आईएस का मुखिया अल बगदादी कई साल से दुनिया के लिए पहेली बना हुआ है. फिर उसके मारे जाने की खबर आई है. बगदाद यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट करने वाला बगदादी कैसे आतंक का सबसे चेहरा बन गया, जानिए.
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अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने रविवार को कहा कि अमेरिकी सेना के विशेष दस्तों ने तथाकथित इस्लामिक स्टेट के मुखिया अबू बक्र अल-बगदादी को उत्तर-पश्चिम सीरिया में मार गिराया.
ट्रंप ने टेलीविजन पर राष्ट्र के नाम संदेश में बताया कि रात में की गई सेना की कार्रवाई में इस्लामिक स्टेट के कई आतंकवादी मारे गए और बगदादी ने एक सुरंग में फंसने के बाद खुद को और अपने तीन बच्चों को बम से उड़ा दिया.
बगदादी के मरने की खबरें इससे पहले भी कई बार आ चुकी हैं. लेकिन इस बार जिस तरह राष्ट्रपति ट्रंप ने इसका एलान किया है, उससे माना जा रहा है कि वह इससे बड़ा राजनीतिक लाभ उठाना चाह रहे हैं. दुनिया भर के लिए पहले बने इस शख्स के बारे में आइए थोड़ा विस्तार से जान लेते हैं.
कौन था बगदादी
अबू बक्र अल-बगदादी आईएस का मुखिया और स्व-घोषित खलीफा था. उसके नेतृत्व में आईएस ने इराक और सीरिया में एक बड़े इलाके को अपने कब्जे में ले लिया. इस इलाके में आईएस ने कट्टरपंथी इस्लाम को बड़ी क्रूरता से लागू किया और इस्लामिक कानून (शरिया) से चलने वाली सरकार की स्थापना की.
धीरे धीरे कई देशों के भटके हुए नौजवान आईएस की तरफ खिंचे चले आए और उससे जुड़ गए. दुनिया में पनप रहे कई आतंकवादी संगठन भी आईएस से जुड़ गए और उन्होंने बगदादी के नेतृत्व को स्वीकार कर लिया.
इस्लामिक स्टेट ने यह बिल्कुल भी नहीं सोचा था कि कुर्द लड़ाके उसकी नाक में दम कर देंगे. कुर्द लड़कियों ने इस लड़ाई में चरमपंथियों के दांत खट्टे कर दिए. एक झलक लड़ने वाली कुर्द लड़कियों की जिंदगी की.
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कुर्दिस्तान का स्वप्न
ईरान की कुर्दिश महिलाओं का गुट कुर्दिश पेशमेर्गा फाइटर्स में शामिल हो गया है. इराक के इर्बिल में ये महिलाएं सैन्य अभ्यास कर रही हैं. ईरान भी इसे अपने लिए खतरा मान रहा है.
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मां के नाम संदेश
"प्यारी मां, मेरे लिए आंसू मत बहाना. मैं मातृभूमि के लिए मिटने के लिए तैयार हूं. मैं दुश्मन को मिटाने जा रही हूं." हर ट्रेनिंग के दौरान कुर्दिश फाइटर लड़कियां यही गीत गाती हैं.
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80 साल पुरानी मांग, कुर्दिस्तान
इराक के कुर्द बहुल इलाके में ये महिलाएं सीरिया और इराक की कुर्द लड़कियों के साथ युद्ध का अभ्यास कर रही हैं. इन महिलाओं का कहना है कि कुर्दिस्तान एक है.
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अपनी रक्षा खुद
इन लड़कियों के मुताबिक इलाके के सारे कुर्दों की हिफाजत के लिए उन्होंने ये हथियार उठाए हैं. ईरान, सीरिया और तुर्की सीमावर्ती इलाकों में कुर्द आबादी को अपने लिए खतरा मानते हैं.
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अच्छी खासी ट्रेनिंग
इस्लामिक स्टेट के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के दौरान अमेरिका भी कुर्द लड़ाकों को ट्रेनिंग दे चुका है. जर्मन सेना ने भी कुर्दों के लिए ऐसे कई प्रशिक्षण अभियान चलाए.
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कुर्द समाज का प्रतिबिंब
एक कुर्द महिला होने के नाते मैं बताना चाहती हूं कि कुर्द लड़ाके महिलाओं और पुरुषों के बीच भेदभाव नहीं करते. मैं कमजोर नहीं हूं. मैं कहीं भी लड़ सकती हूं. हम दुश्मन और सेक्सिज्म से लड़ रहे हैं.
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पढ़ी लिखी फाइटर
ईरान से ट्रेनिंग के लिए इराक पहुंची इन लड़कियों की उम्र 18 से 25 साल के बीच है. ज्यादातर लड़कियां यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएट हैं.
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फ्रंट लाइन पर पोस्टिंग
अलग अलग देशों से आई सारी लड़कियां अलग कुर्दिस्तान देश का सपना देखती हैं. कुछ महीनों की ट्रेनिंग के बाद इन्हें अलग अलग फ्रंट लाइन में भेजा जाएगा.
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इंतकाम की आग
20 साल की हाजा सीरिया की रहने वाली हैं. सीरिया में उनके इलाके सिंजर में इस्लामिक स्टेट ने कब्जा कर लिया था. उस हमले से खीझकर वे पेशमेर्गा ट्रेनिंग कैंप में पहुंचीं.
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इस्लामिक स्टेट के सामने खड़ी दीवार
पेशमेर्गा ट्रेनिंग कैंप की इस्लामिक स्टेट के प्रभाव वाले इलाके से दूरी मात्र 800 मीटर है. लेकिन इसके बावजूद आईएस के लड़ाके पेशमेर्गा के करीब फटकते तक नहीं हैं.
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इसके बाद बगदादी के नेतृत्व में आईएस ने इराक और सीरिया के अलावा दुनिया में कई हिस्सों में आतंकवादी हमलों को अंजाम दिया और बगदादी पूरी दुनिया के लिए आतंक का सबसे डरावना चेहरा बन गया.
अमेरिका और उसके साथी देशों ने आईएस के खिलाफ जंग छेड़ दी लेकिन सालों तक वे उस समूह पर काबू नहीं पा पाए. लगभग पांच साल की लड़ाई के बाद मार्च 2019 में सीरिया में आईएस के नियंत्रण में रहे आखिरी इलाके को मुक्त कराया गया. लेकिन आईएस के लड़ाके आज भी कई जगहों पर फैले हुए हैं और दुनिया के लिए एक चुनौती बने हुए हैं.
व्यक्तिगत जीवन
माना जाता है कि बगदादी का असली नाम इब्राहिम अव्वाद इब्राहिम अल-बद्री था और उसका जन्म मध्य इराक के शहर समाराई में एक सुन्नी अरब परिवार में हुआ था. उसके जीवन के विवरण को लेकर काफी विवाद है और आधिकारिक जानकारी का अभाव है.
लेकिन कुछ जानकारों का मानना है कि बगदादी बचपन से मस्जिदों में बहुत समय बिताता था और बहुत जल्दी कुरान और शरिया का जानकार बन गया था. स्कूल खत्म होने की बाद भी उसने इस्लामी तालीम ही हासिल की और बगदाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट भी की. फिर कुछ वर्षों तक उसने एक इमाम के तौर पर काम किया.
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रक्का में हर कब्र मौत की कहानी कहती है
सीरिया के शहर रक्का में एक और बड़ी सामूहिक कब्र मिली है. इससे निकलने वाले शव बताते हैं कि तथाकथित इस्लामिक स्टेट की राजधानी रहा यह शहर किस बर्बरता से गुजरा है.
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मिट गई पहचान
इस्लामिक स्टेट के कब्जे से आजाद होने के बाद से ही रक्का में कई सामूहिक कब्रें मिली हैं. इसमें लगभग 4,360 लाशें मिली हैं जिनमें से अब तक सिर्फ 750 लोगों की पहचान हो पाई है. हजारों पुरुष, महिला और बच्चे मारे गए. आईएस के सैनिकों और उनके शिकार बने बहुत सारे लोगों की अब तक पहुचान नहीं हुई है.
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खाक छानने का मिशन
लगभग 10 बजे का समय है. 12 से 15 लोगों की टीम ने जमीन से एक लाश को निकाला है. इस जगह पर डॉ असद मोहम्मद के नेतृत्व में रैपिड रिस्पांस यूनिट लाश की चोटों, कपड़ों, उसकी दूसरी चीजों और खास निशानों को जांचती परखती है ताकि व्यक्ति की पहचान में मदद मिल सके.
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आईएस लड़ाका
जिस व्यक्ति की लाश को यहां निकाला जा रहा है, उसके बारे में टीम का ख्याल है कि वह अफ्रीकी मूल का एक आईएस लड़ाका था. उसे बाकायदा एक कब्र में दफनाया गया था, लेकिन उसका शरीर इतना लंबा चौड़ा है कि लाशों को रखने के लिए इस्तेमाल होने वाले बैग को बंद नहीं किया जा सकता. उसके कफन पर जलने के निशान बताते हैं कि वह किसी हवाई हमले में मारा गया था.
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शिशुओं की कब्रें
आधा मीटर जमीन खोदने के बाद टीम को एक जैसे दो गडढ़े दिखाई दिए, जो या तो अजन्में भ्रूणों या आईएस लड़ाकों के शिशुओं की कब्रें हैं. इन कब्रों से सफेद कपड़ों में लिपटी छोटी-छोटी हड्डियों के सिवाय कुछ नहीं मिला. ऐसे बहुत से बच्चों को नाम तक नहीं मिला था, इसलिए उनकी कभी पहचान भी नहीं हो पाएगी.
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ताकि मौतों से उबरे रक्का
यह काम बहुत मुश्किल है, लेकिन 30 साल के हम्दु एल हामिद घुटनों पर झुककर कब्र से एक शिशु का शव निकालते हैं. वह और उनके साथी हर रोज कब्रें खोदते हैं, शव निकालते हैं, उन्हें पहचानने की कोशिश करते हैं. इस टीम के सदस्य मानते हैं कि रक्का शहर को वापस जिंदगी देने और सामान्य बनाने के लिए उनका काम बहुत जरूरी है.
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अजन्मी आईएस पीढ़ी
कई कब्रों और मकबरों में टीम को छोटे छोटे शिशुओं या फिर गर्भ गिरने से मारे गए भ्रूणों के अवशेष मिले हैं. शहर के उत्तरी हिस्से में कुछ कब्रों में 10 से 15 लाशें मिली हैं. इनमें हवाई हमलों में मारे गए लोगों के अलावा आईएस की क्रूरता का शिकार बने लोग शामिल हैं.
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आखिरी मंजिल
अभी तक अल-फुखेइखा रक्का में मिलने वाली सबसे बड़ी सामूहिक कब्र है. आकार नहीं, बल्कि यहां मिलने वाली लाशों के हिसाब से. यहां लगभग तीन हजार शव मिले हैं. माना जाता है कि यहां रेपिड रेस्पॉन्स यूनिट-6 को काम पूरा करने में महीनों लगेंगे. जनवरी 2018 से रक्का में कुल 13 सामूहिक कब्रें मिली हैं जिनसे 4,360 शवों को निकाला गया है.
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रक्का का रिसता जख्म
ऊपर से देखें तो अल-फुखेइखा की जमीन बहुत सामान्य और शांत दिखती है. लेकिन हर एक कब्र इस शहर के शरीर पर एक रिसता जख्म है. इस जगह के दक्षिणी हिस्से में व्यक्तिगत कब्रें हैं जहां से 900 शव मिले जबकि उत्तरी हिस्से में सामूहिक कब्रें हैं जहां 1,600 से ज्यादा लोगों को दफन किया गया.
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A heavy burden
"I would need a calculator to figure out the number of bodies I have helped to exhume, examine and document," Doctor Assad Mohammed told DW. He's been working as a forensic expert at several of the mass graves in Raqqa.
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Changing history
More than 80 bodies were exhumed within the first three weeks of discovering the tombs and graves of al-Fukheikha. Now the numbers have exceeded 550. "This used to be a land for farmers. Not a cemetery. Not a training camp or burial site for IS. Our job is to change this place back to being agricultural land. This is not a graveyard," says Assad Mohammed.
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Praying for the dead
The physical and mental toils mean the men regularly need breaks to smoke, drink tea or most importantly to hold midday prayers in an effort to forget the brutal working conditions — at least for a few minutes.
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आतंकवाद के रास्ते वह कैसे आया, इस बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि 'जिहाद' की तरफ उसका झुकाव छात्र जीवन में ही हो गया था. 2003 में जब अमेरिका के नेतृत्व में इराक पर हमला हुआ और इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन का तख्ता पलट किया गया, उसके बाद बगदादी ने कुछ लोगों के साथ मिलकर एक छोटे से बागी समूह की स्थापना की. इस समूह ने अमेरिकी और अन्य देशों के सैनिकों पर हमला करना शुरू किया.
2004 में अमेरिकी सैनिकों ने उसे हिरासत में भी लिया और दक्षिणी इराक में कैंप बक्का में रखा. लेकिन उसे छोटे स्तर का खतरा समझ कर 10 महीनों में रिहा कर दिया गया.
माना जाता है कि यहां से रिहा होने के बाद वो अल-कायदा की इराकी ईकाई (एक्यूआई) के संपर्क में आया और 2006 में एक्यूआई के संगठन मुजाहिद शूरा कॉउंसिल से जुड़ गया. उसी साल यही संगठन इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक में तब्दील हो गया और बगदादी उसकी सलाहकार शूरा कॉउंसिल का हिस्सा बन गया.
2010 में इस संगठन के नेता अबू उमर अल-बगदादी और उसके एक करीबी सहयोगी की एक अमेरिकी हमले में मौत हो गई और तब बगदादी को इसका प्रमुख बनाया गया.
माना जाता है कि बगदादी इस संगठन को हार के कगार से वापस ले कर आया, उसने इसे फिर से खड़ा किया और एक घातक समूह में तब्दील किया.
2013 में इस संगठन ने सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल-अस्साद के खिलाफ विद्रोह से खुद को जोड़ लिया और सीरिया में भी लड़ाके भेजकर वहां अल-नुस्रा नामक संगठन की स्थापना की.
उसी साल अप्रैल में बगदादी इराक और सीरिया में काम रहे अपने लड़ाकों को एक बैनर के तले ले आया और उसने आईएस की स्थापना की.
अगले एक साल तक उसके लड़ाकों ने एक के बाद एक कई इराकी शहरों को अपने कब्जे में ले लिया और जून 2014 में आईएस ने तथाकथित खिलाफत की स्थापना की घोषणा की.
इसके बाद आईएस और अमेरिका की अगुवाई वाले गठबंधन की सेनाओं के बीच जंग और वीभत्स हो गई. हजारों लोग मारे गए, लाखों बेघर हो गए, शहर के शहर तबाह हो गए और इस इलाके में स्थित कई इमारतें, जो ऐतिहासिक धरोहर थीं, नष्ट हो गईं.
इराकी सैनिकों ने प्राचीन शहर निमरूद को इस्लामिक स्टेट के कब्जे से मुक्त करा लिया है. लेकिन यहां मौजूदा विरासत को जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई शायद कभी नहीं हो पाएगी.
2014 में जब इस्लामिक स्टेट ने उत्तरी इराक के बड़े हिस्से पर कब्जा किया तो निमरूद भी इसमें शामिल था. चरमपंथियों ने यहां जमकर लूटपाट और तोड़फोड़ की.
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बर्बादी का वीडियो
पिछले साल इस्लामिक स्टेट ने एक वीडियो जारी किया था जिसमें चरमपंथियों को निमरूद के भित्ति चित्रों और मूर्तियों को बुलडोजर से तहस नहस करते हुए दिखाया गया था.
तस्वीर: Militant video via AP
बुतपरस्ती
कट्टरपंथी विचारधारा पर चलने वाला इस्लामिक स्टेट इस्लामी दौर से पहले की विरासतों को बुतपरस्ती से जोड़कर देखता है और इसलिए उन्हें ध्वस्त किया जाता है.
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युद्ध अपराध
यूनेस्को ने निमरूद में हुई तबाही की निंदा की है और इसे युद्ध अपराध बताया है.
तस्वीर: picture-alliance/Bildarchiv
लामासु
निमरूद की मशहूर प्रतिमाओं में पंखों वाले एक सांड भी है जिसका मुंह इंसान का है. इसका नाम लामासु है जो ईसा पूर्व नौंवी सदी के राजा अशुरनसीपाल द्वितीय के महल के मुख्यद्वार पर है.
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तिगरिस के किनारे
निमरूद तिगरिस नदी के पूर्वी किनारे पर बसा और मोसुल से 30 किलोमीटर दूर पूर्व में स्थित है.
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किसने खोजा निमरूद
निमरूद को 19वीं सदी में ब्रिटिश पुरातत्वविद ऑस्टेन लेयार्ड ने खोजा था. बाद में 1950 के दशक में ब्रिटिश पुरातत्वविद मैक्स मेलोवेन और उनकी पत्नी और अपराध लेखिका अगाथा क्रिस्टी ने भी निमरूद में काम किया था.
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उपन्यासों की पृष्ठभूमि
निमरूद और मध्यपूर्व में अगाथा क्रिस्टी का सफर उनके कई उपन्यासों की पृष्ठभूमि बना.
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गठबंधन सेनाओं को पांच साल लगे, सभी शहरों को आईएस के नियंत्रण से मुक्त कराने में. आईएस के पास अब वैसा इलाका नहीं है जैसा कभी था लेकिन उसके लड़ाके आज भी खतरा बने हुए हैं.
अमेरिकी सरकार ने बगदादी के सिर पर ढाई करोड़ अमेरिकी डॉलर का इनाम रखा था और इस लंबी जंग के दौरान कई बार उसके मारे जाने की खबर आई. जून 2017 में रूस ने कहा कि संभव है कि बगदादी उसके हवाई हमले में मारा गया हो. लेकिन तीन महीने बाद बगदादी का एक संदेश सामने आया और उसकी मौत की खबर पर संदेह बन गया.
ऐसा तीन-चार बार और हुआ और इसलिए इस बार भी राष्ट्रपति ट्रंप की घोषणा को संदेह की नजर से देखा जा रहा है.