भारत के कई हिस्से इस समय डेंगू और चिकनगुनिया की चपेट में हैं. कई इलाकों में तो इसने महामारी का रूप ले लिया है. इसके साथ ही दिल्ली समेत कुछ राज्यों में यह बीमारियां राजनीति का हथियार बन गई हैं.
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देश के लगभग सभी हिस्सों में फिलहाल डेंगू, चिकनगुनिया या दूसरे किस्म के वायरल फीवर का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है. राजधानी दिल्ली चिकनगुनिया की चपेट में है तो पड़ोसी हरियाणा मलेरिया के. इसी तरह पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में डेंगू का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है. दक्षिण भारत में बंगलुरू समेत कई शहरों में डेंगू और चिकनगुनिया की चपेट में आकर मरने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है. बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान व मध्यप्रदेश जैसे घनी आबादी वाले राज्यों में किसी न किसी किस्म के बुखार के साथ अस्पताल पहुंचने वालों की तादाद में लगातार इजाफा हो रहा है. देश की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई भी इन बीमारियों से अछूती नहीं है.
खासकर डेंगू के मामले तो तेजी से बढ़ रहे हैं. बीते पांच वर्षों के दौरान इस बीमारी की चपेट में आने वालों का आंकड़ा 28 हजार से बढ़ कर एक लाख के पार पहुंच गया है. इस साल जनवरी से अब तक डेंगू से 75 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इसके अलावा लगभग 40 हजार लोग इसकी चपेट में हैं. पश्चिम बंगाल व केरल के अलावा केरल और कर्नाटक में इस बीमारी का प्रकोप सबसे ज्यादा है. अकेले बंगाल में 18 लोग इसके शिकार हो चुके हैं. इसी तरह चिकनगुनिया से प्रभावित राज्यों में कर्नाटक पहले स्थान पर है. उसके बाद दिल्ली का नंबर है. इस साल अब तक पूरे देश में मलेरिया के आठ लाख से ज्यादा मामले सामने आए हैं और उनमें 120 लोगों की मौत हो चुकी है. गैर-सरकारी संगठनों का दावा है कि इन बीमारियों की चपेट में आने और मरने वालों की असली तादाद कई गुना ज्यादा है. यह आंकड़ा तो सरकारी अस्पतालों तक पहुंचने वाले मामलों का है.
मलेरिया: मौत के लिए एक ही डंक काफी
एक अनुमान के मुताबिक हर साल दुनिया में 10 लाख लोगों की मौत मलेरिया के कारण होती है. कंपकपी के साथ तेज बुखार मलेरिया के संकेत हैं. इस बीमारी के कारण बच्चों की मौत की संभावना सबसे अधिक होती है.
तस्वीर: AP
मच्छर से मलेरिया
अफ्रीका का सबसे खतरनाक जीव सिर्फ 6 मिलीमीटर लंबा है. इसे मादा एनोफेलीज मच्छर के नाम से जाना जाता है. यह संक्रामक रोग मलेरिया के लिए जिम्मेदार है. एक अनुमान के मुताबिक हर साल दुनिया में 10 लाख लोगों की मौत मलेरिया के कारण होती है. कंपकपी के साथ तेज बुखार मलेरिया के संकेत हैं. इस बीमारी के कारण बच्चों की मौत की संभावना सबसे अधिक होती है.
मलेरिया पीड़ित को अगर मच्छर काट ले तो वह मलेरिया के विषाणु को औरों तक फैला देता है. शोधकर्ताओं ने इस मच्छर में विषाणु को प्रोटीन से चिह्नित किया है जो हरे रंग में चमकता है. लार ग्रंथि में जाने से पहले मच्छर की आंत में पैरासाइट प्रजनन करता है.
मलेरिया पैरासाइट का जैविक नाम प्लाज्मोडियम है. बीमारी की शोध के लिए वैज्ञानिकों ने एनोफेलीज मच्छरों को संक्रमित किया और उसके बाद पैरासाइट को लार ग्रंथि से अलग किया. इसमें पैरासाइट का संक्रामक रूप जमा है. इस तस्वीर में दाहिनी तरफ मच्छर है और बीच में है हटाई गई लार ग्रंथि.
तस्वीर: Cenix BioScience GmbH
विषाणु चक्र
मलेरिया पैरासाइट घुमावदार होते हैं, वो एक दायरे में घुमते हैं. यहां शोधकर्ताओं ने उन्हें तरल पदार्थ के साथ शीशे के टुकड़े पर रखा. पैरासाइट को यहां पीले रंग से चिह्नित किया गया है. और जिस पथ पर घूमते हैं उसे नीले रंग से पहचाना जा सकता है. वो तेजी से चलते हैं. एक पूरा चक्कर लगाने के लिए सिर्फ 30 सेकेंड लेते हैं. बाधा पहुंचने पर वे अपने घुमावदार पथ से हट जाते हैं. सीधी रेखा पर भी चल सकते हैं.
इंसान के शरीर में दाखिल होने के बाद विषाणु मनुष्य के लीवर में कुछ दिनों के लिए ठहर जाता है. इस दौरान मरीज को पता नहीं चलता. प्लाज्मोडियम मरीज की लाल रक्त कणिकाओं को तेजी से प्रभावित करता है, और लीवर में इस परजीवी की संख्या तेजी से बढ़ती चली जाती है. लीवर में यह मेरोजोइटस का रूप लेता है, जिसके बाद रक्त कोशिकाओं पर हमला शुरू हो जाता है और इंसान बीमार महसूस करने लगता है.
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शरीर में बढ़ता पैरासाइट
रक्त कोशिका में दाखिल होने के बाद पैरासाइट एक से तीन दिन के भीतर बढ़ने लगता है. इसके बाद वे लाल रक्त कणिका या लीवर कोशिका में प्रवेश कर जाता है. यहां परजीवी का विखंडन होता है. परजीवियों की संख्या बढ़ने पर कोशिका फट जाती है. नतीजतन इंसान को ठंड के साथ बुखार आने लगता है. माइक्रोस्कोप में इसे आसानी के साथ देखा जा सकता है. बैंगनी रंग का यह रोगाणु अलग नजर आ रहा है.
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मच्छरदानी में मौत
शोधकर्ताओं ने एक ऐसी मच्छरदानी बनाई है जिसमें जाल में कीटनाशक लगे हुए हैं. मच्छरदानी के संपर्क में आते ही मच्छर मर जाते हैं.
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दवा का छिड़काव
जब मलेरिया का प्रकोप हद से ज्यादा बढ़ जाता है तो उसके लिए दूसरे उपाए किए जाते हैं. मुंबई की इस तस्वीर में मच्छरों को मारने के लिए दवाओं का छिड़काव किया जा रहा है. डीडीटी कीटनाशक का इस्तेमाल प्रभावशाली होता है. हालांकि यह स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरनाक होता है.
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रैपिड टेस्ट
खून की एक बूंद से किया गया रैपिड टेस्ट मिनटों में बता सकता है कि मरीज को मलेरिया है या नहीं. यहां डॉक्टर विदआउट बॉर्डर की एक कार्यकर्ता, अफ्रीकी देश माली में लड़के पर रैपिड टेस्ट कर रही हैं. इस लड़के में मलेरिया की पुष्टि हुई. उपचार के दो दिन बाद वह स्वस्थ हो गया. हालांकि रैपिड टेस्ट हमेशा भरोसेमंद नहीं होते.
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दवा बेअसर
दवाइयों की मदद से रक्त में मौजूद विषाणु को खत्म या फिर बढ़ने से रोका जा सकता है. हालांकि दवाओं का असर पैरासाइट पर कम होता जा रहा है. लंबे समय से इस्तेमाल की जा रही मलेरिया की दवा क्लोरोक्वीन अब कुछ इलाकों में प्रभावशाली नहीं है. नई दवाओं की खोज मलेरिया की प्रतिरोधक क्षमता की समस्या से निपटने का एक रास्ता है.
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कब आएगा टीका
मलेरिया के लिए अब तक कोई टीका नहीं है. शोधकर्ता टीका बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. रिपोर्टों के मुताबिक इस मामले में सफलता जल्द मिल सकती है.
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ताजाअध्ययन
इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आईएमसीआर) के ताजा अध्ययन के मुताबिक देश भर में उसके 40 जांच केंद्रों में हर महीने खून के एक हजार नमूनों की जांच की जाती है. इस साल जनवरी से अब तक उनमें 12 फीसदी मामलों में डेंगू का पता चला है. यह आंकड़ा बीते साल के मुकाबले ज्यादा है. इसी तरह अकेले जुलाई के बाद ही 10 फीसदी नमूनों में चिकनगुनिया के जीवाणु मिले हैं. आईसीएमआर की महानिदेशक डा. सौम्या स्वामीनाथन कहती हैं, "इस साल पूरे देश में डेंगू और चिकनगुनिया के मामले तेजी से बढ़े हैं. रोजाना इनके नए मामले सामने आ रहे हैं." वह बताती हैं कि वैसे तो बरसात का सीजन शुरू होने के बाद अमूमन हर साल बुखार के मामले बढ़ जाते हैं. लेकिन इस साल इनमें पहले के मुकाबले काफी तेजी देखी जा रही है.
विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और तेजी से होने वाले शहरीकरण के असर ने इन बीमारियों को फैलने में सहायता की है. डा. स्वामीनाथन कहती हैं, "बरसात का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल हो गया है. इसके साथ ही मच्छरों ने खुद को शहरी माहौल में ढाल लिया है." वह बताती हैं कि पूरे साल चलने वाली निर्माण गतिविधियों की वजह से जगह-जगह लंबे समय तक पानी जमा रहता है. वह मच्छरों के प्रजनन के लिए बेहद मुफीद है. विशेषज्ञों के मुताबिक, इसके लिए प्रभावित इलाकों में मच्छर मारने वाली दवाओं के छिड़काव के अलावा आम लोगों में जागरुकता फैलाना जरूरी है. विभिन्न शहरों में नगर निगमों की ओर से ऐसे कुछ अभियान जरूर शुरू किए गए हैं. लेकिन अब तक उनका कोई खास असर सामने नहीं आया है.
आप ही को क्यों काटते हैं मच्छर?
अगर आप उन लोगों में से हैं जिनका मच्छर चुन चुन कर पीछा करते हैं, तो आपने कभी ना कभी किसी ना किसी से जरूर सुना होगा कि आपका खून मीठा है, इसीलिए आप मच्छरों की पसंद हैं. पर क्या वाकई ऐसा होता है?
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खून
रिसर्च में देखा गया है कि मच्छर 'ओ' ब्लड ग्रुप की ओर ज्यादा आकर्षित होते हैं. खून के चार प्रकार होते हैं, ए, बी, एबी और ओ. कम ही लोगों का ब्लड ग्रुप ओ होता है. इस तरह के खून में कुछ खास प्रकार के तत्व पाए जाते हैं, जो मच्छरों को आकर्षित करते हैं.
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सांस
यह थोड़ी अजीब वजह है लेकिन शोध दिखाता है कि जो लोग लंबी लंबी सांसें लेते हैं, उन्हें मच्छर ज्यादा काटते हैं. दरअसल इसकी वजह सांस छोड़ने के दौरान शरीर से बाहर आने वाली कार्बन डाय ऑक्साइड है जिसमें शरीर की गंध मिली होती है. मच्छर इस गंध से ही तय करते हैं कि वे किस ओर जाना चाहते हैं. सांस जितनी लंबी होगी, उनके लिए अनुमान लगाना उतना आसान होगा.
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लैक्टिक एसिड
आपकी त्वचा पर लैक्टिक एसिड की मात्रा जितनी ज्यादा होगी, मच्छरों के लिए आप उतने ही अधिक आकर्षिक साबित होंगे. और अगर शरीर का तापमान अधिक हो तो मच्छरों के लिए सोने पे सुहागा! इसीलिए कसरत करने के बाद मच्छरों के काटने का खतरा ज्यादा होता है.
गर्भवती महिलाओं को वैसे भी कई तरह की परेशानियों का सामना करना होता है. और मच्छर भी उन्हें परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ते. शोध दिखाता है कि गर्भवती महिलाएं अन्य महिलाओं की तुलना में ज्यादा गहरी सांसें लेती हैं. साथ ही उनके शरीर का तापमान भी अधिक होता है.
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बीयर
इस शोध पर बहस जारी है. रिसर्च में पाया गया कि जिन लोगों ने बीयर पी रखी थी, बाकी लोगों की तुलना में उन्हें मच्छरों ने ज्यादा काटा. लेकिन क्या ऐसा हर शराब के साथ होता है या फिर सिर्फ बीयर के मामले में ही, यह अब तक साफ नहीं हो पाया है.
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पर्यटनपरअसर
अब इन बीमारियों का असर पर्यटन उद्योग पर भी पड़ने लगा है. दिल्ली व आसपास के इलाकों में इनका प्रकोप बढ़ने से पर्यटक अब दिल्ली की ओर से मुंह मोड़ने लगे हैं. ब्रिटेन व अमेरिका जैसे देशों के टूरिज्म एडवायजरी जारी करने की वजह से विदेशी पर्यटकों की तादाद में भी गिरावट दर्ज की गई है. आमतौर पर विदेशी पर्यटकों की आवक अक्तूबर से बढ़ती है. इनमें 25 फीसदी पर्यटक अमेरिका व ब्रिटेन से आते हैं. उनकी तादाद में और कमी आने का अंदेशा है. कंफेडरेशन ऑफ टूरिज्म प्रोफेशनल्स के प्रमुख सुभाष गोयल कहते हैं, "डेंगू व चिकनगुनिया का असर सर्दियों में कम जरूर हो जाएगा. लेकिन तब तक पर्यटन उद्योग को 15 से 20 फीसदी तक का नुकसान हो जाएगा."
दूसरी ओर, व्यापार संगठन एसोचैम ने भी इन बीमारियों की वजह से पर्यटन व विमानन उद्योग को भारी नुकसान होने का अंदेशा जताया है. उसका कहना है कि विभिन्न देशों और यहां संबंधित राज्य सरकारों की ओर से जारी चेतावनियों की वजह से पश्चिम भारतीय शहरों में पर्यटकों की तादाद घटी है. अभी इसमें और गिरावट का अंदेशा है. इससे विमानन, होटल और परिवहन उद्योग पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है.