अमेरिका और ईरान के बीच तनाव कम होने के फिलहाल कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं. अमेरिका ने दावा किया है कि उसने ईरान की मिसाइल नियंत्रण प्रणालियों के खिलाफ साइबर अटैक और एक जासूसी नेटवर्क एक्टिव किया है.
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तनाव के बावजूद अमेरिका और ईरान लगातार यही कह रहे हैं कि वे किसी भी युद्ध जैसी परिस्थिति से बचना चाहते हैं. लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि दोनों देशों केो बीच गंभीर तनाव अब भी बरकरार है. हाल में होरमुज जलडमरूमध्य के निकट टैंकरों पर हुए हमले और खाड़ी क्षेत्र में अमेरिकी ड्रोन को ईरान की ओर से निशाना बनाया जाने जैसी घटनाओं ने पूरे मामले को और भी गंभीर कर दिया है. रविवार को ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जावेद जरीफ ने कहा, "सैन्य हमलों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अमेरिका-निर्मित एमक्यू9 रीपर "स्पाई ड्रोन" ने देश के एयरस्पेस में 26 मई को सेंधमारी की थी."
विदेश मंत्री ने ट्विटर पर डाले अपने संदेश में एक नक्शे को भी पेश किया जिसमें एक ड्रोन ईरानी एयरस्पेस में दाखिल होता दिखाया गया है. हालांकि ईरान के सभी दावों को अमेरिका ने सिरे से नकार दिया है. अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पोए ने इसे "बच्चों जैसी" बात कह कर खारिज कर दिया. पोम्पोए ईरान मुद्दे पर बातचीत के लिए सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा पर हैं.
जरीफ के इस बयान से पहले ईरान ने दावा किया था कि बीते गुरुवार उसने होरमुज जलडमरूमध्य के निकट उसके एयरस्पेस में सेंधमारी करने वाले अमेरिकी निगरानी ड्रोन को मार गिराया था. हालांकि अमेरिका ने इस दावे को भी खारिज कर दिया था. वहीं अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने वरिष्ठ अधिकारियों के हवाले से लिखा था कि इस घटना के बाद गुरुवार रात अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ईरान पर हमले की अनुमति दे दी थी, लेकिन बाद में इस फैसले को वापस ले लिया.
तेल की लड़ाई में होरमुज जलडमरूमध्य की क्या जगह है
हाल ही में ओमान की खाड़ी में नॉर्वे और सिंगापुर के दो तेल टैंकरों पर संदिग्ध हमले की खबर आई. हमला होरमुज जलडमरूमध्य के नजदीक हुआ है. रणनीतिक रूप से होरमुज जलडमरूमध्य तेल व्यापार का सबसे अहम रास्ता माना जाता है.
होरमुज जलडमरूमध्य, फारस की खाड़ी में पड़ता है. यह ईरान और ओमान के जल क्षेत्र में आता है. सबसे संकरे बिंदु पर होरमुज की चौड़ाई महज 33 किलोमीटर है. दोनों दिशाओं में शिपिंग लेन सिर्फ तीन किलोमीटर चौड़ी है. यह ओमान की खाड़ी की ओर जाता है जहां से जहाज पूरी दुनिया में जाते हैं. यह पूरी दुनिया के तेल व्यापार के लिए बड़ा ट्रांजिट प्वाइंट है.
खबर आई कि 13 जून को तेल के दो तेल टैंकरों पर होरमुज जलडमरूमध्य के करीब संदिग्ध हमले हुए. सभी 44 नाविकों को अमेरिकी नौसेना की मदद से सुरक्षित निकाला गया. इस मामले ने एक बार फिर अमेरिका और ईरान के बीच तनाव को बढ़ा दिया.
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अमेरिका का आरोप
इस संदिग्ध हमले से पहले भी अमेरिका ने 12 मई को संयुक्त अरब अमीरात के फुजाइरा में समुद्री जहाजों के बीच चार टैंकरों पर हुए हमले के लिए ईरान को जिम्मेदार ठहराया था. हालांकि ईरान ने किसी भी हमले से साफ इनकार किया है.
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होरमुज क्यों अहम
समुद्री रास्तों के जरिए होने वाला तकरीबन एक तिहाई तेल कारोबार मतलब पूरी दुनिया का कुल 20 फीसदी कारोबार इस समुद्री मार्ग से होता है. सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत समेत चीन, भारत, जापान, और दक्षिण कोरिया में भी इसी मार्ग से तेल पहुंचाया जाता है. इसके साथ ही कतर से दुनिया भर में किए जाने वाला तरल प्राकृतिक गैस एक्सपोर्ट भी इसी मार्ग से होता है.
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आम आदमी पर असर
होरमुज जलडमरूमध्य के संकरे रास्ते में अगर कुछ भी घटता है तो वह दुनिया भर के ऊर्जा बाजार को प्रभावित करता है. किसी भी प्रकार का विवाद दुनिया भर की तेल कीमतों में तेजी ला सकता है. विश्लेषक मान रहे हैं खाड़ी क्षेत्रों में तनाव पैदा होता है तो कीमतों में लंबे वक्त तक बढ़ोतरी बनी रह सकती है साथ ही साथ आपूर्ति भी प्रभावित होगी.
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अब क्या होगा
भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि अमेरिका और ईरान की सरकारें इस मामले पर कैसी प्रतिक्रिया देगी. अमेरिका ने हाल में इस क्षेत्र में अपने नौसेना बल की तैनाती में इजाफा किया है. हालांकि अमेरिकी नौसेना का पांचवां बेड़ा पहले से ही मध्यपूर्व में तैनात है. अमेरिकी नौसेना का मुख्यालय बहरीन का मनामा है.
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ईरान का विकल्प
ईरान ने परमाणु समझौते पर नई रूपरेखा बनाने के लिए यूरोप को सात जुलाई तक का समय दिया है. अमेरिकी प्रतिबंधों से आर्थिक रूप से परेशान ईरान ने मई 2019 में एलान किया था कि वह संवर्धित यूरेनियम को देश के बाहर नहीं भेजेगा, बल्कि देश में ही यूरेनियम का और उच्च संवर्धन करेगा. परमाणु बम बनाने के लिए उच्च संवर्धित यूरेनियम की जरूरत होती है. वहीं ईरान होरमुज से होने वाले तेल कारोबार को बाधित कर सकता है.
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बॉल्टन ने ईरान को आगाह किया कि वह अंतिम वक्त में रद्द किए गए निर्णय की गलत व्याख्या ना करे. बॉल्टन ने कहा, "ना ही ईरान और ना ही अमेरिका से बैर रखने वाले किसी भी देश को अमेरिका और उसके विवेक को कमजोर समझने की गलती करनी चाहिए."
अमेरिकी मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि वॉशिंगटन ने ईरानी मिसाइल नियंत्रण प्रणालियों के खिलाफ साइबर हमले और गिराए गए ड्रोन के जवाब में एक जासूसी नेटवर्क को सक्रिय किया है. मीडिया रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि ये साइबर हमले मिसाइल लॉन्च को नियंत्रित करने वाले कंप्यूटरों को खराब कर देंगे और जासूसी नेटवर्क खाड़ी क्षेत्र में जहाजों की आवाजाही पर निगरानी रखेगा.
आधिकारिक तौर पर ईरान ने अमेरिकी दावे पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. हालांकि ईरान की समाचार एजेंसी फार्स ने इसे एक झूठ बताया है. साथ ही कहा कि व्हाइट हाउस ड्रोन गिरने के बाद अपनी प्रतिष्ठा को बचाने की कोशिश कर रहा है.
वहीं शनिवार का दिन अपने सलाहकारों के साथ बिताने के बाद ट्रंप ने कहा कि अगर ईरान परमाणु हथियार त्याग देता है तो वह ईरान के साथ बातचीत को तैयार है. ट्रंप ने कहा, "अगर वह इस पर सहमत होते हैं तो वह एक अमीर देश हो जाएंगे. वह खुश रहेंगे और मैं उनका सबसे अच्छा दोस्त बन जाऊंगा." वहीं ईरान ने किसी भी तरह के परमाणु हथियारों से इनकार किया है साथ ही कहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम नागिरक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए है.
शिया बहुल ईरान में कभी ऐसे शाह का शासन था जिन्हें जनता अमेरिका की कठपुतली मानने लगी. एक मौलवी ने इस आक्रोश का फायदा उठाया और 1979 में इस्लामिक क्रांति कर डाली.
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आक्रोश के बीज
ईरान की इस्लामी क्रांति के बीज कई मायनों में 1963 में पड़े. तत्कालीन शाह, मोहम्मद रजा शाह पहलवी ने श्वेत क्रांति का एलान किया. ये ऐसे आर्थिक और सामाजिक सुधार थे, जो ईरान के परंपरागत समाज को पश्चिमी मूल्यों की तरफ ले जाते थे. इनका विरोध होने लगा.
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शाह के शाही ख्बाव
1973 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दामों में भारी गिरावट आई. इससे ईरान की आमदनी चरमरा गई. लोग संकट में फंसे थे और शाह श्वेत क्रांति के सफल होने के ख्बावों में. इसी दौरान मौलवियों के एक धड़े ने श्वेत क्रांति को इस्लाम पर चोट करार दिया.
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लोग जुटते गए
सितंबर 1978 में ईरान में मोहम्मद रजा शाह पहलवी के खिलाफ प्रदर्शन भड़क उठे. धीरे धीरे मौलवियों के समूह ने प्रदर्शनों का नेतृत्व संभाल लिया. मौलवियों को फ्रांस में रह रहे अयातोल्लाह खोमैनी से निर्देश मिल रहे थे.
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अमेरिका की कठपुतली
लोगों में मोहम्मद रजा शाह की नीतियों के प्रति बहुत आक्रोश था. आलोचक कहते थे कि शाह अमेरिका के इशारों पर नाच रहे थे. लोग इससे खीझ गए थे. शाह ने आक्रोश को शांत करने के बजाए प्रदर्शकारियों को दबाने के लिए मार्शल लॉ लागू कर दिया.
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खूनी संघर्ष
जनवरी 1979 आते आते पूरे ईरान में हालात बिल्कुल गृह युद्ध जैसे हो गए. प्रदर्शनकारी, निर्वासन में रह रहे अयातोल्लाह खोमैनी की वापसी की मांग कर रहे थे. उस समय सेना उन पर गोलियां चला रही थी.
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भाग गए शाह
हालात बेकाबू हो गए. शाह को परिवार समेत ईरान से भागना पड़ा. लेकिन भागने से पहले शाह विपक्षी नेता शापोर बख्तियार को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त कर गए.
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खोमैनी की वापसी
शापोर बख्तियार ने अयातोल्ला खोमैनी को ईरान वापस लौटने की इजाजत दे दी. लेकिन उन्होंने यह शर्त रखी कि प्रधानमंत्री वही रहेंगे.
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लौट आए खोमैनी
बख्तियार से ग्रीन सिग्नल मिलते ही अयातोल्लाह खोमैनी ने 14 साल बाद फ्रांस के निर्वासन से देश वापस लौटने का एलान किया. यह तस्वीर 11 फरवरी 1979 को छपे कायहान अखबार की है.
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तेहरान में स्वागत
12 फरवरी 1979 को खोमैनी एयर फ्रांस की फ्लाइट में सवार होकर पेरिस से तेहरान के लिए निकले. विमान जब तेहरान में लैंड हुआ तो क्रांतिकारी धड़े के नेताओं ने खोमैनी का जोरदार स्वागत किया.
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खोमैनी का सीधा दखल
तेहरान में लोगों को संबोधित करते हुए खोमैनी ने कहा, "मैं सरकार का गठन करुंगा." तेहरान के बेहशत ए जाहरा में उनका भाषण को सुनने के लिए एक लाख से ज्यादा लोग जमा हुए थे.
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समानान्तर सत्ता
खोमैनी ने लोगों से बख्तियार सरकार के खिलाफ प्रदर्शन जारी रखने की अपील की. इसी बीच 16 फरवरी को खोमैनी ने मेहदी बाजारगान को अंतरिम सरकार का नया प्रधानमंत्री घोषित कर दिया.
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प्रदर्शन का इस्लामीकरण
ईरान में दो प्रधानमंत्री हो गए. एक बख्तियार और दूसरे बाजारगान. बाजारगान के पीछे खोमैनी के साथ साथ बड़ा जन समर्थन था. धीरे धीरे खोमैनी ने प्रदर्शन को धार्मिक रंग दे दिया.
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सेना में फूट
इसी बीच खबर आई कि ईरान की वायुसेना खोमैनी के समर्थन में उतर गई है. 19 फरवरी 1979 को कायहान अखबार की इस तस्वीर में वायु सैनिक खोमैनी को सलाम करते दिख रहे हैं.
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आपस में भिड़े सैनिक
20 फरवरी को तेहरान में एक निर्णायक घटना हुई. शाह के प्रति वफादारी दिखाने वाले इंपीरियल गार्ड के सैनिकों ने एयरफोर्स डिफेंस ट्रूप्स पर हमला कर दिया.
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ढह गया पुराना ढांचा
इसके बाद मार्च तक हिंसक झड़पें चलती रही. धीरे धीरे सेना भी हथियारबंद विद्रोहियों के साथ इमाम खोमैनी के समर्थन में झुकती चली गई.
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इस्लामिक ईरान के सर्वेसर्वा
अप्रैल 1979 में एक जनमत संग्रह के बाद इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान का एलान किया गया. सरकार चुनी गई और खोमैनी को देश का सर्वोच्च धार्मिक नेता घोषित किया गया. खोमैनी के उत्तराधिकारी अयातोल्लाह खमेनेई आज भी इसी भूमिका में हर सरकार से ऊपर हैं.