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तालिबान से लड़ने के लिए महिला गवर्नर ने फौज बनाई

६ अगस्त २०२१

तालिबान को रोकने के लिए अफगानिस्तान की एक महिला गवर्नर अपने इलाके में फौज खड़ी कर रही है. अपनी जमीन और मवेशी बेच कर लोग हथियार खरीद रहे हैं और उनकी सेना में शामिल हो रहे हैं.

Afghanistan Distrikt-Gouverneurin Salima Mazari (C) Distrikt Charkint  Provinz Balkh
तस्वीर: FARSHAD USYAN/AFP

पिकअप की फ्रंट सीट पर सलीमा माजरी मजबूती से बैठी हैं. उत्तरी अफगानिस्तान के ग्रामीण इलाकों से गुजरती उनकी गाड़ी की छत पर लगे लाउडस्पीकर में एक मशहूर स्थानीय गाना बज रहा है. पुरुष प्रधान अफगानिस्तान के एक जिले की महिला गवर्नर माजरी तालिबान से लड़ने के लिए मर्दों की फौज जुटाने निकली हैं.  गाड़ी पर गाना बज रहा है, "मेरे वतन... मैं अपनी जिंदगी तुझ पर कुर्बान कर दूंगा." इन दिनों सलीमा अपने इलाके के लोगों से यही करने को कह रही हैं.

मई की शुरूआत से ही तालिबान अफगानिस्तान के ग्रामीण इलाकों में उमड़ा चला आ रहा है. यही वो समय था जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अमेरिका की सबसे लंबी लड़ाई खत्म करने और फौज की वापसी का हुक्म दिया था. इसके बाद से बहुत दूरदराज के पहाड़ी गांवों और घाटियों पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है. लेकिन चारकिंत पर नहीं.

बाल्ख प्रांत के मजार ए शरीफ से करीब घंटे भर की दूरी पर मौजूद चारकिंत सावधान है. तालिबान के शासन में महिलाओं और लड़कियों की पढ़ाई लिखाई और नौकरी पर रोक लग गई थी. 2001 में तालिबान का शासन खत्म होने के बाद भी लोगों का रवैया कुछ कुछ ही बदला है. माजरी कहती हैं, "तालिबनी बिल्कुल वही हैं जो मानवाधिकारों को कुचल देते हैं. सामाजिक रूप से लोग महिला नेताओं को स्वीकार नहीं कर पाते."

तस्वीर: HOSHANG HASHIMI/AFP via Getty Images

माजरी हजारा समुदाय से आती हैं और समुदाय के ज्यादातर लोग शिया हैं, जिन्हें सुन्नी मुसलमानों वाला तालिबान बिल्कुल पसंद नहीं करता. तालिबान और इस्लामिक स्टेट के लड़ाके उन्हें नियमित रूप से निशाना बनाते हैं. मई में ही उन्होंने राजधानी के एक स्कूल पर हमला कर 80 लड़कियों को मार दिया था.

माजरी के शासन वाले जिले का करीब आधा हिस्सा पहले ही तालिबान के कब्जे में जा चुका है. अब वे बाकि हिस्से को बचाने के लिए लगातार काम कर रही हैं. सैकड़ों स्थानीय लोग जिनमें किसान, गड़रिए और मजदूर भी शामिल हैं, उनके मिशन का हिस्सा बन चुके हैं.

माजरी बताती हैं, "हमारे लोगों के पास बंदूकें नहीं थीं लेकिन उन लोगों ने अपनी गाय, भेड़ें और यहां तक की जमीन बेच कर हथियार खरीदे. वो दिन रात मोर्चे पर तैनात हैं, जबकि ना तो उन्हें इसका श्रेय मिल रहा है, ना ही कोई तनख्वाह."

पुलिस के जिला प्रमुख सैयद नजीर का मानना है कि स्थानीय लोगों के प्रतिरोध के कारण ही तालिबान इस जिले पर कब्जा नहीं कर पाया है. उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "हमारी उपलब्धियां लोगों के सहयोग के दम पर हैं." नजीर का एक पैर लड़ाई में जख्मी हो गया है.

तस्वीर: AA/picture alliance

माजरी ने अब तक 600 लोगों को भर्ती किया है, जो लड़ाई के दौरान सेना और सुरक्षा बलों की जगह ले रहे हैं. इनमें 53 साल के सैयद मुनव्वर भी हैं जिन्होंने 20 साल तक खेती करने के बाद हथियार उठाया है. मुनव्वर ने कहा, "जब तक उन्होंने हमारे गांव पर हमला नहीं किया था, हम कारीगर और मजदूर हुआ करते थे. उन्होंने पास के गांव पर हमला किया और उनकी कालीनों और सामान पर छापा मारा... हम हथियार और गोलाबारूद खरीदने पर मजबूर हो गए."

21 साल के फैज मोहम्मद भी स्वयंसेवक हैं. तालिबान से लड़ने के लिए उन्होंने राजनीति शास्त्र की पढ़ाई फिलहाल रोक दी है. तीन महीने पहले तक उन्होंने कोई हमला भी नहीं देखा था लेकिन अब इतने ही दिन में उन्होंने तीन लड़ाइयां लड़ ली है. फैज का कहना है, "सबसे भारी लड़ाई कुछ रात पहले हुई थी जब हमने सात हमलों का जवाब दिया."

चारकिंत में गांव के लोगों का जहन आज भी तालिबान की बुरी यादों से भरा हुआ है. गवर्नर माजरी जानती हैं कि वो अगर वापस लौटे तो फिर किसी महिला के नेतृत्व को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. वे कहती हैं, "महिलाओं की पढ़ाई लिखाई के मौकों पर रोक लग जाएगी और युवाओं की नौकरियां नहीं मिलेंगी." ऐसे हालात बनने से रोकने के लिए अपने ऑफिस में वे मिलिशिया के कमांडरों के साथ बैठ कर अगली जंग की रणनीति बनाने में जुटी हैं.

एनआर/आईबी (एएफपी)

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