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तिरंगे में झलकता महिलाओं की मेहनत का रंग

९ जुलाई २०१८

क्‍या आप जानते हैं, लाल किले से लेकर विदेशों में मौजूद भारतीय दूतावास में फहराए जाने वाले झंडे कहां बनते हैं? कर्नाटक के एक गांव में महिलाएं इन झंडों को बनाती हैं और अब यहां से पुरुषों की संख्या लगातार कम हो रही है.

Indien Lucknow Unabhängigkeitstag
तस्वीर: DW/S. Waheed

तिरंगा भारतीयों का मान है. लेकिन कर्नाटक के तुसलीगिरी गांव की महिलाएं जब कहीं भी तिरंगे को फहरता देखती है तो उन्हें खास तौर से गर्व होता है. दुनिया भर में जहां कहीं भी तिरंगा फहर रहा है, वह उन्हीं के हाथों से बना है.

कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ भारत में आधिकारिक तौर पर तिरंगा बनाने वाली अकेली संस्था है. लेकिन यहां काम करने वाले पुरुषों की संख्या लगातार कम हो रही है. ग्रामोद्योग संघ की सुपरवाइजर अन्नपूर्णा कोटी बताती हैं, "पुरुषों में संयम की कमी देखी गई है. वे झंडे का नाप सही नहीं ले पाते जो सबसे महत्वपूर्ण है. उन्हें झंडे को दोबारा खोल कर नाप लेना पड़ता है जिसमें काफी वक्त निकल जाता है. कई पुरुष काम छोड़कर जा चुके हैं."

इस सरकारी संस्था में करीब 400 कामगार है जिसमें महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है. झंडे बनाने काम दो भागों में होता है. पहले तुलसीगिरी में कच्चे माल की प्रोसेसिंग की जाती है और यहां से दो घंटे की दूरी पर स्थित बेंगेरी में फाइनल काम होता है. यहां काम करने वाली महिलाएं कपड़े को कातने से लेकर झंडे को सिलने का काम करती हैं. पिछले साल यहां 60 हजार राष्ट्रीय ध्वज बनाए गए.

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भारतीय मानक ब्यूरो की ओर से झंडे के रंग और नाप निर्धारित है और उसे सभी को लागू करना होता है. यहां 15 वर्षों से काम करने वाली निर्मला इलाकल कहती हैं, "जरा सी गलती पर बनाया गया झंडा रिजेक्ट हो सकता है. हमें सतर्क होकर काम करना होता है."

कोटी के मुताबिक, यहां काम करने वाली महिलाएं ज्यादातर स्थानीय हैं और इन पर दुनियाभर में जाने वाले भारतीय तिरंगे का जिम्मा होता है. इन्हें घर भी संभालना होता है जिसकी वजह से ये ज्यादा बाहर जा नहीं सकतीं. महिलाओं में इस बात की तसल्ली है कि भले ही वे बाहर न जा पाती हो, लेकिन उनके बनाए राष्ट्रीय ध्वज दुनियाभर में फहराए जाते हैं.  

वीसी/एके (एएफपी)

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