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तालाबंदी में गर्भपात कराना हुआ मुश्किल

१८ अप्रैल २०२०

कोविड-19 संकट महिलाओं को मजबूर कर सकता है कि वो या तो बिना किसी की देखरेख में गर्भपात की दवाइयां लें या ऐसे लोगों से मदद ले लें जिन्हें पूरा प्रशिक्षण नहीं मिला है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. F. Calvert

भारत में तालाबंदी के दौरान गर्भपात को जरूरी सेवा की श्रेणी में रखा गया है लेकिन जानकार कह रहे हैं कि महिलाओं को मेडिकल मदद लेने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है. ऐसे में डर है कि गर्भपात की इच्छुक महिलाएं जोखिम भरे विकल्प ना उठा लें या अपनी मर्जी के खिलाफ जन्म देने पर मजबूर ना हो जाएं. परिवहन सेवाएं बंद हैं, स्वास्थ्य सेवाऐं सीमित रूप से चल रही हैं और आवाजाही पर प्रतिबंध लगे हुए हैं. ऐसे में गर्भपात की स्वतंत्रता के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि कोविड-19 संकट महिलाओं को मजबूर कर सकता है कि वो या तो बिना किसी की देखरेख में गर्भपात की दवाइयां ले लें या ऐसे लोगों से मदद ले लें जिन्हें पूरा प्रशिक्षण नहीं मिला है.

स्त्री-रोग विशेषज्ञ और महिला अधिकार कार्यकर्ता सुचित्रा दलवी ने एक टेलिफोनिक इंटरव्यू में समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "गर्भपात के इर्द गिर्द हमेशा एक सामाजिक वर्जन और चुप्पी रहती है...और महिलाएं अभी और भी कमजोर हैं. इसीलिए, ये बार बार कहना जरूरी है कि इन हालात में भी आपकी जिंदगी, आपके चुनने का अधिकार और आपका निर्णय मायने रखता है." उस 19 साल की महिला को ही लीजिये जिसके साथ बलात्कार हुआ था और वह गर्भवती है. यह उसे तभी मालूम हुआ जब मुंबई और पूरे देश में तीन सप्ताह की तालाबंदी लागू हो गई.

सेंटर फॉर एन्क्वायरी इंटू हेल्थ एंड एलाइड थीम्स (सीईएचएटी) की संगीता रेगे कहती हैं, "आम दिनों में हम किसी अस्पताल की एम्बुलेंस सेवा का इस्तेमाल कर लेते. पर अभी यह कैसे संभव है? क्या गर्भपात एक जरूरी सेवा है?" सीईएचएटी की काउंसलिंग सेवाओं को सरकार ने तालाबंदी के दौरान जरूरी सेवाओं की श्रेणी में डाला हुआ है. दुनिया भर में अधिकार समूहों ने अमेरिका से लेकर पोलैंड तक में अधिकारियों से अपील की है कि वे गर्भपात को एक ऐसे मानवाधिकार का दर्जा दें जिसे महामारी के दौरान संरक्षण की जरूरत है.

तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Maqbool

उनका कहना है कि वायरस के आगे महिलाएं विशेष रूप से जोखिम में हैं, चाहे वो हिंसक पार्टनर की वजह से हो या गर्भ-निरोध के साधनों की कमी की वजह से.

महामारी का महिलाओं पर अलग असर

14 अप्रैल को भारत सरकार ने घोषणा की कि गर्भपात 20 से भी ज्यादा जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं में शामिल है. इसके पीछे उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश में हर साल गर्भपात कराने वाली लाखों महिलाओं को स्वास्थ्य सेवाएं मिलती रहें. लेकिन वह बलात्कार पीड़िता गर्भपात सीईएचएटी के हस्तक्षेप के बाद ही करवा पाई, जिसने पास और अस्पताल तक जाने का इंतजाम किया. रेगे ने बताया, "हम उसके घर गए फिर उसे ले कर एक सरकारी अस्पताल गए और उसका गर्भपात करवाया. तालाबंदी में जबरन सेक्स एक गंभीर समस्या है और ऐसे में गर्भपात सेवाओं की जरूरत पड़ सकती है".

महिला अधिकार कार्यकर्ताओं को डर है कि महामारी का भारत की 59 करोड़ महिलाओं पर अलग से असर पड़ेगा क्योंकि घरेलू हिंसा भी बढ़ रही है, स्वास्थ्यकर्मियों में भी अधिकतर महिलाएं हैं जिन पर ज्यादा बोझ पड़ रहा है और कई तरह की सेवाएं हैं जिन तक पहुंचना कठिन हो गया है. कई राज्य सरकारों ने महिलाओं को घरेलू हिंसा की जानकारी देने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए विज्ञापन जारी किए हैं और जगह जगह पोस्टर लगाए हैं. केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने सभी राज्यों से कहा है कि वे सुनिश्चित करें कि सभी महिला हेल्पलाइन ठीक से काम कर रही हों.

माहवारी से सम्बंधित स्वास्थ्य सेवाएं मिलती रहें इस बारे में भी विशेष निर्देश जारी किए गए हैं. भारत के 130 करोड़ लोग कम से कम 3 मई तक तालाबंदी में रहेंगे. देश में कोविड-19 के कुल मामले 12,000 से भी ऊपर जा चुके हैं.

तस्वीर: Getty Images/Y. Nazir

संरक्षण के बावजूद गर्भपात मुश्किल

जानकारों का कहना है कि संरक्षण मिलने के बावजूद गर्भपात करवाना अब मुश्किल हो गया है क्योंकि अस्पताल और स्वास्थ्यकर्मी महामारी की रोकथाम में लगे हुए हैं और स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों का 70 प्रतिशत बोझ उठाने वाले कई निजी संस्थान बंद हो गए हैं. उसके ऊपर से गर्भपात के साथ एक प्रकार का सामाजिक कलंक आज भी जुड़ा हुआ है, बावजूद इसके कि इसे कानूनी वैधता मिले चार दशक से भी ज्यादा बीत चुके हैं.

स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ता पद्मा देवस्थली कहती हैं, "एक महिला जिसे बुखार हो वो पुलिसवालों को बता पाएगी कि वो अस्पताल क्यों जा रही है, लेकिन एक गर्भवती महिला क्या कहेगी? ये ज्यादा पेचीदा है". स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, भारत में हर रोज 10 महिलाएं असुरक्षित गर्भपात की वजह से अपनी जान गवां देती हैं, आधे से ज्यादा गर्भपात बिना प्रशिक्षण प्राप्त कर्मियों द्वारा ऐसे माहौल में किए जाते हैं जो स्वच्छ नहीं होता.

यह संख्या इस संकट के दौरान बढ़ सकती है, इसका डर बढ़ रहा है. रेगे ने बताया कि उनकी संस्था को कई दिन लगे एक ऐसी महिला की मदद करने में जो अपने पति के द्वारा की गई हिंसा की शिकार थी और अपने 14 सप्ताह के गर्भ को गिराना चाह रही थी. उन्होंने बताया, "वो जबरन किए गए सेक्स की वजह से गर्भवती हो गई थी. हमने कई अस्पतालों से संपर्क किया और कई दिनों बाद एक म्युनिसिपल अस्पताल तैयार हो गया. लेकिन अब हम महिला से संपर्क ही नहीं कर पा रहे हैं".

भारत में दवा के द्वारा गर्भपात मेडिकल देख रेख में गर्भ के पहले सात सप्ताह में किया जा सकता है. उसके बाद सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है. 24 सप्ताह के बाद गर्भपात की इजाजत नहीं है. कार्यकर्ताओं का कहना है कि महिलाओं को अब डर लग रहा है कि तालाबंदी में 24 सप्ताह की समय सीमा समाप्त हो जाएगी. शोधकर्ता चंद्र शेखर का कहना है, "तालाबंदी के बाद यह रिसर्च करनी पड़ेगी कि कहीं अनचाहे प्रसव की संख्या बढ़ तो नहीं गई". जानकारों को डर है कि तालाबंदी एक अनचाही स्थायी विरासत ना छोड़ जाए.

सीके/ओजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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