तुर्की को लेकर जर्मन नीति में बड़े बदलाव की तैयारी
जेफरसन चेस
२० जुलाई २०१७
तुर्की में पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में डाले जाने पर जर्मनी नाराज है. विदेश मंत्री जिगमार गाब्रिएल ने जर्मन नागरिकों को चेतावनी दी है कि तुर्की जाने पर वे मुश्किलों में फंस सकते हैं.
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जर्मन विदेश मंत्री अपनी छुट्टियां बीच में छोड़ कर वापस बर्लिन पहुंचे हैं और उन्होंने तुर्की में पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल में डाले जाने पर सख्त बयान दिया. उन्होंने कहा, "हम चाहते हैं कि तुर्की पश्चिमी जगत का हिस्सा बने, या फिर कम से कम इस स्थिति में रहे लेकिन ताली दोनों ही हाथों से बजती है." उन्होंने कहा, "मुझे तुर्की की मौजूदा सरकार में ऐसी कोई इच्छा दिखायी नहीं देती है कि वह इस रास्ते पर हमारे साथ चल सके. इसीलिए जर्मनी तुर्की के बारे में अपनी नीति को नये सिरे से आकार देने को मजबूर हुआ है."
उन्होंने जर्मन नागरिकों से कहा कि उन्हें तुर्की जाने पर कुछ जोखिम उठाने पड़ सकते हैं और विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर जर्मन लोगों को सलाह दी गयी है कि वे तुर्की जाते समय "अत्यधिक सावधानी" से काम लें क्योंकि "अंतरराष्ट्रीय नियमों की अनदेखी" करते हुए तुर्की में हिरासत में लिये गए जर्मन नागरिकों से जर्मन राजनयिकों को नहीं मिलने दिया जा रहा है.
गाब्रिएल ने कहा कि ये कदम चांसलर अंगेला मैर्केल और आने वाले चुनाव में उनके प्रतिद्वंद्वी और चांसलर पद के उम्मीदवार मार्टिन शुल्त्स से सलाह मशविरे के बाद उठाये जा रहे हैं. दोनों देशों के बीच हाल के समय में कई मुद्दों पर तनाव देखने को मिला है.
तुर्की के बारे में जर्मनी अपनी नीति में बदलाव की बात ऐसे समय पर कर रहा है जब तुर्की में छह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया है. इनमें एक जर्मन पीटर श्टॉयटनर भी शामिल हैं. तुर्की इन लोगों पर आंतकवादियों का समर्थन करने आरोप लगा रहा है. गाब्रिएल ने श्टॉयटनर का खास तौर से जिक्र किया.
विदेश मंत्रालय ने कहा है, "इन आरोपों का कोई आधार नहीं है और इन्हें अतार्किक तरीके से लगाया जा रहा है." बयान के मुताबिक श्टॉयटनर ने तुर्की की राजनीति पर किसी तरह का रुख अख्तियार नहीं किया और वह संभवतः पहली बार तुर्की गये हैं.
इसी महीने इस्तांबुल में मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल के प्रतिनिधियों को भी गिरफ्तार किया गया. उस समय वे तुर्की में अपने साथियों को आईटी सुरक्षा और अहिंसक तरीके से संकट समाधान के बारे में बता रहे थे. जर्मन पत्रकार डेनिस यूचेल को भी तुर्की में फरवरी से कैद करके रखा गया है. इसके अलावा सात अन्य जर्मन नागरिक भी तुर्की की हिरासत में हैं.
कितना बदल गया तुर्की
बीते 15 साल में तुर्की जितना बदला है, उतना शायद ही दुनिया का कोई और देश बदला होगा. कभी मुस्लिम दुनिया में एक उदार और धर्मनिरपेक्ष समाज की मिसाल रहा तुर्की लगातार रूढ़िवाद और कट्टरपंथ के रास्ते पर बढ़ रहा है.
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एर्दोवान का तुर्की
इस्लामी और रूढ़िवादी एकेपी पार्टी के 2002 में सत्ता में आने के बाद से तुर्की बहुत बदल गया है. बारह साल प्रधानमंत्री रहे रेचेप तैयप एर्दोवान 2014 में राष्ट्रपति बने और देश को राष्ट्रपति शासन की राह पर ले जा रहे हैं.
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बढ़ा रूढ़िवाद
तुर्की इन सालों में और ज्यादा रूढ़िवादी और धर्मभीरू हो गया. जिस तुर्की में कभी बुरके और नकाब पर रोक थी वहां हेडस्कार्फ की बहस के साथ सड़कों पर ज्यादा महिलायें सिर ढंके दिखने लगीं.
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कमजोर हुई सेना
एकेपी के सत्ता में आने से पहले तुर्की की राजनीति में सेना का वर्चस्व था. देश की धर्मनिरपेक्षता की गारंटी की जिम्मेदारी उसकी थी. लेकिन एर्दोवान के शासन में सेना लगातार कमजोर होती गई.
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अमीर बना तुर्की
इस्लामी एकेपी के सत्ता में आने के बाद स्थिरता आई और आर्थिक हालात बेहतर हुए. इससे धनी सेकुलर ताकतें भी खुश हुईं. लेकिन नया धनी वर्ग भी पैदा हुआ जो कंजरवेटिव था.
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अक्खड़ हुआ तुर्की
एर्दोवान के उदय के साथ राजनीति में अक्खड़पन का भी उदय हुआ. खरी खरी बातें बोलने की उनकी आदत को लोगों ने इमानदारी कह कर पसंद किया, लेकिन यही रूखी भाषा आम लोगों ने भी अपना ली.
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नए सियासी पैंतरे
विनम्रता, शिष्टता और हया को कभी राजनीति की खूबी माना जाता था. लेकिन गलती के बावजूद राजनीतिज्ञों ने कुर्सी से चिपके रहना और दूसरों की खिल्ली उड़ाना सीख लिया. एर्दोवान के दामाद और उर्जा मंत्री अलबायराक.
तस्वीर: Reuters/M. Sezer
नेतृत्व की लालसा
कमालवाद के दौरान तुर्की अलग थलग रहने वाला देश था. वह दूसरों के घरेलू मामलों में दखल नहीं देता था. लेकिन एर्दोवान के नेतृत्व में तुर्की ने मुस्लिम दुनिया का नेतृत्व करने की ठानी.
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लोकतांत्रिक कायदों से दूरी
एकेपी के शासन में आने के दो साल बाद 2004 में यूरोपीय संघ ने तुर्की की सदस्यता वार्ता शुरू करने की दावत दी. तेरह साल बाद तुर्की लोकतांत्रिक संरचना से लगातार दूर होता गया है.
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ईयू से झगड़ा
तुर्की ने 2023 तक यूरोपीय संघ का प्रभावशाली सदस्य बनने का लक्ष्य रखा है. लेकिन अपनी संरचनाओं को ईयू के अनुरूप ढालने के बदले वह लगातार यूरोपीय देशों से लड़ रहा है.
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तुर्की में धर पकड़
2016 में तख्तापलट की नाकाम कोशिश के बाद तुर्की में हजारों सैनिक और सरकारी अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया गया है और सैकड़ों को जेल में डाल दिया गया है.
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एर्दोवान की ब्लैकमेलिंग?
2016 के शरणार्थी संकट के बाद एर्दोवान लगातार जर्मनी और यूरोप पर दबाव बढ़ा रहे हैं. पिछले दिनों जर्मनी के प्रमुख दैनिक डी वेल्ट के रिपोर्टर डेनिस यूशेल को आतंकवाद के समर्थन के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Arnold
इस्लामिक देश होगा तुर्की?
अप्रैल 2017 में तुर्की में नए संविधान पर जनमत संग्रह हुआ, जिसने देश को राष्ट्रपति शासन में बदल दिया. अब एर्दोवान 2034 तक राष्ट्रपति रह सकेंगे. सवाल ये है कि क्या तुर्की और इस्लामिक हो जाएगा.