नेपाल, भारत और चीन में से किसी की तरफदारी नहीं करेगा. तमाम मीडिया रिपोर्टों को खारिज करते हुए नेपाल के उप प्रधानमंत्री ने अपने देश का फैसला सामने रखा है.
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नेपाल के उप प्रधानमंत्री कृष्ण बहादुर माहरा ने कहा है कि भारत और चीन को डोकलम विवाद शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाना चाहिए. माहरा उप प्रधानमंत्री होने के साथ साथ देश के विदेश मंत्री भी हैं. पत्रकारों से बात करते हुए माहरा ने कहा, "इस सीमा विवाद पर नेपाल इस या उस पक्ष की तरफ नहीं जाएगा. कुछ मीडिया रिपोर्टें हमें इस तरफ की या उस तरफ खींचने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन मैं साफ करना चाहता हूं कि इस मुद्दे पर हमने किसी का पक्ष नहीं लिया है." कुछ दिन पहले ही ऐसी रिपोर्टें आई थी कि चीन नेपाल को अपने पक्ष में करने की पुरजोर कोशिशें कर रहा है.
नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा 23 से 27 अगस्त के बीच भारत का दौरा करेंगे. उप प्रधानमंत्री के मुताबिक पीएम की भारत यात्रा के लिए जरूरी तैयारियां की जा रही है.
देउबा की भारत यात्रा से पहले 14 अगस्त को चीन के उप प्रधानमंत्री वांग यांग भी नेपाल पहुंच रहे हैं. माहरा के मुताबिक चीनी उप प्रधानमंत्री के दौरे में विकास संबंधी नीतियों पर फोकस होगा. माहरा ने कहा कि चीनी उप प्रधानमंत्री के दौरे और नेपाली पीएम की भारत यात्रा को जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए.
भारत और चीन 16 जून 2017 से डोकलम विवाद में उलझे हुए हैं. डोकलम भूटान और चीन के बीच का विवादित इलाका है. चीन वहां सड़क बनाने की कोशिश कर रहा था. भूटान और भारत ने इस निर्माण का विरोध किया. सड़क निर्माण रोकने के लिए भारतीय सेना डोकलम पहुंच गई. नई दिल्ली का कहना है कि सड़क निर्माण उसकी सामरिक सुरक्षा के लिए खतरा है. भारत को लगता है कि चीन की सड़क 20 किलोमीटर की चौड़ाई वाले चिकन नेक के लिए खतरा बनेगी. भारत को पूर्वोत्तर भारत से जोड़ने वाला पतले से इलाके को ही चिकेन नेक कहा जाता है.
विवाद अब भी जस का तस बना हुआ है. चीन बार बार भारतीय सेना से डोकलम छोड़ने को कह रहा है. वहीं भारत ने साफ कर दिया है कि जब तक चीनी सेना भी वहां से नहीं हटेगी, तब तक भारतीय फौज भी डोकलम में ही रहेगी.
(चीनी सेना 90 साल में कहां से कहां पहुंच गयी)
चीनी सेना कहां से कहां पहुंच गयी
चीन ने जो सैन्य ताकत हासिल की है, उससे किसी को भी रश्क हो सकता है. आइए एक नजर डालते हैं चीनी सेना के अतीत और वर्तमान पर.
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कब हुआ गठन?
चीन में 1 अगस्त 1927 को गृह युद्ध छिड़ा और यही दिन चीन की मौजूदा सेना का स्थापना दिवस माना जाता है. इस गृह युद्ध में एक तरफ चीन की राष्ट्रवादी ताकतें थीं तो दूसरी तरफ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी. गृह युद्ध में आखिरकार कम्युनिस्टों की जीत हुई और चीन पर उनका नियंत्रण हो गया. वहीं राष्ट्रवादियों को भागकर ताइवान जाना पड़ा.
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1989, बीजिंग
1949 में आधुनिक चीन की स्थापना के बाद चीनी सेना कई ऐतिहासिक घटनाओं की गवाह बनी जिनमें कोरियाई युद्ध, चीनी सांस्कृतिक क्रांति और चीन-वियतनाम युद्ध शामिल रहे. लेकिन 1989 में कुछ चीनी युवा अपनी ही व्यवस्था के खिलाफ उठ खड़े हुए. चीन की सेना ने जिस बर्बरता से इस लोकतंत्र समर्थक आंदोलन को कुचला, उसकी अब तक आलोचना होती है.
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भारत-चीन युद्ध
अपनी आजादी के 15 साल बाद ही भारत को 1962 में चीन के साथ युद्ध लड़ना पड़ा. एक महीने तक चले इस युद्ध में भारत को हार का कड़वा घूंट पीना पड़ा. युद्ध का मुख्य कारण सीमा विवाद था लेकिन इसके लिए कई वजहें भी जिम्मेदार थीं. इनमें एक कारण तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा को उनके अनुयायी के साथ भारत में शरण दिया जाना भी था.
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चीन और अमेरिका का टकराव
बीते 20 साल में चीन का किसी देश से कोई युद्ध तो नहीं हुआ है, लेकिन चीनी सेना लगातार सुर्खियों में रही है. 1 अप्रैल 2001 को चीन और अमेरिका के विमान एक दूसरे से टकरा गये. चीन ने इस घटना के लिए अमेरिका को जिम्मेदार करार दिया और इसे लेकर दोनों देशों के रिश्ते खासे तनावपूर्ण हो गये थे.
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हादसा
अप्रैल 2003 में चीनी नौसेना को एक बड़ी दुर्घटना का सामना करना पड़ा जिसमें उसके 70 अफसर मारे गये थे. ये लोग चीनी पनडुब्बी 361 में सवार थे. पानी के नीचे उनकी ट्रेनिंग हो रही थी कि तभी पनडुब्बी का सिस्टम फेल गया. सरकारी मीडिया के मुताबिक पनडु्ब्बी के डीजल इंजन ने सारी ऑक्सीजन इस्तेमाल कर ली जिसके चलते यह हादसा हुआ.
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सेना में भ्रष्टाचार
हाल के सालों में भ्रष्टाचार चीन की सेना के लिए एक बड़ी समस्या रही है. लेकिन जब से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सत्ता संभाली है, तब से देश में भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम चल रही है. इसी तहत सेना में उच्च पदों पर रह चुके शु सायहोऊ और कुओ बॉक्सीओंग के खिलाफ कार्रवाई हुई.
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नो बिजनेस
चीन की सेना में 1990 के दशक में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार देखने को मिला. 1985 में खर्चों में कटौती के लिए चीनी सेना को आर्थिक गतिविधियां चलाने की अनुमति दे दी गयी. लेकिन कुछ समय बाद इस फैसले के चलते न सिर्फ सेना की क्षमता प्रभावित हुई बल्कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार भी हुआ. इसीलिए 1998 में चीन ने सेना की आर्थिक गतिविधियों पर पूरी तरह रोक लगा दी.
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नए हथियार
तौर पर चीन के बड़ी ताकत बनने के साथ ही उसके रक्षा खर्च में भी बेतहाशा इजाफा हुआ. सेना का आधुनिकीकरण किया गया और उसे नये नये हथियारों से लैस किया गया. उसके जखीरे में अब तेज तर्रार लड़ाकू विमान, विमानवाहक पोत, टोही विमान, पनडुब्बियां और परमाणु मिसाइलों समेत हर तरह के हथियार हैं.
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गहराते मतभेद
चीन की ताकत बढ़ने के साथ ही पड़ोसी देशों से उसके विवाद भी गहराये हैं. जापान से जहां उसकी पारंपरिक प्रतिद्ंवद्विता है, वहीं जल सीमा को लेकर वियतनाम, फिलीफींस, इंडोनेशिया, मलेशिया, ताइवान और ब्रूनेई जैसे देशों उसके मतभेद गहरे हुए हैं. इसके अलावा भारत के साथ सैकड़ों किलोमीटर लंबी सीमा का विवाद भी अनसुलझा है.
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ताइवान से तनातनी
छह विमानवर्षक शियान एच-6 विमानों को जुलाई में ताइवान के एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन के पास उड़ता हुआ पाया गया. इससे ताइवान की सेना सतर्क हो गयी. चीन ताइवान को अपना एक अलग हुआ हिस्सा बताता है जिसे उसके मुताबिक एक दिन चीन में ही मिल जाना है. जबकि ताइवान खुद को एक अलग देश समझता है.
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विदेश में सैन्य अड्डा
चीन की सेना अब देश की सीमाओं से परे भी अपने पांव पसार रही है. अफ्रीकी देश जिबूती में चीन ने अपना पहला विदेशी सैन्य बेस बनाया है. रणनीतिक रूप से बेहद अहम लोकेशन वाले जिबूती में अमेरिका, जापान और फ्रांस के भी सैन्य अड्डे मौजूद हैं. चीन अफ्रीका में भारी पैमाने पर निवेश भी कर रहा है.
चीन की सेना दुनिया की कई बड़ी सेनाओं के साथ सैन्य अभ्यास करती है और इस दौरान वह अपने दमखम का परिचय देती है. जुलाई 2017 में रूस के साथ बाल्टिक सागर में सैन्य अभ्यास के लिए उसने तीन पोत भेजे. पहली बार चीन ने अपने पोत यूरोप भेजे हैं. बहुत से नाटो देश इस पर नजदीक से नजर बनाये हुए थे.