ताजमहल से ऊंचा होगा गाजीपुर में कचरे का अंबार
४ जून २०१९गाजीपुर में मौजूद कचरे के इस पहाड़ का पता इसके ऊपर उड़ते बाज और उनका शिकार बनने वाले परिंदे बहुत दूर से दे देते हैं. थोड़ा पास जाइए तो आवारा मवेशी, कुत्ते, और चूहों की पूरी बस्ती नजर आएगी. कचरे से उठता धुआं और दुर्गंध भी आपको इसका पता दे देंगे.
फुटबॉल के करीब 40 मैदानों जितनी बड़ी जमीन पर फैला यह पहाड़ हर साल करीब 10 मीटर ऊंचा हो जाता है. और इससे फैलने वाली दुर्गंध का दायरा कितना बढ़ जाता है यह तो पूछिए ही मत. पूर्वी दिल्ली के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर अरुण कुमार के मुताबिक यह पहाड़ करीब 65 मीटर ऊंचा हो चुका है. अगर इसी रफ्तार से इसकी ऊंचाई बढ़ती रही तो 2020 में यह 73 मीटर ऊंचे ताजमहल को पीछे छोड़ देगा. सुप्रीम कोर्ट पिछले साल ही यह चेतावनी दे चुका है कि यहां से गुजरने वाले विमानों को इसका पता देने के लिए लाल रंग की बत्तियां ऊपर लगानी होंगी.
गाजीपुर ऐसा होगा यह नहीं सोचा गया था. 1984 में लैंडफिल एरिया के रूप में इस जगह कचरा डालना शुरू हुआ और 2002 में ही इसकी क्षमता पूरी हो गई. तब इसे बंद हो जाना चाहिए था. हालांकि शहर से कचरे का आना बंद नहीं हुआ और हर दिन सैकड़ों ट्रक कचरा इसकी ऊंचाई बढ़ाता गया. दिल्ली के एक म्युनिसिपल अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया, "हर दिन करीब 2000 टन कचरा गाजीपुर में डाला जाता है."
2018 में भारी बरसात के कारण कचरे के पहाड़ का एक हिस्सा ढह गया जिसमें 2 लोगों की मौत हो गई. इसके बाद यहां कचरा डालने पर रोक लगा दी गई लेकिन कुछ ही दिन बाद यह रोक उठा ली गई क्योंकि अधिकारियों के पास कचरा डालने के लिए कोई और वैकल्पिक जगह मौजूद नहीं थी.
कचरे से निकलने वाली मीथेन गैस के कारण यहां अकसर आग लगती रहती है जिसे बुझाने में कई कई दिन लग जाते हैं. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की सीनियर रिसर्चर शांभवी शुक्ला बताती हैं, कचरे से निकलने वाली मीथेन हवा में मिल कर और भी खतरनाक हो सकती है.
पर्यावरण की रक्षा के लिए अभियान चलाने वाले गुट चिंतन की प्रमुख चित्रा मुखर्जी कहती हैं, "यह सब रुकना चाहिए क्योंकि लगातार कचरा डालने की वजह से हवा और भूजल में भारी प्रदूषण हो रहा है."
यहां आसपास रहने वाले लोग बताते हैं कि अकसर यहां सांस लेना मुश्किल हो जाता है. पास में रहने वाले 45 साल के पुनीत शर्मा का कहना है, "जहरीली दुर्गंध ने हमारा जीवन दूभर कर दिया है. आए दिन लोग बीमार पड़ते रहते हैं."
विरोध जताने का कोई फायदा नहीं है और अब बहुत से लोग इस जगह को छोड़ कर जाने लगे हैं. उनका कहना है कि कचरे का निस्तारण कर ऊर्जा पैदा करने वाले प्लांट ने उनकी मुश्किल और बढ़ा दी है क्योंकि कचरा जलाने से जो धुआं निकलता है वह भी जहरीला है.
स्थानीय डॉक्टर कुमुद गुप्ता कहती हैं कि वे हर रोज करीब 70 ऐसे लोगों को देखती हैं जो मुख्य रूप से सांस और पेट की बीमारी के शिकार होते हैं और यह मुख्य रूप से प्रदूषण के कारण हैं. इनमें कई बच्चे भी शामिल हैं.
हाल की एक रिसर्च में कहा गया है कि यह कचरा यहां आसपास के पांच किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों के लिए स्वास्थ्य का खतरा पैदा कर रहा है और इसमें कैंसर जैसी बीमारियां भी शामिल हैं.
दिल्ली के आसपास के इलाकों में ट्रैफिक जाम से भरी सड़कें, भारी उद्योग और हर साल जलाई जाने वाली पराली ने राजधानी दिल्ली को कुख्यात बना दिया है. 2013 से 2017 के बीच एक सरकारी सर्वेक्षण में बताया गया कि दिल्ली में 981 लोगों की मौत सांस के गंभीर संक्रमण के कारण हुई जबकि 17 लाख से ज्यादा लोग संक्रमण से प्रभावित हैं. भारत के शहर दुनिया में कचरा पैदा करने के लिए सबसे ज्यादा बदनाम हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक यहां हर साल 6.2 करोड़ टन कचरा पैदा होता है.
2014 में सत्ता में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान चलाया. इसके तहत दसियों हजार सार्वजनिक शौचालय बनाए गए और 2016 में कचरे के प्रबंधन की नई नीति भी बनाई गई.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट और शहर की निगरानी करने वाली दूसरी एजेंसियां बार बार दिल्ली के अलग अलग प्रशासन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराती हैं और उन पर सफाई के प्रति गंभीर नहीं होने के आरोप लगाती हैं.
एनआर/आईबी (एएफपी)
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