तरक्की के कोटे में पेंच ही पेंच
८ सितम्बर २०१२ यूपी में जबरदस्त सियासी हलचल है क्यूंकि पिछड़े वर्ग के जनाधार वाली सत्ताधारी समाजवादी पार्टी की सरकार तरक्की में दलित आरक्षण की सख्त विरोधी है तो मुख्य विपक्षी पार्टी बीएसपी की राजनीति का आधार ही दलित हैं. हालांकि इसी साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट तरक्की में आरक्षण को असंवैधानिक करार दे चुकी है.
केंद्र की यूपीए सरकार इस मामले में दोनों हाथों में लड्डू वाली नीति पर चल रही है. उधर मायावती को बैठे बैठे देश भर के दलित नेताओं और सांसदों को एक सूत्र में पिरोने का काम मिल गया है. मायावती, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और बीजेपी नेता अरुण जेटली से बात कर चुकी हैं. उन्होंने ये साफ कर दिया है कि बिल पास नहीं हुआ तो एनडीए और यूपीए जिम्मेदार होगा. उन्हें 1914 के लोकसभा चुनाव नजर आ रहे हैं. लोकसभा में 120 आरक्षित सीटों पर चुन कर आने वाले दलित सांसदों पर उन्होंने इस बिल के बहाने नजर गड़ा दी है. हालांकि केन्द्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भी इस बिल को पास कराने के लिए बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी से मुलाकात की है. शिंदे भी महाराष्ट्र के दलित हैं.
यूपी में तरक्की का खेल
मायावती जब 2007 में चौथी बार यूपी की मुख्यमंत्री बनी तब उन्होंने सरकारी नौकरियों में तरक्की में आरक्षण लागू कर दिया. पांच साल में इस व्यवस्था से करीब 1550 दलित अफसरों और कर्मचारियों को बिना बारी कई कई बार तरक्की का लाभ हुआ. उन्हीं में से एक राम अवतार प्रसाद हैं जो सूचना विभाग के वरिष्ठतम पद संयुक्त निदेशक पर पदोन्नत हो चुके हैं. करीब 20 साल पहले तृतीय वर्ग में भर्ती हुए थे और साथियों को पछाड़ते हुए सबसे ऊपर पहुंच गए. अलग थलग रहते हैं, विभाग में खराब छवि है. वहां के कर्मचारी कहते हैं कि कुंठित हो गए हैं क्योंकि कभी सम्मान नहीं मिला. ऐसे न जाने कितने राम अवतार हर दफ्तर में हैं.
तस्वीर का दूसरा रुख ये है कि समाजवादी पार्टी की सत्ता में वापसी होते ही तरक्की में आरक्षण खत्म कर दिया गया और रातों रात प्रोमोशन होने लगे. सिंचाई विभाग में तो ये फैसला आते ही 24 घंटे में करीब 1100 प्रोमोशन हुए, लोक निर्माण विभाग में भी करीब 1500 लोगों को तरक्की दे दी गई. जिस दिन तय हुआ कि केंद्र सरकार तरक्की में आरक्षण के लिए संविधान में संशोधन करने जा रही है उसी दिन परिवहन विभाग में आनन फानन में 45 लोगों को तरक्की दे दी गई. बिजली विभाग में भी वर्षों से लटके सैकड़ों तरक्की के मामले निपटा दिए गए. लखनऊ विश्वविद्यालय में समाज शास्त्र के प्रोफेसर राजेश मिश्र इसे दलित समाज के प्रति वैमनस्य की एक मिसाल करार देते हैं. बिजली विभाग के कर्मचारी नेता शैलेन्द्र दुबे तरक्की में आरक्षण के धुर विरोधी हैं और इसे संविधान विरोधी बता रहे हैं. बहरहाल हर दफ्तर में कर्मचारी दो गुटों में बदल चुके हैं और काम बंद है. आंकड़े बताते हैं कि अभी भी यूपी सरकार की नौकरियों में दलितों के लिए आरक्षित पदों में से 65 फीसदी खाली हैं.
आंकड़े संविधान संशोधन के पक्ष में
केंद्र सरकार दलितों को सरकारी नौकरियों में तरक्की में भी कोटा देने के लिए संविधान में जो संशोधन करने जा रही है उसके मुताबिक अनुच्छेद 16(4) से "पर्याप्त प्रतिनिधित्व" और 355 से "प्रशासन की कार्यक्षमता" शब्द हटा दिए जाएंगे. उसकी इस पहल के पीछे 1914 के लोकसभा चुनाव में दलितों का समर्थन हासिल करना तो है ही, साथ ही केंद्र की नौकरशाही में दलितों का बेहद कम प्रतिनिधित्व भी है. केंद्र सरकार के सचिव स्तर के 149 वरिष्ठ आईएएस अफसरों में से एक भी दलित नहीं है जबकि भर्ती के समय दलितों को मिले 15 प्रतिशत आरक्षण के हिसाब से करीब 20 सचिव दलित होने चाहिए थे. इसी तरह अतिरिक्त सचिव के 108 अफसरों में से सिर्फ दो अफसर दलित है और संयुक्त सचिव के 477 अफसरों में से 31 तथा निदेशक स्तर के 590 में से मात्र 17 अफसर ही दलित हैं. इसी तरह 40 केन्द्रीय विश्विद्यालयों के अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 32 फीसदी तथा अनुसूचित जनजाति के 41.8 फीसदी पद ही भरे हुए हैं.
ये आंकड़े बताते हैं कि कहीं न कहीं दलित अफसरों के साथ तरक्की में भेदभाव हो रहा है. यदि प्रोमोशन में आरक्षण का संविधान संशोधन हो गया तो केंद्र सरकार के करीब 16 हज़ार 850 पद प्रोमोशन से भरे जा सकेंगे. यूपी में प्रोमोशन में आरक्षण की मुहिम चलाए हुए बीएस-4 के अध्यक्ष आरके चौधरी तो दलित नेताओं पर ही ऊंगली उठाते हैं उनके मुताबिक मायावती ने अपनी सरकार में ये व्यवस्था लागू करने से पहले अगर सर्वे कराकर दलित कर्मचारियों के प्रतिनिधित्व का आंकड़ा पेश कर नतीजा दिखाया होता तो सुप्रीमकोर्ट इसे असंवैधानिक घोषित नहीं कर पाता. लेकिन सुप्रीम कोर्ट में प्रमोशन का आरक्षण मुद्दा फिर फंस सकता है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 16(4) और अनुच्छेद 355 को संविधान का बुनियादी ढांचा करार दिया इसमें किसी तरह के संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने से पेंच फिर फंस सकता है
रिपोर्ट: एस वहीद, लखनऊ
संपादनः एन रंजन