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तकनीक टटोलता लापता विमान

२८ मार्च २०१४

मलेशिया के लापता विमान को खोजने में तकनीक जितनी मदद कर रही है, तकनीक की ही वजह से दिक्कतें भी हो रही हैं. नई और पुरानी तकनीक ने पूरे मामले को जटिल बना दिया है.

तस्वीर: Reuters

ट्रैकिंग और संचार उपकरणों का सीमित दायरा है, जिसकी वजह से विमान देखते देखते एयर ट्रैफिक कंट्रोल की पहुंच से बाहर हो गया. लेकिन उपग्रहों की आधुनिक तकनीक ने इस बात की उम्मीद जरूर बंधाई है कि यह राज अनसुलझा नहीं रह पाएगा.

विमान के लापता होने ने यह भी बताया कि उपग्रह वास्तव में सब कुछ नहीं देख रहे होते हैं, मोबाइल फोन को हमेशा ट्रैक नहीं किया जा सकता है और विमान के महत्वपूर्ण आंकड़े सिर्फ विमान के अंदर ही रिकॉर्ड होते हैं, वे धरती पर स्थित किसी भी जगह लाइव प्रसारित नहीं होते. इतना ही नहीं, दुनिया ने जाना कि किस तरह विमान के ट्रैकिंग सिस्टम को विमान के अंदर से ही रोका जा सकता है. ऐसी धारणा बन रही है कि किसी ने कॉकपिट में घुस कर विमान को दूसरे रास्ते पर धकेला होगा.

अमेरिका में उड्डयन मामलों के जानकार रिचर्ड अबुलाफिया का कहना है, "तकनीक से एक विमान का पता लग सकता है लेकिन उसके अंदर क्या हुआ होगा उस बारे में सिर्फ मानवीय बुद्धिमत्ता ही बता सकती है."

हालांकि एमएच 370 विमान अब भी नहीं मिल पाया है लेकिन एक हफ्ते पहले उम्मीद की किरण पैदा हुई कि यह किस जगह क्रैश हुआ होगा. अगर तकनीक नहीं होती, तो यह भी पता नहीं चल पाता. उड्डयन परामर्श कंपनी लीहम के स्कॉट हैमिल्टन का कहना है, "अगर तकनीक नहीं होती, तो कोई सोच भी नहीं सकता था कि कहां तलाश करना है." असल में तो नई और पुरानी तकनीक ने फायदा भी पहुंचाया और बाधा भी.

ट्रांसपोंडर के कोड

कॉकपिट उपकरणों में ऐसे संकेत होते हैं, जो कोड की भाषा में जमीन तक संदेश पहुंचा सकते हैं. ट्रांसपोंडर अगर "7500" का संदेश भेजता है, तो इसका मतलब कि विमान का अपहरण हो गया है, "7600" का अर्थ हुआ कि रेडियो ने काम करना बंद कर दिया है और "7700" संदेश का मतलब होता है कि इमरजेंसी है.

कैसे काम करता है रडार सिस्टमतस्वीर: Getty Images

मलेशिया के विमान के ट्रांसपोंडर ने क्वालालंपुर से उड़ान भरने के 40 मिनट बाद ही संदेश भेजना बंद कर दिया. हालांकि 239 यात्रियों के साथ विमान कई घंटे तक उड़ान भरता रहा लेकिन कोई संदेश नहीं भेजा गया. आम तौर पर कमर्शियल पायलट कभी भी ट्रांसपोंडर बंद नहीं करता लेकिन इमरजेंसी की हालत में ऐसा किया जा सकता है, जैसे बिजली की शॉर्ट सर्किट या आग की हालत में. ऐसे में आग के खतरे को देखते हुए पायलट ऐसा कर सकता है.

रडार

दूसरे विश्व युद्ध से ठीक पहले रडार का आविष्कार हुआ. यह रेडियो की तरह ही काम करता है. धरती पर लगाया गया एक एंटीना इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें भेजता है. ये तरंगें विमान से टकराती हैं और फौरन वापस एंटीना को इसकी सूचना देती हैं. चूंकि ये तरंगें एक निर्धारित रास्ते पर जाती हैं और इनकी गति का भी पता होता है, लिहाजा विमान की स्थिति और ऊंचाई की गणना की जा सकती है.

लेकिन कोई भी रडार सिर्फ 400 किलोमीटर की दूरी तक विमान की खबर रख सकता है. इसमें भी तकनीक और मौसम जैसे कारक महत्वपूर्ण हैं. मलेशियाई विमान के मामले में सेना के एक रडार ने लगभग तीन घंटे बाद एक विमान को उलटी दिशा में जाते हुए पकड़ा. लेकिन ट्रांसपोंडर से कोई संदेश नहीं मिला और इस वजह से इसे आगे ट्रैक नहीं किया जा सका.

आम तौर पर अगर विमान रडार की पकड़ से बाहर होता है, तो पायलट हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो और सैटेलाइट टेक्स्ट से अपनी सूचना देता रहता है.

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सैटेलाइट ट्रैकिंग

कुछ जेट विमान लगातार मुख्यालय के संपर्क में रहने के लिए सैटेलाइट का इस्तेमाल करते हैं. मलेशिया के विमान ने अमेरिकी विमान कंपनी बोइंग से इसकी सुविधा नहीं ली थी. लापता विमान अमेरिका में बना बोइंग 777 था. दरअसल यह सुविधा बहुत महंगी है. दुनिया भर में हर रोज 80,000 उड़ानें भरी जाती हैं और एक मिनट में एक विमान को सैटेलाइट से डाटा भेजने पर सात से 13 डॉलर का खर्च आता है. सस्ती उड़ानों के दौर में यह संभव नहीं है. अंतरराष्ट्रीय आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल दुनिया भर के विमानों ने प्रति यात्री 4.13 डॉलर का मुनाफा कमाया, जबकि उससे पहले यानि 2012 में प्रति व्यक्ति 2.05 डॉलर का.

मानवीय बुद्धिमत्ता सबसे अहमतस्वीर: reuters

आधुनिक उपकरण

विमान का संपर्क कटने के बावजूद इसने हर घंटे एक ब्रिटिश कंपनी इनमारसैट को "पिंग" भेजा. इसका अर्थ था कि विमान उस वक्त भी उड़ान भर रहा था. इनमारसैट को जो आंकड़े मिले, उसके आधार पर गणना की गई कि विमान कहां उड़ान भर रहा होगा. इस तरह की तकनीक पहले कभी इस्तेमाल नहीं की गई थी. इन्हीं के आधार पर मलेशिया के प्रधानमंत्री नजीब रज्जाक ने सोमवार को एलान किया कि विमान हादसे का शिकार हो गया होगा.

सैटेलाइट चित्र

निजी और कई सरकारी उपग्रहों ने अब उन तस्वीरों को कैद किया है, जो विमान का मलबा हो सकता है. यह जगह ऑस्ट्रेलिया के पर्थ शहर से करीब 2500 किलोमीटर दूर दराज इलाके में है. इन तस्वीरों के बाद खोजकर्ताओं को मदद मिल रही है.

मोबाइल फोन

आधुनिक युग के फोन इतने बेहतर हो गए हैं कि उन्हें आसानी से ट्रैक किया जा सकता है. यात्रियों के पास निश्चित तौर पर आधुनिक स्मार्टफोन होंगे. उनमें जीपीएस भी होता है. लेकिन उनकी ट्रैकिंग तभी संभव है, जब वे किसी टावर के पास हों. अगर कोई विमान 11 किलोमीटर की ऊंचाई या सागर की गहराई में हो तो ये फोन टावर के संपर्क में नहीं आ पाते हैं.

कई रिश्तेदारों का दावा है कि मुसाफिरों के फोन बाद में भी बज रहे थे. ऐसा हो सकता है, जब कोई फोन नेटवर्क की तलाश न कर पाए.

टोही विमान

लापता विमान को तलाशने के लिए कई खोजी विमानों को लगाया गया है. लेकिन सबसे नजदीकी एयरपोर्ट से खोज की जगह तक आने जाने में आठ घंटे लगते हैं. इसकी वजह से खोज के काम में पूरा वक्त नहीं मिल पाता है. विमान में इसके अलावा सिर्फ दो घंटे का ईंधन बचता है.

इन विमानों में रडार और हाई रिजॉल्यूशन कैमरा लगा है, जो छोटी छोटी चीजों का पता लगा सकता है. इसके अलावा दूरबीन से भी खोज का काम हो रहा है. लेकिन तेज हवाओं और खराब मौसम से खोज पर असर पड़ रहा है.

एयर फ्रांस का ब्लैक बॉक्सतस्वीर: picture alliance / dpa

ब्लैक बॉक्स

विमान में दो ब्लैक बॉक्स होते हैं. हालांकि इनका रंग ऑरेंज होता है. एक में कॉकपिट के अंदर की बातें रिकॉर्ड होती हैं. दूसरे में विमान के अहम आंकड़े जैसे गति और ऊंचाई रिकॉर्ड होती है.

ब्लैक बॉक्स को ऐसे डिजाइन किया जाता है कि आग से इस पर कोई असर न पड़े. उनमें ऐसा उपकरण भी होता है, जो "पिंग" के रूप में संदेश भेजता रहे. अमेरिकी नौसेना ने एक पिंगर उपकरण भेजा है, जो ब्लैक बॉक्स की तलाश में मदद कर सकता है. यह 20,000 फीट की दूरी से इसका पता लगा सकता है.

वैसे ब्लैक बॉक्स की बैटरी 30 दिन ही चलती है लेकिन इसके डाटा को बरसों बाद भी इस्तेमाल किया जा सकता है. एयर फ्रांस का एक विमान 2009 में हादसे का शिकार हुआ था और उसका ब्लैक बॉक्स 23 महीने बाद मिला.

लेकिन मलेशियाई विमान के साथ एक मुश्किल है. वॉयस डाटा रिकॉर्डर सिर्फ आखिरी दो घंटे की रिकॉर्डिंग रखता है और यह विमान लापता होने के बाद शायद सात घंटे तक उड़ता रहा.

एजेए/एमजी (एपी)

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