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डायनोसोर से सीख लेते मैनेजर

२४ अगस्त २०११

किसी मल्टीनेशनल कंपनी का मैनेजर मछली या विलुप्त हो चुके डायनोसोर से क्या सीख सकता है या अफ्रीकी बारहसिंगा और जेबरा के साथ रहने से दो कंपनियों की प्रतिस्पर्धा के बारे में क्या सीखा जा सकता है. यही है नई सीख.

नई सीखतस्वीर: Fotolia/Yuganov

पहली नजर में तो इवोल्यूशन और प्रबंधन में कोई तालमेल नजर नहीं आता लेकिन प्रकृति में होने वाले बदलाव और कारोबार का गहरा संबंध है. खास तौर पर चार्ल्स डार्विन ने जिस तरह क्रमिक विकास का सिद्धांत दिया है उससे दोनों के बीच गहरा संबंध समझ में आता है. डॉयचे वेले से बातचीत में फ्रेडेरिक फ्लाइशमान ने कहा, "प्रकृति में बहुत सारे चतुर सिद्धांत देखे जा सकते हैं जिनसे अर्थव्यवस्था कुछ सीख ले सकती है." फ्लाइशमान बर्लिन की सलाहकार कंपनी इवोको (ईवीओसीओ) के कर्मचारी हैं. यह कंपनी क्रमिक विकास के प्रबंधन की जानकार है. इस जानकारी के जरिए वह अर्थव्यवस्था और क्रमिक विकास के बीच संतुलन बनाना चाहती है. आसान शब्दों में कहें तो कोशिश है कि प्रकृति की सफल नीतियों को अर्थव्यवस्था और कंपनियों के लिए इस्तेमाल किया जाए.

जमीन पर रहने वाली मछली बनने के लिए कई साल के बदलावतस्वीर: picture-alliance/OKAPIA

प्रकृति से सीखना मतलब जीतना

तकनीक की दुनिया में काफी समय से प्राकृतिक हल को मशीनी दुनिया में इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है. वेल्क्रो टाइप की पट्टियां कंटीले बीजों से सीख ले कर बनाई गई हैं जो दूसरी सतह पर चिपक जाती हैं. वहीं स्पीडो नाम की स्पोर्ट्स कंपनी ने पूरे शरीर को ढंकने वाले स्विमिंग सूट की डिजाइन शार्क मछली की त्वचा जैसा बनाया है. इवोल्यूशन मैनेजमेंट यानी क्रमिक विकास के आधार प्रबंधन इससे एक कदम और आगे जाता है. इसकी कोशिश है कि वह प्रकृति के हल लेने के तरीके के अनुसार संगठन की नीतियां बनाएंगे और प्रतिस्पर्धा, सहयोग और परिवर्तन करेंगे.

इस नए तरीके को लागू करने वाली पहली कंपनी है बायोटेकनॉलॉजी कंपनी ब्राह्म्स (BRAHMS) बायोमेकर्स. कंपनी के प्रबंधक रहे डॉक्टर मेटोड मिक्लस ने माना कि इस तरीके न केवल उनकी कंपनी को फायदा पहुंचाया बल्कि उन्हें खुद को भी इसका फायदा हुआ. उन्होंने कहा कि इवोल्यूशन मैनेजमेंट ने न केवल कंपनी को बल्कि उन्हें भी ज्यादा सफल और कुशल बनाया.

मछली से सीख

नया करना और अनुकूलन ये गुण सिर्फ प्रकृति ही नहीं बल्कि कारोबारी दुनिया में अहम भूमिका निभा सकते हैं. क्रमिक विकास प्रबंधन यह सोच कर चलता है कि हर कंपनी में कुछ नया कर सकने की संभावना हमेशा होती है. प्रकृति में भी ऐसा ही है. जानवरों की दुनिया को देखें तो मडस्कीपर नाम की मछली है, जो पानी और जमीन दोनों में रह सकती है. उसके मजबूत पंखों के कारण यह संभव हुआ है. छाती पर लगे यह दो पंख कुछ सौ साल पहले बेकार लगते होंगे लेकिन इन्हीं के कारण बदलते हुए पर्यावरण में जीवित रह सकी और जमीन पर भी चल सकती है.

सफेद हाथी नहींतस्वीर: picture-alliance / dpa/dpaweb

मजबूती के साथ बाहर

संकट से निपटने के लिए कारोबारी दुनिया मदर नेचर की ओर पूरी उम्मीद से देख सकती है. क्रमिक विकास की प्रक्रिया में कई मजबूत जीव विकसित हुए हैं जिन्हें विपरीत परिस्थितियों में खुद को जिंदा रखने की चुनौती थी. साढ़े छह करोड़ साल पहले जहां अतिविकसित डायनोसोर खत्म हो गए लेकिन छोटे छोटे सरिसृप बचे रह गए. वह कम में काम चला सकते थे. अपनी सुनने की शक्ति के कारण खतरे को तेजी से भांप लेते थे. इस कारण वह अब तक जीवित हैं. यहीं नीति कंपनियां भी अपना सकती हैं जिससे वह वित्त संकट से तेजी और कम नुकसान के साथ बाहर आ सकें.

आधुनिक क्रमिक विकास के जानकार सहकार की प्रासंगिकता पर जोर देते हैं. अफ्रीका के सवाना में बारहसिंगा और जेबरा को एक साथ रखा क्योंकि एक अच्छा सुन सकता है और एक अच्छा देख सकता है. इसलिए तुरंत उन्हें खतरे का पता लग जाता है. इवोल्यूशन मैनेजमेंट मानता है कि भ्रष्टाचार से निपटने के लिए इवोल्यूशन मैनेजमेंट इस तरह की प्रक्रिया को अपनाने की बात कहता है. विमानन उद्योग में आए संकट के दौरान लुफ्तहांसा एयरलाइन्स ने 90 के दशक में स्टार अलायंस से हाथ मिलाया. इस कारण संकट से यह एयरलाइन्स कंपनी आसानी से उबर सकी.

रिपोर्टः मराइके थीसलिंग/आभा एम

संपादनः ए जमाल

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