फुटबॉलरों की होती है तस्करी
२७ अगस्त २०१३पूरी दुनिया की नजरें 2014 फुटबॉल वर्ल्ड कप के दौरान ब्राजील पर टिकी होंगी. युवा खिलाड़ियों के सपने सच होने का एक मौका. इन युवा खिलाड़ियों का सपना होता है, अच्छा करियर. और इसका फायदा होता है एक ऐसे बाजार को, जो दुनिया का सबसे बुरा बाजार है, मानव तस्करी का. ये तस्कर दुनिया भर में काम करते हैं और सालाना करीब 32 अरब डॉलर का धंधा करते हैं. अमेरिका के विदेश मंत्रालय के मुताबिक 2011 में दुनिया भर में दो करोड़ 70 लाख लोग इस अपराध की बलि चढ़े.
अच्छा करियर कम ही
ब्राजील में इस तरह के गैंगस्टर काफी सक्रिय हैं. यहां सालाना करीब दो लाख लोगों की तस्करी होती है और इससे 10 अरब डॉलर का व्यापार होता है. एजेंट अपना शिकार युवा फुटबॉलरों को तलाशते हैं. ऐसे खिलाड़ी जो गरीब परिवार से आते हैं. एजेंट इन युवाओं के परिवार को बड़े करियर का वादा करते हैं. ऐसा कर वो परिवार को अपने विश्वास में ले लेते हैं और फिर बच्चे का अधिकार भी, अक्सर कुछ सौ डॉलर के लिए. चूंकि 18 साल से कम उम्र के खिलाड़ियों के ट्रांसफर पर फीफा ने रोक लगा रखी है, इसलिए ये एजेंट कम उम्र के खिलाड़ियों के दस्तावेज बदल देते हैं ताकि जरूरी लाइसेंस मिल जाए.
जैसे ही युवा प्रतिभाशाली खिलाड़ी वादे के मुताबिक उस जगह पहुंचते हैं, उन्हें सबसे निचली फुटबॉल लीग में शामिल कराने की कोशिश की जाती है. अगर वे इनमें शामिल नहीं हो पाते तो उनका वीजा और पैसे अक्सर ले लिए जाते हैं. ये लोग फिर सड़कों पर आ जाते हैं. वे खुद को लुटा पिटा महसूस करने लगते हैं और इसीलिए अपने देश लौटने की भी उनमें हिम्मत नहीं होती, बशर्ते उनके पास वापस लौटने के पैसे हों.
टिकट के लिए बेची कार
2006 में जर्मनी की पत्रिका डेयर श्पीगेल ने ब्राजीलियाई स्ट्राइकर डगलस रोड्रिगेज के बारे में रिपोर्ट लिखी थी. उन्हें एक एजेंट विल्सन बेलिस्सी यूरोप लाया. उन्हें रोमानियाई क्लब में खिलाने का झांसा दिया गया. बेटे की फ्लाइट टिकट के लिए रोड्रिगेज के पिता ने अपनी कार बेच दी. लेकिन एयरपोर्ट अचानक दूसरी डील के बारे में कहा गया कि ये पांचों रोमानिया नहीं, मोल्डोवा के लिए खेलेंगे.
लेकिन मोल्डोवा की राजधानी किशीनाऊ में जिस शख्स को उन्हें लेने आना था, वह आया ही नहीं. ये सभी जर्मन शहर फ्रैंकफर्ट पहुंचे क्योंकि एफएसवी माइंज 05 टीम ने इनमें अचानक रुचि दिखाई. इन पांचों को पांच दिन एयरपोर्ट पर ही गुजारने पड़े, फिर इनसे कहा गया कि टीम प्रबंधन इनमें अब कोई रुचि नहीं रखता. फिर जर्मनी की दूसरी लीग टीम आइनट्राख्ट फ्रैंकफर्ट से बात चली. तीन हफ्ते बाद डगलस साओ पॉलो लौट गए. उनके साथ आए बाकी तो करीब छह हफ्ते रहे.
जबरदस्ती काम
फुटबॉल माफिया के शिकार लोग अक्सर चीन, वियतनाम या भारत में मजदूर बन जाते हैं. थोड़े से पैसे के लिए वे किसी भी तरह की मजदूरी करने को तैयार रहते हैं. कई बार उन्हें चकलाघरों में भी भेज दिया जाता है या फिर उन्हें देह व्यापार करने के लिए मजबूर किया जाता है. अक्सर उन पर शारीरिक या यौन हिंसा कर उन्हें ये सब करने पर मजबूर किया जाता है. पीड़ितों को कागजात अत्याचारियों को देने पड़ते हैं, बहुत कम मामलों में ये अपराध दर्ज होते हैं क्योंकि पीड़ित अक्सर डर और शर्म के मारे किसी को इस बारे में नहीं बताना चाहते. ब्राजील की राष्ट्रपति डिल्मा रुसेफ के एजेंडे के बावजूद ब्राजील के 27 में से 17 राज्यों में ही सुधार हुए हैं.
मानव तस्करी के जरिए अफ्रीका में भी फुटबॉल खिलाड़ियों की तस्करी होती है. फ्रांस के खेल मंत्रालय में कैबिनेट के पूर्व निदेशक जाइल्स गार्निए ने एक इंटरव्यू में कहा, "यूरोपीय क्लब प्रतिभाओं को सस्ते में खरीद कर मुनाफा कमाते हैं. अफ्रीका से हजारों खिलाड़ियों को बुलाना फायदेमंद होता है. भले ही आखिर में सिर्फ 20 के साथ ही बड़ा सौदा संभव हो." फ्रांस, नीदरलैंड्स और बेल्जियाई क्लबों ने अफ्रीका में "फुटबॉल नर्सरियां" बनाई हैं. ऐसा नहीं है कि जर्मनी में तस्करी से लाए गए खिलाड़ी नहीं बेचे जाते. कैमरून के पूर्व फुटबॉलर जां क्लॉद मवूमं ने यूरोपीय संसद में इस पूरे मामले की आलोचना करते हुए कहा, "युवा अफ्रीकी आर्थिक रूप से सबसे सस्ते नए खिलाड़ी हैं, वे कीमत के बदले सबसे अच्छा प्रदर्शन दे सकते हैं."
तेजी से बढ़ती तस्करी
यूरोप के सांख्यिकी कार्यालय यूरोश्टाट के शोध के मुताबिक जर्मनी सहित पूरे यूरोप में मानव तस्करी बढ़ी है. इस साल अप्रैल में प्रकाशित शोध के नतीजे में सामने आया कि 2008 से 2010 के बीच मानव तस्करी 18 फीसदी बढ़ी. इसी समय में यूरोपीय संघ के देशों में 23,632 लोग ऐसे दर्ज किए गए, जो या तो मानव तस्करी का शिकार हुए या फिर उन पर इससे जुड़ा संदेह था. इसी समय के दौरान मानव तस्करी पर लिए गए फैसलों में यूरोप में 13 फीसदी और जर्मनी में 15 फीसदी कम लोगों को सजा दी गई.
मानव तस्करी पर काबू पाने के लिए यूरोपीय संघ का कानून वैसे तो छह अप्रैल 2013 को ही लागू हो जाना था लेकिन इसे बहुत कम देशों ने लागू किया है. नहीं लागू करने वालों में जर्मनी भी शामिल है. जर्मनी में अर्थशास्त्र शोध संस्थान डीआईडब्ल्यू ने भी जर्मनी में हालात की आलोचना की है. संस्थान के मुताबिक देश में सालाना 600 से 1200 लोग मानव तस्करी का शिकार होते हैं. संस्थान के मुताबिक जर्मनी के अलावा डेनमार्क, ग्रीस, स्पेन, लक्जमबर्ग, पोलैंड और ब्रिटेन में मानव तस्करी से पीड़ित लोगों को न केवल जेल में रखा जाता है बल्कि उन्हें आर्थिक दंड भी भरना पड़ता है या फिर उन्हें उनके देश भेज दिया जाता है.
जर्मनी में पुलिस के अपराध शाखा संघ के अध्यक्ष आंद्रे शुल्ज इस मुद्दे पर नीतियों की आलोचना करते हैं. वे कहते हैं कि जर्मनी में मानव तस्करों का अच्छे से पीछा नहीं किया जाता. वहीं ब्राजील के पूर्व राष्ट्रीय कोच कार्लोस डुंगा ने 2009 में ही इसकी आलोचना की थी. वे कहते हैं, "खिलाड़ियों की तस्करी यौनकर्मियों जैसी ही है. लेकिन इससे सभी अपना अपना फायदा निकालते हैं."
रिपोर्टः रॉबिन हार्टमन/एएम
संपादनः ए जमाल