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डिसीजन रिव्यू सिस्टम की आलोचना

१ मार्च २०११

मैदान पर अंपायरों के फैसले के खिलाफ अपील और उनकी समीक्षा से खेल के ज्यादा पारदर्शी और दिलचस्प होने की उम्मीद की गई लेकिन इसी व्यवस्था की अब आलोचना हो रही है. इयान बेल को रिव्यू सिस्टम के बावजूद आउट न देने से धोनी नाराज.

तस्वीर: picture-alliance/empics

इस सिस्टम के तहत अंपायर के फैसले के खिलाफ टीम अपील कर सकती है और वर्ल्ड कप में पहली बार इसका इस्तेमाल हो रहा है. वैसे इसकी शुरुआत नवंबर 2009 में न्यूजीलैंड और पाकिस्तान के बीच सीरीज के पहले टेस्ट मैच के दौरान हुई. इस सिस्टम को यह मानकर लागू किया गया कि इससे अंपायर के गलत फैसलों को पलटने में मदद मिलेगी लेकिन भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को यह पसंद नहीं आया.

धोनी नाराज हैं कि इंग्लैंड के खिलाफ रोमांचक मैच में अंपायर के फैसले को पलट दिया गया जिससे भारत को नुकसान हुआ. युवराज सिंह ने इयान बेल को गेंद डाली जो उनके पैड पर लगी. भारतीय खिलाड़ियों को उम्मीद थी कि गेंद सीधे स्टंप पर जाकर लगती इसलिए उन्होंने एलबीडब्लयू की अपील की और बेल तो वापस पैवेलयिन भी लौटने लगे थे लेकिन न्यूजीलैंड के अंपायर बिली बाउडन ने उन्हें आउट नहीं दिया.

तस्वीर: AP

टीवी रिप्ले देखने से लग रहा था कि गेंद स्टंप को ही निशाना बनाती. फैसले के खिलाफ अपील की गई लेकिन रॉड टकर को महसूस हुआ कि बेल क्रीज से ज्यादा ही आगे थे और उन्होंने अंपायर के फैसले को सही ठहराया. बेल को जीवनदान मिल गया. उस समय उन्होंने सिर्फ 17 रन बनाए थे लेकिन बाद में अपनी धुंआधार बल्लेबाजी से 69 रन बनाकर उन्होंने भारत की नाक में दम कर दिया.

धोनी का कहना है तकनीक और मानवीय समझ के बावजूद टीम इंडिया को वह विकेट नहीं मिल सका. धोनी अंपायरों को मिले उस निर्देश से भी नाखुश हैं जिसके तहत कोई बल्लेबाज अगर क्रीज से 2.5 मीटर आगे हो तो उसे एलबीडब्लयू आउट नहीं दिया जाएगा बशर्ते गेंद मिडिल स्टंप पर न लग रही हो. बेल के मामले में यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि गेंद मिडिल स्टंप पर ही जाकर लगती लेकिन धोनी के पास अपने तर्क हैं.

तस्वीर: AP

उनका कहना है कि हॉक आई तकनीक अगर यह बता रही है कि गेंद मिडिल स्टंप पर जाकर लगेगी तो फिर दूरी नापने का कोई कारण नहीं रह जाता. वर्ल्ड कप में अंपायर डिसीजन रिव्यू सिस्टम, हॉट स्पॉट और स्निकोमीटर की मदद नहीं मिल पा रही है.

हॉट स्पॉट इन्फ्रा रेड इमेजिंग सिस्टम है जिसके जरिए यह देखा जाता है कि बॉल बल्लेबाज के बल्ले पर लगी है या पैड पर. वहीं स्निकोमीटर के जरिए यह परखने की कोशिश होती है कि विकेटकीपर के दस्तानों में समाने से पहले क्या गेंद ने बल्ले का किनारा लिया है.

इन दो सुविधाओं की गैरमौजूदगी में तीसरे अंपायर को अब बॉल ट्रैकर, हॉक आई, स्टंप माइक्रोफोन और स्लो मोशन रिप्ले के आधार पर ही फैसला देना पड़ रहा है. इस वर्ल्ड कप में कई बार इस सिस्टम का इस्तेमाल हो चुका है. श्रीलंका और कनाडा के खिलाफ मुकाबले में महेला जयवर्धने को इसके जरिए दो बार जीवनदान मिला. उसमें भी तकनीकी सुविधाओं की कमी का फायदा उन्हें मिला.

ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के खिलाफ मैच में भी यही कहानी दोहराई गई. रिकी पोंटिंग का कैच विकेटकीपर ने जब पकड़ा तो यह सुनिश्चित करने के लिए तीसरे अंपायर की मदद ली गई कि क्या वाकई गेंद ने बल्ले को छुआ है. ऑस्ट्रेलिया के पूर्व अंपायर ने इस सिस्टम की यह कहकर आलोचना की है कि इससे अंपायर के आत्मविश्वास को तोड़ने की कोशिश हो रही है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: ए कुमार

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