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तंबाकू कंपनियों से दूरी कितनी कारगर

शिवप्रसाद जोशी
२८ दिसम्बर २०२०

तंबाकू उद्योग के दखल पर अंकुश लगाने की दिशा में सरकार ने स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के लिए आचार संहिता बनायी है. लेकिन देर से आयी इस नीति के दायरे में दूसरे संबद्ध मंत्रालय नहीं हैं. फिर क्या ये नीति सफल हो सकेगी.

Rauchen in Indien
तस्वीर: DW

तंबाकू को कैंसर, फेफड़ों और दिल की बीमारी के लिए गंभीर जोखिम माना जाता है. भारत में इसे कई गंभीर बीमारियों का कारण माना जाता है और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यह देश में हर साल करीब 13 लाख लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार है. भारत दुनिया भर में तंबाकू का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है. एक सर्वे के अनुसार यहां की करीब 30 प्रतिशत वयस्क आबादी तंबाकू का सेवन करती है. तंबाकू के सेवन से होने वाली बीमारियों के कारण भारत को अरबों का नुकसान हो रहा है. इसलिए भारत सरकार तंबाकू उद्योग से जुड़ी आचार संहिता बनाना स्वागत योग्य है.

लेकिन भारत सरकार ने तंबाकू उद्योग से जुड़ा जो कोड ऑफ कंडक्ट निर्धारित किया है वो सिर्फ स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अधिकारियों पर लागू होगा. वे तंबाकू  उद्योग या उनके प्रतिनिधियों के साथ किसी किस्म का व्यवसायिक, सार्वजनिक, आधिकारिक गठजोड़ नहीं करेंगे. यहां तक कि उनके कार्यक्रमों में न बतौर मेहमान शामिल होंगे, न ही उनके प्रायोजित किसी आयोजन का हिस्सा बनेंगे. देर से ही सही ये पहल जरूरी थी लेकिन ये साफ नहीं है कि इसके दायरे में सिर्फ स्वास्थ्य विभाग ही क्यों हैं? तंबाकू उद्योग के संपर्क तो वाणिज्य, वित्त और कृषि जैसे अन्य विभागों और मंत्रालयों तक फैले हुए हैं. देश में तंबाकू उद्योग को नियंत्रित करने वाला तंबाकू बोर्ड भी केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत आता है.

भारत में बीड़ी का उत्पादन स्थानीय तौर पर भी होता हैतस्वीर: picture-alliance/dpa

आचार संहिता बनाने में लग गए दस साल

चर्चित पत्रकार और शोधकर्ता अनु भुयान के मुताबिक 2010 में बंगलुरू की एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था इंस्टीच्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ और उसके विशेषज्ञ उपेन्द्र भोजानी ने तंबाकू कंपनियों के एक तत्कालीन ग्लोबल इवेंट में सरकारी भागीदारी का मुद्दा उठाते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका लगायी थी. इस पर सरकार को न सिर्फ इवेंट से हाथ खींचने पड़े बल्कि कोर्ट में अंडरटेकिंग भी देनी पड़ी कि सरकारी कामकाज में तंबाकू उद्योग का दखल और प्रभाव रोकने के लिए एक आचार संहिता लाएगी. लेकिन इसे आने में दस साल लग गए और आयी भी तो सिर्फ स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए. ये नीति एक तरह से खोदा पहाड़ निकला चूहा वाली कहावत को ही चरितार्थ करती दिखती है. आखिर इतना बड़ा उद्योग चलाने वाली शक्तियां क्या एक विभाग या एक मंत्रालय की मोहताज हैं?

वैसे भारत सरकार ने स्वास्थ्य मंत्रालय की आचार संहिता विश्व स्वास्थ्य संगठन के फ्रेमवर्क कंवेंशन ऑन टोबैको कंट्रोल (एफसीटीसी) को ध्यान में रखते हुए तैयार की है. भारत भी 181 देशों के साथ इस संधि में शामिल हैं. जानकारों का कहना है कि नयी आचार संहिता एक अच्छी शुरुआत है लेकिन इसका दायरा बढ़ाया जाना चाहिए और उद्योग जगत से होने वाली सरकारी प्रतिनिधियों की कथित अवश्यंभावी मुलाकातों की मंशा और स्वरूप जनहित में स्पष्ट और सार्वजनिक होना चाहिए.

रैंक में सुधार की चाहत के लिए

आचार संबंधी नीति बनाने के पीछे, वैश्विक तंबाकू उद्योग हस्तक्षेप सूचकांक में अपनी रैंक सुधारने की चाहत भी दिखती है. नवंबर में जारी हुए इस वर्ष के सूचकांक में भारत को 100 में से 61 अंक मिले हैं. 2019 में 69 अंक थे. जितने ज्यादा अंक होंगे उसका अर्थ है सरकारी कामकाज में तंबाकू उद्योग का उतना ज्यादा दखल. यानी एक लिहाज से देखें तो भारत के 61 नंबर इशारा करते हैं कि यहां सरकारी मशीनरी में तंबाकू उद्योग और उसकी लॉबी की अच्छीखासी आवाजाही है. भारत सरकार के प्रयासों की सराहना भी की गयी है. विशेषकर 2019 में ई-सिगरेट को भारत में बैन करने के कानून पर तंबाकू उद्योग की प्रतिक्रिया और दबावों के आगे न झुकने को लेकर.

इस तरह से बनाई जाती है बीड़ीतस्वीर: Getty Images/AFP/C. Khanna

सूचकांक में ऐसे कई उदाहरण भी दिए गए हैं जिनमें तंबाकू उद्योग के अधिकारियों के साथ भारत सरकार के अधिकारियों की मुलाकातें और बैठकें हुई हैं या सरकार का उद्योग से कुछ न कुछ गठजोड़ दिखा है. मिसाल के लिए सिगरेट-सिगार से लेकर अगरबत्ती-धूप तक बनाने वाली, विशालकाय आईटीसी लिमिटेड और अन्य तंबाकू कंपनियों में जीवन बीमा निगम के शेयर हैं. पूर्व सरकारी उच्चाधिकारी तंबाकू कंपनियों के बोर्डों में बतौर स्वतंत्र निदेशक मौजूद हैं जैसे पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव, पूर्व राजदूत मीरा शंकर आदि जिनका उल्लेख आईटीसी की वेबसाइट में भी देखा जा सकता है. बीड़ी पर जीएसटी जैसे करों की छूट के रूप में सरकार द्वारा तंबाकू उद्योग को हासिल उदारताओं का उल्लेख भी इंडेक्स में किया गया है. 

एक तरफ मौत दूसरी तरफ कारोबार

 इंडेक्स की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि पूरी दनिया में हर साल 80 लाख मौतों के लिए जिम्मेदार तंबाकू उद्योग ने कोविड-19 के दौरान भारत सहित पूरी दुनिया में बड़े पैमाने पर डोनेशन दिया, पीपीई किट से लेकर चिकित्सा उपकरण और हाईजीन उत्पाद तक बांटे. अब सीएसआर के नाम पर होने वाली कार्रवाइयों में आचार संहिता का पालन कैसे सुनिश्चित कराया जाएगा, सोचने की बात है.

तंबाकू-जनित मौतों और बीमारियों के आंकड़ों और उसके निषेध की कोशिशों के बावजूद ये उद्योग कामयाब है. केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में जिन 23 भारतीय उद्योगों का आकलन किया गया है उनमें तंबाकू उद्योग, अधिकतम वृद्धि दर के मामले में सातवें नंबर पर है. फरवरी 2020 में तंबाकू के फैक्ट्री आउटपुट में साढ़े पांच प्रतिशत की बढ़त पायी गयी है. अकेले तंबाकू उद्योग की वृद्धि कुल औद्योगिक उत्पादन की साढ़े चार प्रतिशत की ग्रोथ से अधिक है. भारतीय तंबाकू करीब 100 देशों में निर्यात किया जाता है. भारत आज दुनिया में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा तंबाकू उत्पादक और निर्यातक देश है.

चेतावनी के बावजूद बिक्री में कमी नहींतस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Mukherjee

अंतर्विरोधों के बीच पाबंदी की जद्दोजहद

तंबाकू के कारोबार और जन-स्वास्थ्य में हमेशा टकराव रहा है. उद्योग के पास अपार संपदा और शक्तिशाली ढांचा है और सरकारी नियमों, अंतरराष्ट्रीय दोतरफा निवेश संधियों, कॉरपोरेट संपत्ति अधिकारों और स्वायत्तता की आड़ में तंबाकू निषेध की आवाजों को दबाने की कोशिशों के आरोप उस पर रहे हैं. तमाम कानूनों, अदालती आदेशों और सरकार की समय समय पर हिदायतों के बावजूद इस मामले में धूम्रपान विरोधी संगठनों के जागरूकता अभियान भी नाकाम से रह जाते हैं. मिसाल के लिए सिगरेट बीड़ी गुटखा आदि के पैकेटों पर चेतावनी की भाषा और प्रस्तुति में बहुत से बदलाव किए गए हैं, उन्हें गंभीर से गंभीर बनाने की कोशिश की गयी है, उनके दाम भी कमोबेश हर साल बढ़ते ही रहे हैं, सरकार द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान की पाबंदी और दंड आदि की व्यवस्थाएं भी हैं, लेकिन तंबाकू उद्योग के व्यापार और लाभ में कोई निर्णायक या उल्लेखनीय गिरावट नहीं देखी गयी है. ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे के एक अनुमान के मुताबिक देश के साढ़े 27 करोड़ यानी 15 साल से ज्यादा उम्र के साढ़े 28 प्रतिशत लोगों को ध्रूमपान की लत है.

सरकार में भी तंबाकू को लेकर अंतर्विरोध दिखते हैं. कृषि मंत्रालय के पास तंबाकू किसानों को अन्य फसल या वैकल्पिक जीवनयापन के लिए योजनाएं हैं और तंबाकू के अवैध कारोबार पर राजस्व विभाग नियंत्रण रखता है. वहीं वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाले तंबाकू बोर्ड का लाइन ऑफ ऐक्शन अलग है. परस्परविरोधी प्राथमिकताओं को देखते हुए सरकार इसका कोई सर्वमान्य हल निकालना होगा. हर समाधान और हर समझौते के केंद्र में तंबाकू किसानों, मजदूरों, छोटे कर्मचारियों और उनके परिवारों का मुकम्मल पुनर्वास हर कीमत पर शामिल होना चाहिए. तंबाकू के मरीजों और मृतकों के परिजनों पर भी ध्यान देने की जरूरत है, जिनमें से अधिकांश के पास इलाज के लिए पैसा नहीं होता.

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