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डीजल मोटर के धुएं को कच्चे माल में बदला

६ जून २०१८

भारत में बिजली गुल होते ही डीजल वाले जेनरेटर घनघना उठते हैं. वो बहुत ज्यादा धुआं छोड़ते हैं. भारतीय इंजीनियरों ने इस धुएं को जबरदस्त तरीके से कच्चे माल में बदल दिया है.

Indien vollbeladener Jeep Nähe Jaipur
तस्वीर: Imago/Imagebroker/E. Bömsch

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया के 15 सबसे ज्यादा दूषित शहरों में भारत के 14 शहर शामिल हैं. वायु प्रदूषण में डीजल वाहन और जेनरेटर भी बड़ी भूमिका निभाते हैं. भारत में ज्यादातर दफ्तरों और फैक्ट्रियों में बिजली गुल होने पर डीजल जेनरेटरों को बैकअप की तरह इस्तेमाल किया जाता है. डीजल इंजन से निकलने वाला काला धुआं हवा को और ज्यादा दूषित करता है.

लेकिन अब भारतीय इंजीनियरों की एक टीम ने इस काले धुएं को स्याही में बदलने की तरकीब खोजी है. तीन इंजीनियरों की टीम में शामिल अर्पित धूपर कहते हैं, "हमारा लक्ष्य बड़े शहरों में बहुत ही जल्दी प्रदूषण के स्तर को काफी नीचे लाना है." टीम ने अपनी तकनीकी खोज को दिल्ली से सटे गुरुग्राम में सफलता से आजमाया है.

गुरुग्राम में लगीं चक्र इनोवेशन की डिवाइसेसतस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma

डिवाइस, डीजल जेनरेटर के एक्जॉस्ट पाइप से निकलने वाले धुएं में मौजूद 90 फीसदी सूक्ष्म कणों को खींच लेती है. फिर इन हानिकारक कणों से स्याही बनाई जाती है. तीन इंजीनियरों ने चक्र इनोवेशन नाम की कंपनी भी बनाई है. कंपनी अब तक 53 सरकारी दफ्तरों और कॉलोनियों में यह डिवाइस लगा चुकी है. धूपर के मुताबिक 53 डिवाइसों की मदद से 1,500 अरब लीटर हवा स्वच्छ रह सकेगी.

डिवाइसों की मदद से अब तक 500 किलोग्राम से ज्यादा कालिख जमा की गई है. धूपर के मुताबिक इस कालिख से 20,000 लीटर से ज्यादा स्याही बनाई गई है. भारत का आईटी हब कहे जाने वाले शहर बेंगलुरू में भी ग्रैविकी लैब्स नाम की कंपनी ने ऐसी ही डिवाइस बनाई है. ग्रैविकी लैब्स की डिवाइस डीजल गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से स्याही बना रही है.

भारत में हर साल वायु प्रदूषण के चलते 11 लाख लोग मारे जाते हैं. स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े जुटाने वाले एक अमेरिकी इंस्टीट्यूट के मुताबिक वायु प्रदूषण के चलते हर साल दुनिया भर में जितनी मौतें होती हैं, उसमें एक तिहाई भारत में होती हैं.

(सौर ऊर्जा के चैंपियन देशों में भारत भी शामिल)

ओएसजे/एमजे (रॉयटर्स)

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