तमाम मोर्चे पर प्रगति के बावजूद देश के विभिन्न हिस्सों में अब भी अंधविश्वास जस का तस है. इसकी सबसे बड़ी मिसाल है डायन के नाम पर लगातार होने वाली हत्याएं.
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देश में जितने तरह के अंधविश्वास कायम हैं उनमें डायन प्रथा सबसे खतरनाक है. डायन प्रथा यानी किसी भी बुरे काम के लिए किसी व्यक्ति विशेष को दोषी करार देकर उसे सामूहिक तौर पर सजा देना या प्रताड़ित करना. कई मामलों में तो ऐसे लोगों की हत्या तक कर दी जाती है. अभी बीते महीने ही असम के नगांव जिले में दो महिलाओं के शव बरामद किए गए. पुलिसिया जांच में इस बात का खुलासा हुआ कि उनकी हत्या डायन होने के संदेह में कर दी गई थी. बीते पांच वर्षों के दौररान राज्य में ऐसे लगभग 400 मामले सामने आए हैं. दिलचस्प बात यह है कि खासकर ग्रामीण इलाकों में ऐसी कथित डायनों को पहचानने वाले ओझा भी भारी तादाद में हैं. वही लोग इन कथित डायनों की पहचान कर गांव के लोगों को बताते हैं. उसके बाद गांव वाले डायनों की करतूत के हिसाब से उनकी सजा तय कर देते हैं. नुकसान ज्यादा हुआ तो यह सजा मौत तक हो सकती है.
असम में यह हालत तब है जबकि बीते साल अगस्त में ही को विधानसभा ने डायन हत्या निवारक कानून (प्रीवेंशन एंड प्रोटेक्शन फ्रॉम विच-हंटिंग बिल, 2015) पारित किया था. इस कानून में किसी स्त्री को डायन करार देने वाले यानी ओझा को तीन से पांच साल की सख्त सजा और 50 हजार से पांच लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है. डायन बता कर जुल्म करनेवाले को पांच से 10 साल की सजा और एक से पांच लाख रुपये तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है. अगर ऐसे मामलों में किसी समूह को दोषी पाया जाता है, तो उस समूह के हर व्यक्ति को पांच से 30 हजार रुपये तक का जुर्माना देना होगा. डायन बता कर किसी की हत्या करने पर धारा 302 के तहत मुकदमा चलाने का भी प्रावधान है. असम का यह कानून झारखंड, बिहार, ओडीशा और महाराष्ट्र के ऐसे मौजूदा कानूनों से ज्यादा सख्त है. बावजूद इसके डायन के नाम पर होने वाले अत्याचार और हत्याओं पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है.
कितने अंधविश्वासी हैं आप?
सिर्फ भारत में ही नहीं, दुनिया भर में लोग किसी ना किसी तरह के अंधविश्वास के शिकार हैं. जरा देखिए, आप इनमें से कितनी बातों में विश्वास करते हैं..
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अंधेरा होने के बाद नाखून मत काटो
शायद जिस जमाने में यह अंधविश्वास शुरू हुआ बिजली नहीं हुआ करती थी. गंदे नाखून इधर उधर बिखर सकते हैं, गंगदी फैल सकती है. लेकिन आज के जमाने में तो आपके मोबाइल तक में लाइट है.
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रात में झाड़ू मत लगाओ
अंधेरा होने के बाद बहुत सी चीजें करने पर पाबंदी है. झाड़ू लगना भी उनमें से एक है. झाड़ू लगाओगे तो लक्ष्मी चली जाएगी. अब अगर आपके घर में इधर उधर पैसे या गहने गिरे हुए हैं और आप उन्हें भी झाडू से बाहर निकाल देंगे, तो शायद चली ही जाएगी!
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घर में कंघी मत करो
कहते हैं बाल जमीन पर गिरें तो घर में झगड़ा होता है. अब अगर कमरा बालों से भरा रहेगा तो झगड़े की वजह बनेगा ही. कंघी करने के बाद बाल उठा ही लीजिए.
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कैंची और चाबी से मत खेलो
और कुछ हो ना हो, कैंची से खेलने से आपको चोट तो लग ही सकती है, बुरी किस्मत का तो पता नहीं.
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बिल्ली रास्ता काटे तो
यह हर देश में सुनने को मिलेगा. कहीं बिल्ली का दाएं से बाएं जाना बुरा है, कहीं बाएं से दाएं, कहीं काली बिल्ली, तो कहीं भूरी. अगर बिल्ली के रास्ता काटने से आपके साथ कभी कुछ हुआ हो, तो बताएं हमें.
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दही शक्कर खा कर जाओ
इम्तिहान में अच्छे नंबरों की तो गारंटी नहीं है लेकिन दही शक्कर खाने से हाजमा जरूर अच्छा रहता है. नर्वस होने के कारण जो पेट में गुड़गुड़ होने लगती है, यह उसे संभाल लेता है.
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काला टीका नजर से बचाए
कुछ लोग बच्चों की आंखों में सुरमा डालते हैं तो कुछ मोटा सा काला टीका लगा देते हैं. नजर लगे ना लगे, बच्चे की नजर खराब जरूर हो सकती है.
कांच का टूटना
यह अशुभ होता है या नहीं पता नहीं लेकिन घर में टूटे हुए कांच से किसी ना किसी को चोट जरूर लग सकती है.
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असम में बीते पांच वर्षो में 70 महिलाओं को डायन बता कर उनकी हत्या कर दी गई. जांच में इस बात का खुलासा हुआ कि इनमें से ज्यादातर मामलों का कारण जमीन और संपत्ति विवाद था. बीते एक दशक के दौरान वहां डायन प्रथा के नाम पर लगभगग 1,200 महिलाओं की हत्या हो चुकी है.
झारखंड में भी हालत लगभग समान ही है. वहां बीते एक साल के दौरान डायन के नाम पर अत्याचार व प्रताड़ना के लगभग 550 मामले दर्ज किए गए हैं. इनमें लगभग 42 लोगों की हत्या हो चुकी है. इस मामले पर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को इन घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए तुरंत प्रभावी उपाय करने का निर्देश दिया है. राज्य में बीते पांच वर्षों के दौरान ऐसे लगभग साढ़े तीन हजार मामले सामने आए हैं. इनमें से ज्यादातर मामले आदिवासी इलाकों के हैं.
वजह
देश के विभिन्न राज्यों में फैली इस प्रथा को लेकर तमाम अध्ययन हुए हैं. उनमें कहा गया है कि इस अंधविश्वास की कई वजहें हैं. खासकर असम में तो यह प्रथा ईसा मसीह से तीन हजार साल पहले से प्रचलित है. वहां तब किसी भी बीमारी, महामारी या मानसिक असंतुलन के लिए डायनों को ही जिम्मेदार ठहराया जाता था. जादू-टोने करने वालों का स्वर्ग कही जाने वाली मायोंग नामक जगह भी असम में ही है. असम के काल जादू और रोजगार की तलाश में वहां जाने वाले पुरुषों को भेड़ा बना कर रखने की कहानियां तो काफी मशहूर हैं. इस काले जादू के मुकाबले के लिए ही ओझा का वजूद सामने आया था. ओझा प्रथा में पुरुषों का वर्चस्व है.
समाजशास्त्रियों का कहना है कि जागरुकता व शिक्षा के अभाव और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी ने खासकर ग्रामीण इलाकों में इस दकियानुसी प्रथा को बढ़ावा दिया है. छोटी-मोटी बीमारियों के इलाज के लिए ओझा की शरण में जाने वाले लोगों को यह बात आसानी से समझाई जा सकती है कि उनके परिजन पर किसी भूत-प्रेत का साया है और उसके लिए अमुक महिला जिम्मेदार है. उसके बाद ही शुरू होता है उस महिला की प्रताड़ना का सिलसिला जो कई बार उसकी हत्या पर जाकर खत्म होता है. कई मामलों में तो किसी खास इलाके में बाढ़ व सूखे के लिए भी किसी कथित डायन को जिम्मेदार ठहरा कर उसकी हत्या कर दी जाती है. कई मामलों में लोग निजी खुन्नस निकालने के लिए भी किसी ओझा के साथ मिल कर इस प्रथा की आड़ में संबंधित व्यक्ति को डायन करार देते हैं.
दुनिया के सबसे अनपढ़ देश
यूनेस्को के स्टैटिस्टिक्स डिपार्टमेंट के 2015 के आंकडो़ं के मुताबिक दुनिया में 15 वर्ष से अधिक के 86.3% लोग पढ़े लिखे हैं. 90% पुरुष, 82.7% महिलाएं. और ये रहे सबसे अनपढ़ देश. जानिए, इन देशों में कितने लोग पढ़े लिखे हैं.
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लाइबेरिया, 47.6%
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आइवरी कोस्ट, 43.1%
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चाड, 40%
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माली, 38.7%
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बेनिन, 38.4%
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अफगानिस्तान, 38.2%
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सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, 36.8%
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बुरकीना फासो, 36%
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गिनी, 30.4%
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नाइजर, 19.1%
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अंकुश के उपाय
समाजशास्त्र के प्रोफेसर डां. धीरेन गोहाईं कहते हैं, "इन मामलों में सरकारी प्रयास अब तक नाकाफी हैं. जागरूकता अभियान वाले प्रचार वाहनों को बड़े तामझाम से ग्रामीण इलाकों में भेजा जाता है. लेकिन यह अभियान लगातार लंबे समय तक चलाना जरूरी है." डायन प्रथा के खिलाफ लंबे समय से जागरुकता अभियान चला रहे एक गैर—सरकारी संगठन उम्मीद के प्रवक्ता मंजीत कशयप कहते हैं, "सुदूर गांवों में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में ठोस काम किए बिना अंधविश्वास पर अंकुश लगाना मुश्किल है."
इसके अलावा इलाके में तेजी से पनपने वाले ओझाओं की गतिविधियों पर भी अंकुश लगाना होगा. इस कुप्रथा पर अंकुश लाने के लिए बने कानूनी प्रावधानों पर सख्ती से कार्रवाई करने की स्थिति में लोग किसी को डायन करार देकर उसे प्रताड़ित करने या उसकी हत्या करने से पहले सौ बार सोचेंगे.
10 सबसे शक्तिशाली महिलाएं
अपने अधिकारों के लिए अब भी दुनिया में महिलाओं का संघर्ष खत्म नहीं हुआ है. मगर तमाम बाधाओं को पार कर विश्व की कुछ महिलाएं कई क्षेत्रों में सफल नेतृत्व दे रही हैं. देखिए कौन हैं विश्व की 10 सबसे शक्तिशाली महिला नेत्रियां.
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अंगेला मैर्केल
2005 में जर्मनी की पहली महिला चांसलर बनी मैर्केल ने यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को अपने दमदार नेतृत्व से आगे बढ़ाया है. लगातार तीन बार चांसलर चुनी गईं मैर्केल ने आर्थिक संकटों, राजनीतिक मुद्दों और शरणार्थी संकट जैसी बेहद कठिन स्थितियों में भी जर्मनी और यूरोप ही नहीं पूरे विश्व को राह दिखाई है. फिजिक्स में डॉक्टरेट मैर्केल फोर्ब्स की सबसे शक्तिशाली महिला की सूची में भी शीर्ष पर रहीं.
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टेरीजा मे
मार्गरेट थैचर के बाद ब्रिटेन की दूसरी महिला प्रधानमंत्री बनने वाली मे ने 13 जुलाई 2016 को डेविड कैमरन के इस्तीफे के बाद पद संभाला. ब्रिटेन के यूरोपीय संघ छोड़ने के फैसले से पैदा हुए गंभीर राजनैतिक और आर्थिक उथल पुथल के दौर में देश की कमान संभालने वाली मे 2010 से गृह मंत्री थीं और ब्रिटेन के ईयू के साथ रहने की पक्षधर भी.
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हिलेरी क्लिंटन
अमेरिका की पूर्व प्रथम महिला क्लिंटन (1993-2001) न्यूयॉर्क राज्य की सीनेटर भी रह चुकी हैं. अब देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनने की उम्मीदवार क्लिंटन किसी प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी की उम्मीदवारी जीतने वाली पहली महिला तो बन ही चुकी हैं.
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ऑन्ग सान सू ची
नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित सू ची म्यांमार में लोकतंत्र की प्रतीक हैं. देश के सैनिक शासकों ने उन्हें सालों तक नजरबंदी में रखा और आजाद होने के बाद भी उनके राष्ट्रपति बनने के राह में संवैधानिक बाधाएं खड़ी कीं. नवंबर 2015 में हुए चुनाव में वे स्टेट काउंसिलर चुनी गईं जो कि सरकार प्रमुख जैसा पद है. वे देश की विदेश मंत्री भी हैं. राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने अपने एक विश्वासपात्र को चुना.
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एलन जॉनसन सरलीफ
लाइबेरिया की सरलीफ को "लौह महिला" कहा जाता है. 2005 में अफ्रीका की पहली चुनी हुई महिला राष्ट्रपति बन कर उन्होंने इतिहास रच दिया. नोबेल शांति पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुकीं अर्थशास्त्री, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी और वित्त मंत्री रहीं सरलीफ को 2011 में दुबारा राष्ट्रपति चुना गया.
तस्वीर: Reuters/N. Kharmis
मिशेल बाशले
पूरे लैटिन अमेरिका में केवल चिली ही ऐसा देश है जहां वर्तमान में एक महिला राष्ट्रपति है. विपक्षी दल की पूर्व नेता रह चुकी बाशले को ऑगुस्टो पिनोचेट के शासन काल में काफी यातनाएं दी गईं. वे पूरे लैटिन अमेरिकी क्षेत्र में रक्षा मंत्री बनने वाली पहली महिला बनीं और फिर जनवरी 2006 से 2010 के बीच राष्ट्रपति भी. दिसंबर 2013 में उन्हें दुबारा राष्ट्रपति चुना गया.
फ्रांस की वित्त मंत्री रह चुकी लेगार्ड 2011 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख बनने वाली पहली महिला बनीं. 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के बाद के उस बेहद कठिन दौर में आईएमएफ को बेमिसाल नेतृत्व देने वाली लेगार्ड को लगातार दूसरी बार प्रमुख चुना गया है. पेशे से कानूनविद् लेगार्ड पहले कॉर्पोरेट लॉयर भी रह चुकी हैं.
तस्वीर: Reuters/Ng Han Guan
जेनेट येलेन
2013 में अमेरिकी फेडरल रिजर्व की प्रमुख चुनी गईं येलेन से पहले केंद्रीय बैंक के इस पद पर केवल पुरुष ही रखे जाते थे. हार्वर्ड युनिवर्सिटी में प्रोफेसर रह चुकी येलेन पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की मु्ख्य आर्थिक सलाहकार भी रह चुकी हैं.
तस्वीर: Reuters/J. Ernst
आइरीना बोकोवा
बुल्गारिया की बोकोवा संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक शाखा यूनेस्को की प्रमुख बनने वाली पहली महिला हैं. 2009 में पहली बार यूनेस्को प्रमुख चुनी गईं बोकोवा को 2013 में दुबारा नियुक्त किया गया. पेशेवर राजनयिक बोकोवा ने लैंगिक बराबरी के लक्ष्य को यूनेस्को के केंद्र में रखा है. उन्हें संयुक्त राष्ट्र के अगले महासचिव के पद के लिए भी प्रबल दावेदार माना जा रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Adayleh
मार्गरेट चान
मार्गरेट चान विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रमुख हैं. हांगकांग के स्वास्थ्य विभाग को बर्ड फ्लू और सार्स जैसी महामारियों के दौरान सफल नेतृत्व देने वाली चान खुद भी पेशे से डॉक्टर रही हैं.