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तीन लोगों के डीएनए से बच्चा

२६ फ़रवरी २०१४

अमेरिका की सरकारी स्वास्थ्य एजेंसी तीन लोगों के डीएनए से आनुवंशिक रूप से बेहतर इंसानी भ्रूण बनाने की तकनीक पर विचार कर रही है. भ्रूण को कृत्रिम रूप से बनाए जाने के फायदों की बात के साथ कई नैतिक सवाल भी खड़े हो रहे हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

यह तकनीक अब तक बंदरों पर टेस्ट की गई थी, इससे मिले नतीजों के आधार पर इस हफ्ते अमेरिक में फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) यह तय करेगा कि इस तरह के परीक्षण मनुष्य पर किए जाने की छूट दी जानी चाहिए या नहीं. इस तकनीक से 'डिजाइनर बच्चे' के जन्म में मदद मिल सकती है. पैदा हुए बच्चे में मां से अनचाहे गुण या जेनेटिक बीमारियां न पहुंचें इसके लिए उन्हें बदला जा सकता है. हालांकि तकनीक के खिलाफ नैतिकता के आधार पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं.

विरोध के स्वर

आलोचकों का मानना है कि इस तकनीक के आ जाने से माता पिता बच्चे की आंख का रंग, कद या बुद्धिमत्ता भी तय करने की कोशिश कर सकते हैं. तकनीक का समर्थन कर रहे वैज्ञानिक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि यह जीन मॉडिफिकेशन के बजाय जीन करेक्शन में काम आएगी.

डॉक्टर शूखरात मितालिपोव कहते हैं, "हम उन जीन्स को इस तकनीक से ठीक कर सकते हैं जो किसी कारण परिवर्तित हो गए और जो मानव शरीर के लिए हानिकारक हैं. हम उन्हें ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं, मुझे समझ नहीं आता कि इसका विरोध क्यों होना चाहिए."

पोर्टलैंड की ऑरिगॉन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी में डॉक्टर मितालिपोव की रिसर्च ने इस मुद्दे पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने साथी रिसर्चरों के साथ मिलकर डीएनए रिप्लेसमेंट तकनीक के जरिए पांच बंदरों के जन्म में मदद की. अब वह यह परीक्षण कुछ ऐसी महिलाओं पर करना चाहते हैं जिनमें दोषपूर्ण जीन्स के कारण बच्चे के स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है, जैसे दृष्टिहीनता या किसी अंग का निष्क्रिय होना.

कैसे काम करती है तकनीक

अमेरिका में हर साल पांच हजार में से एक बच्चा माइटोकॉन्ड्रिया में मौजूद दोषपूर्ण डीएनए के कारण इस तरह के रोगों के साथ पैदा होता है. माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए बच्चे में मां से आता है, पिता से नहीं. इस तकनीक के जरिए मां के सेल के वे ही डीएनए बच्चे में डाले जाएंगे जो न्यूक्लियस में होंगे न कि माइटोकॉन्ड्रिया के डीएनए. माइटेकॉन्ड्रियल डीएनए डोनर मां के होंगे.

इसे अंजाम देने के लिए रिसर्चर एक स्वस्थ डोनर महिला के अंडाणु के न्यूक्लियस डीएनए निकालकर मां के न्यूक्लियस डीएनए से बदल देते हैं. प्रजनन पर भ्रूण में मां के न्यूक्लियस डीएनए जाएंगे जो आंखों का रंग और कद जैसी खूबियां निर्धारित करते हैं, लेकिन माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए डोनर मां का होगा.

कई लोग इस बात की भी उम्मीद कर रहे हैं कि इसकी मदद से तीन लोगों के गुणों को मिलाकर बच्चे को पैदा किया जा सकेगा. लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि बात बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत की जा रही है. उनका मकसद केवल स्वस्थ बच्चे के जन्म में मदद करना है जिसके दोष जन्म से पहले डोनर मां के माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए के जरिए ठीक किए जा सकते हैं.

इस तकनीक से बच्चे के गुणों में हुए परिवर्तन आने वाली नस्लों में आगे बढ़ते जाएंगे. आलोचकों का सवाल यह भी है कि इससे अगर किसी तरह की स्वास्थ्य संबंधी तकलीफें आती हैं तो वे भी वंशानुगत होंगी. जर्मनी और फ्रांस समेत 40 से ज्यादा देशों में मानव जीन में वंशानुगत परिवर्तन करना प्रतिबंधित है.

एसएफ/एएम (एपी)

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