शाहरुख खान की ब्लॉकबस्टर फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के अगले महीने एक हजार सप्ताह पूरे हो जाएंगे. किंग खान ने इस मौके पर जश्न मनाने का फैसला किया है.
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यशराज बैनर तले आदित्य चोपड़ा के निर्देशन में बनी फिल्म डीडीएलजे में शाहरुख खान, काजोल और अमरीश पुरी ने मुख्य भूमिका निभाई थीं. यह फिल्म 20 अक्टूबर 1995 को रिलीज हुई थी. फिल्म मुंबई के मराठा सिनेमा मंदिर में आज भी दिखाई जा रही है. अगले महीने यह फिल्म प्रदर्शन के 1000 सप्ताह पूरे कर लेगी. शाहरुख का कहना है कि उनका इस कामयाबी को धूमधाम से मनाने का इरादा है.
अपनी नई फिल्म हैप्पी न्यू ईयर की सफलता से सराबोर शाहरुख ने कहा, "फिल्म 1000 सप्ताह पूरे कर रही है और यह एक सुखद अहसास है. आदित्य चोपड़ा कुछ योजना बना रहे हैं. हम मिलकर फिल्म भी देखेंगे. फिल्म से बहुत लगाव है. यकीनन यह एक खास मौका है. हां हम जश्न मनाएंगे."
पिछले 20 सालों से डीडीएलजे मराठा मंदिर में दर्शकों को खींचती आ रही है. इस दौरान सैकड़ों फिल्में रिलीज हुईं लेकिन कोई डीडीएलजे जैसा रिकॉर्ड नहीं बना पाई.
मोदी पर बोले शाहरुख
बॉलीवुड के किंग खान शाहरुख खान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम काज के बारे में अपनी राय रखी है. शाहरुख ने अपने जन्मदिन के अवसर पर कहा कि मोदी सरकार को काम करने का समय देना चाहिए. उन्होंने कहा कि आलोचनाओं को लेकर सख्त रवैया अपनाने के बजाय केंद्र सरकार को कम से कम दो साल तक का समय देना चाहिए.
शाहरुख ने कहा, "लोकतंत्र में मोदी के पास पूर्ण बहुमत है और अपने आप में यह बड़ी जीत है इसलिए पहले उन्हें समर्थन देकर छह महीने बाद ही मीडिया उनके काम पर सवाल उठाने लगे यह ठीक नहीं है. शाहरुख ने कहा, "सबके इरादे नेक हैं. शिक्षा, बाल विकास और महिला सशक्तिकरण जैसे क्षेत्रों में काम किए जाने की जरूरत है. स्वच्छता अभियान भी शुरू हो गया है. मोदी को थोड़ा समय देते हैं अगले दो साल. यहां राजनीति में ओपनिंग वीकएंड से फर्क नहीं पड़ता."
बर्लिन में फिल्म बनाने के 7 फायदे
हॉलीवुड को भूलिए, जर्मन राजधानी में आइए. हम आपको बताते हैं कि बर्लिन में फिल्म बनाने के क्या सात फायदे हैं.
तस्वीर: MAGIG FLIGHT FILM
पेड़ पर उगते पैसे
मतलब लगभग उसी की तरह. जर्मन सरकार फिल्मों के लिए खुले दिल से पैसे खर्च करती है. पिछले साल फिल्मों की मदद के लिए तीन करोड़ यूरो दिए गए. ये पैसे सिर्फ प्रोडक्शन और पोस्ट प्रोडक्शन में नहीं, बल्कि केटरिंग, मेकअप और होटलों में भी गए. और लगता है कि पैसों का सही इस्तेमाल हुआ. 339 फिल्में बनीं और इनसे 13.4 करोड़ यूरो का राजस्व मिला.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
अलग तरह के आइडिया
सिर्फ कला फिल्मों में ही नहीं, बल्कि दूसरी फिल्मों के लिए भी सरकार पैसे देती है. पिछले साल बर्लिन ब्रांडनबुर्ग मीडिया बोर्ड ने सात फिल्में बनाने में मदद की और ये सभी ब्लॉकबस्टर रहीं.
तस्वीर: Constantin Film Verleih
संसाधनों का विश्व
बर्लिन की दीवार गिरने के बाद से यहां दुनिया भर के क्रिएटिव लोग पहुंच रहे हैं. इसका मतलब कि प्रोडक्शन हाउसों को कैमरामैन और दूसरे संसाधनों के लिए दूर नहीं जाना पड़ता है. इसके अलावा शहरी अधिकारी भी फिल्मों का परमिट जारी करने में सहयोग करते हैं.
तस्वीर: DW/D.Bryantseva
अच्छे लोकेशन की भरमार
बर्लिन में बहुत सी अच्छी लोकेशन हैं, जो नाजी काल और शीत युद्ध की कहानियों में फिट बैठती हैं. बस ज्यादा से ज्यादा खिड़कियों की सजावट बदलनी पड़ती है. यह तस्वीर वालकीरी फिल्म की है, जिसमें हिटलर पर कातिलाना हमले को फिल्माया गया है. इसे कई ऑरिजनल जगहों पर शूट किया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हॉलीवुड की पसंद
हाल के दिनों में इनग्लोरियस बास्टर्ड्स या मान्यूमेंट्स मेन जैसी फिल्मों में बर्लिन को खास पहचान मिली. इसके बाद यह हॉलीवुड की पसंदीदा जगहों में शामिल हो गया है.
तस्वीर: 2013 Twentieth Century Fox
लंबी परंपरा
सिनेमा में बर्लिन की लंबे वक्त से दक्षता रही है. साल 1917 में यूनिवर्सुम फिल्म्स यूफा का गठन हुआ था. 1925 से 1933 में नाजियों के सत्ता में आने तक इसका हॉलीवुड स्टूडियो से सहयोग रहा. नाजी शासन में इसका इस्तेमाल प्रोपेगंडा के लिए किया गया लेकिन युद्ध के बाद इसका निजीकरण हो गया.
तस्वीर: Filmmuseum Berlin – Stiftung Deutsche Kinemathek
अगली पीढ़ी
जर्मन राजधानी नई पीढ़ी और युवा फिल्मकारों की खास पसंद रही है. सिर्फ सरकारें उन्हें सब्सिडी ही नहीं देतीं, बल्कि सालाना बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में युवा फिल्मकारों के लिए बर्लिनाले टैलेंट का आयोजन भी होता है.