असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के अधिकारियों का कहना है कि तालाबंदी के शुरू होने के बाद उद्यान के अंदर और उसके आस-पास जानवरों के अवैध शिकार की कोशिशें बढ़ गई हैं.हाल ही में एक दुर्लभ एक सींघ वाले गैंडे का शव मिला है.
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तालाबंदी के दौरान असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में रहने वाले जानवरों के लिए संकट बढ़ गया है. उद्यान के अधिकारियों का कहना है कि तालाबंदी के दौरान वहां जानवरों के अवैध शिकार की कोशिशें बढ़ गई हैं. हाल ही में एक दुर्लभ एक सींघ वाले गैंडे को मार दिया गया.
काजीरंगा में एक सींघ वाले गैंडों की विश्व में सबसे बड़ी आबादी रहती है. तालाबंदी में उद्यान के पास वाले राज्यमार्ग पर वाहनों की कमी की वजह से जानवर उद्यान की सीमाओं तक चले जा रहे हैं और उनका शिकार करना आसान हो जा रहा है. उद्यान के निदेशक पी शिवकुमार ने बताया, "हमें शक है कि इस गैंडे को कम से कम दो या तीन दिन पहले मारा गया होगा." उन्होंने यह भी बताया कि गैंडे का सींघ गायब है.
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार गैंडे के एक सींघ से शिकारी ब्लैक मार्केट में डेढ़ लाख डॉलर या लगभग 60,000 डॉलर प्रति किलो कमा सकते हैं. चीन की पारंपरिक इलाज पद्धत्तियों में गैंडे के सींघ का इस्तेमाल होता है और इस वजह से विदेश में इसकी बहुत डिमांड है. शिवकुमार ने यह भी बताया, "हमें एके 47 बंदूक के खाली कारतूसों के आठ राउंड भी मिले हैं."
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उन्होंने बताया कि गैंडे का शव उद्यान में एक पानी के स्त्रोत के पास मिला और इसकी अवैध शिकार की एक घटना के रूप में पुष्टि हो चुकी है. काजीरंगा यूनेस्को में सूचीबद्ध एक धरोहर स्थल है. अधिकारियों का कहना है कि यहां यह एक साल में अवैध शिकार का पहला मामला है. बीते वर्षों में कई मामले देखे गए हैं.
अधिकारियों का कहना है कि 25 मार्च से देश भर में तालाबंदी के शुरू होने के बाद उद्यान के अंदर और उसके आस-पास अवैध शिकार की कोशिशें बढ़ गई हैं. अप्रैल में इन दुर्लभ जानवरों को मारने की पांच से भी ज्यादा कोशिशों को उद्यान के रेंजर्स ने विफल कर दिया. राज्य सरकार ने गैंडों की सुरक्षा के लिए एक विशेष फोर्स भी गठित की है.
एक सींघ वाले गैंडे कभी इस इलाके में बहुतायत में हुआ करते थे, लेकिन शिकार और हैबिटैट के खोने से अब इनकी संख्या सिर्फ कुछ हजारों में रह गई है. इनमें से लगभग सब के सब असम में ही हैं. काजीरंगा ही अब इनका मुख्य ठिकाना है जहां इन्हें आश्रय मिलता है. 2018 में हुई एक गणना के अनुसार यहां 2,413 एक सींघ वाले गैंडे हैं.
काजीरंगा 850 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इसकी स्थापना 1908 में हुई थी जब असम दौरे पर गईं तत्कालीन ब्रिटिश वाइसराय की पत्नी ने शिकायत की थी कि वहां तो एक भी गैंडा नहीं है. अब उद्यान में गैंडों में अलावा बाघ, हाथी और तेंदुए भी रहते हैं.
कहीं हवा साफ हो रही, कहीं नदियां तो कहीं जानवर और पक्षी बेफिक्र घूम रहे हैं. लगता है कि कोरोना संकट पर्यावरण पर काफी अच्छा असर छोड़ कर जाएगा. लेकिन कुछ बुरे असर भी होंगे जिन पर लोगों का ध्यान नहीं जा रहा है.
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बेहतर हवा
दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी अपने घरों में कैद है. लॉकडाउन के चलते सड़कें खाली पड़ी हैं. कई देशों में फैक्ट्रियां बंद पड़ी हैं. सैटेलाइट की तस्वीरें दिखाती हैं कि शहरों में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार नाइट्रोजन डाइऑक्साइड गैस में भारी कमी आई है.
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फैक्ट्रियों से छुटकारा
नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के साथ साथ कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में भी भारी गिरावट देखी गई है. आंकड़े बताते हैं कि आखिरी बार ऐसा 2008-09 के आर्थिक संकट के दौरान हुआ था. अकेले चीन में ही लॉकडाउन के दौरान CO2 उत्सर्जन में 25 फीसदी की कमी आई.
इंसानों की गैर मौजूदगी में कई जानवर अब सड़कों पर निकलने लगे हैं. लेकिन जब लॉकडाउन खत्म होगा तब क्या होगा? जानवरों के लिए यह अजीब सी स्तिथि होगी. और वे आवारा जानवर जो इंसानों द्वारा दिए जाने वाले खाने पर निर्भर करते थे, वे अब भूखे मर रहे हैं.
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अवैध शिकार
कोरोना संकट के बीच वुहान का मीट बाजार सुर्खियों में छाया हुआ है जहां वैध और अवैध रूप से जंगली जानवरों का कारोबार होता है. उम्मीद है कि अब इतनी बहस के बाद जंगली जानवरों के अवैध शिकार पर रोक लग सकेगी.
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साफ पानी
इटली में लॉकडाउन के कुछ ही दिन बाद वेनिस की साफ पानी वाली तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं. इस दौरान क्रूज शिप नहीं चल रहे हैं, जिससे ना केवल पानी साफ हुआ है, बल्कि समुद्र में ध्वनि प्रदूषण भी रुका है. भारत में गंगा और यमुना भी साफ दिख रही हैं.
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प्लास्टिक कूड़ा
कोरोना संकट का सबसे बड़ा नुकसान है प्लास्टिक की बड़ी खपत, फिर चाहे अस्पतालों में इस्तेमाल होने वाला डिस्पोजेबल सामान हो, आम लोगों द्वारा पहने जा रहे डिस्पोजेबल ग्लव्स या फिर सुपरमार्केट में बिक रहा पैक्ड सामान. जहां कहीं कैफे खुले हैं वे बी डिस्पोजेबल कप इस्तेमाल कर रहे हैं.
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जलवायु की कोई बात नहीं
इस वक्त दुनिया भर का ध्यान सिर्फ और सिर्फ कोरोना संकट से निपटने में है. ऐसे में जलवायु परिवर्तन पर बहस रुक गई है. हमारी हवा और नदियां इस दौरान साफ जरूर हुई हैं लेकिन हमेशा के लिए नहीं. लॉकडाउन खुलने के बाद सब फिर से वैसा ही हो जाएगा. (रिपोर्ट: इनेके म्यूलेस/आईबी )