कुछ कंपनियों ने इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट को सिगरेट छोड़ने का सबसे अच्छा तरीका बताया. लेकिन एक शोध के मुताबिक नतीजे ठीक उल्टे हैं.
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मजाक में या स्टाइल के लिए दोस्तों के साथ एक कश खींचना, कई किशोर धूम्रपान की दुनिया में ऐसे ही आते हैं. दोस्ताना माहौल या जिज्ञासा के लिए खींचे जाने वाले कश धीरे धीरे लत में बदलने लगते हैं. और फिर एक समय ऐसा आता है जब तमाम कोशिशों के बावजूद भी तंबाकू की लत नहीं छूटती.
कुछ साल पहले ई-सिगरेट बनाने वाली कंपनियों ने दावा किया कि उनके पास इस लत को छुड़ाने का इलाज है. वो बाजार में ई-सिगेरट लेकर आईं, जिसमें तम्बाकू नहीं होता, बल्कि निकोटीन मिला खास तरल पदार्थ होता है जो बटन दबाने पर भाप बनता है. धूम्रपान करने वाले इसी भाप को खींचते हैं.
कम नुकसानदेह या लत छुड़ाने वाली मशीन कहकर ई-सिगरेट का खूब प्रचार किया गया. लेकिन एक ताजा शोध बताता है कि ई-सिगरेट के कश लेने वाले ज्यादातर किशोर साल भर के भीतर ही असली सिगरेट पीने लगते हैं. अमेरिका में 2,300 स्कूली बच्चों से बातचीत करने के बाद यह रिपोर्ट आई है.
शोध के तहत रिसर्चरों ने बच्चों से पूछा कि क्या उन्होंने कभी ई-सिगरेट पी है? करीब आधे बच्चों ने हां में जवाब दिया. एक साल बाद रिसर्चर फिर उन बच्चों के पास गए और पता चला कि ई-सिगरेट पी चुके ज्यादातर बच्चों ने साल भर के भीतर असली सिगरेट पीनी शुरू कर दी. 2011 में अमेरिका के 1.5 फीसदी स्कूली छात्र ई-सिगरेट पीते थे. 2014 में यह संख्या बढ़कर 13.4 फीसदी हो गई. दुनिया भर के कई देशों में इस वक्त ई-सिगरेट को लेकर बहस चल रही है.
अमेरिका के टोबैको कंट्रोल जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, "ई-सिगरेट का इस्तेमाल करने वाले ज्यादातर किशोर सिगरेट पीने लगते हैं. इस नतीजे और अन्य तथ्यों से पता चलता है कि किशोरों की ई-सिगरेट तक पहुंच का संबंध सार्वजनिक स्वास्थ पर पड़ता है."
लेकिन कुछ विशेषज्ञों ने शोध की आलोचना भी है. साइंस मीडिया सेंटर में लिखी गई एक कमेंट्री में सवाल उठाया गया है, क्या एक का दूसरे से संबंध है? क्या ई-सिगरेट का इस्तेमाल करने वाले किशोर, वाकई में वे लोग होते हैं जो पहले से ही धूम्रपान के शौकीन होते हैं.
ई सिगरेटः 9 जरूरी बातें
धुआं तो है लेकिन आग नहीं. यह कैसी सिगरेट. अरे इससे दुर्गंध भी नहीं आती. लेकिन सेहत पर इससे क्या असर पड़ता है. चलिए ई सिगरेट को समझते हैं.
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नई नवेली
सेहत और ई सिगरेट को लेकर कई बार बहस हो चुकी है. क्या यह सिगरेट का सेहतमंद विकल्प है. और खास तौर पर इन पर किस तरह का कानून लागू किया जाना चाहिए.
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कैसे काम करती है
ई सिगरेट में भाप बनाने वाला एक यंत्र और एक कंटेनर होता है, जिसमें निकोटीन फ्लेवर वाला द्रव भरा जाता है. जब इसे एक सिरे से खींचा जाता है, तो द्रव भाप बनता है. इस भाप को सांस के साथ अंदर खींचा जा सकता है. ई सिगरेट बैट्री से चलती है और बैट्री यूएसबी ड्राइव से चार्ज की जा सकती है.
जीवन में मसाला
सबसे ज्यादा लोकप्रिय तंबाकू और तंबाकू मेंथॉल फ्लेवर हैं. इसके अलावा सेब और स्ट्रॉबेरी जैसे फलों के फ्लेवर हैं. अलग अलग द्रव में अलग अलग मात्रा में निकोटीन होता है.
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सिर्फ सिगरेट ही नहीं
अब तो इलेक्ट्रॉनिक सिगार और पाइप भी आने लगे हैं. सिगरेट का मिनी वर्जन भी बाजार में आ चुका है. एक सिगरेट की कीमत 10 यूरो (करीब 800 रुपये) के आस पास होती है.
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तंबाकू नहीं
स्मोकिंग की परिभाषा "जलते हुए पौधे या तंबाकू के साथ सांस खींचना" होता है. लेकिन ई सिगरेट में कुछ जलता नहीं है. इसलिए कहा जाता है कि यह कम नुकसानदेह होती है. लेकिन चूंकि द्रव में निकोटीन होता है, इसलिए ई सिगरेट की भी लत लग सकती है.
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कानून पर बहस
जर्मनी और यूरोप के दूसरे देशों में इस मुद्दे पर गंभीर बहस चल रही है कि क्या ई सिगरेट को स्मोकिंग वाले कानून में रखा जाए. अगर उन्हें दूसरे सिगरेटों की तरह ही देखा जाए, तो सार्वजनिक जगहों पर उन पर भी पाबंदी लगनी चाहिए. लेकिन तकनीकी तौर पर ऐसा नहीं है.
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अंदर में क्या है
ई सिगरेट के द्रव यानि लिक्विड में बहुत से केमिकल होते हैं. इनमें प्रोपेलीन ग्लाइकोल भी है, जो रंगहीन और लगभग गंधहीन यौगिक पदार्थ है. इसका इस्तेमाल दवा कारोबार और टूथपेस्ट में भी होता है.
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असर का पता नहीं
इससे सेहत पर होने वाले असर का पता नहीं. पता नहीं कि यह ज्यादा नुकसान करती है या सामान्य सिगरेट. हां, यह पता है कि सिगरेट छोड़ देना सेहत के लिए अच्छा है.