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डील तो हुई लेकिन क़ायम है सवाल

१९ दिसम्बर २००९

कोपेनहेगन शिखर बैठक पूरी तरह विफल होने से बच गई है. अमेरिका के नेतृत्व वाले समझौते का विरोध कर रहे देशों ने उसे संज्ञान में लेने की बात कह कर संधि का रास्ता साफ़ किया. हालांकि डील पर सम्मेलन में औपचारिक सहमति नहीं.

उम्मीदें पूरी न हुईतस्वीर: AP

ये बात अहम है कि इस संधि को अभी भी सभी देशों ने स्वीकार नहीं किया है और न ही इसमें तय लक्ष्यों की क़ानूनी बाध्यता है. विरोध करने वाले देशों ने भी डील को सिर्फ़ संज्ञान में लेने की बात कही है.

तस्वीर: picture-alliance/ dpa

शायद इसीलिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने इस समझौते को एक शुरुआत बताया है और 2010 तक उसे क़ानूनी बाध्यता का जामा पहनाने की आशा जताई है. मून ने माना है कि व्यापक सहमति नहीं बन पाई और कड़े क़दमों की उम्मीद कर रहे लोगों को इस डील से निराशा होगी.

अलग अलग खेमों में बंटे विकसित, विकासशील और ग़रीब देशों में समझौते के आसार नज़र नहीं आ रहे थे. इसके चलते शुक्रवार रात अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चीन, भारत, ब्राज़ील, दक्षिण अफ़्रीका और कुछ यूरोपीय देशों के साथ एक डील पर सहमति की घोषणा की जिसे उन्होंने बड़ी उपलब्धि बताया.

लेकिन ये डील मुख्य सत्र में औंधे मुंह गिर गई क्योंकि बोलिविया, क्यूबा, सूडान, वेनेज़ुएला सहित कई अन्य देशों ने इसकी कड़ी निंदा की थी. किसी भी संधि की मान्यता के लिए उसे सभी 194 देशों का समर्थन मिलना ज़रूरी था.

कई विकासशील देशों ने आरोप लगाया कि संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में लोकतंत्र का मखौल उड़ाते समय कुछ देशों ने समझौता पर सहमति बना ली जिससे ग़रीब देशों को बाहर रखा गया. छोटे द्वीपीय देश तुवालु ने कहा कि उनके देश का भविष्य दांव पर है जबकि सूडान ने इसकी तुलना यहूदियों के नरसंहार होलोकॉस्ट से की. शुक्रवार रात भर बहस के बाद ये तय हुआ कि संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन इस समझौते को संज्ञान में लेने की घोषणा करता है.

तस्वीर: AP

समझौते के मसौदे में धरती के तापमान में बढ़ोत्तरी को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की बात कही गई है लेकिन कोई भी देश ऐसा करने के लिए क़ानूनी रूप से बाध्य नहीं होगा. अभी ये भी स्पष्ट नहीं है कि कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य 2020 तक तय होने हैं या 2050 तक.

विकासशील देशों को अगले तीन सालों में 30 अरब डॉलर की मदद देने का प्रस्ताव रखा गया है. कोपेनहेगन संधि में 2020 तक का लक्ष्य ग़रीब देशों को 100 अरब डॉलर की मदद देना है ताकि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का मुक़ाबला किया जा सके. समझौते में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती के मसले पर क़ानूनी रूप से बाध्यकारी किसी प्रस्ताव का उल्लेख नहीं है.

महत्वाकांक्षी और आशावादी लक्ष्यों की ग़ैरमौजूदगी में संधि पर कई नेताओं ने अपनी प्रतिक्रिया संभल कर दी हैं. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने कहा है कि बैठक का नतीजा मिश्रित रहा लेकिन इसका दूसरा विकल्प फिर सम्मेलन का विफल होना ही था. ब्रिटेन के जलवायु मंत्री एड मिलिबैंड ने डील को अहम शुरुआत बताया है.

राष्ट्रपति ओबामा ने कहा है कि अभी एक लंबा सफ़र तय करना बाक़ी है. फ़्रांस के राष्ट्रपति निकोला सारकोज़ी ने कहा है कि गंभीर मतभेदों के बीच ऐसा ही समझौता हो सकता था. ग़रीब देशों और कुछ विकासशील देशों ने तो डील का विरोध किया ही है, कई पर्यावरण संगठनों और राहत संस्थाओं ने इसे मुंह छिपाने की क़वायद बताया है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: एस जोशी

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