीन मिल रहा था और इससे उनका आकार बढ़ने में मदद मिल रही थी. उनका कहना है कि स्तनधारी ऐसे जीव हैं जिनका विकास उन जीवों से हुआ जो लुप्त होने से बच गए या फिर कहीं और से आए.
एनआर/एमजे(एपी)धरती पर जीवन सागर से चलता है
धरती पर जीवन सागर से चलता है
पृथ्वी के सबसे बड़े हिस्से पर सागर है और यह जलवायु को नियंत्रित करता है. धरती के मौसम से लेकर रंग तक सब इस पर निर्भर है. जलवायु परिवर्तन का असर सागरों पर भी है लेकिन यह कितना है इसे वैज्ञानिक भी नहीं जान पाए हैं.
हमारा नीला ग्रह
पृथ्वी को नीला ग्रह यूं ही नहीं कहा जाता. हमारी धरती की सतह का 71 फीसदी और जीवमंडल का 90 फीसदी हिस्सा समुद्र है. यह जीवन के लिए जरूरी है और पृथ्वी पर मौजूद ऑक्सीजन का 50 से 80 फीसदी यहीं से आता है. कार्बन चक्र के लिए यह बेहद जरूरी है. पृथ्वी पर सागर कब बने यह अब भी नहीं पता है, लेकिन समझा जाता है कि यह करीब 4.4 अरब वर्ष पहले बने थे और शुरुआती जीवन में इन्होंने उत्प्रेरक की भूमिका निभाई थी.
तस्वीर: NASA
गहराई के रहस्य
विशाल आकार के बावजूद हम सागर के बारे में बहुत कम जानते हैं. वास्तव में अभी पानी के नीचे छिपी दुनिया का 80 फीसदी से ज्यादा ऐसा है जिसकी पड़ताल नहीं की गई है. वैज्ञानिक गहराई में छिपे रहस्यों को ढूंढने पर काम कर रहे हैं जिनसे शायद हमें पर्यावरण के परिवर्तनों को समझने में ज्यादा मदद मिलेगी. यह भी पता चल सकेगा कि जलवायु परिवर्तन के दौर में सागर के संसाधन का प्रबंधन कैसे किया जाए.
तस्वीर: Colourbox/S. Dmytro
पृथ्वी का जलवायु नियंत्रक
हम यह जानते हैं कि पृथ्वी के जलवायु के नियंत्रण में सागर बड़ी भूमिका निभाते हैं. अब यह चाहे सौर विकिरण को अवशोषित करना हो, तापमान का वितरण हो या फिर मौसम के चक्र को चलाना हो. हालांकि जलवायु परिवर्तन ने इस संतुलन को बिगाड़ना पहले ही शुरू कर दिया है. इससे सागर के इकोसिस्टम से जुड़े कामों की क्षमता पर असर पड़ रहा है जैसे कि कार्बन का भंडारण और ऑक्सीजन का निर्माण.
सागर में जीवन
सागर में कम से कम 230,000 ज्ञात जीव रहते हैं. कोरल रीफ जैसे समुद्र तल केकड़ों, स्टारफिश, घोंघे के साथ ही रंग बिरंगी रीफ मछलियों को पनाह देते हैं. छिछली गहराइयों में कई तरह की वनस्पतियों का गुजर बसर होता है. ज्यादा गहराई वाले इलाकों में शार्क, व्हेल और डॉल्फिन अठखेलियां करती हैं. यानी सागर के पग पग पर जीवन है.
तस्वीर: picture-alliance/blickwinkel
अनोखे और शानदार जीव
वैज्ञानिकों के इस दावे पर कोई हैरानी नहीं होती कि दो तिहाई से ज्यादा सागर के जीवों की अब तक खोज नहीं हुई है. हालांकि रिसर्चरों को हर साल कुछ नए जीव मिल रहे हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जिन्हें पहले कभी नहीं देखा गया. अब इस स्क्वीडवर्म को ही देखिए. इसे 2007 में सेलिब्स सी में खोजा गया. अभी और क्या सामने आना है इसके बारे में हर कोई कयास लगा सकता है.
तस्वीर: Laurence Madin, WHOI
खतरे का संकेत
इतनी विशालता के बावजूद सागर दबाव में है. इसका सबसे सहज उदाहण है दुनिया भर में कोरल रीफ की सफाई की बढ़ती घटनाएं. बढ़ते तापमान और प्रदूषण के कारण कोरल पर तबाव बढ़ रहा है और वहां से खास किस्म का शैवाल बाहर जा रहा है. यह शैवाल ही उन्हें बढ़ने और प्रजनन करने देता है. ऐसे में पीछे बस डरावने कंकाल ही बच जा रहे हैं. कुछ कोरल इससे उबर सकते हैं लेकिन लगातार दबाव बना रहा तो उनकी मौत का खतरा बढ़ जाएगा.
तस्वीर: XL Catlin Seaview Survey
कोई आसरा नहीं
जलवायु परिवर्तन का असर समुद्री जीवों पर भी हो रहा है. हाल की एक रिसर्च दिखाती है कि मछली, घोंघा और केकड़ों की स्थानीय आबादी धरती पर लुप्त हो रहे जीवों की तुलना में दोगुनी तेजी से गायब हो रही है. इसका मुख्य कारण है अधिकतम तापमान का बढ़ना. सागर में गर्मी बढ़े तो बचने के लिए कोई कहां जाए. दुखद यह है कि ज्यादातर समुद्री जीव खुद को इतना नहीं ढाल पाएंगे कि बदलती परिस्थितियों का सामना कर सकें.
भारी पिघलन
पृथ्वी का वह हिस्सा जो ठोस पानी यानी हिम और बर्फ से ढंका है वह गर्मी के कारण पिघल रहा है. कहीं बर्फ पिघल रही है तो कहीं ग्लेशियर. मौजूदा पिघलन से ही दुनिया भर में समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है और समुद्रों की अम्लीयता भी बढ़ रही है. इसकी वजह है आर्कटिक सागर के तल के पर्माफ्रॉस्ट से निकलने वाली मीथेन गैस.
तस्वीर: Getty Images/M. Tama
टूटती जीवनरेखा
मनुष्य बहुत गहराई से समुद्र से जुड़ा हुआ है. हजारों सालों से मानव समुदाय सागर किनारों पर बसते आए हैं. वो भोजन और रोजगार के लिए उस पर निर्भर हैं. आज करीब एक अरब से ज्यादा की आबादी निचले तटवर्ती इलाकों में रहती है जो समुद्र के जलस्तर के बढ़ने की वजह से खतरे में आने वाला है.
तस्वीर: imago
खत्म होते बियाबान
हालांकि इंसानों से संपर्क की कीमत सागरों ने चुकाई है. दुनिया के सागर क्षेत्र का महज 13 फीसदी इलाका ही ऐसा है जहां इंसानी गतिविधियां नहीं चल रही हैं. तटवर्ती इलाकों से लगते क्षेत्र में तो अब कोई बियाबान बचा ही नहीं. तकनीकी रूप से आगे बढ़ने का मतलब यह है कि आर्कटिक महासागर के सुदूर इलाके भी अब अनछुए नहीं रह गए हैं. बाकी बचे बियाबानों को बचा पाना आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बड़ी चुनौती होगी.