निजी संस्था सीएमआईई के अनुसार रोजगार की स्थिति मार्च से गिरनी शुरू हो गई थी, लेकिन अप्रैल के पहले सप्ताह में इसमें बहुत तेज बदलाव आया. जो बेरोजगारी दर मार्च के बीच में 8.4 प्रतिशत थी वो अब बढ़ कर 23.4 प्रतिशत हो गई है.
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कुछ दिन पहले महामारी और तालाबंदी के बीच अपने अपने गृह राज्यों की तरफ लौट के जाते श्रमिकों और दिहाड़ी मजदूरों ने जिस संकट की ओर इशारा किया था उसकी पुष्टि होनी शुरू हो गई है. निजी संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने कहा है कि यूं तो तालाबंदी के पहले भी देश में रोजगार को लेकर स्थिति आशाजनक नहीं थी, लेकिन संक्रमण के फैलने और तालाबंदी के शुरू होने के बाद देश में बेरोजगारी के आंकड़ों में बहुत बड़ा उछाल आया है.
इस बारे में कोई सरकारी आंकड़ा अभी तक आया नहीं है. काफी लंबे समय से सरकारी आंकड़ों को लेकर विवाद भी चल रहा है क्योंकि केंद्र सरकार पर आंकड़ों को छिपाने का आरोप है. सीएमआईई एक निजी संस्था है जो हर सप्ताह देश में रोजगार की स्थिति पर सर्वेक्षण करती है. सीएमआईई के अनुसार रोजगार की स्थिति मार्च की शुरुआत से ही, यानी तालाबंदी के पहले ही गिरनी शुरू हो गई थी, लेकिन मार्च के आखिरी सप्ताह और अप्रैल के पहले सप्ताह में इसमें बहुत तेज बदलाव आया.
मार्च में बेरोजगारी दर 8.7 प्रतिशत थी जो कि अपने आप में पिछले साढ़े तीन सालों में सबसे ऊंची बेरोजगारी दर थी. बेरोजगारी दर का मतलब है उन लोगों का प्रतिशत जो नौकरी ढूंढ रहे थे लेकिन उन्हें मिली नहीं. जनवरी से मार्च के बीच बेरोजगार लोगों की संख्या तीन करोड़ 20 लाख से बढ़ कर तीन करोड़ 80 लाख हो गई. जो बेरोजगारी दर मार्च के बीच में 8.4 प्रतिशत थी वो अब बढ़ कर 23.4 प्रतिशत हो गई है.
दूसरे विशेषज्ञों की माने तो तालाबंदी के दौरान करोड़ों लोगों के रोजगार पर असर पड़ने का यह शुरूआती अनुमान है. मीडिया में आई एक रिपोर्ट के अनुसार अर्थशास्त्री और भारत के पूर्व चीफ स्टैटिस्टिशियन प्रोनब सेन का अनुमान है कि इस दौरान कम से कम पांच करोड़ लोगों का रोजगार छीन गया होगा. केंद्र सरकार में आर्थिक मामलों के सचिव रह चुके सुभाष चंद्र गर्ग का कहना है कि यह आंकड़ा 10 करोड़ तक हो सकता है.
एक मुकम्मल अध्ययन के अभाव में यह सब सांकेतिक अनुमान हैं लेकिन अधिकतर विशेषज्ञों का मानना है कि संकेत की दिशा सही है. आशंका है कि असलियत इस से भी भयावह निकले. देखना होगा कि आने वाले दिनों में सरकार इस विषय पर एक मजबूत सर्वेक्षण करवाती है या नहीं और इस संकट से निबटने के लिए क्या उपाय ले कर आती है.
मेक्सिको में बहुत सारे लोग पटरी पर दुकान लगाकर अपना और अपने परिवार की रोजीरोटी चलाते हैं. कोरोना महामारी ने उनके लिए परेशानी पैदा कर दी है. जान बचाएं कि पेट पालें.
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मेक्सिको सिटी
मेक्सिको की सरकार ने 1 अप्रैल को हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दी और कोरोना वायरस को रोकने के लिए सख्त कदमों की घोषणा की. इसका असर मेक्सिको सिटी पर भी हुआ है, जो पर्यटकों में बहुत लोकप्रिय है.
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टेपिटो बाजार
इस बाजार को टेपिटो इलाके में बसा होने के कारण खतरनाक माना जाता है. मजदूरों की ये इलाका कभी अपनी बहादुरी के लिए प्रसिद्ध था, लेकिन अब इसे चोरों और ड्रग डीलरों का अड्डा माना जाता है.
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ऐतिहासिक केंद्र
टेपिटो बाजार चार गलियों में बने बाजारों से बना है. यह मेक्सिको सिटी के ऐतिहासिक केंद्रीय इलाके के पास ही है. इसलिए यह पर्यटकों में भी लोकप्रिय है. सिर्फ इस इलाके में वही जाते हैं जो संभल कर जा सकें.
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बाजार लगाने की तैयारी
यहां एक स्थानीय दुकानदार अपनी दुकान लगाने की तैयारी कर रहा है. इलाके में कम आय वर्ग के लोगों को किफायती सामान मिल जाता है. भारत में भी बड़े शहरों में इस तरह के बाजार देखे जा सकते हैं.
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रेहड़ी वालों की मुश्किल
अलफांसो रेमिरेज पिछले 50 साल से रेहड़ी लगाकर रोजी रोटी कमाते रहे हैं. अब वे राजधानी में डीवीडी बेचते हैं. कोरोना वायरस को रोकने के लिए उठाए गए कदमों ने उनकी दुकानदारी ठप्प करा दी है.
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कोई नहीं आता पॉलिश करवाने
अलफांसो जैसा ही हाल मानुएल खेमिनेज का है. वे तीस साल से मेक्सिको सिटी में जूतों की पॉलिश कर रहे हैं. लेकिन लॉकडाउन के जमाने में कोई जूते पॉलिश करनावे नहीं आ रहा.
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परेशान हैं ये दुकानदार
मार्ता दे लोपेज मेक्सिको सिटी के प्लाजा सान खुआन इलाके में हाथ से बनाए गए सामान बेचती है. लेकिन जब से ग्राहक नहीं आ रहे हैं, उसकी कमाई नहीं हो रही है.
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क्या करें रेहड़ी वाले
सराई और उसके पति का तो और बुरा हाल है. वे पटरी पर जड़ी बूटियां और हर्बल चीजें बेचते हैं. ये भी अभी नहीं बिक रहा. कुछ चीजें तो जल्दी खराब होने वाली भी हैं. उनके चार बच्चे भी हर दिन काम पर उनके साथ होते हैं.
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पुलिस बंद करवा रही हैं दुकानें
पटरियों पर सामान बेचने वालों को अब पुलिस अपने घरों में भेज रही है. नोरा और उसकी मां वेलेंसिया अभी भी अपनी रेहड़ी लगा रहे हैं, लेकिन खरीदार अपने घरों में बंद हैं तो उनकी दुकान पर कोई सामान खरीदने नहीं पहुंच रहा.