फेसबुक, गूगल जैसी दिग्गज ऑनलाइन कंपनियों को अब फ्रांस में टैक्स भरना पड़ सकता है. देश का वित्त मंत्रालय इस मामले से जुड़ा मसौदा पेश करने की तैयारी में है.
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डिजिटल क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों अब तक टैक्स नियमों से बचती रही हैं, लेकिन फ्रांस में अब इस पर सख्ती होने जा रही है. फ्रांस के वित्त मंत्री ब्रूनो ले मेयर जल्द ही ऑनलाइन कंपनियों के लिए टैक्स नियमों से जुड़ा मसौदा कैबिनेट के सामने पेश करने जा रहे हैं. अगर इस पर सहमति बनती है तो देश में चलने वाली 30 ऑनलाइन कंपनियां इससे सीधे प्रभावित हो सकती हैं. वित्त मंत्री मेयर ने समाचार पत्र ल्यू पेरिसियन को बताया कि तीन फीसदी के प्रस्तावित कर नियम के तहत आने वाली अधिकतर कंपनियां अमेरिकी हैं. वहीं चीनी, जर्मन, स्पैनिश, ब्रिटिश और फ्रांस की कंपनियों भी टैक्स दायरे में आ सकती हैं.
गूगल, फेसबुक के अलावा अमेजॉन, एप्पल समेत एयरबीएनबी, उबर, बुकिंग डॉट कॉम जैसी कंपनियों के नाम भी इसमें शामिल हैं. वित्त मंत्री ने कहा कि टैक्स "वित्त न्याय" का मसला है, जिसका मकसद ऐसी कंपनियों को कर के दायरे में लाना है जिनका दुनिया भर में कुल राजस्व तकरीबन 75 करोड़ यूरो का है और फ्रांस में कुल राजस्व 2.5 करोड़ यूरो से अधिक है. अगर यह कानून बन जाता है तो फ्रांस सरकार को सालाना तकरीबन 50 करोड़ यूरो का राजस्व मिलेगा.
सबसे ज्यादा टैक्स वाले देश
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल कॉम्पटिटिवनेस रिपोर्ट दिखाती है कि किस देश में कितना टैक्स लगता है. ये रहे टॉप 10 टैक्स रेट वाले देश.
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नंबर 10
आयरलैंड नंबर 10 पर है. यहां 40,696 डॉलर्स से ज्यादा की आय पर 48 फीसदी टैक्स लगता है.
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नंबर 9
फिनलैंड की औसत आय है 31 हजार डॉलर्स प्रति व्यक्ति. लेकिन 87 हजार 222 डॉलर्स सालान इनकम पर 49.2 प्रतिशत टैक्स देना होता है.
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नंबर 8
युनाइटेड किंगडम में 2 लाख 34 हजार 484 डॉलर्स की आय पर सालाना 50 फीसदी टैक्स लगता है.
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नंबर 7
टोक्यो ऐसा शहर जहां सबसे ज्यादा अरबपति रहते हैं. लेकिन टैक्स भी खूब देते हैं. यहां 50 फीसदी इनकम टैक्स है.
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नंबर 6
8 करोड़ लोगों का देश ऑस्ट्रिया यूरोप के सबसे ज्यादा टैक्स लेने वालों में है. यहां 74,442 डॉलर्स की इनकम पर सालाना 50 फीसदी टैक्स लगता है.
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नंबर 5
बेल्जियम में भी 50 फीसदी इनकम टैक्स लगता है.
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नंबर 4
नीदरलैंड्स में कुल आय पर 52 फीसदी का भारी-भरकम कर चुकाना होता है.
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नंबर 3
डेनमार्क में आयकर की दर है 55.38 फीसदी.
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नंबर 2
स्वीडन टैक्स के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर है और यूरोप में पहले. यहां आपको 56.6 फीसदी टैक्स देना होता है.
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नंबर 1
और सबसे ज्यादा टैक्स देते हैं अरुबा के लोग. कैरेबियाई देश अरुबा में टैक्स रेट है 58.95 फीसदी.
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खास बात ये है कि ये टैक्स सीधी बिक्री पर नहीं लगाया जाएगा, बल्कि इंटरनेट प्लेटफॉर्म द्वारा उनके माध्यम से की गई बिक्री पर लगाया जाएगा. दूसरा अगर कंपनियां किसी लक्षित समूह के लिए दिखाए जाने वाले विज्ञापनों की सुविधा बेचकर राजस्व कमाती हैं तो वह भी कर दायरे में आएगा. इसके अलावा यूजर का डाटा बेचकर कंपनियों को हुई कमाई पर भी कर प्रावधान सुझाए गए हैं.
इसका मतलब है कि एमेजॉन जैसी कंपनियां जो उत्पादक और ग्राहक के बीच बिचौलिए का काम करती हैं उन पर तो कर लगेगा. लेकिन फ्रांस की इलैक्टॉनिक कंपनी डार्टी जो सीधे ग्राहक को सामान बेचती है, इससे बच सकती है.
क्या होते हैं टैक्स हेवन और कैसे करते हैं काम
टैक्स हेवन वह देश होते हैं जहां ना के बराबर या समझिये शून्य टैक्स दरें हैं. मसलन स्विट्जरलैंड, सिंगापुर, हांगकांग और मॉरिशस इसमें खासे पॉपलुर हैं. इसमें लक्जमबर्ग, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड, नीदरलैंड जैसे देश भी आते हैं
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वित्तीय जानकारी नहीं
ये देश राजनीतिक और आर्थिक रूप से काफी स्थिर माने जाते हैं. ये ना के बराबर वित्तीय जानकारी विदेशी टैक्स अधिकारियों के साथ साझा करते हैं. जो इन टैक्स हेवन देशों में निवेश करना चाहते हैं, उन्हें टैक्स दरों में छूट पाने के लिए उस देश में रहने की भी जरूरत नहीं होती.
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किसको होता है लाभ
किसी भी निवेश से न केवल निजी निवेशक या कंपनी को बल्कि मेजबान टैक्स हेवन देश को भी काफी लाभ मिलते हैं. मसलन इन देशों के बैंकों में बड़ी मात्रा में पूंजी आती है जो इनके वित्तीय क्षेत्र को सुचारू रूप से चलाने में मददगार साबित होती है.
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कैसे करती है कंपनियां काम
मल्टीनेशनल कंपनियां अपनी होल्डिंग कंपनियां इन टैक्स हेवन देशों में स्थापित कर लेती हैं, फिर चाहे इनका असल कारोबार उन देशों में ही हो जहां टैक्स की दरें ज्यादा हैं. मसलन किसी कंपनी का अधिकतर कारोबार अमेरिका और भारत में होता है लेकिन टैक्स कानूनों से बचने के लिए अगर कंपनी यह दिखाने में सफल हो जाती हैं कि उसे लाभ टैक्स हेवन देशों में स्थापित कंपनियों से हुआ है तो वह इससे बच सकती है.
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सिर्फ कंपनियां नहीं
ऐसा नहीं है कि इन टैक्स हेवन से सिर्फ कंपनियों को ही लाभ मिलता है, बल्कि इसका लाभ अमीर और धनी वर्ग भी उठाता है. यहां सवाल उठता है कि अगर टैक्स हेवन के इतने ही नुकसान हैं तो इस पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगता.
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टैक्स हेवन की धारणा
टैक्स हेवन की अवधारणा उन देशों के लिए शुरू की गयी थी जिनके पास सीमित प्राकृतिक संसाधन थे और प्रतिस्पर्धा के दौर में खुद को स्थापित करने के मौके भी नहीं थे. इन देशों को टैक्स हेवन का दर्जा देते हुए माना गया कि इन तरीकों से यहां विदेशी मुद्रा आकर्षित होगी और विकास होगा, लेकिन बड़े कारोबारियों, राजनेताओं समेत अन्य रसूखदार लोगों ने इसका इस्तेमाल टैक्स बचाने के लिए करना शुरू कर दिया.
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भारत के साथ मसला
भारत में टैक्स हेवन का इस्तेमाल काले धन को सुरक्षित रखने के लिये किया जाने लगा जिसे "राउंड ट्रिपिंग" का नाम दिया गया. कई बार कंपनियां टैक्स हेवन देशों में स्थापित कंपनियों के माध्यम से विदेशी संस्थागत निवेश भी करती हैं. मसलन निवेशक विदेशों में बैठकर भारतीय शेयर बाजारों में निवेश करने लगें.
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अलग-अलग राय
बीते सालों में "मॉरिशस रूट" काफी चर्चा में रहा है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2013-14 के दौरान मॉरिशस से भारत में तकरीबन 4.5 अरब डॉलर का निवेश किया गया था. विशेषज्ञ ये मानते रहे हैं मॉरिशस रूट से आने वाला सारा पैसा भारत का ही है जो असल में टैक्स नियमों से बचने के लिए भारत से बाहर भेजा गया.
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भारत टैक्स हेवन?
इन बहसों के बाद अकसर यह सवाल उठता है कि क्या भारत जैसा देश भी टैक्स हेवन बन सकता है. व्यावहारिक रूप से यह संभव नहीं है. पहला कारण तो यही है भारत प्राकृतिक संसाधनों वाला अमीर देश है. अगर सरकार यहां कर दरें कम करती है तो देश के सामने बड़ी आर्थिक समस्या पैदा हो सकती है.