ताइवान से उसके सहयोगी राष्ट्रों को क्यों दूर कर रहा है चीन
२० सितम्बर २०१९
चीन ने ताइवान को उसके सहयोगी राष्ट्रों से दूर करना शुरू कर दिया है. इस पर ताइवान का कहना कि चीन हांगकांग की तरह ही वहां भी 'एक राष्ट्र दो सिस्टम' को लागू करना चाहता है.
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चीन के दबाव के बाद ताइवान ने अपना दूसरा सहयोगी किरिबाती खो दिया. ताइवान ने कहा कि चीन ने किरिबाती को राजनयिक संबंधों को बदलने के लिए हवाई जहाज और छोटे जहाज की पेशकश की. कुछ ही दिनों पहले ताइवान का रिश्ता सोलोमन द्वीप भी टूट गया था. ऐसे में लगातार दूसरे सहयोगी देश से संबंध टूटना ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन के लिए नया झटका है क्योंकि वे जनवरी महीने में फिर से चुनाव करवाने की मांग कर रही हैं. त्साई 2016 में सत्ता पर काबिज हुई थीं. उसके बाद से चीन ने ताइवान को उसके सात सहयोगियों से दूर कर दिया है. वर्तमान में 15 देश ही औपचारिक रूप से ताइवान के साथ हैं.
ताइवानी विदेश मंत्री जोसेफ वू ने ताइपे में कहा कि ताइवान ने किरिबाती से सभी राजनयिक रिश्ते समाप्त कर दिए हैं. उन्होंने कहा, "ताइवान को जानकारी मिली है कि चीन की सरकार ने कई हवाई जहाज और छोटे वाणिज्यिक जहाज के लिए धन मुहैया करवाने का वादा किया है. इस तरह से किरिबाती को राजनयिक संबंधों को बदलने के लिए तैयार किया गया."
वू ने कहा, "चीन ताइवान की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपस्थिति को कम करने और संप्रभुता को नष्ट करने की कोशिश कर रहा है. इससे पूरी तरह से स्पष्ट है कि राजनायिक संबंधों को खराब कर चीन ताइवान की जनता की राय को बदलना चाहता है. आगामी राष्ट्रपति और विधायी चुनावों को प्रभावित करना चाहता है. लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर करना चाहता है." इस मुद्दे पर किरिबाती के राष्ट्रपति कार्यालय और चीन के विदेश मंत्रालय ने फिलहाल किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं दी है.
चीन दावा करता है कि ताइवान उसका का हिस्सा है और इस लोकतांत्रिक द्वीप को अन्य देश के साथ किसी तरह का औपचारिक समझौता करने का अधिकार नहीं है. त्साई के पदभार ग्रहण करने के बाद से चीन ने ताइवान के ऊपर दबाव बनाना शुरू कर दिया था. ताइवान के ऊपर अकसर चीनी लड़ाकू विमान उड़ाए जाते हैं. चीन को आशंका है कि त्साई ताइवान की जनता को औपचारिक रूप से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए उकसा रहे हैं, जो उसके लिए खतरे की घंटी है. इस पूरे मामले को करीब से देख रहे ताइवान के एक अधिकारी का कहना है कि चीन ने किरिबाती को बोइंग 737 विमान और कर्ज सहायता देने की बात की है.
सूत्रों के अनुसार, ताइपे के खुफिया विभाग को जानकारी मिली है कि चीन का लक्ष्य एक अक्टूबर को कम्युनिस्ट चीन की स्थापना की 70 वीं वर्षगांठ से पहले ताइवान को ज्यादातर सहयोगियों से दूर करने का है. प्रशांत क्षेत्र में तथाकथित "दूसरी द्वीप श्रृंखला" पर चीन के बढ़ते प्रभाव पर आशंका व्यक्त करते हुए अधिकारी ने कहा, "इससे अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित कई देश चिंता में हैं."
जो देश होकर भी देश नहीं हैं
दुनिया के कई हिस्से खुद को एक अलग देश मानते हैं, उनकी अपनी सरकार, संसद और अर्थव्यवस्था है. कइयों की अपनी मुद्रा भी है. फिर भी उन्हें पूरी दुनिया में मान्यता नहीं है और न ही वे यूएन के सदस्य हैं. ऐसे ही देशों पर एक नजर.
तस्वीर: DW
फलस्तीन
फलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के 136 सदस्य देशों और वेटिकन की मान्यता हासिल है और फलस्तीनी इलाकों में फलस्तीनी विधायी परिषद की सरकार चलती है. लेकिन लगातार खिंच रहे इस्राएल-फलस्तीन विवाद के कारण एक संपूर्ण राष्ट्र के निर्माण का फलस्तीनियों का सपना अधूरा है.
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कोसोवो
कोसोवो ने 2008 में एकतरफा तौर पर आजादी की घोषणा की, लेकिन सर्बिया आज भी उसे अपना हिस्सा समझता है. वैसे कोसोवो को संयुक्त राष्ट्र के 111 सदस्य देश एक अलग देश के तौर पर मान्यता दे चुके हैं. साथ ही वह विश्व बैंक और आईएमएफ जैसी विश्व संस्थाओं का सदस्य है.
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सहारा रिपब्लिक
पश्चिमी सहारा के इस इलाके ने 1976 में सहारावी अरब डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (एसएडीआर) नाम से एक आजाद देश की घोषणा की. उसे संयुक्त राष्ट्र के 84 देशों की मान्यता हासिल है. लेकिन मोरक्को पश्चिमी सहारा को अपना क्षेत्र मानता है. एसआएडीआर यूएन का तो नहीं, लेकिन अफ्रीकी संघ का सदस्य जरूर है.
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ताइवान
चीन ताइवान को अपना एक अलग हुआ हिस्सा मानता है जिसे एक दिन चाहे जैसे हो, चीन में ही मिल जाना है. चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण दुनिया के मुट्ठी भर देशों ने ही ताइवन के साथ राजनयिक संबंध रखे हैं. हालांकि अमेरिका ताइवान का अहम सहयोगी है और उसकी सुरक्षा को लेकर बराबर आश्वस्त करता रहा है.
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दक्षिणी ओसेतिया
दक्षिणी ओसेतिया ने आजादी की घोषणा 1991 में सोवियत संघ के विघटन के समय ही कर दी थी. लेकिन उसे आंशिक रूप से मान्यता 2008 में उस वक्त मिली जब रूस और जॉर्जिया के बीच युद्ध हुआ. रूस के अलावा निकारागुआ और वेनेजुएला जैसे संयुक्त राष्ट्र के सदस्य भी उसे मान्यता दे चुके हैं.
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अबखाजिया
2008 के युद्ध के बाद रूस ने जॉर्जिया के अबखाजिया इलाके को भी एक देश के तौर पर मान्यता दे दी, जिसे जॉर्जिया ने अखबाजिया पर रूस का "कब्जा" बताया. अबखाजिया को संयुक्त राष्ट्र के छह सदस्य देशों की मान्यता हासिल है जबकि कुछ गैर मान्यता प्राप्त इलाके भी उसे एक देश मानते हैं.
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तुर्क साइप्रस
1983 में आजादी की घोषणा करने वाले तुर्क साइप्रस को सिर्फ तुर्की ने एक देश के तौर पर मान्यता दी है. हालांकि इस्लामी सहयोग संगठन और आर्थिक सहयोग संगठन ने साइप्रस के उत्तरी हिस्से को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया है. सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 541 में उत्तरी साइप्रस की आजादी को अमान्य करार दे रखा है.
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सोमालीलैंड
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोमालीलैंड को सोमालिया का एक स्वायत्त इलाका माना जाता है. लेकिन बाकी सोमालिया से शांत और समृद्ध समझे जाने वाले इस इलाके की चाहत एक देश बनने की है. उसने 1991 में अपनी आजादी का एलान किया, लेकिन उसे मान्यता नहीं मिली.
अर्टसाख रिपब्लिक
सोवियत संघ के विघटन के समय जब अजरबाइजान ने आजादी की घोषणा की, तभी अर्टसाख ने भी आजादी का एलान किया. अजरबाइजान इसे अपना हिस्सा मानता है. यूएन के किसी सदस्य देश ने इसे मान्यता नहीं दी है.
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ट्रांसनिस्त्रिया
ट्रांसनिस्त्रिया का आधिकारिक नाम प्रिदिनेस्त्रोवियन मोल्दोवियन रिपब्लिक है, जिसने 1990 में मोल्दोवा से अलग होने की घोषणा की थी. लेकिन इसे न तो मोल्डोवा ने आज तक माना है और न ही दुनिया के किसी और देश ने मान्यता दी है.
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वर्ष 2016 के बाद से किरिबाती सातवां सहयोगी है जिसके साथ ताइवान के राजनायिक रिश्ते टूटे हैं. इससे पहले बुर्किना फासो, डोमिनिक रिपब्लिक, साओ टोम और प्रिंसिपे, पनामा, अल सल्वाडोर और सोलोमन द्वीप के साथ भी ताइवान के राजनायिक रिश्ते समाप्त हुए.
ताइवान की मुख्य विपक्षी कुओमितांग पार्टी चीन का समर्थन करती है. विपक्षी पार्टी ने त्साई की सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) से आग्रह किया है कि वह बीजिंग के प्रति अपनी नीति की समीक्षा करे. कुओमितांग पार्टी ने बयान जारी कर कहा, "डीपीपी को सहयोगियों से रिश्ता टूटने के पीछे की वजह का पता लगाना चाहिए और एक व्यावहारिक समाधान लाना चाहिए. यह नहीं कहना चाहिए कि इसके पीछे पूर्व सहयोगी, विपक्षी पार्टी या चीन के अधिकारी जिम्मेदार हैं."
ताइवान के राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता युन-कुंग तिंग ने एशिया के हांगकांग का हवाला दिया. हांगकांग में चीन का शासन है और वहां के लोगों के कुछ ही चीजों की स्वतंत्रता दी गई है. उन्होंने कहा, "सहयोगियों को तोड़कर चीन ताइवान को 'एक देश दो सिस्टम' अपनाने का दबाव डाल रहा है. ताइवान खुद को जितना मजबूत दिखाता है, चीन उतना ही परेशान होता है."
आरआर/ओएसजे (रॉयटर्स)
चीन और भारत में एक जैसा क्या है?
भारत और चीन की प्रतिद्वंद्विता अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समय समय पर दिखती है. लेकिन दोनों विकासशील देशों में कई समानताएं हैं और वो संसाधनों से लेकर समस्याओं तक में हैं. आइए देखें भारत और चीन किन किन मामलों में एक जैसे हैं.
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आबादी
दुनिया में जब भी आबादी का जिक्र होता है, इन दोनों का नाम सबसे पहले आता है. दोनों देशों में जनसंख्या विशाल है लेकिन चीन ने उसकी बेतहाशा व़ृद्धि को थाम लिया है. भारत में यह अब भी नियंत्रण से बाहर है.
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प्रदूषण
ज्यादा आबादी और तेज आर्थिक विकास ने पर्यावरण के मामले में दोनों देशों का रिकॉर्ड खराब किया है. शहर हो या गांव हर तरह के प्रदूषण की समस्या दोनों देशों में लगभग एक जैसी है.
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आर्थिक प्रगति
तमाम मुश्किलों के बावजूद दोनों देशों ने अपनी शानदार आर्थिक प्रगति से दुनिया को अचंभित किया है. यह दोनों देश ना सिर्फ एशिया बल्कि पूरी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाएं हैं.
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औपनिवेशिक अतीत
भारत और चीन दोनों का औपनिवेशिक अतीत है. भारत जहां ब्रिटेन के अधीन रहा तो चीन जापान और ब्रिटेन के नियंत्रण में. भारत को 1947 में स्वतंत्रता मिली तो साम्यवादी चीन 1949 में अस्तित्व में आया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
साझी सीमा
भारत और चीन के बीच 4,000 किलोमीटर से लंबी साझी सीमा है. इस सीमा की अपनी समस्याएं हैं और दोनों इससे जूझ रहे हैं. कई बार यही सीमा आपसी विवाद का भी कारण बन जाती है. 1962 का युद्ध ऐसे ही विवाद का नतीजा था.
तस्वीर: picture-alliance/ dpa
जीडीपी
भारत और चीन जीडीपी के लिहाज से दुनिया के शीर्ष 10 देशों में शामिल हैं. चीन जहां इस लिहाज से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है वहीं भारत छठे नंबर पर है. भारत के शीघ्र ही पांचवें नंबर पर पहुंचने के आसार हैं.
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तेज आर्थिक विकास
चीन और भारत की अर्थव्यवस्थाओं का विकास दुनिया को अचंभित कर रहा है. हालांकि इसमें इनकी विशाल आबादी की बड़ी भूमिका है लेकिन सात फीसदी के आसपास रहने वाली विकास दर ने कई देशों को अपनी नीतियों के बारे में सोचने पर विवश किया है.
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प्राचीन सभ्यताएं
चीन और भारत की सभ्यताएं अति प्राचीन है. इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं को यह लुभाती रही है. दुनिया की पुरानी सभ्यताओं के प्रमाण इन देशों में मिलते हैं और दोनों देशों के लोग इसे लेकर खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं.
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माओवाद
माओ त्से तुंग ने चीन में क्रांति का सूत्रपात किया और देश के जननायक बन गए. पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना उन्हीं की नीतियों और कोशिशों की देन है. माओ की विचार से प्रभावित बहुत से लोग भारत में बदलाव के लिए सक्रिय हैं.
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पड़ोसी
पाकिस्तान और नेपाल के साथ ही म्यांमार, भूटान, अफगानिस्तान जैसे देश भारत और चीन दोनों के पड़ोसी हैं. इन देशों के साथ रिश्तों को लेकर भी भारत चीन में प्रतिद्वंद्विता है जो कई बार तनाव पैदा करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
अलगाववाद
अलगाववाद की समस्या से दोनों देश जूझ रहे हैं. चीन के लिए तिब्बत, हांगकांग, शिनजियांग और अंदरूनी मंगोलिया तो भारत के लिए कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्य.
तस्वीर: Getty Images/G. Niu
महिलाओं की स्थिति
महिलाओं को लेकर भेदभाव का व्यवहार इन दोनों देशों में करीब करीब एक जैसा है. बहुत कोशिशों के बाद भी पुरुष और स्त्री के आर्थिक और सामाजिक अधिकारों में बड़ा फर्क बना हुआ है.
तस्वीर: YouTube/SK-II
इंटरनेट
इन दोनों देशों में इंटरनेट बहुत लोकप्रिय है. सिर्फ विकसित इलाके ही नहीं जहां बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है वहां भी इंटरनेट का भरपूर इस्तेमाल हो रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Liu Jiang
रेल नेटवर्क
रेल नेटवर्क के मामले में दोनों देश दुनिया के शीर्ष पांच देशों में शामिल हैं. चीन में करीब 1 लाख किलोमीटर का रेल नेटवर्क है और वह दूसरे नंबर पर है जबकि 65,000 किलोमीटर के साथ भारत चौथे नंबर पर है. भारत 8 अरब सालाना यात्रियों के साथ शीर्ष पर है.