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तुर्की खो रहा है ईयू में दिलचस्पी

१५ अक्टूबर २०१३

तुर्की के लिए यूरोपीय संघ की सालाना प्रगति रिपोर्ट 16 अक्टूबर को आ रही है. तुर्की के लोग ईयू की सदस्यता में दिलचस्पी खो रहे हैं, तो यूरोपीय संघ के विशेषज्ञों का मानना है कि तुर्की के विकास के लिए सदस्यता बहुत जरूरी है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

साल 2013 तुर्की और यूरोपीय संघ के रिश्तों में गहराई का साल है, खासकर इस्तांबुल के गेजी पार्क में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस की सख्त कार्रवाई के कारण. जून में ब्रसेल्स को तुर्की के साथ क्षेत्रीय नीति और संरचनात्मक बदलाव पर बातचीत करनी थी लेकिन जर्मनी और नीदरलैंड्स ने प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की जोर जबरदस्ती के कारण इसे रोक दिया.

ईयू की आलोचना

यूरोपीय संघ के दूत जां मोरिस रीपेय तुर्की की आलोचना करते हुए कहते हैं, "अभी भी वहां पहले की तरह प्रेस आजादी की कमी है." रीपेय का कहना है कि इसकी वजह से रिपोर्ट में सरकार की ओर से डराने धमकाने की कोशिशों और मीडिया के अंदर खुद की सेंसरशिप की भी चर्चा होगी. उनके मुताबिक मौलिक अधिकारों की हालत खराब है, जो उत्पीड़न पर रोक के लिए यूरोपीय समिति की ताजा रिपोर्ट भी दिखाती है. इस रिपोर्ट में जेलों में किशोरों के साथ दुर्व्यवहार के आरोप लगाए गए हैं.

ऐसा भी नहीं है कि ब्रसेल्स अंकारा की सिर्फ आलोचना ही कर रहा है. पिछले हफ्ते यूरोपीय संघ ने अंकारा की लोकतांत्रिक पहल की खुशी जताई और प्रधानमंत्री रिचेप तैयप एर्दोआन के सुधारों का स्वागत किया. इस पहल के तहत स्कार्फ पहनने पर लगी रोक में ढील देने के अलावा अल्पसंख्यकों को अधिक अधिकार दिए गए हैं. इन दोनों ही कदमों को यूरोपीय संघ के विस्तार के लिए जिम्मेदार आयुक्त स्टेफान फुले ने प्रगति बताया है. रीपेय ने कहा है कि रिपोर्ट में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई के अलावा सरकार की पहल का भी जिक्र होगा.

तुर्की के प्रधानमंत्री रिचेस तैयप एर्दोआनतस्वीर: Reuters

तुर्की की घटती दिलचस्पी

तुर्की 2005 से यूरोपीय संघ की सदस्यता का औपचारिक उम्मीदवार है. लेकिन तुर्की में इसके लिए दिलचस्पी खत्म होती जा रही है. एक ताजा सर्वे के अनुसार सिर्फ 44 फीसदी लोग यूरोपीय संघ की सदस्यता का समर्थन करते हैं. 2004 में उनकी संख्या 73 फीसदी थी. इसी तरह इस बीच 34 फीसदी लोग सदस्यता का विरोध कर रहे हैं, जबकि 9 साल पहले उनकी संख्या सिर्फ 9 फीसदी थी. इसके अलावा 38 फीसदी तुर्की निवासियों का मानना है कि उसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्वतंत्र रहना चाहिए जबकि सिर्फ 21 फीसदी चाहते हैं कि उसे यूरोपीय संघ के साथ सहयोग करना चाहिए.

इस बीच सरकार भी यूरोपीय संघ की सदस्यता की उम्मीद नहीं व्यक्त कर रही है. तुर्की में यूरोपीय मामलों के मंत्री एगेमन बागिज का मानना है कि तुर्की शायद कभी यूरोपीय संघ का सदस्य नहीं बनेगा. वे कहते हैं, "दूरगामी रूप से मैं समझता हूं कि तुर्की की भी हालत नॉर्वे जैसी होगी. हम यूरोपीय स्तर पा लेंगे, एक दूसरे से निकट रूप से जुड़े होंगे, लेकिन हम कभी सदस्य नहीं बनेंगे."

तुर्क अर्थव्यवस्था की जरूरत

तुर्की का आर्थिक जगत कुछ और ही बोल रहा है. तुर्की के उद्योग और वाणिज्य संघ के अध्यक्ष मुहर्रम इलमाज का मानना है कि तुर्की यदि आर्थिक विकास, राजनीतिक स्थिरता और लोकतांत्रिक विकास चाहता है तो उसे फिर से यूरोपीय संघ की सदस्यता की पुरजोर कोशिश करनी चाहिए. और पूर्व वाणिज्य मंत्री कमाल दरवीश भी तुर्की की ओर से सदस्यता की कोशिशें बढ़ाने की वकालत करते हैं.

स्टेफन फुलेतस्वीर: Reuters

आर्थिक पत्रकार मुस्तफा सोएनमेज कहते हैं, "आर्थिक तौर पर तुर्की को यूरोपीय संघ की जरूरत है." तुर्की की अर्थव्यवस्था बढ़ रही है और उसे विदेशी निवेश की जरूरत है. "विदेशी निवेश पाने के लिए यूरोपीय संघ का सदस्य होना या उम्मीदवार होना जरूरी है. विदेशी निवेशक किसी देश का आकलन खास मानकों पर करते हैं. यूरोपीय संघ की सदस्यता की कोशिश भर से विदेशी निवेशक आकर्षित होते हैं."

राजनीतिक मोटर की भूमिका

राजनीतिशास्त्री सेनम आयदिन देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में यूरोपीय संघ को मोटर मानती हैं, "खासकर पिछले पांच साल में साफ हो गया है कि यूरोपीय संघ के प्रभाव के बिना तुर्की के लोकतंत्र का नुकसान हुआ है." एर्दोआन के नए लोकतांत्रिक पैकेज से आयदिन को यूरोपीय संघ के साथ रिश्तों के बेहतर होने की कोई उम्मीद नहीं है. आयदिन का कहना है, "रिश्तों के पिछड़ने की मुख्य वजह साइप्रस समस्या है. यदि यह समस्या हल नहीं होती तो सदस्यता वार्ता में भी कोई प्रगति नहीं होगी."

यूरोपीय संघ की प्रगति रिपोर्ट के जारी होने के पहले से ही उसकी आलोचना शुरू हो गई है. यूरोपीय मामलों के मंत्री एगेमन बागिस ने मुस्लिम त्यौहार के दौरान इस रिपोर्ट के प्रकाशन की आलोचना की है. उन्होंने ट्वीट में लिखा, "ईद अल अदहा क्रिसमस की तरह है, इसलिए इस समय में रिपोर्ट का प्रकाशन नहीं करें. लेकिन वे सुनना नहीं चाहते, त्यौहार खत्म होने तक कोई टिप्पणी नहीं."

रिपोर्ट: सेनादा सोकुलू/एमजे

संपादन: आभा मोंढे

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