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तख्ता पलट की खबरों में फंसा पाकिस्तान

२३ दिसम्बर २०११

अमेरिकी हमले और एक मेमो के बाद राजनीतिक, सैनिक और कूटनीतिक भंवर में फंसा पाकिस्तान एक बार फिर उथल पुथल की ओर बढ़ रहा है. न्यायपालिका से लेकर सेना तक को सफाई देनी पड़ रही है क्योंकि नागरिक सरकार पर भरोसा टूटता जा रहा है.

तस्वीर: AP/DW-Montage

बीमारी की वजह से राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के देश से बाहर जाने और लौट कर राजधानी न आकर कराची चले जाने से सारे समीकरण अजीब मोड़ पर पहुंच गए हैं. अंदरखाने खबर चल रही है कि पाकिस्तान की ताकतवर सेना ने जरदारी पर से भरोसा खो दिया है और उन्हें हटाने का मन बना चुकी है. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट को भी दखल देते हुए कहना पड़ रहा है कि कोई तख्तापलट नहीं होने वाला है. कई कई बार चुनी हुई सरकार को उलट देने वाली पाकिस्तानी सेना भी इस बार दबाव में दिख रही है और उसे भी सफाई देनी पड़ रही है.

तस्वीर: dapd

पाकिस्तान के शायद सबसे ताकतवर व्यक्ति जनरल अशफाक कियानी ने शुक्रवार को उन रिपोर्टों को खारिज किया कि सेना पाकिस्तान में तख्ता पलटने वाली है. सेना की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया, "वह (जनरल कियानी) तख्ता पलटने की किसी साजिश का पुरजोर खंडन करते हैं. वह इन्हें गुमराह करने वाली बात बताते हैं ताकि मुख्य मुद्दे से ध्यान भटकाया जा सके."

जस्टिस चौधरी का दिलासा

जनरल कियानी से कुछ ही घंटे पहले पाकिस्तान की न्यायपालिका को भी इस भंवर में कूदना पड़ा. चीफ जस्टिस इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी ने भी तख्ता पलट की खबरों को गलत बताया, "इत्मिनान रखें. इस देश में तख्ता पलट का सवाल ही पैदा नहीं हो सकता क्योंकि लोगों को न्यायपालिका पर विश्वास हो चुका है." जस्टिस चौधरी की वजह से ही पिछले सैनिक शासक जनरल परवेज मुशर्रफ को आखिरी दिनों में संकट का सामना करना पड़ा था, जिसके बाद उन्हें सत्ता छोड़नी पड़ी थी.

खुद को लोकतांत्रिक देश बताने वाले पाकिस्तान की सरकार इस मामले में कुछ नहीं बोल पा रही है और उसके नियंत्रण वाली इकाइयों को बयान देना पड़ रहा है. अखबारों में खुलेआम सेना और सरकार की दरार की खबरें छप रही हैं. एक प्रमुख अखबार में संपादकीय लिखा गया, "पाकिस्तान में एक अजीब सी स्थिति बन रही है. सेना और सरकार के बीच झगड़े की स्थिति, जो बेहद खतरनाक हो सकती है."

मेमोगेट बना मुद्दा

पूरा मामला अल कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद शुरू हुआ. पाकिस्तान के कारोबारी मंसूर एजाज ने 10 अक्तूबर को एक कॉलम में लिखा कि उन्हें पाकिस्तान की सरकार का एक मेमो अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन पहुंचाने का जिम्मा दिया गया. इस मेमो में कहा गया था कि बिन लादेन के मारे जाने के बाद हो सकता है कि सेना तख्ता पलट की कोशिश करे और ऐसे में सरकार को अमेरिकी मदद की दरकार हो सकती है. इस विवाद को मेमोगेट के नाम से जाना जा रहा है.

तस्वीर: AP

एजाज ने दावा किया कि अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत हुसैन हक्कानी ने उन्हें यह काम सौंपा. हक्कानी इस बात से मुकरते हैं, हालांकि इसी मुद्दे पर उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. इस घटना के सामने आने के बाद सेना और जरदारी के नेतृत्व वाली सरकार में मूक युद्ध शुरू हो गया. इसी बीच जरदारी को दिल का दौरा पड़ा और वह इलाज के लिए दुबई चले गए. वहां से लौटे तो राजधानी आने की बजाय अपने शहर कराची चले गए और अभी भी काम काज पर नहीं लौटे हैं.

जरदारी पर भरोसा नहीं

इन घटनाओं के बाद रिपोर्टें आने लगीं कि पाकिस्तानी सेना का भरोसा अलोकप्रिय राष्ट्रपति जरदारी पर से पूरी तरह उठ गया और वह उन्हें सत्ता में नहीं देखना चाहती है. पाकिस्तान के मशहूर अखबार डॉन ने लिखा है, "अभी यह कहना जल्दबाजी होगा कि गैर संवैधानिक तरीकों से सरकार को हटाने की कोशिश हो रही है लेकिन इस बात को याद करना अहम है कि पहले भी कई बार देश को बचाने की खातिर सेना ने सरकार को उखाड़ फेंका है."

पाकिस्तान का अस्तित्व 1947 में सामने आया, जब अंग्रेजों ने उसे भारत के काट कर अलग कर दिया. तब से 64 साल के इतिहास में तीन बार सैनिक तख्ता पलट हो चुका है और ज्यादातर समय पाकिस्तान लोकतांत्रिक नहीं, बल्कि सैनिक शासन के अधीन रहा है. हालांकि ऐसे वक्त में जब पाकिस्तान की फौज पहले से ही जनता की रुसवाई झेल रही है, वह तख्ता पलट कर उनका और गुस्सा नहीं लेना चाहेगी.

फौज की फजीहत

ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान में मारे जाने के बाद आम नागरिक सेना से नाराज थी क्योंकि अमेरिकी फौज ने पाकिस्तान को बिना बताए उनके घर में घुस कर बिन लादेन को मारा था. लेकिन हाल में अमेरिकी हमले में 24 पाकिस्तानी सैनिकों के मारे जाने के बाद जनता एक बार फिर फौज के साथ सहानुभूति जता रही है. पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया सेवा आईएसआई का रिश्ता अमेरिका के साथ खराब हो चुका है. लेकिन पाकिस्तान को अपना देश चलाने के लिए बहुत हद तक अमेरिकी आर्थिक मदद की जरूरत होती है.

तस्वीर: picture alliance/dpa

हमले के सिलसिले में भी पाकिस्तानी सरकार फंसती दिख रही है. अमेरिका ने दावा किया है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं दी गई थी कि वे जिस जगह पर हमला करने जा रहे हैं, वहां कोई पाकिस्तानी फौजी है. हालांकि पाकिस्तान इस थ्योरी को नकार रहा है. पाकिस्तानी सरकार एक तरफ अमेरिका से और दूसरी तरफ अपनी ही सेना से घिर चुकी है और जानकारों का मानना है कि राष्ट्रपति जरदारी की वजह से मामला इतना खराब हो गया है.

जरदारी पाकिस्तान की पहली प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के विधुर हैं और पिछले चुनाव में उन्हें सहानुभूति के तौर पर काफी वोट मिले. लेकिन राष्ट्रपति के सांकेतिक पद पर होते हुए भी वह सरकार पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए बदनाम हुए, जिससे पाकिस्तान सरकार की कई बार किरकिरी हो चुकी है. बताया जाता है कि पाकिस्तान की सेना उन पर किसी और किस्म से पद छोड़ने का दबाव बना सकती है और ऐसी भी रिपोर्टें आ रही हैं कि 27 दिसंबर को बेनजीर भुट्टो की बरसी के बाद जरदारी पाकिस्तान से बाहर चले जाएं.

देश में अगला आम चुनाव 2013 में होने वाला है, जिसमें पूर्व सैनिक शासक परवेज मुशर्रफ भी हिस्सा लेने का एलान कर चुके हैं.

रिपोर्टः एएफपी, रॉयटर्स/ए जमाल

संपादनः महेश झा

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