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'तालिबान से बातचीत एक राजनीतिक हादसा'

२० दिसम्बर २०११

अमेरिका के एक प्रभावशाली नेता ने कहा है कि अफगान मुद्दे को खत्म करने के सिलसिले में तालिबान के साथ बातचीत करना ओबामा प्रशासन के लिए राजनीतिक हादसे का रूप ले सकता है.

कैदियों का सौदातस्वीर: DW

अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के लिए अफगान मुद्दा एक अभिशाप सा बनता जा रहा है. जैसे जैसे ओबामा देश में सैनिकों को वापस लाने की बात कर रहे हैं, वैसे वैसे अफगानिस्तान में शांति कायम करना और तालिबान और सरकार के बीच सुलह कराना अहम मुद्दा बन गए हैं. जाहिर है मानवरहित ड्रोन हमलों, जमीनी कार्रवाई, तालिबान हमलों का सामना और शांति वार्ता आपस में मेल नहीं खा रहे और ओबामा प्रशासन अपनी बनाई हुई गुत्थी में उलझ गया है.

अब अमेरिकी अधिकारी ग्वांतानामो से तालिबान कैदियों को वापस अफगान सरकार की हिरासत में भेजने पर विचार कर रहे हैं. उनका कहना है कि तालिबान और अफगान सरकार के बीच अमन स्थापित करने में ऐसा करना बहुत उपयोगी साबित हो सकता है.

अफगान मुद्दे के सुलझने को लेकर अमेरिकी पत्रिका न्यूजवीक के साथ इंटरव्यू में उप राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी कहा था कि तालिबान "अपने आप में हमारा दुश्मन नहीं है." अमेरिकी अधिकारी लगातार कह रहे हैं कि असल बातचीत अफगान सरकार और तालिबान के बीच ही होनी चाहिए. हालांकि तालिबान की तरफ से शांति वार्ता को लेकर कोई साफ संकेत नहीं दिखाई दे रहे.

वहीं, वरिष्ठ रिपब्लिकन सीनेटर सैक्सबी चैंब्लिस अपने तर्कों के आधार पर इस प्रस्ताव को शक की नजर से देख रहे हैं. वे कहते हैं, "ऐसा लग रहा है जैसे कि प्रशासन आतंकवादियों के साथ समझौता करना चाहता है, जो अमेरिका आम तौर पर नहीं करता." चैंब्लिस अमेरिकी सीनेट की खुफिया समिति के सदस्य हैं.

चैंब्लिस के मुताबिक तालिबान कैदी सबसे पहले अमेरिका के लिए बड़ा खतरा हैं और उन्हें अफगान सरकार को सौंपना तालिबान के साथ संबंधों को बेहतर करने में सकारात्मक साबित नहीं होगा. अमेरिकी अधिकारी हालांकि यह मान कर नहीं चल रहे कि तालिबान अमेरिकी सरकार के इस कदम से समझौते के लिए तैयार होगा. लेकिन वे समझते हैं कि पांच तालिबान कैदियों को ट्रांसफर करने से अफगान सरकार और तालिबान के बीच भरोसा बढ़ाने में मदद मिलेगी. साथ ही तालिबान को आतंकवाद रोकने के लिए भी मनाना पड़ेगा जिससे अफगान सरकार और तालिबान के बीच शांति को लेकर बातचीत हो सकेगी.

अब तक अफगान युद्ध में हजारों अमेरिकी सैनिकों की जान जा चुकी है. पश्चिमी देश आखिरकार मान गए हैं कि अफगानिस्तान में स्थिति का सामान्य होना युद्धक्षेत्र में जीत या हार पर निर्भर नहीं है. राष्ट्रपति ओबामा के लिए अगले साल चुनावों में यह एक परेशानी खड़ी कर सकता है, इसके बावजूद कि उन्होंने अगले साल तक 33,000 सैनिकों को वापस बुलाने की बात कही है.

फंस रहे हैं ओबामातस्वीर: AP

रिपब्लिकन नेता अभी से ही तालिबान कैदियों के ट्रांसफर को लेकर आपत्ति जता रहे हैं. चैंब्लिस कहते हैं कि कैदियों को अफगान सरकार को तभी सौंपा जाना चाहिए जब तालिबान के साथ युद्धविराम पर कोई सहमति बने. साथ ही, अमेरिकी नागरिकों को बताना होगा कि कैदी कौन हैं और उन्होंने किस तरह के अपराध किए हैं. अमेरिकी अधिकारी भी इस बात से सहमत हैं और कहते हैं कि कैदियों को अफगानिस्तान भेजना एक "राष्ट्रीय फैसले" के जरिए होगा, मतलब कांग्रेस से सलाह लिए जाएंगे और कैदियों को लेकर नए कानूनों पर विचार किया जाएगा.

जहां तालिबान के साथ सुलह की बात हो रही है, वहीं राष्ट्रपति ओबामा आने वाले दिनों में रक्षा प्राधिकार बिल पर हस्ताक्षर कर सकते हैं जिसके बाद सेना को कैदियों के सिलसिले में और अधिकार दिए जाएंगे. विधेयक के मुताबिक सेना संदिग्ध आतंकवादियों की गिरफ्तारी में और हस्तक्षेप कर सकेगी. आतंकवादी कैदियों को ट्रांसफर या वापस भेजने का फैसला पेंटागन कुछ सुरक्षा मानकों के आधार पर करेगा. अब इस विधेयक के पारित होने के बाद तालिबान के साथ समझौते की संभावना और कम हो सकती है.

रिपोर्टः रॉयटर्स/एमजी

संपादनः महेश झा

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