रोहिंग्या लोगों के लिए विस्थापन और दुख तकलीफों का सिलसिला दशकों से चल रहा है लेकिन अब ड्रोन और सैटेलाइट से ली गयी तस्वीरों से दुनिया को पता चल रहा है कि यह संकट कितना गंभीर है.
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रोहिंग्या लोगों के हालात को दुनिया के सामने रखने में आधुनिक तकनीक खासी मददगार साबित हुई है. ड्रोन और सैटेलाइट से ली गयी तस्वीरें बताती हैं कि म्यांमार से जान बचाकर बांग्लादेश पहुंचे आठ लाख से ज्यादा लोगों को तत्काल मदद की कितनी जरूरत है. यह तस्वीरें दिखाती हैं कि म्यांमार में उनके साथ क्या सलूक हो रहा है. रोहिंग्या लोगों के लिए इंसाफ की आवाज बुलंद करने में भी ये तस्वीरें काम आ सकती हैं.
संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी यूएनएचसीआर के प्रवक्ता आंद्रे माहेसिच कहते हैं, "हमें यह बताने में घंटों का समय लगेगा कि किस तरह बड़ी संख्या में शरणार्थी सीमा को पार कर रहे हैं और मौजूदा शरणार्थी शिविरों का आकार कैसे बढ़ता ही जा रहा है, लेकिन एक तस्वीर इस पूरे हालात को पलभर में बयान कर सकती है."
देखिए ड्रोन की फुटेज में बांग्लादेश-म्यांमार सीमा के हालात
म्यांमार-बांग्लादेश बॉर्डर पर लंबी कतार
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म्यांमार में अगस्त महीने से लगभग छह लाख रोहिंग्या लोग भागकर बांग्लादेश पहुंचे हैं. म्यांमार के रखाइन प्रांत में हिंसा और सेना के अभियान के कारण इन लोगों को वहां से भागना पड़ा है. यूएनएचसीआर संकट की गंभीरता की तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए ड्रोन कैमरों के जरिए खीचें गये फोटो और वीडियो का सहारा ले रहा है.
माहेसिच ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को भेजे एक ईमेल में बताया कि बताया कि यूएनएचसीआर शरणार्थी परिवारों की पहचान और गिनती करने के लिए सैटेलाइट्स भी इस्तेमाल कर रहा है, ताकि सबसे ज्यादा जरूरतमंद लोगों तक मदद को पहुंचाया जा सके.
बांग्लादेश में दाखिल हो रहे शरणार्थियों की ड्रोन फुटेज के कारण रोहिंग्या लोगों की मेडिकल देखभाल, पानी और खाने के लिए मिलने वाली रकम में बढ़ोत्तरी हुई है. यह बात 13 ब्रिटिश सहायता एजेंसियों के साझा संगठन डिजास्टर इमरजेंसी कमेटी (डीईसी) ने बतायी है.
अपहरण, बलात्कार झेलते, लावारिस होते रोहिंग्या बच्चे
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर चरमपंथियों और सेना ने जिस तरह जुल्म किया है उसे सुन कर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. सबसे ज्यादा सांसत में बच्चे हैं, जॉन ओवेन की इन तस्वीरों में देखिये.
तस्वीर: DW/J. Owens
गोली और चाकू मारा
अगस्त से लेकर अब तक 6 लाख से ज्यादा रोहिंग्या म्यांमार से भाग कर बांग्लादेश आए हैं. 10 साल के मोहम्मद बिलाल अपने गांव से भाग कर बांग्लादेश आए. वो कहते हैं, "सेना जिस दिन गांव आई, उसने गांव जला दिये, मेरी मां को गोली मार दी, वह भाग रही थी, मेरे पिता चल नहीं सकते थे, उन्हें चाकू मार दिया. मैंने अपनी आंखों से यह सब देखा."
तस्वीर: DW/J. Owens
तकलीफ पीछा नहीं छोड़ती
मोहम्मद की बहन नूर ने भी यह कत्लेआम देखा. वह और उसका भाई अब बांग्लादेश में लावारिस बच्चों के एक केंद्र में रहते हैं. यहां उसे नियमित खाना मिलता है और वह खेलती है. म्यांमार में उसे भूखा रहना पड़ता था. उसकी तुलना में अब हालात कुछ बेहतर हैं लेकिन उसने जो तकलीफ झेली वह उसे अब भी परेशान करती है. उसने कहा, "मुझे मेरे मां बाप, मेरा घर, मेरा देश याद आता है."
तस्वीर: DW/J. Owens
संकट की गहरी जड़ें
रोहिंग्या मुसलमानों का संकट पिछले दूसरे विश्व युद्ध के बाद करीब 70 सालों से चला आ रहा है. इस संकट में 2016 से अब तक 2000 लोगों की जान गई जिनमें 12 साल के रहमान की मां भी थी. रहमान कहते हैं, "उन्होंने मेरे घर जला दिये, मेरी मां बीमार थी इसलिए वह वहां से नहीं निकल सकी."
तस्वीर: DW/J. Owens
बच्चों को बचाओ
5 साल की दिलु आरा अपनी बहन रोजिना के साथ इस कैंप में आई. उसने अपने मां बाप को सेना के हाथों मरते देखा है. उसने बताया, "मैं रोये जा रही थी और गोलियां हमारे सिर के ऊपर से निकलीं, मैं किसी तरह बच गयी." अंतरराष्ट्रीय संगठन सेव द चिल्ड्रन कुटुपालोंग में उन बच्चों की मदद कर रहा है जो बिन मां बाप के यहां पहुंचते हैं. बांग्लादेश में रह रहे शरणार्थी बच्चों में 60 फीसदी रोहिंग्या हैं.
तस्वीर: DW/J. Owens
जानवरों की तरह शिकार
जादेद आलम उन सैकड़ों बच्चों में हैं जो कुटुपालोंग में बिना मां बाप के पहुंचे. उनकी खुशकिस्मती है कि उनकी चाची उनका ख्याल रखती हैं और बहुत अच्छे से. वह मंडी पाड़ा नाम के गांव में पले बढ़े और वह वहां फुटबॉल खेलते थे. सेना के हमले के बाद सब कुछ बदल गया. वो बताते हैं, "उन्होंने हमसे घर छोड़ने को कहा. जब मैं अपने मां बाप के साथ भाग रहा था उन्होंने उन्हें गोली मार दी, वो वहीं मर गये."
तस्वीर: DW/J. Owens
बच्चों का अपहरण
सभी परिवार के लोग इस संकट की वजह से ही नहीं बिछड़े. रहमान अली अपने 10 साल के बेटे जिफाद के गायब होने के बाद कई हफ्ते से इन कैंपों की खाक छान रहे हैं. कई सालों से बच्चों के अपहरण की अफवाहें कैम्प में उड़ती रही हैं और रहमान को डर है कि उनका बेटा भी मानव तस्करों के हाथ लग गया है. रहमान ने कहा, "ना मैं खा सकता हूं, ना सो सकता हूं, मैं इतना परेशान हूं कि लगता है पागल हो गया हूं."
तस्वीर: DW/J. Owens
"मेरा दिमाग ठीक नहीं है"
जब गोलीबारी शुरू हुई तो सोकिना खातून ने अपने बच्चों को बचाने के लिए जो भी मुमकिन था सब किया लेकिन वह 15 साल की यास्मिन और 20 साल की जमालिता को नहीं बचा सकीं, जो उस वक्त पड़ोस के गांव में थे. वो बताती हैं, "उनके दादा दादी के सामने उनका गला काट दिया गया, मैं तो सन्न रह गयी, मुझे दर्द महसूस नहीं होता. मेरा दिमाग ठीक नहीं है." सोकिना अपने 9 बच्चों को बचाने में कामयाब रही.
तस्वीर: DW/J. Owens
हमला, बलात्कार
यास्मिन को लगता है कि वह 15 साल की है लेकिन वह इससे कम उम्र की ही दिखती है. गांव में वह पत्थरों से खेलती थी और खेतों में भागा करती थी लेकिन अब उसे बस यही याद है कि म्यांमार की सेना ने हमला किया, उन्हें मारा, उनके पिता और भाइयों की हत्या की और सैनिकों के समूह ने बलात्कार किया. यास्मिन कहती है, "मैं अपने शरीर में बहुत तकलीफ महसूस करती हूं."
तस्वीर: DW/J. Owens
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मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले लोगों का कहना है कि सैटेलाइट से मिली तस्वीरें दोषियों को न्याय के कठघरे तक ले जाने में मदद मिलेगी. स्रब्रेनित्सा में 1995 के नरसंहार को साबित करने के लिए भी अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल ट्राइब्यूनल में सैलेटाइट तस्वीरें का सहारा लिया गया था. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सीमित संसाधनों के कारण अब भी तकनीक का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं हो रहा है.
मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच की ओर से जारी तस्वीरों में म्यांमार में 300 गावों को जलाते हुए दिखाया जा रहा है. शरणार्थियों के मोबाइल से ली गयी फुटेज और संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय में दी गयी उनकी गवाहियों की फुटेज सार्वजनिक की गयी है.
अमेरिका स्थित ह्यूमन राइट्स वॉच में सैटेलाइट इमेजरी एनेलिस्ट जॉस लियोंस कहते हैं, "हमें सैटेलाइस से मिली तस्वीरों में मलबे का मैदान दिखायी दिया है, जहां लोगों को मारा गया."
एके/ओएसजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी लगभग दस लाख है. लेकिन उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है. आइए जानते हैं, कौन हैं रोहिंग्या लोग.
तस्वीर: Reuters/M.P.Hossain
इनका कोई देश नहीं
रोहिंग्या लोगों का कोई देश नहीं है. यानी उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. रहते वो म्यामांर में हैं, लेकिन वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी मानता है.
तस्वीर: Reuters/D. Whiteside
सबसे प्रताड़ित लोग
म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों और सुरक्षा बलों पर अक्सर रोहिंग्या मुसलमानों को प्रताड़ित करने के आरोप लगते हैं. इन लोगों के पास कोई अधिकार नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र उन्हें दुनिया का सबसे प्रताड़ित जातीय समूह मानता है.
तस्वीर: Reuters/M.P.Hossain
आने जाने पर भी रोक
ये लोग न तो अपनी मर्जी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं और न ही अपनी मर्जी काम कर सकते हैं. जिस जगह वे रहते हैं, उसे कभी खाली करने को कह दिया जाता है. म्यांमार में इन लोगों की कहीं सुनवाई नहीं है.
तस्वीर: Reuters/M.P.Hossain
बंगाली
ये लोग दशकों से रखाइन प्रांत में रह रहे हैं, लेकिन वहां के बौद्ध लोग इन्हें "बंगाली" कह कर दुत्कारते हैं. ये लोग जो बोली बोलते हैं, वैसी दक्षिणपूर्व बांग्लादेश के चटगांव में बोली जाती है. रोहिंग्या लोग सुन्नी मुसलमान हैं.
तस्वीर: Getty Images/Afp/C. Archambault
जोखिम भरा सफर
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2012 में धार्मिक हिंसा का चक्र शुरू होने के बाद से लगभग एक लाख बीस हजार रोहिंग्या लोगों ने रखाइन छोड़ दिया है. इनमें से कई लोग समंदर में नौका डूबने से मारे गए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Y. Pruksarak
सामूहिक कब्रें
मलेशिया और थाइलैंड की सीमा के नजदीक रोहिंग्या लोगों की कई सामूहिक कब्रें मिली हैं. 2015 में जब कुछ सख्ती की गई तो नावों पर सवार हजारों रोहिंग्या कई दिनों तक समंदर में फंसे रहे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Ismail
इंसानी तस्करी
रोहिंग्या लोगों की मजबूरी का फायदा इंसानों की तस्करी करने वाले खूब उठाते हैं. ये लोग अपना सबकुछ इन्हें सौंप कर किसी सुरक्षित जगह के लिए अपनी जिंदगी जोखिम में डालने को मजबूर होते हैं.
तस्वीर: DW/C. Kapoor
बांग्लादेश में आसरा
म्यांमार से लगने वाले बांग्लादेश में लगभग आठ लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो म्यांमार से जान बचाकर वहां पहुंचे हैं. बांग्लादेश में हाल में रोहिंग्याओं को एक द्वीप पर बसाने की योजना बनाई है.
तस्वीर: Reuters/M.P.Hossain
आसान नहीं शरण
बांग्लादेश कुछ ही रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी के तौर पर मान्यता देता है. वो नाव के जरिए बांग्लादेश में घुसने की कोशिश करने वाले बहुत से रोहिंग्या लोगों को लौटा देता है.
तस्वीर: Reuters
दर ब दर
बाग्लादेश के अलावा रोहिंग्या लोग भारत, थाईलैंड, मलेशिया और चीन जैसे देशों का भी रुख कर रहे हैं.
तस्वीर: DW/C. Kapoor
सुरक्षा के लिए खतरा
म्यांमार में हुए हालिया कई हमलों में रोहिंग्या लोगों को शामिल बताया गया है. उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई के जवाब में सुरक्षा बलों का कहना है कि वो इस तरह के हमलों को रोकना चाहते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Y. Aung Thu
मानवाधिकार समूहों की अपील
मानवाधिकार समूह म्यांमार से अपील करते हैं कि वो रोहिंग्या लोगों को नागरिकता दे और उनका दमन रोका जाए.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Yulinnas
कानूनी अड़चन
म्यांमार में रोहिंग्या लोगों को एक जातीय समूह के तौर पर मान्यता नहीं है. इसकी एक वजह 1982 का वो कानून भी है जिसके अनुसार नागरिकता पाने के लिए किसी भी जातीय समूह को यह साबित करना है कि वो 1823 के पहले से म्यांमार में रह रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Win
आलोचना
रोहिंग्या लोगों की समस्या पर लगभग खामोश रहने के लिए म्यांमार में सत्ताधारी पार्टी की नेता आंग सान सू ची की अक्सर आलोचना होती है. माना जाता है कि वो इस मुद्दे पर ताकतवर सेना से नहीं टकराना चाहती हैं. सू ची हेग को अंतरराष्ट्रीय अदालत में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार से जुड़े आरोपों का सामना करने के लिए जाना पड़ा है.