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तालिबान लड़ सकता है राष्ट्रपति का चुनाव

२ नवम्बर २०१२

अफगानिस्तान के चुनाव आयोग ने कह दिया है कि देश में अगले राष्ट्रपति चुनाव के लिए तालिबान अपने उम्मीदवार खड़े कर सकता है. जानकारों की राय में सरकार का यह कदम दोधारी तलवार साबित हो सकता है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

अफगानिस्तान में अगले साल 5 अप्रैल को राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. अफगानिस्तान पर नजर रखने वाले ज्यादातर लोग इस चुनाव को देश के लिए बेहद अहम मानते हैं जो या तो इसे स्थिरता की ओर ले जाएगा या फिर अराजकता की आग इसे अपनी चपेट में ले लेगी. राष्ट्रपति के रूप में देश की दो बार सत्ता संभाल चुके हामिद करजई संवैधानिक प्रतिबद्धताओं के कारण तीसरी बार चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. फिलहाल उनकी जगह लेने वाला दूसरा कोई चर्चित चेहरा अब तक नजर नहीं आया है.

तस्वीर: AP

कई जानकार मानते हैं कि राष्ट्रपति हामिद करजई की सरकार अक्षम और भ्रष्ट है. अगले चुनाव इसलिए भी अहम हैं क्योंकि एक दशक से ज्यादा वक्त बिताने का बाद नाटो के नेतृत्व वाली विदेशी फौजें जून 2014 से वापस लौटना शुरू कर देंगी. अफगानिस्तान के स्वतंत्र चुनाव आयोग (आईईसी) के प्रमुख फाजिल अहमद मनावी ने कहा है, "हम तो सशस्त्र विपक्ष के लिए भी जमीन तैयार कर हैं, अब वो चाहे तालिबान हो या हिज्ब ए इस्लामी, वो चुनाव में भाग ले सकते हैं, मतदाता के रूप में या उम्मीदवार बन कर. किसी तरह का भेदभाव नहीं होगा."

तालिबान ने 2009 के चुनावों का बहिष्कार किया था जिनमें राष्ट्रपति हामिद करजई ने पूर्व विदेश मंत्री अब्दुल्ला अब्दुल्ला को शिकस्त दी. इन चुनावों में भारी पैमाने पर धांधली के आरोप लगे. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने इस के लिए करजई सरकार की बड़ी आलोचना की.

सुलह सफाई की कोशिश

सरकार ने तालिबान को बातचीत का न्योता दिया है. अफगानिस्तान एनालिस्ट नेटवर्क के सह निदेशक थॉमस रटिग ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि तालिबान को चुनाव में शामिल होने का न्योता कोई नई बात नहीं है. 2009 के चुनाव में भी ऐसा ही आमंत्रण दिया गया था लेकिन तालिबान ने इसे स्वीकार नहीं किया. रटिग ने उम्मीद जताई है कि शायद इस बार तालिबान मान जाए, "मुझे उम्मीद है कि तालिबान यह मानेगा कि अफगान विवाद के हल का कोई सैन्य उपाय नहीं है." इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अफगानिस्तान में एक लंबी राजनीतिक प्रक्रिया की शुरुआत हो रही है जिसमें अफगान सरकार, अमेरिका और तालिबान समेत कई पक्ष शामिल हैं.

अफगान सरकार और अमेरिका ने तालिबान के साथ सुलह सफाई के लिए पिछले साल ही अलग अलग कोशिशें शुरू कीं, हालांकि अब तक दोनों में कोई भी कामयाब नहीं हो सका है. रटिग का मानना है कि अफगानिस्तान और अमेरिका को देश के हथियारबंद गुटों से शांति वार्ता के लिए एक "स्पष्ट रणनीति" बनानी होगी.

डीडब्ल्यू की अफगान सर्विस से जुड़े अब्दुल हाकिम बारी का कहना है कि तालिबान को चुनाव में हिस्सा लेने की अनुमति तभी देनी चाहिए जब वो अफगान संविधान के मानवाधिकार जैसे मूल सिद्धांतों से सहमत हों. हालांकि तालिबान अफगान संविधान को मान्यता नहीं देता है. बारी का मानना है कि तालिबान नेता भले ही चुनाव में भाग ले लें लेकिन एक गुट या संगठन के रूप में तालिबान इन चुनाव में शामिल हो, इसकी उम्मीद बहुत कम है.

सरकार तालिबान को चुनाव के लिए मनाने में लगी है. इस बीच हिंसा का तांडव जारी है. बुधवार को सड़क किनारे हुए एक बम धमाके में 17 लोग मारे गए. मरने वालों में ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं. अधिकारियों ने इस धमाके के लिए "अफगानिस्तान के दुश्मनों" को जिम्मेदार बताया है. अफगान सरकार के अधिकारी अकसर इन शब्दों का इस्तेमाल तालिबान के लिए करते हैं.

एनआर/ओएसजे(एएफपी, डीपीए)

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