दिल्ली में छह दिनों की तालाबंदी लागू होने के बाद देश के दूसरे हिस्सों में भी तालाबंदी लगने के आसार नजर आ रहे हैं. जानकार कह रहे हैं कि संक्रमण जिस गति से फैल रहा है, उसे रोकने के लिए तालाबंदी के अलावा कोई चारा नहीं है.
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दिल्ली में तालाबंदी फिल्हाल सिर्फ छह दिनों के लिए लगाई गई है और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि इस अवधि को बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. लेकिन दिल्ली और देश के कई अन्य राज्यों में भी हालात चिंताजनक बने हुए हैं. दिल्ली में पिछले 24 घंटों में संक्रमण के 23,686 नए मामले सामने आए और संक्रमण से 240 लोगों की मौत हो गई.
हालात को देखते हुए कहा नहीं जा सकता कि संक्रमण के फैलने की रफ्तार कब कम होगी. साथ ही इस पर भी संदेह बना हुआ है कि सिर्फ एक राज्य में तालाबंदी लगा कर इस गति को कम करने में कितनी मदद मिल पाएगी. दिल्ली में तालाबंदी की घोषणा होते ही लाखों प्रवासी श्रमिकों ने राजधानी छोड़ कर अपने अपने गृह राज्य लौटना शुरू कर दिया. जानकार सवाल उठा रहे हैं कि जब इस तरह की यात्राएं नहीं रुकेंगी तब तक संक्रमण का फैलना कैसे रुकेगा.
अपनी किताब "भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा संकट: कोरोना वायरस का असर और आगे का रास्ता" में दूसरी लहर का पूर्वानुमान कर चुके जाने माने अर्थशास्त्री अरुण कुमार का कहना है कि तालाबंदी लगाने में पहले ही कम से कम तीन सप्ताह की देर हो चुकी है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि कुंभ मेला और चुनावी रैलियों जैसे "सुपर-स्प्रेडर" यानी बड़ी संख्या में संक्रमण फैलाने वाले कार्यक्रमों को रद्द कर देना चाहिए था.
अरुण कुमार मानते हैं कि अब जब लोग इन कार्यक्रमों से अपने अपने गृह राज्य वापस लौट रहे हैं तो संक्रमण उनके साथ जाएगा और अगले एक महीने तक देश के अलग अलग हिस्सों में फैलता रहेगा. उनका कहना है कि इस समय दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरे देश में तीन सप्ताह की तालाबंदी लगा दी जानी चाहिए. जानकार यह भी कह रहे हैं कि तालाबंदी लगाने में गरीबों, श्रमिकों और अन्य सुविधाहीन तबकों की जरूरतों का विशेष ख्याल रखना पड़ेगा.
जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज ने ट्वीट कर कहा, "इस समय बहुत जरूरी है कि दिल्ली सरकार भोजन उपलब्ध कराने के कार्यक्रम शुरू करे, विशेष रूप से उन लोगों के लिए भी जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं." महाराष्ट्र में पिछले सप्ताह जब तालाबंदी जैसे प्रतिबंधों की घोषणा की गई थी, तो साथ साथ भोजन और कई तरह की आर्थिक मदद के इंतजाम भी किए गए थे, लेकिन दिल्ली में अभी तक ऐसे कदमों की घोषणा नहीं हुई है.
क्या रुकता है रात के कर्फ्यू से: कोरोना या काम?
भारत में कोरोना वायरस संक्रमण की इस खतरनाक लहर का मुकाबला करने के लिए कई शहरों में रात का कर्फ्यू लगा हुआ है. क्या रात का कर्फ्यू कोरोना को रोकने में प्रभावी है या इस से भी तालाबंदी की तरह आर्थिक नुकसान ज्यादा होता है?
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रात का कर्फ्यू
दिल्ली में 30 अप्रैल तक रात 10 बजे से सुबह के पांच बजे तक कर्फ्यू लगा रहेगा. इस समय दिल्ली, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, गुजरात और पंजाब जैसे राज्यों के कई शहरों में रात का कर्फ्यू लगा हुआ है. आवश्यक उत्पाद और सेवाएं देने वाले क्षेत्रों के कई संस्थानों को खुले रहने की अनुमति है.
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व्यापारी मायूस
कई व्यापारियों का कहना है कि तालाबंदी की मार से वो अभी उबरे भी नहीं थे, और अब ये कर्फ्यू आ गया. 10 बजे तक सब घर पहुंच जाएं इसके लिए दुकानों को नौ बजे ही बंद करना होगा. इसका मतलब है कि ग्राहकों के लिए उससे भी पहले दुकान बंद करनी पड़ेगी क्योंकि ग्राहकों के जाने के बाद भी सारा सामान समेट कर दुकान बंद करने में आधा-एक घंटा लग जाता है.
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मौसम की मार
दुकानें, दफ्तर, फैक्ट्रियां आदि जल्दी बंद करने का मतलब है उत्पादन और बिक्री में कटौती, जिससे व्यापारियों को नुकसान होगा. इसके अलावा उत्तर भारत में गर्मियों का मौसम चल रहा है. दिन में तापमान ज्यादा होने की वजह से लोग सामान लेने बाजारों में शाम में ही जाते हैं. दुकानें अगर जल्दी बंद हो गईं तो खरीदारी दिन की ही तरह शाम में भी मंदी ही रहेगी.
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कारखानों का संकट
लोहा, स्टील के सामान बनाने वाले कारखानों में दिन-रात काम चलता है. भट्टियां दिन-रात जलती रहती हैं, मजदूर शिफ्टों में काम करते हैं और सामान की आवाजाही तो रात में ही होती है. फैक्टरी मालिकों को डर है कि रात के कर्फ्यू से इन सब चीजों पर असर पड़ेगा.
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रेस्तरां वालों को नुकसान
सभी खाने पीने वाले संस्थानों में भी लोग शाम के बाद ही आते हैं और देर रात भोजन कर के वापस लौटते हैं. जल्दी बंद करने से इन्हें भी कमाई करने के लिए ज्यादा वक्त नहीं मिलेगा.
तस्वीर: Sajjad HUSSAIN/AFP
ऑटो/टैक्सी चलाने वालों को नुकसान
ऑटो/टैक्सी वालों को भी तालाबंदी में भारी नुकसान हुआ था. अभी भी उनकी कमाई महामारी के पहले जैसे स्तर से बहुत दूर थी, और अब फिर से रात को आवाजाही पर प्रतिबंध लगने से पिछले साल के नुकसान की भरपाई के रास्ते भी बंद हो गए हैं.
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शादी, अन्य कार्यक्रमों की दिक्कत
जिन लोगों ने पहले से शादी जैसे कार्यक्रमों की तारीख तय की हुई है और सभी इंजताम कर लिए हैं, वो सोच में हैं कि कहीं विवाह स्थल 10 बजे के बाद बंद तो नहीं कर दिए जाएंगे. मेहमानों के आने-जाने पर भी असर पड़ सकता है.
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अर्थव्यवस्था पर असर
उत्पादन, बिक्री और अन्य आर्थिक गतिविधियां अगर घटेंगी तो जीडीपी के बढ़ने की दर पर भी असर पड़ेगा. कर वसूली के जरिए होने वाली सरकार की कमाई को भी चोट पहुंचेगी.
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रमजान हो जाएगा फीका
13 अप्रैल से रमजान का महीना शुरू हो रहा है और मुस्लिम श्रद्धालुओं को चिंता है कि कर्फ्यू की वजह से वो फीका पड़ जाएगा. रमजान में तरावीह की खास नमाज मस्जिदों में रात में ही पढ़ी जाती है और दिन भर के रोजे के बाद इफ्तार, मिलना-जुलना और खरीदारी समेत सब कुछ शाम को ही होता है. कई लोग रोजा तोड़ने के लिए छोटे रेस्तरां जैसी जगहों पर भी निर्भर होते हैं.