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गाय के गोबर, पेशाब से नहीं भागता कोरोना

११ मई २०२१

गुजरात में लोग गाय के गोबर और पेशाब को अपने शरीर पर लेपने की थेरेपी ले रे हैं. लेकिन डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि कोविड-19 से बचने के लिए गाय के गोबर पर भरोसा न करें.

Indien Kuhurin gegen die Corona-Krise
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui

कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर भारत में पिछले दो महीने से कहर बरपा रही है. पिछले साल महामारी शुरू होने के बाद से अब तक दो लाख 46 हजार से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है जिनमें से 50 हजार से ज्यादा लोग अप्रैल से अब तक मरे हैं. देश में संक्रमण के मामलों की संख्या दो करोड़ 26 लाख के पार जा चुकी है. हालांकि कई जानकारों का मामला है कि असली संख्या दस गुना ज्यादा हो सकती है. इस बीच लोग अस्पताल, ऑक्सीजन और दवाइयों के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं.

श्मशान घाटों के बार शवों की लंबी लाइनों वाली डरावनी तस्वीरें सोश मीडिया पर शेयर हो रही हैं. इस सबके बीच लोगों के बीच ऐसी बातें भी साझा हो रही हैं कि शरीर पर गाय के गोबर के लेप से कोविड-19 नहीं होता. गुजरात में कुछ लोग इसी उम्मीद में अपने शरीर पर गाय के गोबर और पेशाब का लेप करने के लिए गोशालाओं में पहुंच रहे हैं. उन्हें लगता है कि इससे उनके शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ेगी और कोरोना वायरस से छुटकारा मिलेगा.

हिंदू धर्म में गाय एक पवित्र प्राणी है. उसे धरती माता का प्रतीक माना जाता है और सदियों से बहुत से हिंदू घरों में गाय के गोबर से फर्श लीपा जाता है. माना जाता है कि इस गोबर में औषधीय गुण होते हैं. एक दवा कंपनी में असोसिएट मैनेजर गौतम मणिलाल बोरिसा कहते हैं कि पिछले साल गोबर के लेप ने ही उन्हें कोरोना वायरस से उबरने में मदद की. वह बताते हैं, "हमने देखा है कि डॉक्टर तक यहां आते हैं. वे मानते हैं कि इस थेरेपी से उनकी इम्यूनिटी बढ़ती है और वे बिना किसी डर के अपने मरीजों का इलाज कर सकते हैं.”

14 मार्च 2020 को नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कप में गौ-मूत्र डालता एक व्यक्ति.तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Qadri

बोरिसा अब नियमित तौर पर श्री स्वामीनारायण विश्वविद्या प्रतिष्ठानम जाते हैं, जो जायडस-कैलिडा नामक दवा कंपनी के ठीक सामने स्थित है. कंपनी के इस मुख्यालय में कोविड-19 की वैक्सीन तैयार करने की कोशिशें हो रही हैं. श्री स्वामीनारायण विश्वविद्या प्रतिष्ठानम में थेरेपी के लिए आने वाले लोग अपने शरीर पर गाय के पेशाब और गोबर का लेप करते हैं और फिर उसके सूखने का इंतजार किया जाता है. पिर वे गायों को गले लगाते हैं और योगासन करते हैं.

इसके बाद दूध या दही से उन्हें नहलाया जाता है. लेकिन देश और दुनिया के कई डॉक्टर बार-बार कहते रहे हैं कि इस तरह की वैकल्पिक थेरेपी के कोविड-19 पर असर के कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं. कई डॉक्टरों का कहना है कि इससे लोगों में अपनी इम्यूनिटी को लेकर भ्रम हो सकता है और कई तरह की स्वास्थ्यगत समस्याएं पैदा हो सकती हैं.

इंडियन मेडिकल असोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. जे ए जयलाल कहते हैं, "ऐसा कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि गाय के गोबर या पेशाब से कोविड-19 के खिलाफ इम्यूनिटी बढ़ती है. यह बस आस्था का मामला है. ऐसे उत्पादों का इस्तेमाल करने या सेवन करने से स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है. जानवरों से कई अन्य बीमारियां भी इन्सानों को हो सकती हैं.”

ऐसी भी आशंकाएं जताई जा रही हैं कि इस तरह की थेरेपी से कोरोना वायरस और ज्यादा फैल सकता है क्योंकि इसके लिए लोग समूहों में जमा होते हैं. अहमदाबाद में एक अन्य गोशाला के इंचार्ज मधुचरण दास बताते हैं कि उन्होंने अपने यहां आने वाले लोगों की संख्या तय कर दी है.

वीके/सीके (रॉयटर्स)

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