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तकरार के बाद ओबामा से मिले जियाबाओ

१९ नवम्बर २०११

हफ्ते भर से एशिया प्रशांत का दौरा कर रहे अमेरिकी राष्ट्रपति बार बार चीन की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाते रहे और आसियान सम्मेलन के दौरान चीनी प्रधानमंत्री के साथ अलग से हुई मुलाकात में भी इसी पर चर्चा हुई.

तस्वीर: dapd

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ के बीच मुलाकात और बातचीत का सिलसिला तो शुक्रवार की रात आधिकारिक भोज के दौरान ही शुरू हो गया. बातचीत की पेचीदगी बढ़ी तो चीनी प्रधानमंत्री ने और समय मांग लिया. तब दोनों एक बार फिर शनिवार को मिले. एशिया प्रशांत क्षेत्र की समुद्री सुरक्षा और चीन की आर्थिक नीतियां, इन दोनों को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति के मन में उलझन है. अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार टॉम डॉनिलोन ने बताया कि ओबामा ने युआन की कीमत कम रखने और कारोबारी विवादों पर अपनी चिंता चीन के प्रधानमंत्री के सामने रखी. पिछले हफ्ते हवाई में चीनी राष्ट्रपति से मुलाकात में भी इन सब के बारे में ओबामा ने चर्चा की थी.

राष्ट्रपति ओबामा ने दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रीय विवादों का भी जिक्र किया जिस पर अमेरिका आसियान के सम्मेलन में आम चर्चा कराना चाहता है. लेकिन चीन का कहना है कि वह इस मामले को सिर्फ उन देशों के साथ अलग अलग निबटाना चाहता है जिनका इससे संबंध है. टॉम डोनिलॉन ने बताया, "राष्ट्रपति ने इस बारे में संकेत दिए हैं कि वह पूर्वी एशियाई देशों के अनुरोध पर इस मामले में आगे बातचीत करेंगे." डोनिलॉन के मुताबिक कई दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों ने राष्ट्रपति ओबामा के साथ समुद्री सुरक्षा के बारे में अपनी चिंता जताई है. डोनिलॉन ने कहा, "अमेरिका की मौजूदगी इस इलाके में एक प्रमुख बात है, अमेरिकी प्रशांत क्षेत्र में एक ताकत है, एक कारोबारी ताकत है, एक समुद्री ताकत है. यहां मुक्त रूप से आवाजाही हो, स्वतंत्र रूप से कारोबार, विवादों का शांतिपूर्ण तरीके से निपटारा हो इसमें अमेरिका की दिलचस्पी है, लेकिन हमारी यहां कोई दावेदारी नहीं है, हम दावेदारी के मामलों में पक्ष नहीं लेते."

तस्वीर: dapd

वेन जियाबाओ और ओबामा की मुलाकात जिस दिन हुई उसी दिन चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने एक कमेंट्री जारी की थी और इसमें कहा गया था कि अमेरिकी खुद को प्रशांत क्षेत्र में एक ताकत के रूप में देखता है और वह ऐसा ही बना रहेगा. कमेंट्री में यह भी लिखा गया, "अमेरिकी कदम ने इलाके में आशंकाओं को मजबूत कर दिया है. कई देश इस बात से हैरत में हैं कि भविष्य में अमेरिका यहां किस तरह का नेतृत्व हासिल करने की इच्छा रखता है. अगर अमेरिका अपनी शीतयुद्ध वाली मानसिकता में एशियाई देशों के साथ हठधर्मिता दिखाता रहेगा तो यह तय है कि इलाके में इससे नफरत बढ़ेगी."

एशिया प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी कदमों को अपने प्रभाव क्षेत्र में अतिक्रमण के रूप में देखता है और वेन जियाबाओ ने 'बाहरी ताकतों' को क्षेत्रीय विवादों से दूर रहने के बारे में शुक्रवार को चेतावनी भी दी. चीन पूरे दक्षिणी चीन सागर पर अपना दावा करता है जिस पर ताइवान का भी दावा है. चार दक्षिण एशियाई देश इस सागर के थोड़े थोड़े हिस्से पर अपनी दावेदारी जता रहे हैं. वियतनाम और फिलीपींस का आरोप है कि चीनी सेनाएं इस इलाके में अपने आक्रमण बढ़ा रही हैं. समुद्री रास्ते से होने वाले कारोबार का एक तिहाई और तेल, गैस के कारोबार का आधा हिस्सा इसी इलाके से होता है.

तस्वीर: dapd

इसके अलावा माना जाता है कि समुद्र तल की गहराई में यहां पेट्रोलियम के बड़े भंडार हैं. अमेरिका का कहना है कि कारोबार के समुद्री रास्तों की सुरक्षा एक गंभीर मसला है जिस पर व्यापक चर्चा होनी चाहिए और शनिवार को हुआ सम्मेलन भी विवादों के निपटारे के लिए कोई ट्राइब्यूनल नहीं है. अमेरिकी राष्ट्रपति पहली बार इस सम्मेलन में शामिल हुए हैं. समस्या यह है कि चीन जो 10 देशों के इस गुट में सबसे ताकतवर है वह कमजोर देशों के साथ इस मुद्दे पर सामूहिक बातचीत की बजाए अलग अलग बाद करना चाहता है.

ओबामा ने यह एलान करके चीन की चिढ़ा दिया है कि ऑस्ट्रेलिया में 2500 अमेरिकी मरीन्स की तैनाती की जाएगी. इसके साथ ही चीन को साथ लिए बगैर प्रशांत क्षेत्र में कारोबार के लिए साझेदारी पर भी बात हो रही है. चीन म्यांमार में सुधार की अमेरिकी कोशिशों से भी चिंतित है जो उसका पड़ोसी और लंबे समय से अच्छा दोस्त है.

रिपोर्टः एएफपी/एन रंजन

संपादनः वी कुमार

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