कई महीनों के नाकाम प्रयासों के बाद ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने अंतरिक्ष में एक सैन्य उपग्रह प्रक्षेपित किया है. अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु डील खत्म होने के बाद जारी तनातनी में यह ईरान का ताजा पैंतरा है.
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ईरान के ताकतवर सुरक्षा बल रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने बताया है कि महीनों की कोशिशों के बाद बुधवार को एक सैन्य उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्षा में प्रक्षेपित कर दिया है. फारस की खाड़ी में अमेरिकी युद्धपोत को लेकर पैदा तनाव के एक हफ्ते बाद ईरान ने यह उपग्रह छोड़ा है.
गार्ड्स की सेपाहन्यूज वेबसाइट ने लिखा, "इस्लामी गणराज्य ईरान के पहले सैटेलाइट को सफलतापूर्वक इस्लामी रिवोल्यूशनरी गार्ड कोर ने कक्षा में स्थापित कर दिया है." वेबसाइट ने आगे लिखा है, "यह कदम एक महान सफलता होगा और इस्लामी ईरान के लिए अंतरिक्ष के क्षेत्र में नया घटनाक्रम होगा."
गार्ड्स ने कहा है कि पृथ्वी के धरातल से 425 किलोमीटर की ऊंचाई पर उपग्रह एक कक्षा में पहुंच गया है. दो चरणों वाला यह लॉन्च ईरान के केंद्रीय रेगिस्तान में हुआ. यह पहला ऐसा सैटेलाइट है जिसे ईरान ने अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया है.
अमेरिका ने ईरान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए उसके विशेष सैन्य बल रेवोल्यूशनरी गार्ड को आतंकवादी संगठन घोषित किया है. चलिए जानते हैं कितने ताकतवर हैं ईरान के रेवोल्यूशनरी गार्ड्स.
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स्थापना
इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कोर की स्थापना ईरान में 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद हुई. इसका काम ईरान को आंतरिक और बाहरी खतरों से बचाना है.
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कितने फौजी
रेवोल्यूशनरी गार्ड सवा लाख लोगों की फौज है, जिसमें से लगभग 90 हजार सक्रिय सदस्य हैं. इस एलिट सैन्य बल के पास विदेशों में अभियान चलाने वाले कुद्स दस्ते भी हैं.
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समांतर सेना
इस्लामी क्रांति के बाद रेवोल्यूशनरी गार्ड को ईरान की सेना के समांतर एक संगठन के तौर पर खड़ा किया गया था क्योंकि उस वक्त सेना में बहुत से लोग सत्ता से बेदखल किए गए ईरानी शाह के वफादार माने जाते थे.
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विस्तार
शुरू में रेवोल्यूशनरी गार्ड ने एक घरेलू बल के तौर पर काम किया, लेकिन 1980 में जब सद्दाम हुसैन ने ईरान पर हमला किया तो इस सैन्य बल की ताकत में तेजी से विस्तार हुआ.
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सैन्य ताकत
हमले के वक्त ईरान के सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह रोहल्लाह खोमेनी ने रेवोल्यूशनरी गार्ड को उनकी खुद की जमीन, नौसेना और वायुसेनाएं दे दीं. इससे उसकी ताकत बहुत बढ़ गई.
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राज्य के भीतर राज्य
कई आलोचक कहते हैं कि रेवोल्यूशनरी गार्ड्स अब ईरान में 'राज्य के भीतर एक और राज्य' बन गए हैं. उनके पास कई तरह की कानूनी, राजनीतिक और धार्मिक शक्तियां हैं.
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जबावदेही
वैसे ईरान के संविधान में रेवोल्यूशनरी गार्ड्स की भूमिका का उल्लेख किया गया है और उनकी जवाबदेही सिर्फ ईरान के सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह अली खमेनेई के प्रति है.
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मिसाइल कार्यक्रम
रेवोल्यूशरी गार्ड की निगरानी में ही ईरान का बैलेस्टिक मिसाइल कार्यक्रम चलता है. पश्चिमी देशों के साथ परमाणु डील हो जाने के बाद भी उसने कई परीक्षण किए हैं.
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इस्राएल से दुश्मनी
रेवोल्यूशरी गार्ड की मिसाइलें इस्राएल तक पहुंच सकती हैं और मार्च 2016 में उसने जो बैलेस्टिक मिसाइल टेस्ट की, उस पर हिब्रू में लिखा था, "इस्राएल को साफ कर दिया जाना चाहिए."
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आर्थिक ताकत
ईरान की अर्थव्यवस्था में भी रेवोल्यूशनरी गार्ड्स का बहुत दखल है और उन पर स्मगलिंग के भी आरोप लगते हैं. ईरान के मौजूदा उदारवादी राष्ट्रपति हसन रोहानी रेवोल्यूशनरी गार्ड्स की ताकत कम करना चाहते हैं.
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ताकतवर कुद्स
विदेशों में अभियान चलाने वाले रेवोल्यूशनरी गार्ड के कुद्स दस्ते में 2000 से 5000 लोग शामिल हैं और इसकी स्थापना 1989 में ईरान के सर्वोच्च नेता खोमेनेई ने की थी.
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कौन हैं सहयोगी
मेजर जनरल कासेम सोलेमानी के नेतृत्व में कुद्स लेबनान में हिज्बोल्लाह और गाजा पट्टी में हमास के साथ मिल कर काम कर रहा है. इन दोनों संगठनों को ईरान की सरकार अपना सहयोगी मानती है.
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आतंकवादी संगठन
अमेरिका ईरान को आतंकवाद को प्रायोजित करने वाला देश मानता है. इसी के तहत रेवोल्यूशनरी गार्ड्स को उसने आतंकवादी संगठन घोषित किया है. ईरान का कहना है कि वह इस कदम का अपने तरीके से जबाव देगा.
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गार्ड्स का कहना है कि सैटेलाइट को गास्ड यानी "संदेशवाहक" नाम के एक सैटेलाइट कैरियर के जरिए छोड़ा गया है. यह ऐसा सिस्टम है जिसके बारे में अब तक नहीं सुना गया है. ईरान के इस दावे की अभी स्वतंत्र स्रोतों से पुष्टि नहीं हो पाई है और गार्ड्स की तरफ से भी इसकी पुष्टि के लिए कोई तस्वीर या फुटेज जारी नहीं की गई है.
सैटेलाइट भेजने की लगातार कोशिशें
पिछले महीनों में ईरान ने अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजने की कई बार कोशिशें कीं. इनमें सबसे ताजा कोशिश फरवरी के मध्य में की गई थी जब जफर1 नाम के संचार उपग्रह को प्रक्षेपित करने की कोशिश नाकाम रही. 2019 में भी दो बार की गई ऐसी कोशिशें नाकाम रहीं. इसके अलावा लॉन्चपैड रॉकेट में धमाका हो गया और इमाम खोमैनी स्पेस सेंटर में आग भी लग गई जिसमें तीन रिसर्चर मारे गए. इसी सेंटर से ईरान का अंतरिक्ष कार्यक्रम चलता है.
सैटेलाइट लॉन्च को ईरान और अमेरिका के बीच जारी तनाव की ताजा कड़ी माना जा रहा है. हाल के सालों में मध्य पूर्व के ताकतवर देश ईरान ने एक एक कर उन सभी पाबंदियों को तोड़ दिया है जो 2015 में हुए परमाणु समझौते के तहत उसके लिए निर्धारित की गई थीं. 2018 में अमेरिका का राष्ट्रपति बनते ही डॉनल्ड ट्रंप ने परमाणु करार से बाहर निकलते हुए ईरान पर सभी प्रतिबंध बहाल कर दिए. वैसे ईरान संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षकों को अब भी अपने परमाणु स्थलों पर जाने दे रहा है.
दुनिया भर में इस वक्त नौ देशों के पास करीब 13,865 परमाणु बम हैं. हाल के सालों में परमाणु हथियारों की संख्या घटी है. चलिए देखते हैं कि किस देश के पास कितने परमाणु हथियार हैं.
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रूस
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिप्री) के मुताबिक परमाणु हथियारों की संख्या के मामले में रूस सबसे आगे है. 1949 में पहली बार परमाणु परीक्षण करने वाले रूस के पास 6,500 परमाणु हथियार हैं.
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अमेरिका
1945 में पहली बार परमाणु परीक्षण के कुछ ही समय बाद अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर परमाणु हमला किया. सिप्री के मुताबिक अमेरिका के पास आज भी 6,185 परमाणु बम हैं.
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फ्रांस
यूरोप में सबसे ज्यादा परमाणु हथियार फ्रांस के पास हैं. उसके एटम बमों की संख्या 300 बताई जाती है. परमाणु बम बनाने की तकनीक तक फ्रांस 1960 में पहुंचा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J.-L. Brunet
चीन
एशिया में आर्थिक महाशक्ति और दुनिया की सबसे बड़ी थल सेना वाले चीन की असली सैन्य ताकत के बारे में बहुत पुख्ता जानकारी नहीं है. लेकिन अनुमान है कि चीन के पास 290 परमाणु बम हैं. चीन ने 1964 में पहला परमाणु परीक्षण किया.
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ब्रिटेन
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य ब्रिटेन ने पहला परमाणु परीक्षण 1952 में किया. अमेरिका के करीबी सहयोगी ब्रिटेन के पास 200 परमाणु हथियार हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Kaminski
पाकिस्तान
अपने पड़ोसी भारत से तीन बार जंग लड़ चुके पाकिस्तान के पास 150-160 परमाणु हथियार हैं. 1998 में परमाणु बम विकसित करने के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच कोई युद्ध नहीं हुआ है. विशेषज्ञों को डर है कि अगर अब इन दोनों पड़ोसियों के बीच लड़ाई हुई तो वह परमाणु युद्ध में बदल सकती है.
तस्वीर: picture-alliance/AP
भारत
1974 में पहली बार और 1998 में दूसरी बार परमाणु परीक्षण करने वाले भारत के पास 130-140 एटम बम हैं. चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद के बावजूद भारत ने वादा किया है कि वो पहले परमाणु हमला नहीं करेगा. साथ ही भारत का कहना है कि वह परमाणु हथियार विहीन देशों के खिलाफ भी इनका प्रयोग नहीं करेगा.
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इस्राएल
1948 से 1973 तक तीन बार अरब देशों से युद्ध लड़ चुके इस्राएल के पास 80 से 90 नाभिकीय हथियार हैं. इस्राएल के परमाणु कार्यक्रम के बारे में बहुत कम जानकारी सार्वजनिक है.
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उत्तर कोरिया
पाकिस्तान के वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान की मदद से परमाणु तकनीक हासिल करने वाले उत्तर कोरिया के पास 20 से 30 परमाणु हथियार हैं. तमाम प्रतिबंधों के बावजूद 2006 में उत्तर कोरिया ने परमाणु परीक्षण किया.
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संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के खिलाफ
अमेरिका का कहना है कि ऐसा कोई भी सैटेलाइट लॉन्च संयुक्त राष्ट्र के उन प्रस्तावों के विपरीत है जिनमें ईरान से परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम बैलेस्टिक मिसाइल से जुड़ी गतिविधियों से दूर रहने को कहा गया है. अमेरिका और यूरोपीय देशों को डर है कि इस तरह के सैटेलाइट लॉन्च के जरिए ईरान को परमाणु क्षमताएं विकसित करने में मदद मिल सकती है.
माना जाता है कि अभी ईरान इसमें सक्षम है कि इतने छोटे परमाणु हथियार विकसित कर सके जिन्हें बैलेस्टिक मिसाइल ले जा सकें. लेकिन पिछले एक दशक में ईरान का अंतरिक्ष कार्यक्रम तेजी से आगे बढ़ा है. उसने ना सिर्फ कई सैटेलाइट लॉन्च किए हैं बल्कि एक बंदर को भी अंतरिक्ष में भेजने की कोशिश की.
ईरान दावा करता रहा है कि वह परमाणु हथियार बनाने की महत्वाकांक्षा नहीं रखता. लेकिन रिवोल्यूशनरी गार्ड्स की तरफ से सैटेलाइट लॉन्च किए जाने के बाद इस दावे पर सवाल उठते हैं. रिवोल्यूशनरी गार्ड्स को ईरान में सबसे ताकतवर सैन्य बल माना जाता है जो सीधे देश के सर्वोच्च नेता की निगरानी में काम करता है.
यह अभी साफ नहीं है कि क्या ईरान में हुए इस सैटेलाइट लॉन्च से राष्ट्रपति हसन रोहानी की सरकार वाकिफ है. राष्ट्रपति रोहानी ने बुधवार को कैबिनेट के सामने 40 घंटे का भाषण दिया और उसमें कहीं भी सैटेलाइट लॉन्च का जिक्र नहीं था.