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तस्करी का शिकार बनते भारतीय बच्चे

२२ फ़रवरी २०१३

भारत में बाल अधिकार कार्यकर्ता विदेशियों के भारतीय बच्चों को गोद लेने पर प्रतिबंध लगाना चाहने हैं. गोद लेने के नाम पर बच्चों की तस्करी के कई मामले सामने आने के बाद ऐसा किया जा रहा है.

18 साल से अपनी बेटियों के इंतेजार में लक्ष्मीतस्वीर: DW/M. Krishnan

हैदराबाद में रह रही लक्ष्मी अंबार ने आखिरी बार 1995 में अपनी बेटी मंजुला और भाग्या को देखा. उन्हें एक गोद लेने वाली एजेंसी को देकर लक्ष्मी ने उम्मीद की थी कि दोनों की बेटियों को एक बेहतर जिंदगी मिलेगी. उस वक्त एडॉप्शन एजेंसी के अधिकारियों ने लक्ष्मी से कहा था कि अगर वह अपनी बेटियों से मिलने की कोशिश नहीं करेंगी, तो ये उनकी बेटियों के लिए अच्छा होगा. उन्होंने कहा कि मां से मिलने के बाद बेटियां दुखी हो जाएंगीं.

लक्ष्मी की बेटियों को अमेरिका भेजा गया. लक्ष्मी कहती हैं, "मुझे नहीं पता कि वे देखने में कैसी लगती हैं. जिन लोगों ने उसे गोद लिया, वह नहीं चाहते कि हम उनसे बात करें. 18 साल हो गए और हमें केवल यह पता है कि वह भारत से बाहर है. मैं अब भी उनसे मिलना चाहती हूं लेकिन ऐसा नहीं हो सका है."

लक्ष्मी की ही तरह मजदूरी से पैसा कमा रहे कतिरवेल और नागरानी का कहना है कि उनके बेटे सतीश को 1999 में अगवा कर दिया गया. "हमनें पुलिस में शिकायत दर्ज की लेकिन कुछ नहीं हुआ. फिर हमनें गैर सरकारी संगठनों से संपर्क किया. वे हमारे बच्चे को ढूंढने में सफल रहे. उसे नीदरलैंड्स के एक परिवार ने गोद लिया है." कतिरवेल का कहना है कि वह अपने बेटे को वापस लाने के लिए अदालत में लड़ेंगे और तब तक नहीं रुकेंगे जब तक उन्हें उनका बेटा वापस नहीं मिल जाता.

बाल अधिकार विशेषज्ञों के मुताबिक इन मामलों से साफ होता है कि कुछ दलाल गलत तरीकों से बच्चे हासिल करते हैं और उनके बारे में गलत जानकारी देते हैं. बीते दशक में दिल्ली, गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में गोद लेने के कानून कई बार तोड़े गए हैं. अनाथालयों को अगर लगता है कि बच्चा देने से उनकी अच्छी कमाई होगी, तो वह हर तरह से बच्चे जुटाने की कोशिश करते हैं.

तस्वीर: MANAN VATSYAYANA/AFP/Getty Images

ब्रसेल्स और नीदरलैंड्स में काम कर रहे एनजीओ अगैंस्ट चाइल्ड ट्रैफिकिंग के अरुण दोहले कहते हैं, "यह तो घोटाला है. भारत सरकार बच्चों की देखभाल और सुरक्षा नहीं कर पा रही है लेकिन केवल इसलिए वह बच्चों को अंतरराष्ट्रीय एडॉप्शन के नाम पर विदेशों में बेच नहीं सकती."

दोहले जब बच्चे थे तो उन्हें गोद लिया गया था. कुछ सालों पहले उन्होंने अपने असली मां बाप को ढूंढ निकाला और अब अपने बच्चों की तलाश कर रहे परिवारों की मदद कर रहे हैं. "कई परिवार हैं जो अदालत के चक्कर काट रहे हैं. उनके बच्चों को गोद लेने वाले परिवारों ने अब तक उनसे संपर्क नहीं किया है. कुछ मां बाप अपने बच्चे वापस चाहते हैं."

बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि दलाल बच्चों के बारे में गलत जानकारी देकर उन्हें विदेशियों को बेचते हैं. बच्चों के दस्तावेज फर्जी होते हैं और कानून में खामियों का इन्हें फायदा होता है. हक सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स की ईनाक्षी गांगुली कहती हैं कि पूरी प्रक्रिया को जांचना होगा क्योंकि यह बच्चों की तस्करी है जिसे गोद लेने के नाम पर बढ़ावा दिया जा रहा है.

बच्चों के अपहरण के मामलों को देखते हुए अब केंद्रीय एडॉप्शन प्राधिकरण नए नियम लागू कर रहा है. अगर किसी अनाथाश्रम में 100 बच्चें हैं तो इनमें से केवल 20 को विदेश भेजने की अनुमित होगी. नहीं तो अनाथाश्रम या एंजेंसी अपना लाइसेंस खो देगी.

रिपोर्टः मुरली कृष्णन/एमजी

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी

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