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ड्रोन हमले से किसका फायदा

१६ नवम्बर २०१३

आए दिन पाकिस्तान सरकार अमेरिकी ड्रोन हमलों की निंदा करती है लेकिन देश के कबायली इलाके में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इसका समर्थन करते हैं.

तस्वीर: picture alliance/Photoshot

अफगान सीमा से लगते पाकिस्तान के कबायली इलाके अमेरिकी ड्रोन अभियान की आंच 2004 से ही सह रहे हैं. सैकड़ों मिसाइल हमलों ने अल कायदा और तालिबान के संदिग्ध आतंकवादियों को निशाना बनाया है. पाकिस्तान इन हमलों को अपनी संप्रभुता पर चोट बताता है और आतंकवाद से जंग में नुकसानदेह भी. मानवाधिकारों की बात करने वाले और पाकिस्तान के लोग इन हमलों में आम लोगों की मौत के खिलाफ आवाज उठाते हैं.

हमलों के पक्ष में

लेकिन ऐसी भी रिपोर्टें हैं कि कबायली इलाकों में कुछ लोग ड्रोन हमलों का समर्थन करते हैं. इन लोगों पर अपहरण, यातना और हत्या का खतरा है. आतंकवादी ऐसी किसी आवाज को सहन नहीं करते और कई बार यातना की तस्वीरें और वीडियो भी बनाते हैं. दक्षिणी वजीरिस्तान के कबायली इलाके में रहने वाले गुल वली वजी (बदला हुआ नाम) ने बताया, "जो कोई भी ड्रोन हमले का समर्थन करेगा वो उसे मारने की कोशिश करेंगे. वो कहेंगे कि यह शख्स अमेरिका के साथ है, यहूदियों का दोस्त है. वे उसका गला काट देंगे या फिर गोली मार देंगे. वे उसके झूठे कबूलनामे की फिल्म बनाते हैं, फिर उसे मार देते हैं और फिर उसका शव सड़क पर डीवीडी के साथ छोड़ देते हैं. उसके साथ एक पर्ची भी रखी होती है जिसमें लिखा रहता है कि जो कोई अमेरिका या ड्रोन का समर्थन करेगा उसका यही हाल होगा. मैने ऐसा दर्जनों बार देखा है."

"अमेरिकी जासूसों" को निशाना बनाने के लिए आतंकवादियों की एक खास टुकड़ी है जिसका नाम है इत्तेहाद ए मुजाहिदीन खोरसान. यह लोग अकसर मरने वाले के आखिरी पलों की डीवीडी बना कर शव के साथ रखते हैं.

लेकिन सोचने वाली बात है कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के दशक भर से चले आ रहे कार्यक्रम के बाद पाकिस्तान दुनिया में सबसे ज्यादा ड्रोन हमलों वाला देश बन गया. धूल मिट्टी में सना, उजड़ा और टूटा फूटा दिखता गरीब इलाका आकार में मुश्किल से बेल्जियम के बराबर है.

हमलों में सैकड़ों की मौत

10 दिन पहले रिमोट से चलने वाली अमेरिकी मिसाइल ने पाकिस्तानी तालिबान के संदिग्ध नेता हकीमुल्लाह महसूद को मार दिया. विदेशी पत्रकारों और सहायता एजेंसियों को इन इलाकों से दूर रखा गया है. इस वजह से ड्रोन हमलों में मारे गए लोगों की तादाद और उनकी पहचान की पुष्टि कर पाना मुमकिन नहीं है. लंदन के ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म का अनुमान है कि पाकिस्तान में अब तक 378 ड्रोन हमलों में 2528 से 3644 के बीच लोग मारे गए हैं. इनमें आम लोगों की तादाद 416 से 948 के बीच हो सकती है. 2010 में न्यू अमेरिका फाउंडेशन नाम के एक संगठन ने सर्वे के जरिये पता लगाया था कि स्थानीय स्तर पर हर पांच लोगों में कम से कम एक शख्स ड्रोन हमले का समर्थन करता है. जानकार भी ऐसे लोगों की तादाद बढ़ने के संकेत देख रहे हैं जो इन हमलों का समर्थन करते हैं.

संघीय प्रशासन वाला कबायली इलाका फाटा सैकड़ों की तादाद में अफगानिस्तान से भाग कर आए तालिबान और अल कायदा से जुड़े चरमपंथियों का गढ़ बन गया है. यह लोग अफगानिस्तान पर हमले के बाद वहां से भाग कर यहां छिप गए और अब सीमा पार जाकर हमलों को अंजाम देते रहते हैं. कबायली नेताओं ने शुरुआत में तो इनका स्वागत किया लेकिन 2009 से वो उन "टैक्स" को लेकर इनका विरोध करने लगे जो आतंकवादियों ने उन पर लगाए. इन आतंकवादियों के साथ असुरक्षा भी आई और उनकी मौजूदगी का विरोध करने वाले बुजुर्गों की हत्या ने भी स्थानीय लोगों के मन में उनके प्रति नाराजगी भरी है.

सेना की रणनीति

उत्तरी वजीरिस्तान में कबायली पत्रकारों के संगठन के पूर्व प्रमुख रहे सफदर हयात खान दावर का कहना है, इलाके में चरमपंथ की समस्या के बीच मिसाइलों को सबसे बेहतर उपाय माना गया. पेशावर से एक इंटरव्यू में सफदर ने कहा, "यहां दो ही विकल्प हैं, या तो सेना का अभियान या फिर ड्रोन हमले. सेना के विकल्प को मैं पसंद नहीं करता क्योंकि सेना आतंकवादियों को नहीं, आम लोगों को मारती है. आप लोगों से चुनने को कहेंगे तो वे ड्रोन हमलों को ही चुनेंगे."

2009 में सेना ने दक्षिणी वजीरिस्तान को आतंकवादियों के कब्जे से छुड़ाने के लिए एक बड़ा अभियान चलाया था. इसमें 30 हजार से ज्यादा सैनिक शामिल हुए थे. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इस लड़ाई में दो लाख से ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा. ट्राइबल डेवलपमेंट नेटवर्क के निदेशक निजाम डावर का कहना है, "सेना के अभियान में जो लोग विस्थापित हुए, जिन लोगों को तालिबान और आतंकवादी प्रताड़ित करते हैं और जिन लोगों के परिवार के सदस्यों को अमेरिकी जासूस कह उनके सिर काट दिए जाते हैं, भला ये लोग ड्रोन हमलों का विरोध क्यों करेंगे."

ड्रोन के पक्ष में बोलने के बाद उत्तरी वजीरिस्तान में खुद दावर के परिवारवालों के पास आतंकवादी आए थे. ड्रोन समर्थक तो मानते हैं कि चरमपंथियों को शरण देने वाले कबायली नेताओं के परिवार वाले अगर अमेरिकी हमलों में मारे जाते हैं तो इसमें दोष उनका है. पख्तूनख्वाह मिली अवामी पार्टी के अरबाब मुजीद उर रहमान कहते हैं, "हमारा ख्याल है कि यह उनकी गलतियों के कारण है. जिम्मेदारी उन परिवारों की है जिन्होंने आतंकवादियों को पनाह दी. जो शख्स आतंकवादी गतिविधियों से नहीं जुड़ा उसे ड्रोन से डरने की जरूरत नहीं है." कबायली इलाकों के बाजारों में, आतंकवादी पर्चे बांटते हैं जिसमें लोगों से कहा जाता है कि वो अपने परिवारों में "धोखेबाजों" की निंदा करें.

एनआर/एमजी(एएफपी)

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