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तीस साल बाद भी एड्स की चुनौती

५ जून २०११

एक्वायर्ड इमियून डेफिशिएंसी सिंड्रोम यानी एड्स की पहचान तीस साल पहले कर ली गई थी. इतने सालों बाद भी यह बीमारी डॉक्टरों के लिए राज बनी हुई है. आज भी इस से बचने के लिए कोई टीका मौजूद नहीं है.

Caption: Sociedade, Economia e Comércio (02).jpg Title: STOP Discrimination Keywords: people prevencao AIDS campaigns diseases Who took the picture / photographer? Ismael Miquidade When the picture was taken? 18-01-2008 Where the picture was taken? Nampula, Mozambique / Mosambik Image Description: On what occasion / situation in which the image was taken? Who or what is shown in the picture? Sensitization campaigns present in the country. HIV, AIDS, SIDA. Aufklärung, Aufklärungskampagne in Mosambik. Photograph ist Ismael Miquidade, der die Rechte an die DW abgetreten hat. Zulieferer: Johannes Beck Eingestellt April 2011 Photograph ist Ismael Miquidade, der die Rechte an die DW abgetreten hat. Zulieferer: Johannes Beck Eingestellt April 2011
तस्वीर: Ismael Miquidade

5 जून 1981 को अमेरिका के 'डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन सेंटर' की साप्ताहिक पत्रिका 'मॉरबिडीटी एंड मॉरटैलिटी' में पहली बार एड्स का जिक्र किया गया. केवल दो पन्नों के इस लेख में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के माइकल गॉटलीब ने एक ऐसी रहस्यमयी बीमारी के बारे में लिखा जिसका शिकार पांच समलैंगिक पुरुष हुए. जब तक गॉटलीब ने यह रिपोर्ट लिखी तब तक इन में से दो की मौत हो चुकी थी. हालांकि उस समय तक यह कोई नहीं जानता था कि उनकी मौत की वजह एक ऐसा वाइरस है जो शरीर के प्रतिरक्षी तंत्र यानी एम्यून सिस्टम पर हमला करता है.

तस्वीर: DW

हर रोज हजारों बीमार

पिछले तीस सालों में वैज्ञानिकों ने एचआईवी वाइरस और एड्स के बारे में बहुत सी बातों का पता लगाया है. वैज्ञानिक ऐसी दवा बनाने में भी सफल रहे जिस से शरीर में एड्स के वायरस का बढ़ना कम किया जा सके. लेकिन हर तरह के प्रयोग कर लेने के बाद भी वे ऐसा टीका नहीं तैयार कर पाए हैं जिससे एड्स को वैसे ही रोका जा सके जैसे चिकनपॉक्स या खसरे को रोक दिया गया है. हालांकि वैज्ञानिक मानते हैं कि आने वाले समय में वे ऐसा टीका बनाने में सफल हो पाएंगे. वह इस बात से भी इनकार नहीं करते कि इसमें अभी काफी समय लग सकता है.

अब तक पूरी दुनिया में एड्स के कारण तीन करोड़ जानें जा चुकी हैं और छह करोड़ लोग इस बीमारी का शिकार हैं. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार प्रति दिन एड्स के सात हजार नए मामले सामने आते हैं, जिनमें एक हजार बच्चे होते हैं.

तस्वीर: picture alliance/dpa

लेकिन राहत की बात यह है कि यदि 2001 से 2009 तक के आंकड़े देखे जाएं तो एड्स के मामलों में 25 प्रतिशत की कमी आई है.

आम आदमी के लिए नहीं है दवा

क्योंकि एचआईवी वाइरस एम्यून सिस्टम पर हमला करता है इसलिए शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता धीरे धीरे खत्म हो जाती है. ऐसे में शरीर पर यदि कोई घाव हो जाए तो वह ठीक तरह से भर नहीं पाता. अधिकतर लोगों की मौत टीबी से होती है. वाइरस का असर कम करने के लिए जो दवाएं बनाई गई हैं वह इतनी महंगी हैं कि वह आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं.

भारत में सरकार पिछले करीब बीस सालों से एड्स को लेकर जागरूकता फैलाने की कोशिश कर रही है. सरकार के प्रयासों के कारण देश में एड्स के नए मामलों में पचास प्रतिशत की कमी भी आई है. लेकिन दुख की बात है कि इतने सालों बाद भी देश में अधिकतर लोग एड्स पर चर्चा करने से कतराते हैं. दुनिया में एड्स के सबसे अधिक मामले भारत और अफ्रीका में ही हैं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ईशा भाटिया

संपादन: ओ सिंह

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